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हमारे देश में, 1980 के दशक की शुरुआत से ही, 'कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय' (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare), कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहा है। यह मंत्रालय, विभिन्न परियोजनाओं को वित्त पोषित कर रहा है, जिसके तहत 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (Indian Space Research Organization (ISRO)) द्वारा फ़सल उत्पादन पूर्वानुमान के लिए कई पद्धतियां विकसित कीं गई हैं। इनमें से एक है रिमोट सेंसिंग तकनीक, जो सैटेलाइट के माध्यम से मिट्टी, बर्फ़ के आवरण, सूखे और फ़सल विकास की निगरानी के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करती है। अंतरिक्ष-आधारित तकनीक रामपुर के किसानों के लिए भी अत्यंत उपयोगी एवं मूल्यवान है। इस प्रकार के अनुसंधान से एक साथ उत्पादन और लाभप्रदता दोनों को बढ़ाया जा सकता है। तो आइए, आज भारत के कृषि क्षेत्र के लिए, अंतरिक्ष अनुसंधान की आवश्यकता के बारे में समझते हैं और कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए, भारत द्वारा उपयोग की जाने वाली अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम इस बात पर कुछ प्रकाश डालेंगे कि, अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकियां कृषि करने के तरीके को कैसे बदल रही हैं।
भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान की आवश्यकता:
खाद्यान्नों का वितरण और भंडारण, सरकारी नीतियों के निर्माण, मूल्य निर्धारण, खरीद और खाद्य सुरक्षा आदि से संबंधित निर्णय लेने जैसे उद्देश्यों के लिए फ़सल आंकड़ों की जानकारी आवश्यक है। भारत में 'कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय' द्वारा ऐसे निर्णय लेने के लिए, सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग (Satellite remote sensing) जैसी तकनीकों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है। रिमोट सेंसिंग डेटा के पारंपरिक तरीकों की तुलना में कई फ़ायदे हैं, विशेष रूप से समय पर निर्णय लेने, स्थानिक चित्रण और लागत प्रभावशीलता आदि के संदर्भ में। अंतरिक्ष डेटा का उपयोग कई महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करने में किया जाता है, जैसे, फ़सल क्षेत्र, फ़सल की उपज और उत्पादन का अनुमान, फ़सल की स्थिति एवं मिट्टी की जानकारी प्राप्त करना, फ़सल प्रणाली का अध्ययन आदि।

कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के लिए भारत में उपयोग की जाने वाली अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियां:
'कृषि, सहयोग और किसान कल्याण विभाग' ने फ़सल उत्पादन पूर्वानुमान के लिए इसरो में विकसित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संचालन के लिए 2012 में 'महालनोबिस राष्ट्रीय फ़सल पूर्वानुमान केंद्र' (Mahalanobis National Crop Forecast Centre) नामक एक केंद्र की स्थापना की। इस विभाग में 'भारतीय मृदा एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण' नामक एक और केंद्र है, जो मृदा संसाधनों के मानचित्रण के लिए सैटेलाइट डेटा का उपयोग करता है।वर्तमान में, विभाग द्वारा अपने विभिन्न कार्यक्रमों/क्षेत्रों, जैसे, 'अंतरिक्ष, कृषि-मौसम विज्ञान और भूमि आधारित अवलोकन का उपयोग करके कृषि उत्पादन का पूर्वानुमान' (Forecasting Agricultural Output using Space, Agro-meteorology and Land based Observations (FASAL)) परियोजना, भू-सूचना विज्ञान का उपयोग करके बागवानी मूल्यांकन और प्रबंधन पर समन्वित कार्यक्रम (Coordinated programme on Horticulture Assessment and Management using geoiNformatics (CHAMAN)) परियोजना, राष्ट्रीय कृषि सूखा आकलन और निगरानी प्रणाली (National Agricultural Drought Assessment and Monitoring System (NADAMS)), चावल-परती क्षेत्र का मानचित्रण और सघनीकरण (Rice-Fallow Area Mapping and Intensification), फ़सल बीमा का उचित कार्यान्वयन आदि, के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है।
'कृषि, सहयोग और किसान कल्याण विभाग' ने अक्टूबर 2015 में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और भू-सूचना विज्ञान का उपयोग करके किसान [सी (के) रोप बीमा] (KISAN [C(K)rop Insurance]) परियोजना शुरू की थी। इस परियोजना में इष्टतम फ़सल के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन रिमोट सेंसिंग डेटा के उपयोग की परिकल्पना की गई थी। इस परियोजना के तहत, 4 राज्यों - हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश - के 4 ज़िलों में पायलट अध्ययन आयोजित किए गए। इस अध्ययन में उपयोगी जानकारी जैसे, उपज़ अनुमान, फ़सल काटने की इष्टतम संख्या आदि प्राप्त हुई।

