कैसे मोबाइल गेम्स की लत, मेरठ के बच्चों के भविष्य पर पड़ रही है भारी?

हथियार और खिलौने
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कैसे मोबाइल गेम्स की लत, मेरठ के बच्चों के भविष्य पर पड़ रही है भारी?

मेरठवासियों, क्या आपने कभी गौर किया है कि हमारे जीवन का एक छोटा-सा उपकरण - मोबाइल फोन - अब केवल बातचीत या सोशल मीडिया (social media) तक सीमित नहीं रह गया है? आज यह उपकरण, विशेषकर हमारे बच्चों और युवाओं के लिए, एक आभासी खेल-मैदान बन चुका है। भारत जैसे देश में, जहाँ युवा आबादी सबसे अधिक है, मोबाइल गेमिंग (mobile gaming) अब एक तकनीकी सुविधा नहीं, बल्कि एक तेज़ी से बढ़ती हुई लत बनती जा रही है। 2024 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 8.5 अरब से भी अधिक मोबाइल गेम डाउनलोड किए गए - यह आँकड़ा किसी शौक की नहीं, बल्कि एक नवीन डिजिटल आदत की ओर इशारा करता है। मेरठ जैसे प्रगतिशील और शिक्षित शहर भी इस बदलाव की चपेट में हैं। आज, जहाँ पहले बच्चे गलियों और पार्कों में खेलते नज़र आते थे, वहीं अब ज़्यादातर बच्चे और किशोर मोबाइल स्क्रीन पर घंटों बिताते हैं - फ्री फायर (Free Fire), लूडो किंग (Ludo King), कैंडी क्रश (Candy Crush) और कॉल ऑफ ड्यूटी (Call of Duty) जैसे गेमों में डूबे हुए। पहले जहाँ मोबाइल गेम्स को मनोरंजन का साधन माना जाता था, वहीं अब यह एक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चुनौती का रूप ले चुकी है। बच्चों में एकाग्रता की कमी, नींद का अभाव, और माता-पिता से दूरी जैसी समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। ये लक्षण न सिर्फ़ शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी विकासशील उम्र के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं।
आज हम जानेंगे कि भारत में मोबाइल गेमिंग किस गति से बढ़ रही है और यह कैसे हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बनती जा रही है। सबसे पहले, हम देखेंगे कि मोबाइल गेमिंग का व्यापक प्रभाव अब छोटे शहरों और कस्बों तक कैसे फैल चुका है। फिर, हम भारत में गेमर्स (gamers) से जुड़े कुछ प्रमुख आँकड़ों और सबसे ज़्यादा डाउनलोड किए गए मोबाइल गेम्स पर नजर डालेंगे। इसके बाद, हम यह समझेंगे कि गेमिंग की लत क्यों लगती है और यह मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करती है। अंत में, हम इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं और इससे उबरने के व्यावहारिक उपायों को भी विस्तार से जानेंगे।
भारत में मोबाइल गेमिंग का बढ़ता प्रभाव
भारत में मोबाइल फोन और इंटरनेट की आसान उपलब्धता ने गेमिंग को एक आम मनोरंजन नहीं, बल्कि एक नए युग की सांस्कृतिक गतिविधि बना दिया है। वर्ष 2024 में 8.5 अरब से अधिक मोबाइल गेम डाउनलोड होने का आँकड़ा यह दर्शाता है कि भारत दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ गेमिंग बाजार बन चुका है। यह बदलाव सिर्फ मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं है - छोटे कस्बों, गाँवों और टियर (tier) - 2/3 शहरों में भी अब बच्चों और युवाओं के हाथों में मोबाइल गेम्स की दुनिया है। जहाँ कभी बच्चे खुले मैदानों में सामूहिक खेलों के ज़रिए दोस्ती और टीमवर्क (teamwork) सीखते थे, वहीं अब वे स्क्रीन के सामने अकेले बैठे घंटों बिताते हैं। इस बदलाव ने मनोरंजन के मायनों को नया रूप दिया है, लेकिन इसके साथ ही मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नए सवाल खड़े किए हैं।भारत में मोबाइल गेमर्स से जुड़े प्रमुख आँकड़े
भारत में मोबाइल गेमिंग अब केवल समय बिताने का साधन नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा बन गया है। हालिया आँकड़ों के अनुसार, 10 में से 7 शहरी भारतीय किसी न किसी रूप में मोबाइल या वीडियो गेम्स खेलते हैं। इनमें से लगभग 67% लोग स्मार्टफोन (smartphone) या टैबलेट (tablet) पर गेम खेलते हैं, जो दर्शाता है कि गेमिंग अब घर-घर तक पहुँच चुकी है। केवल 12% लोग ही पारंपरिक गेमिंग कंसोल (जैसे प्ले स्टेशन (PlayStation) या एक्सबॉक्स (Xbox)) का उपयोग करते हैं। औसतन, भारतीय गेमर्स सप्ताह में 8 से 10 घंटे तक गेमिंग में व्यस्त रहते हैं, और 16% लोग तो इससे भी अधिक समय देते हैं। भारत का यह गेमिंग रुझान अब अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के समकक्ष खड़ा हो रहा है। यह आँकड़े केवल लोकप्रियता नहीं, बल्कि एक नई डिजिटल संस्कृति के निर्माण की ओर संकेत करते हैं, जहाँ स्क्रीन समय, रैंकिंग (ranking), इन-गेम खरीदारी और वर्चुअल उपलब्धियाँ वास्तविक दुनिया की प्राथमिकताओं पर हावी होने लगी हैं।भारत में सबसे ज़्यादा खेले जाने वाले लोकप्रिय मोबाइल गेम्स
भारत में मोबाइल गेम्स की विविधता अद्भुत है - हर उम्र, रुचि और मानसिक स्तर के अनुसार कोई न कोई गेम मौजूद है।

