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                                            रामपुर की भौगोलिक स्थिति इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टियों से समृद्ध बनाती है। यहाँ की प्रमुख मिट्टियाँ हैं: काली मिट्टी, दोमट मिट्टी, मटियार मिट्टी और कुछ क्षेत्रों में जलोढ़ मिट्टी भी पाई जाती है। तराई क्षेत्र, जो नदियों के समीपवर्ती भागों में है, वहाँ जलोढ़ और मटियार मिट्टी की प्रमुखता है। वहीं ऊंचे स्थानों पर दोमट और काली मिट्टी की प्रधानता देखने को मिलती है। पूर्वी और दक्षिणी भागों में जहाँ वर्षा थोड़ी कम होती है, वहाँ काली मिट्टी का प्रसार अधिक है। घाघरा या रामगंगा जैसी नदियों के किनारे की भूमि पर जलोढ़ मिट्टी की परतें जमा हुई हैं, जो समय-समय पर बाढ़ से उपजाऊ बनती हैं। वहीं रामपुर के मध्यवर्ती क्षेत्र में दोमट मिट्टी का प्रभुत्व है, जो संतुलित जलधारण और पोषण क्षमता के कारण बहु-फसली खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह विविधता न केवल भूमि उपयोग को प्रभावित करती है बल्कि किसानों को फसलों के चयन में भी लचीलापन देती है। इससे खेती की आर्थिक स्थिरता में सहायता मिलती है और खाद्य सुरक्षा का आधार भी बनता है।
इसके अलावा, इस मिट्टी वितरण का सीधा प्रभाव सिंचाई व्यवस्था और जल संचयन प्रणालियों पर भी पड़ता है। विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ अलग-अलग जल अवशोषण दर के कारण भूमिगत जल स्तर को भी नियंत्रित करती हैं। इसी कारण रामपुर के विभिन्न ब्लॉकों में भूमि सुधार योजनाएँ मिट्टी के प्रकार के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप में अपनाई जाती हैं। यह जानकारी किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है, जो स्थानीय कृषि योजना को अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि रामपुर की मिट्टी आखिर इतनी खास क्यों मानी जाती है। शुरुआत करेंगे काली मिट्टी यानी रेगुर से, जो अपने खनिज तत्वों और गहरे रंग के कारण जानी जाती है। फिर विस्तार से समझेंगे दोमट मिट्टी की बनावट, इसकी कृषि उपयोगिता और इसमें उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों को। इसके बाद नज़र डालेंगे रामपुर के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली लेटराइट मिट्टी पर, जो भले ही सीमित क्षेत्र में हो, लेकिन कुछ खास फसलों के लिए बेहद उपयोगी है। अंत में हम चर्चा करेंगे कि इन मिट्टियों की उर्वरता बनाए रखने के लिए कौन-कौन से जैविक और तकनीकी उपाय किए जा रहे हैं और रामपुर की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में इनका क्या योगदान है।
काली मिट्टी (रेगुर) की संरचना, रंग और खनिज विशेषताएं
रामपुर में पाई जाने वाली काली मिट्टी को रेगुर के नाम से जाना जाता है। यह मुख्यतः उन क्षेत्रों में मिलती है जहां वर्षा मध्यम होती है और तापमान उच्च रहता है। इसका गहरा काला रंग इसमें उपस्थित टिटैनिफेरस मैग्नेटाइट, लोहे के यौगिकों, तथा मूल चट्टानों जैसे क्रिस्टलीय शिस्ट और बेसिक नाइस्सेस की उपस्थिति के कारण होता है। इस मिट्टी की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी उच्च जलधारण क्षमता है। गीले होने पर यह फूल जाती है और सूखने पर सिकुड़ जाती है, जिससे इसमें चौड़ी दरारें बन जाती हैं, जो स्वतः जुताई में सहायक होती हैं। यह मिट्टी पोटेशियम (potassium), कैल्शियम (calcium), एल्यूमीनियम (alluminium) और मैग्नीशियम (magnesium) जैसे खनिजों से समृद्ध होती है, लेकिन इसमें नाइट्रोजन (nitrogen) और फॉस्फोरस (phosphorous) की कमी देखी जाती है।
इसके कई रंग-रूप होते हैं – गहरा काला, मध्यम काला और कभी-कभी लाल-काले मिश्रित रंग में भी मिलती है। यही विविधता इसे बहुउद्देश्यीय बनाती है – कृषि से लेकर क्रिकेट पिच निर्माण तक।
इस मिट्टी की बनावट गहरी और चिकनी होने के कारण इसमें गहरी जड़ वाली फसलों को उगाने में सहूलियत होती है। रामपुर में जहाँ यह मिट्टी पाई जाती है, वहाँ बागवानी, औषधीय पौधों की खेती और टाइल बनाने की इकाइयों की स्थापना के भी प्रयास हो रहे हैं। इसके खनिज तत्वों का उपयोग सीमेन्ट और ईंट निर्माण में भी संभावनाएं खोल रहा है, जिससे यह मिट्टी केवल कृषि ही नहीं बल्कि स्थानीय उद्योगों के लिए भी लाभकारी बनती जा रही है।

