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                                            आधुनिक समय में हमारी भाषा सिर्फ़ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी पहचान का भी प्रतीक बन चुकी है! उदाहरण के तौर पर रामपुर की सरज़मीं पर बोली जाने वाली हिंदी, उर्दू और अवधी की मिठास, यहाँ की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है। नवाबी इतिहास से जुड़ा यह शहर अपनी तहज़ीब और जुबान की नज़ाकत के लिए मशहूऱ है। भारत की भाषाई विविधता भी इसी तरह अनूठी है। हमारे संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को आधिकारिक मान्यता दी गई है, जो बहुभाषावाद को बढ़ावा देती है। वहीं, राज्य सरकारें भी अपनी आधिकारिक भाषा चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। उत्तर प्रदेश में हिंदी मुख्य प्रशासनिक भाषा है, लेकिन रामपुर में उर्दू का भी गहरा प्रभाव देखा जाता है। सरकारी कामकाज़ में भले ही हिंदी का इस्तेमाल हो, मगर रामपुर की गलियों, बाज़ारों और चौपालों पर उर्दू की शायराना मिठास आज भी बरकरार है। केंद्र में हिंदी और अंग्रेज़ी प्रशासनिक भाषाएँ हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर भाषाओं का परिदृश्य कहीं अधिक विविध और रंगीन है। रामपुर के मशहूऱ शायरों, क़व्वालों और साहित्यकारों ने अपनी जुबान से पूरे देश को मोहित किया है। यहाँ का उर्दू अदब और साहित्यिक विरासत, रामपुर को पूरे देश में एक अलग पहचान दिलाता है। इसलिए आज के इस लेख में हम भारत के भाषाई परिदृश्य की एक झलक देखेंगे। फिर, हम उन राज्यों और शहरों पर नज़र डालेंगे, जहां भाषाई विविधता सबसे अधिक है। आखिर में हम उन संवैधानिक प्रावधानों की चर्चा करेंगे, जो पूरे देश में भाषाई अधिकारों की रक्षा करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि भारत में दुनिया की सबसे अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं? यह विविधता न केवल हमारी सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि हमारे सहिष्णु और एकजुट समाज की पहचान भी है। भारत का भूगोल जैसे कि यहाँ के ऊँचे पहाड़, हरे-भरे जंगल, शांत नदी घाटियाँ और सुनहरे रेगिस्तान आदि यहाँ की भाषाओं और जीवनशैली को आकार देता है। अलग-अलग क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताएँ वहाँ के लोगों के रहन-सहन और भाषा पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
भारत में भाषाओँ की पाँच प्रमुख शाखाएं या परिवार हैं:
इन भाषा परिवारों की विविधता ही भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है। हर भाषा में संचित लोककथाएँ, गीत और साहित्य हमारी धरोहर का हिस्सा हैं। 
संस्कृत को भारत की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक माना जाता है। इसे पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में महान व्याकरणाचार्य पाणिनी ने एक वैज्ञानिक व्याकरण प्रणाली में बाँधा था। प्राचीन काल में संस्कृत धर्म, दर्शन और शिक्षा की प्रमुख भाषा हुआ करती थी, जबकि आम जनमानस प्राकृत बोलते थे। गौतम बुद्ध ने भी अपने उपदेश प्राकृत में दिए ताकि लोग उन्हें आसानी से समझ सकें। बौद्ध साहित्य पाली भाषा में लिखा गया, जो प्राकृत का ही रूप थी। संस्कृत के साथ-साथ भारत की द्रविड़ भाषाएँ भी हज़ारों साल पुरानी हैं। इनमें तमिल सबसे प्राचीन मानी जाती है, जिसकी साहित्यिक परंपरा लगभग दो हज़ार वर्ष पुरानी है। इसके अलावा तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ जैसी अन्य द्रविड़ भाषाएँ भी समय के साथ विकसित हुईं और क्षेत्रीय साहित्य और संस्कृति को समृद्ध किया।
आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास कैसे हुआ?
गुप्त काल के दौरान संस्कृत फिर से प्रमुख भाषा बनी, लेकिन आम लोग प्राकृत और अपभ्रंश का उपयोग करते रहे। हालांकि समय के साथ इन्हीं अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय भाषाएँ विकसित हुईं! 
इनमें शामिल है:
ये भाषाएँ आज भी भारत की सांस्कृतिक पहचान को सँजोए हुए हैं।
क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे ज़्यादा भाषाएं कहां बोली जाती हैं? 
