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"क्या आपने कभी सोचा है कि आप जो साँस ले रहे हैं, वह आपके लिए ज़िंदगी का ज़रिया है या धीरे-धीरे ज़िंदगी छीनने वाली हवा?" मेरठ जैसे शहर में, जहाँ सुबह की ताज़गी अब धुएँ की परत में छुप जाती है, और शाम होते-होते हर गली में धूल की एक परत जम जाती है - वहाँ फेफड़ों का बीमार होना कोई दुर्लभ बात नहीं रह गई है। हमारी हवा में अब सिर्फ़ ऑक्सीजन (oxygen) नहीं, बल्कि वाहन धुआँ, कंस्ट्रक्शन (construction) की उड़ती राख, और फैक्ट्रियों से निकलते ज़हरीले कण घुल चुके हैं। यह माहौल सबसे पहले हमला करता है हमारे फेफड़ों पर - खासकर उन लोगों के जो पहले से ही जोखिम में हैं: जो वर्षों से धूम्रपान कर रहे हैं, जो फैक्ट्रियों या वेल्डिंग वर्कशॉप्स (welding workshops) में काम करते हैं, जो धुएँ वाले चूल्हों पर खाना बनाते हैं, या जो रोज़ भर ट्रैफिक की भीड़ में दम भरते हैं। इन्हीं परिस्थितियों में चुपचाप पनपती है सी ओ पी डी (COPD - Chronic Obstructive Pulmonary Disease) - एक ऐसी बीमारी जो न आवाज़ करती है, न जल्दी पकड़ में आती है, लेकिन जब तक पता चलता है, तब तक बहुत कुछ खो चुका होता है। अक्सर इसे हम 'बस खांसी है', 'थोड़ी सांस फूलती है' या 'उम्र की बात है' कहकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन यही लापरवाही बीमारी को भीतर तक जड़ें जमाने देती है।
आज हम समझेंगे कि सी ओ पी डी (COPD) क्या है और यह हमारे फेफड़ों को कैसे प्रभावित करती है। इसके बाद, हम इसके दो प्रमुख प्रकार - एम्फ़ाइज़िमा (Emphysema) और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस (Chronic bronchitis) - के बारे में विस्तार से जानेंगे और समझेंगे कि ये दोनों फेफड़ों के स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित करते हैं। इसके बाद हम सी ओ पी डी के लक्षण और उनके बिगड़ने के संकेत देखेंगे, ताकि समय रहते इसे पहचाना जा सके। अंत में, हम इसका इलाज और जीवनशैली में बदलाव के उपाय जानेंगे, जिससे मरीज अपनी सांसों और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाए रख सके।

सी ओ पी डी (COPD) क्या है और यह कैसे विकसित होती है?
सी ओ पी डी यानी (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़), फेफड़ों से जुड़ी एक पुरानी और धीमी गति से बढ़ने वाली बीमारी है, जो सांस लेने में तकलीफ पैदा करती है। इसमें फेफड़ों की वायु नलिकाएं और वायु थैलियों धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। इससे ऑक्सीजन का प्रवाह रुकता है और व्यक्ति को सामान्य शारीरिक गतिविधियों में भी परेशानी होने लगती है। मेरठ जैसे शहर, जहाँ गाड़ियों का शोर, इंडस्ट्रियल एरिया (Industrial Area) की धूल, और घरों में जलने वाले बायोफ्यूल (Biofuel) की धुआं भरपूर है, वहाँ यह बीमारी ज़्यादा तेजी से फैल सकती है। कई लोग इसे शुरुआती अस्थमा या सामान्य थकावट समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन जब तक निदान होता है, तब तक फेफड़े बहुत हद तक प्रभावित हो चुके होते हैं। सी ओ पी डी 40 वर्ष से ऊपर के लोगों में अधिक आम है, लेकिन अब युवा भी इसके प्रभाव में आ रहे हैं, खासकर वे जो धूम्रपान करते हैं या लगातार प्रदूषित वातावरण में रहते हैं। शुरुआत में केवल हल्की सांस फूलने की समस्या होती है, लेकिन धीरे-धीरे यह इतनी गंभीर हो सकती है कि व्यक्ति सामान्य चलना-फिरना भी मुश्किल समझने लगता है।

सी ओ पी डी से जुड़ी दो प्रमुख बीमारियाँ: एम्फ़ाइज़िमा और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस
सी ओ पी डी दो बीमारियों का सम्मिलन है - एम्फ़ाइज़िमा और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, और यही इसे समझना और भी ज़रूरी बनाता है। एम्फ़ाइज़िमा में फेफड़ों की वे छोटी-छोटी थैलियाँ, जिन्हें वायुकोष्ठिकाओं कहा जाता है, क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। ये थैलियाँ सामान्यतः सांस लेने पर फैलती हैं और छोड़ने पर सिकुड़ती हैं, जिससे हवा का प्रवाह बनता है। लेकिन इस बीमारी में ये दीवारें फटने या पतली होने लगती हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचना मुश्किल हो जाता है और पुरानी हवा फेफड़ों में फंसी रह जाती है। नतीजा - हर सांस में तकलीफ और थकावट। क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस तब होता है जब सांस की नलियों की भीतरी परत में सूजन और संक्रमण बार-बार होने लगता है। इससे गाढ़ा बलगम बनता है, जिससे नलियाँ और ज्यादा संकरी हो जाती हैं। मरीज को दिन-रात खांसी होती रहती है, खासकर सुबह उठते ही। कई बार बलगम में रंग भी बदल जाता है, जो संक्रमण का संकेत होता है। मेरठ की सर्दियों में जब कोहरा, प्रदूषण और स्मॉग एक साथ हमला करते हैं, तब ऐसे मरीजों की स्थिति और बिगड़ जाती है। खासकर बुजुर्ग, महिलाएं जो चूल्हे का धुंआ झेलती हैं, या वह मजदूर जो ईंट भट्ठों और फैक्ट्रियों में काम करते हैं - उन्हें विशेष रूप से इस बीमारी से सावधान रहना चाहिए।
सी ओ पी डी के लक्षण और उनके बिगड़ने के संकेत
सी ओ पी डी का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इसके लक्षण बहुत धीमे-धीमे उभरते हैं। कई मरीज इन्हें सामान्य थकान या उम्र का असर समझकर टालते रहते हैं, जिससे बीमारी और गंभीर होती जाती है। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
इन लक्षणों के अलावा कभी-कभी बीमारी अचानक बिगड़ भी जाती है, जिसे एक्सेसेरबेशन (exacerbation) कहा जाता है। इस दौरान:
मेरठ के सरकारी अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में ऐसे मरीज खासकर नवंबर से फरवरी के बीच अधिक देखने को मिलते हैं। इसलिए इन लक्षणों को हल्के में न लें - समय पर जांच और इलाज ज़रूरी है।

सी ओ पी डी का उपचार और जीवनशैली में बदलाव के उपाय
हालाँकि सी ओ पी डी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित करना पूरी तरह संभव है - बशर्ते मरीज और परिवारजनों में जागरूकता और अनुशासन हो। इलाज के मुख्य स्तंभ हैं:
मेरठ के नागरिकों को यह समझना होगा कि इलाज के साथ-साथ जीवनशैली में बदलाव अनिवार्य है। प्रदूषण से बचाव, मास्क पहनना, घर में वेंटिलेशन (ventilation) सुधारना और पौष्टिक भोजन - ये सभी चीजें मददगार हो सकती हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/29epjbye
https://tinyurl.com/mry98vpx
https://tinyurl.com/5ykwd892
https://tinyurl.com/4tw5ve8v
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