भगवान बुद्ध द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर दुःख से मुक्ति पा सकते हैं, रामपुरवासी

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
12-05-2025 09:20 AM
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भगवान बुद्ध द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर दुःख से मुक्ति पा सकते हैं, रामपुरवासी

गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ और संदेश केवल धर्म और आध्यात्मिकता तक ही सीमित नहीं हैं , बल्कि वे हमारे जीवन को गहराई से समझने और उसे उचित दिशा में ले जाने का व्यावहारिक मार्ग भी प्रदान करते हैं। रामपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत ने हमेशा से ही ज्ञान और आत्मचिंतन को बड़ा महत्व दिया है। यही कारण है कि यहाँ के लोग भी भगवान् बुद्ध के सिद्धांतों से गहराई से जुड़े हुए हैं। बुद्ध के अधिकांश विचार अहिंसा, सत्य और ध्यान पर आधारित हैं। उनके विचार हमें एक संतुलित और अर्थपूर्ण जीवन जीने की राह दिखाते हैं। उनका प्रसिद्ध सिद्धांत "चार आर्य सत्य" हमारे जीवन के सबसे बड़े प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करता है : - “दुख क्यों होता है और इससे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है? आधुनिक समय में भी भगवान बुद्ध के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने कि आज से हज़ारों साल पहले थे। वे हमें करुणा, आत्मविकास और मानसिक शांति की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर, हम विस्तार से जानेंगे कि भी बुद्ध के सिद्धांत कैसे हमारे जीवन में संतुलन और शांति लाने में मदद कर सकते हैं। इसके तहत हम चार आर्य सत्यों की गहराई में उतरेंगे, जिन्हें उनके ज्ञान का सार माना जाता है। आखिर में हम अष्टांगिक मार्ग को समझेंगे, जो सही सोच, नैतिक आचरण और मानसिक अनुशासन के माध्यम से  एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की राह दिखाता है।

गौतम बुद्ध के हिरण पार्क में प्रथम उपदेश की पेंटिंग | चित्र स्रोत : Wikimedia 

"बुद्ध" शब्द का अर्थ – "पूर्ण रूप से जागा हुआ व्यक्ति" होता है। बौद्ध धर्म के अनुसार, बुद्धत्व वह अवस्था है, जहाँ व्यक्ति के सभी प्रश्न समाप्त हो जाते हैं और जानने के लिए कुछ भी शेष नहीं रह जाता। यह परम ज्ञान (संपूर्ण सत्य) की प्राप्ति की स्थिति है, जहाँ व्यक्ति को आत्म-बोध हो जाता है और वह निर्वाण की ओर अग्रसर हो जाता है।  (निर्वाण का अर्थ “सभी दुःखों, इच्छाओं और चिंताओं से पूर्ण मुक्ति।” होता है) बुद्धत्व किसी विशेष व्यक्ति, धर्म या क्षमता तक सीमित नहीं है। कोई भी व्यक्ति बुद्ध बन सकता है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या पृष्ठभूमि से हो। हालांकि, बुद्धत्व प्राप्त करना इस दुनिया में सबसे कठिन कार्यों में से एक है। इसके लिए असीम आत्मबल, त्याग और साधना की आवश्यकता होती है।

इसलिए बौद्ध धर्म केवल एक आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका भी है। इसकी शुरुआत करीब 2,500 साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप में हुई थी! आज यह दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक बन गया है, जिसका अनुसरण लाखों लोग करते हैं।

बौद्ध धर्म क्या सिखाता है?

बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ मुख्य रूप से मानवीय पीड़ा को समझने और उससे मुक्ति पाने पर केंद्रित हैं। इसे "धर्म" कहा जाता है। बौद्ध दर्शन के अनुसार, जीवन में दुख का कारण और उससे छुटकारा पाने का मार्ग समझना ही आत्मज्ञान की ओर पहला कदम है।

बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ दो मुख्य सिद्धांतों पर आधारित हैं:

“चार आर्य सत्य” जो कि इस प्रकार हैं:

  1. जीवन में पीड़ा (दुख) है।
  2. पीड़ा के पीछे कारण (तृष्णा) है।
  3. इस पीड़ा से मुक्ति संभव है।
  4. इसके लिए अष्टांगिक मार्ग का पालन करना आवश्यक है।

अष्टांगिक मार्ग हमें नैतिक आचरण, ध्यान और ज्ञान को विकसित करने का व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

हालाँकि बौद्ध धर्म के अलग-अलग पंथ और परंपराएँ हैं, लेकिन फिर भी इन सभी का एक ही उद्देश्य है—”पीड़ा को दूर करना और ज्ञान व शांति की अवस्था प्राप्त करना।” बौद्ध धर्म केवल एक धार्मिक आस्था न होकर जीवन में करुणा, संतुलन और मानसिक शांति पाने का मार्ग दिखाता है। इसकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को जीवन में संतुलन और सुख की राह दिखा रही हैं।

बुद्ध चार आर्य सत्यों की शिक्षा दे रहे हैं। | चित्र स्रोत : Wikimedia 

आइए अब “चार आर्य सत्य” के बारे में गहराई से जानते हैं:

