मेरठ गंगा के किनारे बसा एक ऐसा शहर है जहाँ की ज़मीन काफी उपजाऊ है| गंगा, यमुना दोनों नदियों के बीच बसे इस शहर को “दोआब” कहते हैं (दो नदियों के बीच बसा शहर – गंगा, यमुना)|
मेरठ डिस्ट्रीक्ट में जहाँ सबसे ज़्यादा खेती होती थी आज वहाँ केवल 13 प्रतिशत लोग कृषि रोजगार से जुड़े हुए हैं| यहाँ एक तरफ जहाँ खेतो की हरियाली कम हुई वही दूसरी तरफ जंगलों की भी काफ़ी कटौती हुई| अगर राज्य की सुक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की रिपोर्ट को देखें तो यहाँ मात्र 21314 हेक्टेयर वन आवरण बचा है|
मेरठ में वनस्पति और जीव दोनों में घटौती हुई है| मेरठ ज़िले में अगर हस्तिनापुर (हस्तिना- हाथी, पुरम- शहर) शहर की बात करें तो यहाँ का नाम यहाँ के हाथियों के चलते रखा गया था लेकिन आज इस शहर ने अपना मूल तत्व खो दिया है|
आज के समय में यहाँ खेती के नाम पे गंगा किनारे फूलों की नर्सरी खुल गई है जो की दिल्ली एवं आस पास के शहरो में फूल और पौधों का व्यवसाय करने हेतु शुरू की गयी है| मेरठ जो की फसलों के लिए जाना जाता था आज केवल बागवानी के सहारे कारोबार कर रहा है|