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मेरठवासियों, क्या आपने कभी अपने बगीचे, खेत या पार्क में उड़ती हुई किसी रंग-बिरंगी तितली को नज़र भरकर देखा है? कभी उस छोटे से पंखों वाले जीव के पीछे-पीछे अपनी नज़रों को दौड़ाया है? हो सकता है आपने बचपन में तितली को पकड़ने की कोशिश की हो या फिर उसकी सुंदरता में कुछ पल के लिए खो गए हों। मेरठ जैसे हरियाली और प्राकृतिक विविधता से भरपूर इलाके में तितलियों का दिखना आम बात है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये नन्ही उड़ती कलाएँ असल में हमारी धरती के कितने महत्वपूर्ण संकेतक होती हैं? भारत की तरह मेरठ भी ऐसी भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों से घिरा है जो तितलियों के लिए एक स्वर्ग के समान हैं - यहाँ की गर्मियों की चमक, सर्दियों की कोमल ठंडक और मानसून की ताज़गी तितलियों को जन्म लेने, फलने-फूलने और रंग भरने का पूरा अवसर देती है। यही कारण है कि भारत में अब तक लगभग 1318 से अधिक तितली प्रजातियाँ दर्ज की जा चुकी हैं - और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह क्षेत्र भी उनमें से कई की मौसमी शरणस्थली बन चुका है। यह कोई सामान्य बात नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और पारिस्थितिक चमत्कार है, जो हमारे आसपास रोज़ घट रहा है - बस हमें इसे देखने और समझने की फुर्सत नहीं मिलती।
इस लेख में हम भारत में तितलियों की जैव विविधता को समझने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले, जानेंगे कि भारत की भौगोलिक स्थिति और विविध जलवायु तितलियों के लिए आदर्श वातावरण क्यों बनाती है। इसके बाद, नज़र डालेंगे देश के तीन जैव विविधता हॉटस्पॉट्स (hotspots) और वहाँ पाई जाने वाली विशेष स्थानिक प्रजातियों पर, तितलियों के वैज्ञानिक वर्गीकरण और हिमालय जैसे क्षेत्रों में पाई जाने वाली अनोखी प्रजातियों की चर्चा करेंगे। फिर, समझेंगे भारत में पाए जाने वाले तितलियों के छह प्रमुख परिवारों की खासियतें। और अंत में, जानेंगे कि कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात जैसे राज्यों में तितलियों का वितरण कैसा है और यह हमें क्या संकेत देता है।
भारत का भौगोलिक और जलवायु क्षेत्र: तितलियों के लिए क्यों है आदर्श?
भारत की भौगोलिक विविधता और जलवायु तितलियों के लिए ऐसा आदर्श पर्यावरण प्रदान करती है, जो विश्व के बहुत कम देशों में देखने को मिलता है। उत्तर में बर्फीले हिमालय से लेकर दक्षिण के उष्ण तटीय क्षेत्रों तक, और पश्चिम के शुष्क थार रेगिस्तान से लेकर पूर्वोत्तर के नम वनों तक - यह देश एक ऐसा जैविक रंगमंच है जहाँ हर क्षेत्र में अलग-अलग तितली प्रजातियाँ फलती-फूलती हैं। भारत की उष्णकटिबंधीय स्थिति (tropical location) और बदलते मौसम चक्र तितलियों के जीवन चक्र - अंडा, लार्वा (larvae), प्यूपा (pupa) और वयस्क - को प्राकृतिक रूप से पूरा करने में मदद करते हैं। मानसूनी बारिश के दौरान जब पूरा देश हरियाली से ढक जाता है, तो यही समय तितलियों की संख्या और गतिविधि में सबसे ज़्यादा उछाल लाता है। विभिन्न ऊँचाईयों पर मौजूद माइक्रोक्लाइमेट्स (microclimates) और वनस्पतियों की विशाल विविधता, उन्हें न केवल रहने और प्रजनन की सुविधा देती हैं, बल्कि परागण जैसे पारिस्थितिकीय कार्यों में भी उनकी भूमिका को मजबूत बनाती हैं। यही वजह है कि भारत न केवल तितलियों की विविधता में समृद्ध है, बल्कि उनके अनुकूल जीवन के लिए सबसे उपयुक्त प्राकृतिक प्रयोगशाला भी है।

