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मेरठवासियो, कमल का फूल केवल मंदिरों या तस्वीरों तक सीमित नहीं है; इसे आप शहर के तालाबों और जलस्रोतों में भी देख सकते हैं, जहाँ यह अपनी सरलता में भी एक अद्भुत सुंदरता लिए खिला होता है। लेकिन क्या आपने कभी इसके पत्तियों को ध्यान से देखा है, जिन पर पानी की बूंदें जैसे खेलती हुई फिसल जाती हैं और टिकने की हिम्मत भी नहीं करतीं? यह कोई सामान्य दृश्य नहीं, बल्कि प्रकृति की सूक्ष्म और चतुर वैज्ञानिक रचना है। कमल के पत्ते सिर्फ फूल की शोभा बढ़ाने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह जल को दूर रखने और स्वयं को स्वच्छ बनाए रखने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। वैज्ञानिक इसे ‘सुपरहाइड्रोफोबिसिटी’ (Superhydrophobicity) कहते हैं, और इसी से जुड़ी खोज को ‘कमल प्रभाव’ (Lotus Effect) कहा गया है। मेरठ जैसे इलाकों में, जहाँ मानसून के समय पानी जमा हो जाता है, यह गुण हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रकृति ने कितनी निपुणता से अपने भीतर विज्ञान और कला को मिलाया है।
आज हम जानेंगे कि कमल के पत्ते कैसे प्रकृति की अद्भुत रचना हैं। हम समझेंगे उनके सुपरहाइड्रोफोबिक गुण और ‘कमल प्रभाव’ कैसे पानी और गंदगी से बचाते हैं। साथ ही, पत्तियों की एपिडर्मल (Epidermal) संरचना, पैपिला (Papillae) और मोम नलिकाओं की बनावट भी देखेंगे, जो इसे स्वच्छ और जलरोधक बनाती हैं। इसके अलावा, जल-बूंदों का संपर्क कोण और सतह तनाव कैसे काम करता है और स्व-सफाई के ये गुण जैविक व औद्योगिक रूप से कितने महत्वपूर्ण हैं, इसे भी जानेंगे।
कमल के पत्तों में सुपरहाइड्रोफोबिसिटी और ‘कमल प्रभाव’ की भूमिका
कमल का पौधा (नेलुम्बो न्यूसीफेरा - Nelumbo nucifera) भारतीय परंपरा में सिर्फ एक फूल नहीं, बल्कि पवित्रता, निष्ठा और अध्यात्म का प्रतीक माना जाता है। आपने भी शहर के तालाबों और जलाशयों में खिले हुए कमल के फूलों को निहारा होगा, लेकिन क्या आपने कभी उन हरे-भरे पत्तों की अनोखी सतह को देखा है जिस पर पानी की बूंदें बिना रुके फिसल जाती हैं? विज्ञान ने इसी चमत्कारी व्यवहार को एक नाम दिया - ‘कमल प्रभाव’, जिसे वर्ष 1992 में वैज्ञानिक रूप से परिभाषित किया गया। यह गुण दरअसल, ‘सुपरहाइड्रोफोबिसिटी’ कहलाता है, जिसका अर्थ है - ऐसी सतह जो जल को अत्यधिक मात्रा में विकर्षित करती है। इस गुण के कारण पानी की बूंदें पत्तियों पर टिकी नहीं रहतीं, बल्कि अपने साथ मिट्टी, धूल और अन्य सूक्ष्म कणों को भी बहा ले जाती हैं। यह क्रिया न केवल पत्तियों को स्वच्छ बनाए रखती है, बल्कि रोगाणुओं के पनपने से भी बचाती है। क्षेत्रों में जहाँ वर्षा और दलदली भूभाग आम हैं, वहाँ कमल के पत्तों में यह गुण न केवल पर्यावरणीय अनुकूलन का उदाहरण है, बल्कि प्रकृति की अनूठी रचना का वैज्ञानिक प्रमाण भी है।

एपिडर्मल संरचना, पैपिला और मोम नलिकाओं की बनावट
कमल की पत्तियों की जलरोधकता का रहस्य केवल बाहरी चिकनाई में नहीं, बल्कि उसकी सूक्ष्म संरचनात्मक बनावट में छिपा होता है। इस बनावट की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं पत्तियों की ऊपरी सतह, जिसे वैज्ञानिक भाषा में एडैक्सियल (Adaxial) सतह कहा जाता है। यहाँ मौजूद एपिडर्मल कोशिकाएं अत्यंत विशेष प्रकार की होती हैं, जो एक अनूठे आकृति वाले सूक्ष्म अंकुरक या पैपिला बनाती हैं। इन पैपिला का आकार आमतौर पर इतना सूक्ष्म होता है कि यह सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन यही संरचनाएं जल-विकर्षण का मूल आधार हैं। प्रत्येक पैपिला के ऊपर मोम की नलिकाओं (wax tubules) की एक अत्यंत बारीक परत होती है, जो अक्सर गुच्छों में दिखाई देती है। यह मोम नलिकाएं संपर्क क्षेत्र को घटाकर जल के आसंजन को रोकती हैं। अन्य पौधों की तुलना में, कमल के पत्तों में पैपिला का घनत्व अत्यधिक और व्यास बहुत कम होता है, जिससे जल-बूंदें सतह से बहुत ही सीमित संपर्क में आती हैं और टिकती नहीं हैं। यह सूक्ष्म स्तर की बनावट ही कमल को न केवल जलरोधक बनाती है, बल्कि एक प्राकृतिक स्व-सफाई यंत्र की तरह कार्य करने में सक्षम बनाती है। यह सोच कर ही आश्चर्य होता है कि जिस पत्ते को हम कभी-कभी केवल फूल के सहारे के रूप में देखते हैं, वह अपने आप में एक जटिल और कारगर संरचना का उदाहरण है।

