रामपुरवासियों, क्या आपने कभी सोचा कि जानवर भी शिक्षक हो सकते हैं?

व्यवहार के अनुसार वर्गीकरण
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रामपुरवासियों, क्या आपने कभी सोचा कि जानवर भी शिक्षक हो सकते हैं?

रामपुरवासियों, जब हम ‘शिक्षा’ शब्द सुनते हैं, तो हमारी कल्पना में कक्षाओं की घंटियाँ, किताबों के पन्ने और गुरुओं की शिक्षाएं उभर आती हैं। पर क्या आपने कभी यह विचार किया है कि शिक्षा केवल इन्सानों की बौद्धिक उपलब्धि नहीं, बल्कि प्रकृति की एक व्यापक परंपरा भी है? जंगलों के बीच, न कोई ब्लैकबोर्ड (blackboard) होता है, न पाठ्यक्रम, लेकिन वहाँ भी जीवन की सबसे गूढ़ शिक्षाएं दी और ली जाती हैं। जंगली जानवर, विशेषकर माता-पिता, अपने बच्चों को शिकार करना, शत्रुओं से बचना, सामाजिक संकेत समझना और जीवित रहने की रणनीतियाँ सिखाते हैं, वह भी बिना किसी भाषा के, सिर्फ व्यवहार, अनुकरण और अभ्यास के ज़रिए। 
इस लेख में हम चार रोचक और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित उपविषयों पर चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम यह जानेंगे कि वैज्ञानिकों ने किन प्रयोगों और व्यवहारों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि जानवर भी अपने साथियों या बच्चों को कुछ सिखा सकते हैं। इसके बाद हम मीरकैट (Meerkat) नामक छोटे लेकिन बेहद चालाक शिकारी जीवों की चर्चा करेंगे, जो अपने बच्चों को शिकार की रणनीति सिखाने के लिए अद्भुत तरीके अपनाते हैं। तीसरे उपविषय में हम उन जंगली जानवरों की झलक पाएंगे जो अपने बच्चों को कौशल, शिकार और सामाजिक व्यवहार सिखाने में सक्षम होते हैं, जैसे किलर वेल (Killer Whale or Orca), डॉल्फ़िन (Dolphin), चीता आदि। और अंत में, हम उन जंगल में पाए जाने वाले सबसे बुद्धिमान जीवों की पड़ताल करेंगे जिनकी स्मृति, औजार निर्माण, रणनीति और सीखने की क्षमता उन्हें जानवरों की दुनिया में विलक्षण बनाती है। 

1. वैज्ञानिकों ने कैसे सिद्ध किया कि जानवर भी सिखा सकते हैं?
शिक्षा केवल मानवों की बौद्धिक उपलब्धि नहीं है, यह बात विज्ञान ने अब प्रमाणित कर दी है। ब्रिटेन (Britain) में किए गए एक प्रसिद्ध अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चींटियों के "टैंडम रनिंग" (tandem running) व्यवहार का विश्लेषण किया। इसमें एक चींटी दूसरी को भोजन स्थल तक पहुंचने का रास्ता सिखाती है, धीरे-धीरे चलना, रुकना, पीछे मुड़कर साथी की प्रतीक्षा करना, यह सब कुछ सिखाने की प्रक्रिया को दर्शाता है। इसे ही ट्रू टीचिंग (true teaching) यानी ‘सच्चा शिक्षण’ कहा जाता है, क्योंकि इसमें शिक्षक जानबूझकर शिष्य की सीखने की प्रक्रिया को गति देता है।
मनोवैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया में थ्योरी ऑफ माइंड (Theory of Mind) जैसी मानवीय संज्ञानात्मक क्षमताओं की झलक भी देखी। इसका अर्थ है कि एक जानवर यह समझता है कि दूसरे को क्या जानकारी है और क्या नहीं, यह एक प्रकार की मानसिक सह-अस्तित्व की चेतना है। विस्तारशील शहरों में यह समझ और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सिद्ध करता है कि जानवरों की यह शिक्षण प्रवृत्ति हमारी नैतिक जिम्मेदारियों को भी नया आयाम देती है, जैसे कि जानवरों के प्रति हमारा व्यवहार, उनका संरक्षण और उनकी समझ।

