| Post Viewership from Post Date to 28- Oct-2025 (31st) Day | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 1739 | 83 | 8 | 1830 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
मेरठवासियों, जब हम अपने शहर की गलियों में जलती स्ट्रीट लाइटों (street lights), दिन-रात चलती मशीनों, और घरों में गर्मी से राहत देती पंखों की हवा को महसूस करते हैं, तो शायद ही कभी ठहरकर सोचते हैं कि इन सबके पीछे काम कर रही असली शक्ति कहाँ से आती है। ऊर्जा - जो हमारे जीवन की धड़कन है - वह केवल एक बटन दबाते ही नहीं आती, बल्कि उसके पीछे एक विशाल वैज्ञानिक, प्राकृतिक और औद्योगिक प्रक्रिया होती है। भारत जैसे विशाल देश में, और ख़ासतौर पर मेरठ जैसे तेज़ी से बढ़ते शहर में, इस ऊर्जा की रीढ़ आज भी एक पारंपरिक संसाधन है - कोयला। कोयला कोई साधारण पदार्थ नहीं है; यह लाखों वर्षों से पृथ्वी के भीतर दबे जैविक अवशेषों का परिणाम है, जो अब हमारी आर्थिक और तकनीकी प्रगति का आधार बन चुका है। मेरठ, जहाँ छोटे-बड़े उद्योग, शिक्षा संस्थान और तेज़ी से फैलती शहरी आबादी है, वहाँ बिजली की माँग केवल सुविधा नहीं, बल्कि ज़रूरत बन चुकी है। ऐसे में यह जानना बेहद ज़रूरी है कि जिस कोयले से यह ऊर्जा निकलती है, उसकी गुणवत्ता किस बात पर निर्भर करती है? और इसका उत्तर एक ही शब्द में छिपा है - कार्बन (carbon)। कार्बन ही वह तत्व है जो कोयले की असली पहचान तय करता है - वह कोयला उच्च गुणवत्ता वाला है या साधारण, वह ऊर्जा ज़्यादा देगा या कम, वह साफ़ जलेगा या धुएँ से भरा होगा। यह लेख, इस सूक्ष्म लेकिन बेहद महत्वपूर्ण तत्व पर केंद्रित है। इसमें हम समझेंगे कि कोयले के भीतर मौजूद कार्बन की मात्रा किस तरह से न केवल ऊर्जा उत्पादन को प्रभावित करती है, बल्कि हमारे पर्यावरण, हमारी जेब और हमारे शहर के विकास की दिशा भी तय करती है।
इस लेख में हम यह समझेंगे कि कार्बन क्या है और इसके कौन-कौन से प्रमुख रूप - एलोट्रोप्स (Allotropes) - होते हैं, जो कोयले की संरचना से भी जुड़े हैं। इसके बाद हम जानेंगे कि कोयला कैसे कार्बन का एक अनाकार अपरूप है और इसकी संरचना किन-किन तत्वों से मिलकर बनी होती है। आगे विस्तार से समझेंगे कि कोयले की गुणवत्ता को निर्धारित करने में कार्बन की मात्रा किस तरह मुख्य भूमिका निभाती है। साथ ही चर्चा करेंगे कोयले के विभिन्न प्रकारों पर - जैसे एन्थ्रेसाइट (Anthracite), बिटुमिनस (Bituminous), उप-बिटुमिनस (Sub-bituminous) और लिग्नाइट (Lignite) - तथा इनमें उपस्थित कार्बन की प्रतिशतता किस प्रकार इनकी उपयोगिता तय करती है।

कार्बन क्या है और इसके कौन-कौन से रूप होते हैं?
कार्बन प्रकृति में पाया जाने वाला एक अत्यंत बहुमुखी और प्रचुर मात्रा में उपस्थित तत्व है, जिसे अक्सर "कोयले की रीढ़" के रूप में जाना जाता है। यह पृथ्वी पर पाया जाने वाला सत्रहवाँ सबसे प्रचुर तत्व है, जो जीवित जीवों के साथ-साथ अनेक निर्जीव वस्तुओं में भी पाया जाता है। पौधे, जानवर, इंसान, और यहाँ तक कि हवा में भी कार्बन उपस्थित होता है - कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide - CO₂) - के रूप में। रसायन विज्ञान में इसके यौगिकों के अध्ययन के लिए एक अलग शाखा "कार्बनिक रसायन विज्ञान" (Organic Chemistry) बनाई गई है, जो दर्शाता है कि यह तत्व वैज्ञानिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है। कार्बन के कुछ प्रमुख मुक्त रूप हीरा (Diamond), ग्रेफाइट (Graphite), और कोयला (Coal) हैं। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने हाल के वर्षों में कार्बन के और भी जटिल रूपों की खोज की है, जैसे - बकमिनस्टरफुलरीन (Buckminsterfullerene), ग्राफीन (Graphene), नैनोट्यूब्स (Nanotubes), नैनोबड्स (Nanobuds) और नैनोरिबन्स (Nanoribbons)। ये सभी एलोट्रोप्स यानी एक ही तत्व के विभिन्न संरचनात्मक रूप हैं, जिनके भौतिक गुण एक-दूसरे से बेहद भिन्न हो सकते हैं। हीरा जहाँ अत्यंत कठोर होता है, वहीं ग्रेफाइट बिजली का अच्छा सुचालक है। ग्राफीन को अब तक का सबसे पतला और मजबूत पदार्थ माना जाता है। एलोट्रोप्स को दो श्रेणियों में बाँटा जाता है - क्रिस्टलीय और अनाकार। क्रिस्टलीय रूप में अणु एक नियमित संरचना में रहते हैं, जैसे हीरा और ग्रेफाइट, जबकि अनाकार रूप में अणु अनियमित होते हैं - जैसे कोयला। कोयले को इसी कारण अनाकार अपरूप की श्रेणी में रखा जाता है।