जल बूंदों के साथ संपर्क कोण और सतह तनाव की वैज्ञानिक प्रक्रिया
जब हम कमल के पत्तों पर गिरती हुई बारिश की बूंदों को देखते हैं, तो वे किसी काँच की सतह पर फिसलती बूंदों जैसी प्रतीत होती हैं। यह केवल एक दृश्य प्रभाव नहीं, बल्कि विज्ञान की एक गंभीर प्रक्रिया है जो संपर्क कोण (Contact Angle) और सतही तनाव (Surface Tension) के सिद्धांतों पर आधारित है। किसी सतह की जल-विकर्षकता को मापने का प्रमुख पैमाना यही संपर्क कोण होता है - यदि यह कोण 140 डिग्री से अधिक हो, तो उसे सुपरहाइड्रोफोबिक कहा जाता है। कमल के पत्तों में यह कोण लगभग 170 डिग्री तक पाया गया है, जो इसे विश्व की सबसे अधिक जल-विकर्षक सतहों में से एक बनाता है। पैपिला की ऊँचाई और आकार में सूक्ष्म भिन्नता जल बूंदों के साथ आसंजन को और भी कम कर देती है। जब पानी की बूंदें कम दबाव में गिरती हैं, तो वे केवल ऊँचे पैपिला को ही छू पाती हैं और सतह से फिसल जाती हैं। वहीं उच्च दबाव, जैसे बारिश की तेज बूंदें, जब सतह को प्रभावित करती हैं, तब भी पानी अंदर जाकर एक नवचंद्रक (meniscus) बनाता है, लेकिन मोम नलिकाओं की वजह से वहां एक विकर्षक बल उत्पन्न होता है, जो पानी को पीछे धकेलता है। यही कारण है कि कमल का पत्ता गीला नहीं होता, चाहे पानी की बूंद किसी भी वेग से गिरे। यह प्रक्रिया न केवल वैज्ञानिक रूप से आकर्षक है, बल्कि हमें यह भी सिखाती है कि प्रकृति की सबसे सामान्य दिखने वाली चीजें भी असाधारण विधियों पर आधारित हो सकती हैं।

स्व-सफाई गुणों का जैविक और औद्योगिक महत्त्व
कमल के पत्तों में जो स्व-सफाई क्षमता पाई जाती है, वह केवल सौंदर्य या दर्शनीयता का विषय नहीं, बल्कि पौधे के जीवित रहने की एक रणनीति है। दलदली और गंदे जलाशयों में उगने वाले इस पौधे को जीवित रखने के लिए स्वच्छता अनिवार्य है। यही कारण है कि कमल की पत्तियाँ स्वयं को साफ़ रखने में इतनी कुशल होती हैं। जल, धूल, मिट्टी, रोगाणु, फफूंद और काई जैसे तमाम अवांछित तत्व इस पत्ते पर नहीं टिक पाते, जिससे यह रोगों से बचा रहता है। इसके अलावा, पत्तियों की स्वच्छ सतह पर प्रकाश अधिक बेहतर रूप में पड़ता है, जिससे प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया और भी प्रभावी हो जाती है। स्व-सफाई का यह सिद्धांत केवल जैविक लाभों तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिकों ने कमल के पत्तों की इसी संरचना से प्रेरणा लेकर ऐसी सिंथेटिक कोटिंग्स (synthetic coatings) विकसित की हैं जो वस्त्रों, जहाज़ों, खनन उपकरणों और यहां तक कि दाग-धब्बों से निपटने वाले औद्योगिक सतहों पर भी प्रयोग में लाई जा रही हैं। ये कोटिंग्स न केवल जल-विकर्षक हैं, बल्कि वे ऊर्जा की बचत, सफाई की लागत में कमी और सतह की दीर्घायु में भी सहायक हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/mrx6hxhk
https://tinyurl.com/5n7e8xc7
https://tinyurl.com/ua35brsd
https://tinyurl.com/yz7nz2cv
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