समय - सीमा 277
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मेरठ शहर में कभी काली नाम की नदी बहती थी जो दून घाटी से निकलती हुई मेरठ के साथ-साथ मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर और बागपत ज़िलों से गुजरती हुई हिंडन में समां जाती थी परन्तु आज यह औद्योगिक मल, शहर का गन्दा पानी और प्लास्टिक वगैरह चीजों से हुए प्रदुषण की वजह से मात्र एक नाले के रूप में बची हुई है। कभी इसमें बहुत सि मछलियाँ, जलीय जीव पाए जाते थे मगर आज सिर्फ रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु और विषाणु ही मिलते हैं। आज मेरठ में मछली का अस्तिव सिर्फ पालतू प्राणी के स्तर पर एक शीशे की टंकी तक ही सिमित है, और यहाँ टंकी में पायी जाने वाली मछलियाँ देशी नहीं अपितु विदेशी हैं। सी-डैप 2007 के रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार मस्त्य पालन के लिए मेरठ के पुराने तालाबों को पुर्नार्जिवित करने के लिए और मछली प्रजनन खेतों को बढ़ावा देने के लिए निधि की प्रबंध किया है। इसीलिए उन्होंने अभिसरण मॉडल भी बनाया जिसके तहत वे देशी तथा विदेशी मछलियों की खेती से लेकर उनके विपणन तक का मुआयना किये हैं। हमें विदेशी चीजों का हमेशा से आकर्षण रहा है और इंसानों को सुन्दरता को सहेज के रखने में काफी आनन्द महसूस होता है। मेरठ में आज विदेशी पालतू मछलियों का बड़ा बाज़ार है जिसमे उष्णकटीबंधिय मछलियाँ ज्यादा पसंद की जाती हैं। गोल्डफिश, पैरेट फ़िश, कैट फ़िश, ऑस्कर फ़िश, फ़्लाउंडर इन मछली की प्रजातियाँ को ज्यादा पसंद किया जाता है। ये मछलियाँ शीशे के पीछे काफी लुभावना दृश्य प्रस्तुत करती हैं और उनकी सुन्दर गतिशीलता देखनेवालो को मोहित कर लेती हैं और साथ ही में शांति महसूस कराती हैं। 1. सी-डेप 2007 2. उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गजेटियरस: मेरठ- इ.बी.जोशी 3. https://en.wikipedia.org/wiki/Hindon_River 4. लोस ऑफ़ डायवर्सिफिकेशन ऑफ़ फ़िश स्पीशीज इन मेरठ रीजन: अ थ्रेट तो नेचुरल फौना- शोबना, मनु वर्मा, सीमा जैन और ह्रदया शंकर सिंह (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ) आईओएसआर जर्नल ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड वेटरनरी साइंस.