रामपुर में काली मिट्टी की उर्वरता और कृषि में उपयोग
रामपुर की काली मिट्टी कपास की खेती के लिए जानी जाती है, लेकिन इसकी उपजाऊ क्षमता इसे अन्य कई फसलों के लिए भी आदर्श बनाती है। इसमें कपास, गेहूं, ज्वार, बाजरा, अरंडी, सूरजमुखी, तंबाकू जैसी फसलें उगाई जाती हैं। जहां सिंचाई की व्यवस्था बेहतर होती है, वहाँ धान और गन्ना की खेती भी सफल होती है। काली मिट्टी में जैविक मिश्रणों का प्रयोग इसे और अधिक उपजाऊ बनाता है। प्राचीन काल में किसान चारकोल (biochar) और ह्यूमस मिलाकर इस मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते थे। चारकोल कार्बन का भंडारण करता है और मिट्टी की अम्लता को कम करता है। ह्यूमस मिट्टी की सतह को नरम और पोषक बनाता है। कृषि के अलावा, इसकी मृदुल बनावट के कारण यह खेल मैदानों विशेषतः क्रिकेट पिच बनाने में भी प्रयोग होती है, जिससे रामपुर की यह मिट्टी अन्य जिलों में भी भेजी जाती है। यह एक प्रकार की भौगोलिक कृषि संपत्ति बन चुकी है।
आजकल जैविक खेती की ओर बढ़ते रुझान के साथ, रामपुर की काली मिट्टी का उपयोग प्राकृतिक खाद और कीट-प्रतिरोधक विधियों में तेजी से बढ़ रहा है। इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता अधिक पाई जाती है, जो पौधों की जड़ों को पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाते हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा मिट्टी परीक्षण और उर्वरता सुधार की योजनाएं काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से लागू की जा रही हैं। इससे किसान अधिक उत्पादन के साथ-साथ टिकाऊ खेती की दिशा में भी आगे बढ़ पा रहे हैं।

रामपुर की दोमट मिट्टी: संरचना, बनावट और कृषि अनुकूलता
रामपुर की दोमट मिट्टी में सिल्ट, बलुआ और मटियार मिट्टी का संतुलित मिश्रण होता है। इसमें आमतौर पर बलुआ की मात्रा 40-52%, सिल्ट (silt) 28-50% और मटियार 7-27% तक पाई जाती है। यह संतुलन इसे एक सर्वोत्तम कृषि मिट्टी बनाता है। दोमट मिट्टी की बनावट ऐसी होती है कि यह न तो बहुत सख्त होती है और न ही बहुत ढीली, जिससे जुताई, बुवाई और सिंचाई सभी प्रक्रियाएं आसान हो जाती हैं। इसमें अच्छी जल निकासी और जल धारण क्षमता दोनों होती हैं, जिससे यह सूखा प्रतिरोधी भी बनती है। इसमें मौजूद बलुआ कण वातन में मदद करते हैं और मटियार कण पोषक तत्वों को रोककर रखने में सहायक होते हैं। यही कारण है कि रामपुर में इस मिट्टी पर गेहूं, चना, सरसों, सब्जियां और दलहन जैसी फसलें सफलतापूर्वक उगाई जाती हैं।
इस मिट्टी में जैविक खाद के साथ-साथ उन्नत बीजों का प्रयोग करने पर अत्यधिक उत्पादन संभव है। दोमट मिट्टी की लचीलापन इसे वर्षा आधारित और सिंचित दोनों ही प्रकार की खेती के लिए उपयुक्त बनाती है। रामपुर में फलोत्पादन जैसे पपीता, अमरूद, और तरबूज की खेती भी दोमट मिट्टी में बड़े स्तर पर शुरू हो चुकी है। इस मिट्टी के कारण जिले में हर मौसम में कुछ न कुछ फसल लेने की क्षमता बनी रहती है, जिससे किसानों की आजीविका स्थिर बनी रहती है।

लेटराइट मिट्टी (Laterite Soil) की उपस्थिति और विशेष फसलों में उपयोगिता
हालांकि लेटराइट मिट्टी रामपुर में सीमित क्षेत्रों में ही पाई जाती है, फिर भी इसका महत्व कम नहीं है। यह मिट्टी लोहे और एल्युमिनियम ऑक्साइड (alluminium oxide) से समृद्ध होती है और गर्म तथा नम वातावरण में बनती है।
इस मिट्टी की विशेषता है कि यह अम्लीय होती है और जल धारण क्षमता कम होती है, लेकिन इसमें चाय, कॉफी, नारियल, काजू और रबर जैसी विशेष फसलें सफलतापूर्वक उगाई जाती हैं। रामपुर के कुछ दक्षिणी-पश्चिमी इलाकों में जहाँ जल निकासी अत्यधिक होती है और भूमि अधिक उष्ण होती है, वहाँ लेटराइट मिट्टी देखने को मिलती है। इस पर कृषि अनुसंधान केंद्रों द्वारा कई प्रकार की उच्च-विकासशील फसलों की खेती पर प्रयोग किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, इस मिट्टी में ग्रीन मैन्योरिंग तकनीक और सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति कर विशेष कृषि योजनाएँ चलाई जा रही हैं। सरकार द्वारा रामपुर में चाय और काजू आधारित बागवानी को प्रोत्साहन देने की योजनाएँ बन रही हैं, जिससे इस मिट्टी का बेहतर उपयोग संभव हो सके। भविष्य में यदि जल प्रबंधन और उपयुक्त उर्वरक नीति अपनाई जाए, तो यह मिट्टी भी जिले की अर्थव्यवस्था को नया आयाम दे सकती है।
संदर्भ-