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रामपुर, जो कि उत्तर प्रदेश की एक ऐतिहासिक रियासत रही है, नवाबी दौर में अपनी शाही परंपराओं के लिए प्रसिद्ध था। नवाबों द्वारा आयोजित शिकार अभियानों, राजसी जुलूसों और समारोहों में हाथियों का प्रयोग एक आम बात थी। दरबार की साज-सज्जा में हाथी विशेष महत्व रखते थे, जो सोने-चाँदी की झांकियों और रंगीन वस्त्रों से सजाए जाते थे। इन्हें किले से लेकर शिकारगाह तक विशेष उद्देश्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाता था।
उत्तर भारत में, विशेष रूप से गढ़वाल, तराई-भाभर क्षेत्र, दुधवा, और शारदा तथा रामगंगा नदियों के किनारे वाले जंगलों में हाथियों की ऐतिहासिक उपस्थिति रही है। मुग़लकालीन सेना में हाथी युद्ध के पहले पंक्ति में खड़े होते थे और किले पर आक्रमण करने के लिए उनकी ताकत का उपयोग किया जाता था। सम्राट अकबर और औरंगज़ेब के दरबार में हाथियों की लड़ाई भी मनोरंजन और शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा होती थी। यह उपस्थिति इस क्षेत्र की पारंपरिक पारिस्थितिकी और संस्कृति का भी प्रतिबिंब है।
इस लेख में हम भारत में हाथियों की पारंपरिक भूमिका से लेकर उनकी वर्तमान चुनौतियों और संरक्षण प्रयासों तक की चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि भारतीय संस्कृति और धर्म में हाथियों का क्या महत्व रहा है। फिर हम देखेंगे कि शहरीकरण और वनों की कटाई के चलते उनकी स्थिति कैसे बदल रही है। इसके बाद मानव-हाथी संघर्ष के मुख्य कारणों पर ध्यान देंगे, जैसे आवास की कमी और खेती में हस्तक्षेप। हम यह भी समझेंगे कि हाथी पारिस्थितिकी में कैसे अहम भूमिका निभाते हैं और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं। साथ ही, जलवायु परिवर्तन उनके आवासों को किस तरह प्रभावित कर रहा है, इसे भी जानेंगे। अंत में, हम संरक्षण के प्रयासों और मानव-हाथी सह-अस्तित्व के संभावित समाधानों पर चर्चा करेंगे।
भारत में हाथियों का पारंपरिक स्थान और बदलती स्थिति
हाथी प्राचीन भारत में ‘गज’ के नाम से जाने जाते थे और उन्हें राजा का रथ तथा युद्ध वाहन माना जाता था। महाभारत में भी भीम और घटोत्कच जैसे योद्धाओं की युद्ध कला में हाथियों की भूमिका का उल्लेख है। भारत के 16 महाजनपदों में मगध और कौशल जैसे राज्यों की सेनाओं में हाथियों की संख्या को शक्ति का सूचक माना जाता था। बौद्ध ग्रंथों में स्वप्न में हाथी का आना शुभ संकेत बताया गया है।
परंतु आधुनिक समय में, खासकर 20वीं सदी के उत्तरार्ध से, हाथियों की स्थिति तेजी से बदली है। शहरीकरण, कृषि विस्तार, और औद्योगिकरण ने उनके प्राकृतिक आवासों को खंडित कर दिया है। वन क्षेत्रों में मानव घुसपैठ और सड़क-रेल विकास परियोजनाओं ने पारंपरिक हाथी गलियारे को बाधित किया है। जहाँ पहले हाथी जंगली जीवन का स्वाभाविक भाग थे, वहीं अब उन्हें पालतू बनाकर सर्कस, पर्यटक सवारी और धार्मिक शोभा यात्रा में प्रयोग किया जाने लगा है, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित हुए हैं।
मानव-हाथी संघर्ष के पीछे मुख्य कारण
पिछले दो दशकों में मानव-हाथी संघर्ष (Human-Elephant Conflict - HEC) में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022-23 में देशभर में 500 से अधिक लोगों की मृत्यु हाथियों के कारण हुई, जबकि 100 से अधिक हाथी बिजली के झटके, रेल दुर्घटना, या प्रतिशोधी हिंसा का शिकार बने।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और असम जैसे राज्यों में यह संघर्ष सबसे अधिक देखा गया है। इसके पीछे प्रमुख कारणों में से एक है – प्राकृतिक गलियारों का अवरोध, जिससे हाथी भोजन और पानी की तलाश में गाँवों में प्रवेश करने लगते हैं।
इसके अतिरिक्त –
यदि यह संघर्ष समय रहते नहीं सुलझाया गया, तो यह न केवल हाथियों के लिए बल्कि ग्रामीणों की आजीविका और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी संकट का कारण बन सकता है।
हाथियों की पारिस्थितिकी में भूमिका और पारिस्थितिक संतुलन
हाथी वन पारिस्थितिकी तंत्र में कीस्टोन प्रजातियाँ (keेystone species) की भूमिका निभाते हैं। उनके बिना जंगलों की जैविक विविधता पर गहरा असर पड़ता है। वे प्रतिदिन लगभग 150 किलो तक वनस्पति खाते हैं और 10-12 घंटे भोजन की तलाश में रहते हैं। इससे वे वनस्पतियों के प्रसार और परिमार्जन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उनकी विशेष भूमिका में शामिल हैं:
इन सारी गतिविधियों से यह स्पष्ट है कि हाथी एक प्रकार से वन पारिस्थितिकी के "इकोलॉजिकल इंजीनियर" हैं, जिनके बिना पूरे तंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन और हाथियों के आवासों पर इसका प्रभाव
विश्व मौसम संगठन (WMO) और आईपीसीसी (IPCC) की रिपोर्टों के अनुसार, भारत में औसत तापमान पिछले 100 वर्षों में 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इसका सीधा असर हाथियों के प्राकृतिक आवासों पर पड़ रहा है, विशेषकर तराई और दक्षिण भारत के वर्षा आधारित जंगलों पर।
प्रमुख प्रभावों में शामिल हैं:
इसलिए जलवायु परिवर्तन को वन्यजीव संरक्षण से पृथक नहीं देखा जा सकता। यह एक समग्र संकट है, जिसे वन प्रबंधन, स्थानीय नीति और वैश्विक जलवायु समझौते के अंतर्गत देखा जाना चाहिए।
संरक्षण के प्रयास और समाधान के उपाय
भारत सरकार का ‘प्रोजेक्ट एलीफेंट (Project Elephant)’ 1992 में शुरू किया गया था, जो आज भी हाथियों के संरक्षण, मानव-हाथी संघर्ष के समाधान और अनुसंधान को बढ़ावा देता है। इसके तहत अब तक 32 हाथी अभयारण्य अधिसूचित किए गए हैं।
प्रमुख प्रयासों में शामिल हैं:
यदि ये प्रयास समन्वय और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से जारी रहें, तो आने वाले दशकों में हाथियों का भविष्य अधिक सुरक्षित और स्थिर हो सकता है।
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