बौद्ध धर्म की नींव चार आर्य सत्य पर टिकी है। ये सत्य हमें जीवन में दुख के स्वभाव को समझने और उससे मुक्ति पाने का मार्ग दिखाते हैं। बुद्ध ने इन्हें अपने अनुभव से जाना और यही उनके दर्शन का मूल भी है।

 1. दुख का सत्य (दुक्ख): भगवान बुद्ध कहते हैं कि “जीवन में दुख अपरिहार्य” है। चाहे हम इसे स्वीकार करें या नहीं, दुख हर जगह मौजूद है! यह शारीरिक पीड़ा से लेकर मानसिक तनाव, असुरक्षा या खोने के डर हर कहीं मौजूद है। यहां तक कि सुखद पलों में भी दुख की संभावना छिपी होती है। जीवन में असंतोष का यह एहसास ही पहला सत्य है।

2. दुख का कारण (समुदाय): दूसरा सत्य बताता है कि “दुख का मूल कारण हमारी इच्छाएं और अज्ञानता हैं।” हम चीजों को शाश्वत स्थायी मान लेते हैं, जबकि वे लगातार बदलती रहती हैं। सुख की तलाश में भागते रहना और घटनाओं के उम्मीद के मुताबिक न होने पर दुखी होना, यही संसार का चक्रव्यूह है।

 3. दुख का अंत (निरोध): तीसरा सत्य आशा जगाता है, जो कहता है की “दुख का अंत संभव है।” बुद्ध सिखाते हैं कि दुख बादलों की तरह आते-जाते रहते हैं, लेकिन हमारे भीतर का शुद्ध और शांत स्वभाव हमेशा मौजूद रहता है। जब हम इस स्वभाव को पहचान लेते हैं, तो हम दुख से मुक्त हो जाते हैं। यही अवस्था निर्वाण कहलाती है, जहां जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।

4. दुख से मुक्ति का मार्ग (मार्ग): चौथा सत्य दुख से छुटकारा पाने का रास्ता बताता है। बुद्ध ने इसके लिए अष्टांगिक मार्ग बताया, जिसमें उचित विचार, उचित वचन, उचित कर्म, ध्यान और जागरूकता शामिल हैं। इनका अभ्यास करके हम भी शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

 चित्र स्रोत : pexels

आइए अब जानते हैं, भगवान् बुद्ध ने दुःख से मुक्ति के लिए जो अष्टांगिक मार्ग बताए हैं, वो क्या हैं?

अष्टांगिक मार्ग क्या है?

बौद्ध मार्ग को अलग-अलग रूपों में समझाया जाता है, जिससे यह कभी-कभी जटिल प्रतीत हो सकता है। लेकिन मूल रूप से ये सभी एक ही प्रक्रिया का वर्णन करते हैं। अष्टांगिक मार्ग इस प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, क्योंकि यह जीवन के हर क्षेत्र को शामिल करता है और एक संतुलित जीवन जीने की दिशा दिखाता है।

अष्टांगिक मार्ग के आठ चरण:

सम्यक दृष्टि (उचित समझ) – इसे आप जीवन और संसार को यथार्थ रूप में देखने की क्षमता कह सकते हैं। यह समझ हमें मोह, भ्रम और अज्ञानता से मुक्त करती है।

सम्यक संकल्प (उचित इरादा) – अपने विचारों में अहिंसा, करुणा और त्याग का भाव रखना। यह हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।

सम्यक वाणी (उचित भाषण) – सत्य और मधुर बोल बोलना, कटु वचन और झूठ से बचना। हमारी भाषा में दया और प्रेम होना आवश्यक है।

सम्यक कर्म (उचित आचरण) – नैतिक जीवन जीना। हत्या, चोरी और अनैतिक कार्यों से बचना। यह समाज और स्वयं के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी दर्शाता है।

सम्यक आजीविका (उचित जीवन-यापन) – ऐसा व्यवसाय या काम चुनना, जिससे किसी को नुकसान न पहुँचे। ईमानदारी और नैतिकता के साथ जीवन-यापन करना।

सम्यक प्रयास (उचित प्रयास) – बुरी आदतों और विचारों को त्यागकर, अच्छे विचार और कर्म को प्रोत्साहित करना। यह आत्म-विकास का आधार है।

सम्यक स्मृति (उचित जागरूकता) – वर्तमान क्षण में पूरी सजगता और सतर्कता के साथ जीना। अतीत का पश्चाताप और भविष्य की चिंता छोड़कर, वर्तमान में रहना।

सम्यक समाधि (उचित एकाग्रता) – ध्यान के माध्यम से मन को स्थिर और शांत रखना। यह मानसिक स्पष्टता और आंतरिक शांति प्रदान करता है।

इस मार्ग का नियमित अभ्यास करने से न केवल व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है, साथ ही इससे समाज में सद्भावना और करुणा की भावना भी विकसित होती है। यह मार्ग जीवन में संघर्षों से मुक्त होकर एक सहज और पूर्ण जीवन जीने का आधार बनता है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/29ntuwqa 

https://tinyurl.com/23vpomd9 

https://tinyurl.com/2ava9mdx

मुख्य चित्र स्रोत : Pexels