मिट्टी की मूर्तियाँ और मेरठ

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
18-01-2018 06:40 PM
मिट्टी की मूर्तियाँ और मेरठ

भारत में कला का स्वरूप पुरापाषाणकाल से ही देखने को मिल जाता है जब मिर्जापुर से मातृदेवी की मूर्ति की प्राप्ति होती है। कई गुफाओं से चित्रकारी के साक्ष्य तो मिले ही थें पर मूर्तियों का अभाव ही रहा था कुछ एक मातृ मूर्तियों को छोड़कर। कालांतर में भारत में सिंधु सभ्यता के शुरू होने के बाद से मूर्तियों का विकास तेजी से हुआ परन्तु सिन्धु सभ्यता के पतन के साथ ही उसका लोप हो गया। लम्बे समय अंतराल के बाद मौर्यकाल से पुनः मूर्तियों का दौर चालू हुआ। मिट्टी की मूर्तियों के साथ-साथ इस काल में पत्थर की भी मूर्तियों का भी विकास हुआ जिसका उदाहरण अशोक के स्तम्भ व दीदारगंज यक्षी से दिख जाता है। मेरठ में भी मौर्य साम्राज्य का विकास हुआ जिसके साक्ष्य यहाँ के अशोक स्तम्भ से हो जाता है जो कि अब दिल्ली में है। मौर्यों के बाद मेरठ में शुंगों, कुषाणों व गुप्त राजवंश का शासन चला जिनके काल में यहाँ पर कई पुरास्थलों का निर्माण हुआ। मेरठ से बड़ी मात्रा में मृड़मूर्तियों की प्राप्ति हुई है जो की विभिन्न कलाओं और उनकी पराकाष्ठा को प्रस्तुत करती हैं। यहाँ पर हस्तिनापुर से भी कई मृड़मूर्तियाँ विभिन्न उत्खननों से प्राप्त हुई हैं। चित्र में हस्तिनापुर से प्राप्त हाँथी का सर प्रस्तुत किया गया है और मथुरा संग्रहालय से गुप्त कालीन और सुंग कालीन मृड़मूर्तियों को प्रस्तुत किया गया है। मृड़ मूर्तियाँ कला की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती हैं तथा इनके बनाने और पकाने की विधि उस काल के प्रद्योगिकी व विज्ञान को दर्शाता है। गंगा-यमुना दोआब में उपलब्ध चिकनी मिट्टी के कारण मेरठ व इस स्थान पर मृड़ मूर्तियों में एक विशिष्ट प्रकार की नक्काशी दिखाई देती है। मेरठ व इसके आस-पास क्षेत्र में पत्थर के बने हुये प्राचीन संरचनायें नाममात्र के मिलते हैं जिसका प्रमुख कारण है यहाँ पर पत्थरों का अभाव। 1. भारतीय कला, वासुदेव शरण अग्रवाल