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200 से अधिक साल पहले मिखाइल लोमोनोसोव ने धातुओं की एक सरल और स्पष्ट परिभाषा बनाई थी। उन्होंने लिखा: "धातु ठोस, वजनदार और चमकदार होते हैं।" ये परिभाषा लोहे, एल्यूमीनियम, तांबा, सोना, चांदी, सीसा, टिन और अन्य धातुओं में सही लागू होती है। लेकिन सामान्य परिस्थिति में धातु तरल भी होते हैं, ऐसा इससे परिभाषित नही होता, जैसा की अब तक तो आप समझ गए होंगे की हम “पारे” की बात कर रहे हैं।
पारा एक प्राकृतिक घटक है, जो पृथ्वी के भूपर्पटी में लगभग 0.05 मिलीग्राम/किग्रा की औसत प्रचुरता के साथ स्थानीय विविधताओं में पाया जाता है। 1759 में पहली बार पारे को जमाया गया था। इस अवस्था में उसे सिल्वर-ब्लू धातु कहा जाता है, जो दिखने में लेड के समान होता है। यदि पारे को हथौड़े की आकृति में ठंडा करके ढालते हैं तो यह इतना कठोर हो जाता है कि आप इस हथौड़े से एक कील ठोक सकते हैं। 13.6 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर घनत्व वाला पारा सभी ज्ञात (Discovered) तरल पदार्थों में सबसे भारी है। उदाहरण के लिए एक लीटर पारे की बोतल का वजन एक बाल्टी पानी से अधिक होता है। प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों को पारे की जानकारी हुई थी। इस धातु का उल्लेख अरस्तू, थियोफ्रास्टोस, प्लिनी द एल्डर, विट्रुबेल और अन्य प्राचीन वैज्ञानिकों के लेखन में भी किया गया है। पहली शताब्दी ईस्वी में यूनानी चिकित्सक डायोसकोराइड्स द्वारा पारे को लैटिन नाम "हाइड्रारजाईरम" (चांदी का पानी या क्विकसिल्वर) दिया गया था।
विश्व में सबसे ज्यादा पारे का निक्षेप स्पेन के अल्माडेन में होता है, यहाँ हाल ही में विश्व के 80 प्रतिशत पारे का उत्पादन किया गया था। प्लिनी द एल्डर ने लिखा कि रोम द्वारा स्पेन से सालाना लगभग 4.5 टन पारा खरीदा जाता है।
अब आप सोच रहें होंगे कि ये पारा आता कहाँ से है? विश्व बाजार में उपलब्ध पारा की आपूर्ति कई विभिन्न स्रोतों से की जाती है, जिसमें शामिल हैं:
• प्राथमिक पारा का खनन उत्पादन या तो खनन गतिविधि के मुख्य उत्पाद के रूप, या अन्य धातुओं (जैसे जस्ता, सोना, चांदी) के खनन या शोधन के उपोत्पाद के रूप में या खनिज के रूप में होता है।
• प्राकृतिक गैस के शोधन से प्राथमिक पारा बरामद किया जाता है।
• औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के कचरे से या क्षीण किए गए उत्पादों से पुनरावर्तित पारा बरामद किया जाता है और आदि कई निजी उत्पादों से लिया जाता है।
भारत में पारे का उत्सर्जन निम्न योगदानकर्ताओं से होता है:
इस्पात उद्योग : अलौह धातु उद्योग; उष्मीय ऊर्जा संयंत्र; सीमेंट उद्योग; कागज उद्योग।
अपशिष्ट : अस्पताल अपशिष्ट; म्युनिसिपल (Municipal) अपशिष्ट; इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट।
कोयले के जलाने से : बिजली और ऊष्मा का उत्पादन।
अपशिष्ट भरावक्षेत्र और श्मशान
उत्पादों: थर्मामीटर; रक्तचाप के उपकरण; दवाइयों; कीटनाशकों।
भारत ने एक वैश्विक संधि “मिनमाता कन्वेंशन” पर हस्ताक्षर किया था, जिसके तहत उन्हें पारा पर प्रतिबंध लगाना होगा। यह संधि हस्ताक्षरकर्ताओं को चरणबद्ध तरीके से घातक तंत्रिका विष के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए अनिवार्य करता है। यह कदम मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे के प्रतिकूल प्रभावों से दूर रखेगा। कन्वेंशन द्वारा पारा युक्त उत्पादों के उत्पादन, आयात और निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों (विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा) में इसके उपयोग की अनुमति दी गई थी। भारत में इस खतरनाक धातु के लगभग 3,000 औद्योगिक अनुप्रयोग हैं। स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों के अलावा, इसका उपयोग पेंट, सौंदर्य प्रसाधन, कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (compact fluorescent lamps), बिजली के स्विच और उर्वरकों में भी किया जाता है। भारत ने 2012-13 में 165 टन पारे का आयात किया था, जिसमें से 45 टन को एक ही वर्ष में अन्य देशों को निर्यात कर दिया गया था, जिससे यह पता चलता है कि शेष का उपयोग भारत के उत्पादों के निर्माण के लिए किया गया था।

1. https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_mercury_production
2. https://www.greenfacts.org/en/mercury/l-3/mercury-5.htm
3. https://bit.ly/2SoK8GI
4. https://bit.ly/2SoK8GI