रामपुर की मिट्टी में छिपे सूक्ष्मजीव: खेती के नए साथी, उपज बढ़ाने के गुप्त सूत्र

बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ, क्रोमिस्टा और शैवाल
17-07-2025 09:34 AM
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रामपुर की मिट्टी में छिपे सूक्ष्मजीव: खेती के नए साथी, उपज बढ़ाने के गुप्त सूत्र

रामपुर के मेहनती किसानों के लिए खेती सिर्फ आजीविका नहीं, बल्कि एक परंपरा और जीवनशैली है। लेकिन बदलते मौसम, घटती मिट्टी की उर्वरता और रासायनिक खादों पर निर्भरता के कारण अब खेती एक बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसे में अगर हम मिट्टी के भीतर छिपे सूक्ष्मजीवों की ताकत को समझ लें, तो यह खेती के भविष्य को बदल सकता है। इन अदृश्य नन्हें जीवों की भूमिका मिट्टी को उपजाऊ बनाने से लेकर फसलों को बीमारियों से बचाने तक में होती है। इस लेख में हम जानेंगे कैसे ये सूक्ष्मजीव किसानों के सच्चे साथी हैं।

इस लेख में हम चार मुख्य पहलुओं पर चर्चा करेंगे—सबसे पहले बात करेंगे कृषि में सूक्ष्मजीवों की भूमिका की। फिर समझेंगे कि राइज़ोबियम और नाइट्रोजन स्थिरीकरण कैसे काम करते हैं। तीसरे भाग में जानेंगे जैव-उर्वरकों के प्रकार और उनके लाभ, और अंत में देखेंगे कि मृदा स्वास्थ्य में सूक्ष्मजीव और कार्बनिक पदार्थ कैसे मिलकर खेती को टिकाऊ बनाते हैं।

कृषि में सूक्ष्मजीवों की भूमिका और महत्ता

कृषि क्षेत्र में सूक्ष्मजीवों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये नन्हें जीव मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और फसल की गुणवत्ता में सुधार लाने में अहम योगदान देते हैं। रोगाणु जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस आदि मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों की जड़ों तक पहुँचने योग्य बनाते हैं। ये न केवल जैविक खाद में कार्बनिक पदार्थों का विघटन करते हैं, बल्कि कुछ विशेष सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन स्थिरीकरण जैसी प्रक्रियाओं में भाग लेकर मिट्टी की पौष्टिकता भी बढ़ाते हैं। जैव-उर्वरक, जैव-कीटनाशक और बायो-इनोकुलेंट्स के रूप में इनका उपयोग रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करता है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जहाँ लाखों किसान पारंपरिक खेती से जुड़े हुए हैं, वहाँ सूक्ष्मजीवों का उपयोग टिकाऊ और कम लागत वाली खेती की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। ये रोगाणु पौधों को सूखे, अत्यधिक तापमान, मिट्टी के क्षरण और रोगों से बचाने में भी सहायक होते हैं। वर्तमान में, कृषि अनुसंधान केंद्रों और विश्वविद्यालयों द्वारा सूक्ष्मजीवों के उपयोग पर विशेष शोध किया जा रहा है ताकि किसानों को उन्नत तकनीक से जोड़ा जा सके।

राइज़ोबियम और नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया

राइज़ोबियम (Rhizobium) एक विशेष प्रकार का लाभकारी जीवाणु है, जो फलीदार पौधों की जड़ों में रहने वाले रूट नोड्यूल्स में पाया जाता है। यह बैक्टीरिया पौधों के साथ सहजीवी संबंध बनाता है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करता है। यह प्रक्रिया नाइट्रोजनेज़ एंजाइम की सहायता से होती है और पौधों को सीधे उपयोगी नाइट्रोजन (nitrogen) यौगिकों की आपूर्ति करती है। नतीजतन, पौधों की वृद्धि में तीव्रता आती है और मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। राइज़ोबियम बैक्टीरिया के बिना फलीदार फसलें जैसे चना, अरहर, मूँग आदि अपना पूर्ण विकास नहीं कर पातीं। यह प्रक्रिया न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है बल्कि किसान के खर्च में भी कटौती करती है क्योंकि बाहरी नाइट्रोजन खाद की आवश्यकता कम हो जाती है। इसके अलावा, यह बैक्टीरिया जैविक खेती की दिशा में एक मजबूत विकल्प प्रस्तुत करता है, जो कीटनाशकों और उर्वरकों के बिना भी अच्छे उत्पादन की गारंटी देता है।

जैव-उर्वरकों के प्रकार और लाभ

जैव-उर्वरक वे सूक्ष्मजीव होते हैं जो मिट्टी में मिलाकर या बीजों पर प्रयोग कर पौधों की पोषक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इनके मुख्य प्रकार हैं: नाइट्रोजन फिक्सर (जैसे राइज़ोबियम, एजोटोबैक्टर), फॉस्फोरस घुलनशील जीवाणु (जैसे बैसिलस और पेनिसिलियम), और पोटेशियम घुलनशील जीवाणु। इनके अलावा, माइकोराइज़ा (Mycorrhizae) जैसे कवक पौधों की जड़ों के साथ सहजीविता कर जल और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाते हैं। जैव-उर्वरकों के प्रयोग से रासायनिक खाद की आवश्यकता कम होती है, जिससे मिट्टी की संरचना और दीर्घकालिक उर्वरता बनी रहती है। यह तकनीक विशेष रूप से छोटे और मध्यम किसान वर्ग के लिए बेहद लाभकारी है क्योंकि यह लागत को घटाकर उत्पादन को बढ़ाती है। साथ ही, जैव-उर्वरकों से उत्पादित फसलें अधिक पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती हैं, जिससे बाज़ार में उनकी माँग भी अधिक होती है।

दलहनी पौधों की जड़ों की गांठें

मृदा स्वास्थ्य में सूक्ष्मजीवों और कार्बनिक पदार्थ की भूमिका

मिट्टी का स्वास्थ्य खेती की नींव है और सूक्ष्मजीव इसमें एक अदृश्य लेकिन शक्तिशाली भूमिका निभाते हैं। मृदा सूक्ष्मजीव जैसे जीवाणु, कवक और एक्टिनोमायसेट्स (Actinomycetes) जैविक पदार्थों को विघटित कर पोषक तत्वों को पौधों के लिए उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, ये जीवाणु ह्यूमस निर्माण में सहायता करते हैं, जिससे मिट्टी की जलधारण क्षमता और वायु संचार बढ़ता है। कार्बनिक पदार्थ, जैसे गोबर खाद, कम्पोस्ट, और फसल अवशेष इन सूक्ष्मजीवों के लिए ऊर्जा स्रोत का कार्य करते हैं। मिट्टी में जैव विविधता जितनी अधिक होती है, उसकी उत्पादन क्षमता उतनी ही बेहतर होती है। साथ ही, सहजीवी जीवाणु पौधों की जड़ों में घुलनशील फॉस्फोरस (Phosphorus) और सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध कराकर पौधों को रोगों के विरुद्ध मजबूत बनाते हैं। आज की टिकाऊ खेती प्रणाली में, मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सूक्ष्मजीवों का संतुलित उपयोग अत्यावश्यक हो गया है। जैविक खेती, फसल चक्रण और ग्रीन मैन्योर जैसी विधियों से इस पारिस्थितिकी को बेहतर किया जा सकता है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/25xapkyd 

https://tinyurl.com/53dadmd6