  • फ्री फायर जैसे एक्शन-थीम गेम्स (action theme games) युवाओं में बेहद लोकप्रिय हैं, खासकर उनके प्रतिस्पर्धी वातावरण और रैंकिंग प्रणाली के कारण। 
  • लूडो किंग एक पारिवारिक और सरल बोर्ड गेम, 500 मिलियन (million) से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है, जो इसे सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक बनाता है।
  • कैंडी क्रश सागा और सबवे सर्फर्स (Subway Surfers) जैसे कैज़ुअल गेम्स (casual games) भी बच्चों और वयस्कों में समान रूप से लोकप्रिय हैं - जो न तनावपूर्ण होते हैं और न ही अत्यधिक रणनीतिक।
  • क्लैश ऑफ क्लैंस (Class of Clans), कॉल ऑफ ड्यूटी और क्लैश रोयाल (Clash Royale) जैसे गेम्स रणनीति, त्वरित निर्णय और टीम वर्क की माँग करते हैं - जिससे युवा वर्ग में इनका विशेष स्थान है।

इन गेम्स की लोकप्रियता दिखाती है कि गेमिंग अब केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आभासी उपलब्धियों और सामाजिक प्रतिस्पर्धा का एक नया मैदान बन चुका है।

मोबाइल गेमिंग की लत के पीछे का मनोवैज्ञानिक कारण
मोबाइल गेम्स की लत का मूल कारण केवल आनंद या ‘फन’ नहीं है - यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। जब हम गेम खेलते हैं और उसमें सफलता प्राप्त करते हैं, तो हमारा मस्तिष्क डोपामीन नामक रसायन छोड़ता है, जो सुखद अनुभूति देता है। यही रसायन हमें और अधिक खेलने के लिए प्रेरित करता है। यह प्रक्रिया नशे जैसी है - जहां बार-बार डोपामीन (dopamine) की खोज, हमारी इच्छा पर हावी हो जाती है। धीरे-धीरे व्यक्ति गेम खेलने को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेता है और जब वह इसे ना खेल सके, तो चिड़चिड़ापन, बेचैनी और निराशा महसूस करता है। यह लत किशोरों और बच्चों में अधिक तेज़ी से विकसित होती है क्योंकि उनका मस्तिष्क अभी विकास की प्रक्रिया में होता है। यही वजह है कि कई अभिभावक अपने बच्चों को फोन से दूर करना मुश्किल पाते हैं - क्योंकि अब यह सिर्फ आदत नहीं, मानसिक आवश्यकता बन चुकी होती है।वीडियो गेम की लत से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ
मोबाइल गेमिंग की लत, केवल मानसिक नहीं बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकती है। इसके प्रमुख दुष्प्रभावों में शामिल हैं:

  • स्वच्छता की उपेक्षा: व्यक्ति खुद की सफाई और जीवनशैली पर ध्यान देना छोड़ देता है क्योंकि सारा ध्यान गेम पर केंद्रित होता है।
  • ध्यान में कमी और एडीएचडी (ADHD): अत्यधिक इंटरएक्टिव गेम्स बच्चों की एकाग्रता को प्रभावित करते हैं, जिससे वे स्कूल और पढ़ाई में पिछड़ सकते हैं।
  • नींद की कमी और अनिद्रा: देर रात तक खेलने की आदत से शरीर का जैविक चक्र बिगड़ जाता है।
  • सामाजिक अलगाव: गेम की दुनिया में उलझा व्यक्ति दोस्तों, परिवार और समाज से कटने लगता है।
  • वजन बढ़ना और पोषण की कमी: निरंतर बैठकर खेलने से शारीरिक गतिविधि में कमी और जंक फूड (junk food) की आदत, मोटापे और अन्य बीमारियों को जन्म देती है।
  • मांसपेशियों में दर्द और कलाई की समस्याएँ: जैसे – कार्पल टनल सिंड्रोम (Carpal Tunnel Syndrome)।
  • आक्रामकता और चिड़चिड़ापन: लंबे समय तक आक्रामक या प्रतिस्पर्धी गेम खेलने से बच्चे हिंसात्मक व्यवहार दिखा सकते हैं।

मोबाइल गेमिंग की लत से उबरने के संभावित उपाय
मोबाइल गेमिंग की लत से बाहर निकलना कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। इसके लिए कुछ व्यावहारिक उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  • मनोचिकित्सा (Psychotherapy): प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ लत के मूल कारण को समझने में मदद करते हैं और समाधान सुझाते हैं।
  • सीबीटी (CBT) (संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी - Cognitive Behavioral Therapy): यह थेरेपी विचारों और व्यवहार को बदलने में मदद करती है - जिससे व्यक्ति लत को पहचानकर उस पर नियंत्रण पा सकता है।
  • अभिभावक परामर्श: माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की डिजिटल आदतों को समझें, उनके साथ संवाद बनाए रखें और सकारात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दें।
  • दवाओं का सहारा: यदि गेमिंग की लत के साथ चिंता, अवसाद या अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ जुड़ी हों, तो डॉक्टर की सलाह से दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
  • डिजिटल डिटॉक्स और समय-सीमा तय करना: धीरे-धीरे मोबाइल उपयोग का समय सीमित करके संतुलन साधा जा सकता है। इसके साथ ही आउटडोर खेलों (outdoor games) और सामाजिक गतिविधियों को प्राथमिकता देना भी आवश्यक है।


संदर्भ- 
https://tinyurl.com/56c5tvp5
https://tinyurl.com/2frhwf99
https://tinyurl.com/5n6mvsht
https://tinyurl.com/yt68hmpw
https://tinyurl.com/3sdpzakx
https://tinyurl.com/ykbhnk3k 



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