भारत के जैव विविधता हॉटस्पॉट और तितलियों की अद्वितीयता
भारत विश्व के उन गिने-चुने देशों में से है जो एक साथ तीन जैव विविधता हॉटस्पॉट्स (biodiversity hotspots) - पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय, और भारत-म्यांमार सीमा के पहाड़ी क्षेत्र - को समेटे हुए है। इन क्षेत्रों में न केवल जैविक विविधता अत्यधिक है, बल्कि यहाँ कई ऐसी स्थानिक (endemic) तितली प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलतीं। उदाहरण के लिए, मालेबार बैंडेड स्वॉलोटेल (Malabar Banded Swallowtail) और तमिल योमैन (Tamil Yeoman) जैसी प्रजातियाँ केवल पश्चिमी घाटों में ही पाई जाती हैं, जबकि पूर्वी हिमालय में भूटान ग्लोरी (Bhutan Glory) और टॉनी कॉस्टर (Tawny Coster) जैसी तितलियाँ अपनी दुर्लभता और आकर्षण के लिए जानी जाती हैं। इन जैव विविधता हॉटस्पॉट्स की एक खास बात यह भी है कि ये अपेक्षाकृत कम मानव हस्तक्षेप वाले और वर्षा-प्रधान क्षेत्र होते हैं, जिससे वहाँ के जीव स्वतः ही विकसित और संरक्षित हो पाते हैं। इन क्षेत्रों की तितलियाँ केवल रंगीन जीव नहीं हैं, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र की रीढ़ हैं - जो परागण, खाद्य श्रृंखला और पर्यावरण संकेतकों की भूमिका निभाती हैं। यह अद्वितीयता भारत को तितलियों के अध्ययन और संरक्षण की दृष्टि से वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख केंद्र बनाती है।

भारत में तितलियों की विविधता: लेपिडोप्टेरा समूह और हिमालयी प्रजातियाँ
तितलियाँ और पतंगे मिलकर कीटों के एक विशेष वैज्ञानिक समूह "लेपिडोप्टेरा" (Lepidoptera) का हिस्सा हैं, जो विश्वभर में लगभग हर प्रकार के वातावरण में पाए जाते हैं - चाहे वह रेगिस्तान हो, घास का मैदान हो, या फिर ऊँची बर्फीली पहाड़ियाँ। भारत में इन लेपिडोप्टेरा प्रजातियों की विविधता अत्यंत समृद्ध है, और तितलियाँ इनमें सबसे आकर्षक और पारिस्थितिकीय रूप से महत्वपूर्ण सदस्य हैं।हिमालय जैसे कठोर पर्यावरण वाले क्षेत्र भी तितलियों के लिए अछूते नहीं हैं - वहाँ की कुछ प्रजातियाँ जैसे पारनासियस एफाफस (Parnassius epaphus) जिसे हिमालयन अपोलो (Himalayan Apollo) कहा जाता है, को समुद्र तल से 6000 मीटर तक की ऊँचाई पर देखा गया है, जो उनकी अनुकूलन क्षमता का प्रमाण है। वहीं, आर्कटिक अपोलो (Arctic Apollo) जैसी तितलियाँ आर्कटिक क्षेत्र की विषम परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती हैं। 1947 के पहले ब्रिटिश भारत में 1,439 तितली प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया था, और स्वतंत्रता के बाद भारत में अब भी लगभग 1,318 प्रजातियाँ दर्ज की जाती हैं, जो दर्शाता है कि भारत तितलियों की विविधता के लिहाज़ से एक वैश्विक धरोहर है। इनका वैज्ञानिक अध्ययन और वर्गीकरण न केवल पारिस्थितिक महत्व को समझने में मदद करता है, बल्कि पर्यावरणीय परिवर्तनों का संकेत भी देता है।

भारत में तितलियों के छह प्रमुख परिवार और उनकी विशेषताएं