कोयला: कार्बन का एक अनाकार अपरूप
कोयला एक जटिल और दहनशील ठोस है जो मुख्यतः कार्बन से बना होता है और इसे पृथ्वी के भीतर लाखों वर्षों तक जैविक पदार्थों पर उच्च दबाव और तापमान के प्रभाव से निर्मित माना जाता है। यह एक गैर-नवीकरणीय जीवाश्म ईंधन है, जिसकी संरचना पूर्णतः क्रिस्टलीय न होकर अनाकार होती है। इसीलिए इसे कार्बन का एक अनाकार अपरूप कहा जाता है। कोयले के अंदर कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन (Hydrogen), सल्फर (Sulfur), नाइट्रोजन (Nitrogen) और ऑक्सीजन (Oxygen) जैसे तत्व भी पाए जाते हैं, जिनकी मात्रा कोयले के प्रकार और उसकी गुणवत्ता के अनुसार बदलती रहती है। यह तथ्य कोयले की विविधता को दर्शाता है। कोयले की रासायनिक रचना इतनी विविध और जटिल होती है कि इसे किसी एक निश्चित संरचना में परिभाषित करना कठिन होता है। कोयले का निर्माण सामान्य रासायनिक सूत्रों की तरह दोहराए जाने वाले एकक (monomers) से नहीं होता, बल्कि यह कई भिन्न प्रकार के अणुओं का मिश्रण होता है। वैज्ञानिक इसे अक्सर इसके संरचनात्मक मापदंडों के आधार पर समझते हैं। ‘वैन क्रेवेलन’ (Van Krevelen) के अनुसार, कोयला एक असंगठित बहुलक संरचना वाला उच्च आणविक भार पदार्थ है, जिसमें अत्यधिक सुगंधित यौगिक होते हैं। कोयले का उत्पादन आम तौर पर पायरोलिसिस (pyrolysis) नामक प्रक्रिया से होता है, जिसमें किसी कार्बनिक पदार्थ को बहुत ऊँचे तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे वह विघटित होकर कोल टार (tar), गैस और शेष कार्बन बनाता है। हालाँकि, कालिख या कार्बन ब्लैक (carbon black) जैसे पदार्थों को भी अनाकार कार्बन कहा जाता है, लेकिन ये पूरी तरह से वास्तविक अनाकार कार्बन नहीं होते। इस प्रक्रिया में भी कोयले जैसी जटिलता और विशेषताएँ नहीं पाई जातीं। इन सभी गुणों के कारण कोयला न केवल ऊर्जा उत्पादन का प्रमुख स्रोत बनता है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी शोध का विषय बना रहता है।

कोयले की गुणवत्ता को निर्धारित करने वाला प्रमुख तत्व: कार्बन की मात्रा
किसी कोयले की गुणवत्ता को निर्धारित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उसमें उपस्थित कार्बन की मात्रा निभाती है। कोयले में जितनी अधिक कार्बन सांद्रता होती है, उसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता उतनी ही अधिक होती है। यही कारण है कि कोयले की गुणवत्ता - जिसे हम ग्रेड (grade) के रूप में जानते हैं - मुख्यतः उसमें मौजूद कार्बनिक पदार्थ की मात्रा पर आधारित होती है। उच्च गुणवत्ता वाले कोयले में न केवल कार्बन की प्रतिशतता अधिक होती है, बल्कि उसमें वाष्पशील पदार्थ (volatile matter) की मात्रा कम होती है, जिससे उसका दहन अधिक कुशल और प्रदूषण न्यूनतम होता है। यह विशेषता उसे औद्योगिक उपयोग, विशेष रूप से बिजली उत्पादन, इस्पात उद्योग और भट्टियों में इस्तेमाल के लिए उपयुक्त बनाती है। उच्च कार्बन सामग्री वाले कोयले को जलाना अधिक स्थिर होता है, जिससे दहन प्रक्रिया में ऊर्जा का अधिकतम उपयोग संभव हो पाता है। इसके विपरीत, कम कार्बन वाले कोयले में जलने पर अधूरी दहन की संभावना बढ़ जाती है, जिससे प्रदूषण अधिक होता है और ऊर्जा की बर्बादी होती है। इसके अतिरिक्त, कोयले की कठोरता, रंग, चमक, और तापमान सहन करने की क्षमता भी कार्बन की उपस्थिति से प्रभावित होती है। यही वजह है कि कोयला उद्योगों और ऊर्जा नीति निर्धारण में, कोयले की गुणवत्ता का विश्लेषण अत्यंत आवश्यक होता है।

कोयले के प्रकार और उनमें कार्बन का अनुपात
कोयले को उसकी गुणवत्ता और कार्बन की सांद्रता के आधार पर चार मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है - एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, उप-बिटुमिनस, और लिग्नाइट। प्रत्येक प्रकार की अपनी विशिष्ट ऊर्जा क्षमता और उपयोगिता होती है।
इस प्रकार कोयले के इन विभिन्न प्रकारों को उनकी ऊर्जा क्षमता, दहन गुण और कार्बन सामग्री के आधार पर विश्लेषित किया जाता है, ताकि उचित औद्योगिक या घरेलू उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
संदर्भ-
https://shorturl.at/HvWyL