मीरकैट: छोटे शिकारी, बड़े शिक्षक
मीरकैट अफ्रीका के रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाए जाने वाले छोटे स्तनधारी जीव हैं, जो सामाजिक जीवन में अत्यंत कुशल होते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि मीरकैट अपने बच्चों को बिच्छुओं जैसे खतरनाक जीवों से निपटना एक क्रमबद्ध तरीके से सिखाते हैं। पहले वे मरे हुए बिच्छू देते हैं, फिर जिंदा लेकिन विषविहीन, और अंत में पूरा विष वाला। यह 'ग्रेडेड लर्निंग' (Graded Learning) है,  जैसे हम बच्चों को धीरे-धीरे कठिन प्रश्न हल करना सिखाते हैं। यह व्यवहार सिर्फ जीवित रहने के लिए नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्तरदायित्व का उदाहरण है। बुजुर्ग मीरकैट कभी-कभी बिना संतान के भी बच्चों को प्रशिक्षण देने लगते हैं, जैसे किसी गाँव के बुज़ुर्ग बच्चों को लोककथाएँ सुनाकर ज़िंदगी की सीख देते हैं। यह भी देखा गया है कि युवा मीरकैट पहले केवल पर्यवेक्षक होते हैं, फिर प्रशिक्षक बनते हैं, यह एक प्रकार की शिक्षण-परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। क्षेत्रों में, जहाँ परिवार और समाज की भूमिका मजबूत है, मीरकैट का यह व्यवहार हमें पशुओं में छिपी सामाजिक जिम्मेदारी और प्रशिक्षण प्रणाली की गहराई समझाता है। ये नन्हें शिकारी सिखाते हैं कि नेतृत्व, सुरक्षा और ज्ञान का हस्तांतरण केवल मानव समाज की बपौती नहीं।

ऐसे जंगली जानवर जो अपने बच्चों को सिखाते हैं कौशल
पशु जगत में कई ऐसे प्रेरणादायक उदाहरण हैं जहाँ जानवर अपने बच्चों को व्यावहारिक जीवन कौशल सिखाते हैं। किलर वेल मछलियाँ अपने बच्चों को सील का शिकार करने की रणनीतियाँ सिखाती हैं,  जैसे झुंड बनाकर, लहरें बनाकर शिकार को गिराना। वहीं डॉल्फ़िन अपने बच्चों को समुद्र के तल से मछलियों को उछालने की तकनीक सिखाती हैं, जो सटीक गणना और प्रतिक्रिया समय पर आधारित होती है।
पाइड बैबलर (Pied Babbler) नामक पक्षी अपने बच्चों को शिकार खोजने के लिए 'सिखाने वाले संकेत' (Teaching Calls) देता है, जिससे बच्चा यह समझता है कि कब कहाँ ध्यान देना है। यह मानव शिक्षकों के इशारों की तरह होता है, इशारे जो केवल सुनने वाले ही समझ पाते हैं।
इसी प्रकार, चीता अपने बच्चों को शिकार के लिए झूठे अभ्यास कराती हैं। घायल हिरन को छोड़कर बच्चे को उसका पीछा करने देती हैं, जिससे उनमें आत्मविश्वास और तकनीक दोनों विकसित होते हैं। यह व्यवहार हमें यह बताता है कि इन जानवरों में भी प्रशिक्षण की योजना होती है। एक ऐसी योजना जो अनुभव पर आधारित है और ‘कर के सिखाने’ की परंपरा को दर्शाती है।

जंगल में पाए जाने वाले सबसे बुद्धिमान जीव कौन हैं?
जब बुद्धिमत्ता की बात आती है, तो मनुष्य के बाद कई जानवर हैं जिनमें अद्भुत मानसिक क्षमताएं पाई जाती हैं। भौंरे दिशा, दूरी और स्थान की गणना कर सकते हैं, और अपने साथियों को ‘नृत्य’ द्वारा यह संकेत भी दे सकते हैं कि सबसे अच्छे फूल कहाँ हैं। यह सांकेतिक भाषा एक प्रकार की गणितीय कुशलता और सामाजिक संवाद का उदाहरण है। कौवे औजार बना सकते हैं, लकड़ी के टुकड़े से कीड़ा निकालना, भोजन को पानी में डालकर मुलायम करना, यह सभी उच्च कोटि की बौद्धिक प्रक्रिया के संकेत हैं। कुछ वैज्ञानिक तो उन्हें पाँच वर्ष के मानव बालकों जितना चतुर मानते हैं। वहीं चिंपैंज़ी (chimpanzee) आईने में स्वयं को पहचान सकते हैं, जो यह दर्शाता है कि उन्हें "स्व" की चेतना है — एक गहरी दार्शनिक अवधारणा। न्यूजीलैंड (New Zealand) के किया पक्षी रणनीतिक तौर पर खिलौनों को हल कर सकते हैं, साथी पक्षियों को धोखा दे सकते हैं ताकि उन्हें ज़्यादा भोजन मिल सके, यह "सोशल डीसैप्शन" (Social Deception) जैसा व्यवहार है, जो उच्च स्तर की सोच को दर्शाता है। जब हम जानवरों में ये गुण पहचानते हैं, तो हमारे भीतर उनके प्रति संवेदना, संरक्षण की भावना और एक गहरा सम्मान पैदा होता है, और यही किसी सभ्य समाज की असली निशानी है।

संदर्भ-   

https://tinyurl.com/2s3nxdma 



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