इसके अलावा, 2019-20 के दौरान, 9 फ़सलों के लिए 15 राज्यों के 64 ज़िलों में 12 एजेंसियों के माध्यम से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की परिकल्पना करते हुए पायलट अध्ययन आयोजित किए गए थे। 2020-21 के दौरान, खरीफ़ 2020 में धान की फ़सल के लिए 7 एजेंसियों की मदद से पायलट अध्ययन को देश के 9 राज्यों में 100 ज़िलों तक बढ़ाया गया। ग्राम पंचायत स्तर पर उपज़ अनुमान प्राप्त करने के लिए अध्ययन में विभिन्न प्रौद्योगिकियों जैसे सैटेलाइट, यूएवी, सिमुलेशन मॉडल और ए आई/एम एल तकनीकों का उपयोग किया गया। इन अध्ययनों के निष्कर्षों के आधार पर, 2023 से धान और गेहूं की फ़सल के लिए प्रौद्योगिकी आधारित उपज़ अनुमान शुरू किया गया। इसके अलावा, 2022-23 के दौरान गैर-अनाज फ़सलों जैसे सोयाबीन, कपास, ज्वार, बाजरा, चना, सरसों, मक्का और ग्वार के लिए प्रौद्योगिकी आधारित फ़सल उपज अनुमान के लिए पायलट अध्ययन भी शुरू किया गया है।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियाँ हमारे भोजन उगाने के तरीके को कैसे बदल रही हैं:
परिशुद्ध कृषि और सैटेलाइट प्रौद्योगिकी: उत्तम फ़सल प्रबंधन के लिए, उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, किसान अब स्पष्ट छवियों और वास्तविक समय के डेटा तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं, जिससे वे आवश्यकतानुसार अपनी खेती की निगरानी और अनुकूलन कर सकते हैं। सैटेलाइट-आधारित रिमोट सेंसिंग मिट्टी की नमी, पोषक तत्वों के स्तर और पौधों के स्वास्थ्य का सटीक मूल्यांकन करने में सक्षम बनाती है, जिससे किसानों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। इस सटीकता से बर्बादी कम होती है, पैदावार बढ़ती है और पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है, जिससे कृषि का टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित होता है। इसके अलावा, यह तकनीक, छोटे पैमाने के किसानों के लिए, उन्नत कृषि उपकरणों तक पहुंच को संभव बनाती है।
फ़सल प्रबंधन के लिए जलवायु और मौसम का पूर्वानुमान: अंतरिक्ष-आधारित मौसम निगरानी से, किसान बेहतर योजना बनाने और पर्यावरणीय परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया करने में सक्षम हो गए हैं। सटीक मौसम, पूर्वानुमान से किसान रोपण, सिंचाई और कीट नियंत्रण के बारे में शिक्षित निर्णय ले सकते हैं, जिससे अंततः फ़सल की पैदावार बढ़ती है और अप्रत्याशित मौसम की घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

संसाधन प्रबंधन और सतत कृषि पद्धतियाँ: सैटेलाइट छवियों और डेटा विश्लेषण से किसान अपने संसाधनों की अधिक कुशलता से निगरानी और प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए, उपग्रह डेटा का उपयोग सिंचाई कार्यक्रम को अनुकूलित करने, पानी बचाने और उर्वरक के उपयोग को कम करने के लिए किया जा सकता है। ये लाभ किसानों के लिए परिचालन लागत कम करते हैं और टिकाऊ खेती को आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार्य बनाते हैं।
कम संसाधनों के साथ नियंत्रित पर्यावरण कृषि (Controlled Environment Agriculture (CEA)): नियंत्रित पर्यावरण कृषि से एक बंद संरचना के भीतर फ़सलों के लिए आदर्श बढ़ती परिस्थितियों का निर्माण और रखरखाव संभव है। इसके तहत, पौधों के लिए उचित पोषक तत्व और एलईडी प्रकाश की इष्टतम अवधि और तीव्रता प्रदान की जाती है। इसमें सूखे या कीटों का कोई ख़तरा नहीं होता है, फसलें ऊर्ध्वाधर उगाई जा सकती हैं, जिससे प्रत्येक वर्ग इंच और एकड़ का अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है। आज, निजी कंपनियाँ इस वर्टिकल फ़ार्म ढांचे को नई ऊँचाइयों पर ले जा रही हैं। आज सी ई ए, अवसरों से परिपूर्ण एक बढ़ता हुआ उद्योग है।
खेती को अधिक सटीक और कुशल बनाने के लिए वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (Global navigation satellite systems (GNSS)): जी एन एस एस, सैटेलाइटों का एक समूह है, जो पृथ्वी पर स्थिति, नेविगेशन और समय संबंधी सेवाएं प्रदान करते हैं। खेती को और अधिक कुशल बनाने के लिए, जी एन एस एस-सक्षम कार्यक्रमों और अनुप्रयोगों का आज तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है। नेविगेशन से सुसज्जित कृषि मशीनरी को इष्टतम मार्गों पर चलने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। इससे किसानों को अपने समय का सदुपयोग करने में मदद मिलती है और साथ ही, ईंधन की खपत भी काफ़ी कम हो जाती है। किसान, खेत के नक्शे भी अपलोड कर सकते हैं और केवल उन्हीं क्षेत्रों में उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग कर सकते हैं, जहां उनकी आवश्यकता होती है।
अन्य अनुप्रयोगों में फ़सल निगरानी, पशुधन ट्रैकिंग और ऑटो-मार्गदर्शन शामिल हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग : (Wikimedia)