भारत में सबसे ज़्यादा भाषाएं असम में बोली जाती हैं। यहां पर 117 भाषाएं बोली जाती हैं, जिस कारण यह भारत का सबसे बहुभाषी राज्य बन जाता है।
इसके बाद:
इसके अलावा:
इसके बाद:
इसके अलावा:
भारत की यह भाषाई विविधता इसकी सांस्कृतिक संपन्नता को दर्शाती है। इतने विविध राज्यों और जिलों में अलग-अलग बोलियों और भाषाओं का संगम भारत को सही मायनों में एक बहुभाषी और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश बनाता है। 
भारत की इन सभी भाषाओँ को संरक्षित और मान्यता देने के लिए संविधान में कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। 
आइए, इन्हें आसान भाषा में समझते हैं।
- अनुच्छेद 29: यह अनुच्छेद अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार देता है। इसमें यह भी कहा गया है कि किसी व्यक्ति के साथ उसकी भाषा, धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसके तहत हर नागरिक को अपनी मातृभाषा और सांस्कृतिक पहचान को बचाने का पूरा हक़ है। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में देश की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है।
इसमें 22 भाषाएँ शामिल हैं: असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी। इन भाषाओं को सरकारी कामकाज़ में इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त है।
भारत में अब तक 6 भाषाओं को 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा दिया गया है:
शास्त्रीय भाषा का दर्जा उन्हीं भाषाओं को मिलता है, जिनका ऐतिहासिक महत्व और समृद्ध साहित्यिक विरासत हो।
- अनुच्छेद 343 (Article 343): संविधान के अनुसार, भारत की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी है। इसके अलावा संख्या लिखने के लिए अंतरराष्ट्रीय अंक पद्धति (1, 2, 3...) का उपयोग किया जाएगा। संविधान लागू होने के बाद पहले 15 वर्षों तक अंग्रेज़ी भी आधिकारिक भाषा थी, जिसे बाद में आगे भी जारी रखा गया।
- अनुच्छेद 345 (Article 345): राज्य विधानसभाओं को अधिकार है कि वे अपने राज्य में किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषा बना सकती हैं। कुछ राज्यों में एक से अधिक आधिकारिक भाषाएँ हैं।
उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु में तमिल तथा पुडुचेरी में तमिल, तेलुगु और मलयालम भी आधिकारिक भाषाएँ हैं। 
- अनुच्छेद 346 (Article 346): राज्यों और केंद्र के बीच आधिकारिक संचार के लिए मुख्य रूप से हिंदी या अंग्रेज़ी का उपयोग किया जाएगा। हालांकि, यदि दो राज्यों की सामान्य भाषा कोई दूसरी हो, तो वे उसका भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 347 (Article 347): यदि किसी राज्य के पर्याप्त लोग माँग करें, तो राष्ट्रपति उस भाषा को राज्य में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दे सकते हैं। यह मान्यता पूरे राज्य या किसी विशेष क्षेत्र के लिए दी जा सकती है।
- अनुच्छेद 348 (Article 348): सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में कार्यवाही मुख्य रूप से अंग्रेज़ी में होगी, जब तक कि संसद अन्य भाषा का प्रावधान न करे। अनुच्छेद 348(2) के तहत, राज्यपाल को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद हाई कोर्ट में हिंदी या अन्य भाषा के उपयोग की अनुमति देने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 350 (Article 350): हर नागरिक को यह अधिकार है कि वह किसी भी भाषा में शिकायत दर्ज करा सकता है, चाहे वह भाषा आधिकारिक हो या न हो। यह प्रावधान नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
- अनुच्छेद 350A (Article 350 A): यह प्रावधान राज्यों को निर्देश देता है कि वे प्राथमिक स्तर पर बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रयास करें। इससे बच्चों को पढ़ाई में सहज़ता मिलती है और भाषाई विविधता भी संरक्षित रहती है।
- अनुच्छेद 350B (Article 350 B): भाषाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। यह अधिकारी राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपेगा और अल्पसंख्यकों के भाषाई अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करेगा।
- अनुच्छेद 351 (Article 351): केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह हिंदी भाषा के विकास को बढ़ावा दे। हिंदी को आधुनिक और प्रगतिशील भाषा बनाने के लिए इसमें संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं के तत्व शामिल किए जाएँ। इससे हिंदी अधिक समृद्ध और प्रभावी बनेगी।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत की भाषाई विविधता, हमारी सबसे बड़ी सांस्कृतिक धरोहर है। यहाँ बोली जाने वाली सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ, देश की समृद्ध परंपरा, इतिहास और सामाजिक ताने-बाने को दर्शाती हैं। रामपुर जैसे शहरों में हिंदी और उर्दू की मिठास, देश की भाषाई सहिष्णुता और सांस्कृतिक समावेशिता का प्रतीक है। भारतीय संविधान में भाषाई अधिकारों की रक्षा के लिए किए गए प्रावधान न केवल भाषाओं को संरक्षण प्रदान करते हैं, बल्कि प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा और संस्कृति के साथ जीने का अधिकार भी देते हैं। इस प्रकार, भारत की भाषाई विविधता उसकी एकता, समरसता और सांस्कृतिक वैभव का सजीव प्रमाण है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में 1954 में कोलंबिया विश्वविद्यालय की द्वि-शताब्दी के अवसर पर नई दिल्ली में एक संगोष्ठी को संबोधित करते डॉ अम्बेडकर और संविधान का स्रोत : Wikimedia