भारत में तितलियों को वैज्ञानिक रूप से छह प्रमुख परिवारों में वर्गीकृत किया गया है, और हर परिवार की अपनी विशिष्ट पहचान, रंग, आकार और उड़ान शैली होती है। पहला है स्वॉलोटेल बटरफ़्लाईज़ (Swallowtail Butterflies - Papilionidae (पैपिलियोनिडे)) - ये आमतौर पर बड़े आकार की, रंगीन पूंछ वाली और तेज़ उड़ान वाली तितलियाँ होती हैं। दूसरा है येलो एंड व्हाइट बटरफ़्लाईज़ (Yellow and White Butterflies - Pieridae (पियरिडे)) - इनमें नींबू, पीली और सफेद रंग की सौम्य और आकर्षक प्रजातियाँ शामिल हैं, जिन्हें अक्सर बागानों में देखा जाता है। तीसरा है ब्रश-फुटेड बटरफ़्लाईज़ (Brush-footed Butterflies - Nymphalidae (निम्फैलिडे)) - ये भारत में सबसे अधिक संख्या में पाई जाती हैं और इनमें अनेक प्रसिद्ध तितली प्रजातियाँ शामिल हैं। चौथा है ब्लूज़ एंड हेयरस्ट्रिक्स (Blues and Hairstreaks - Lycaenidae (लाइकेनिडे)) - ये आमतौर पर छोटी और चमकीली नीली रंग की तितलियाँ होती हैं जो अत्यंत चपल होती हैं। पाँचवाँ है स्किपर्स (Skippers - Hesperiidae (हेस्पेरिडे)) - इनका शरीर मोटा और पंख अपेक्षाकृत छोटा होता है, जिससे इनकी उड़ान बहुत तेज़ होती है। और छठा परिवार है मेटलमार्क्स (Metalmarks - Riodinidae (रियोडिनिडे)) - ये अपेक्षाकृत दुर्लभ तितलियाँ होती हैं जिनके पंखों पर चमकदार धातु जैसी चमक होती है। इन सभी परिवारों की विशेषताओं का अध्ययन तितलियों के व्यवहार, पारिस्थितिकी और संरक्षण को समझने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

भारतीय राज्यों में तितलियों की उपस्थिति:
भारत के विभिन्न राज्यों में तितलियों की उपस्थिति का आँकड़ा यह दर्शाता है कि कैसे क्षेत्रीय पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय विविधता तितलियों की संख्या और प्रकार को प्रभावित करती है। कर्नाटक, जो पश्चिमी घाट से घिरा हुआ है, में कुल 319 तितली प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें ब्रश-फुटेड (Brush-footed - 92), हेयरस्ट्रिक्स/ब्लूज़ (Hairstreaks/Blues - 98), स्वॉलोटेल्स (Swallowtails - 19) और स्किपर्स (Skippers - 80) प्रमुख हैं। गुजरात, जहाँ रेगिस्तान और वन दोनों हैं, में 193 से अधिक प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं, जिनमें से 79 दक्षिण गुजरात में ही देखी गई हैं। राज्य में सभी छह प्रमुख तितली परिवारों की उपस्थिति दर्शाई गई है। केरल, जो जैव विविधता के लिए जाना जाता है, वहाँ भी तितलियों की सभी छह श्रेणियाँ पाई जाती हैं, खासकर पश्चिमी घाट की बदौलत। वहीं तमिलनाडु में 328 तितली प्रजातियाँ दर्ज हैं जिनमें पापिलियोनिडी (Papilionidae - 19), पियरिडी (Pieridae - 32), निंफालिडी (Nymphalidae - 97), हेस्पेरिडी (Hesperiidae - 83) जैसी प्रचुरता शामिल है। मेघालय और ओडिशा जैसे राज्य, जो अपनी घनी हरियाली और वर्षा-प्रधान पर्यावरण के लिए प्रसिद्ध हैं, वहाँ भी तितलियों की समृद्ध विविधता देखी जाती है। ये आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत की हर क्षेत्रीय भौगोलिक इकाई अपने-आप में एक तितली-समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है और इनका संरक्षण राज्य स्तर पर योजनाबद्ध प्रयासों के ज़रिए किया जाना चाहिए।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/3bufb4f8