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हमारे खेतों में खिले ये पीले-पीले फूल ना सिर्फ देखने में सुंदर होते हैं, बल्कि इनमें कुदरत का एक अनोखा रहस्य छुपा होता है। सुबह होते ही ये सूरज की पहली किरणों की ओर मुड़ जाते हैं, दिन भर उसके साथ-साथ घूमते हैं, और रात में फिर पूर्व दिशा की ओर लौट आते हैं, जैसे अगली सुबह का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हों। इसे सिर्फ "फूल का हिलना" मत समझिए, इसके पीछे पौधों की एक सूक्ष्म और अद्भुत समझदारी काम करती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में हीलियोट्रोपिज़्म (Heliotropism) कहा जाता है। आइए आज, इस खास मौके पर, जब हम प्रकृति की बात कर रहे हैं। जानें कि सूरजमुखी ही नहीं, कई और पौधे भी कैसे सूरज से जुड़कर जीते हैं, और इसमें छिपे हैं कौन-कौन से वैज्ञानिक रहस्य।
आज हम जानेंगे कि सूरजमुखी का फूल सूरज की दिशा में क्यों और कैसे घूमता है, और यह प्रक्रिया पौधे के भीतर किस जैविक घड़ी द्वारा नियंत्रित होती है। फिर हम समझेंगे हीलियोट्रोपिज़्म की वैज्ञानिक व्याख्या और किन-किन अन्य पौधों में यह व्यवहार देखा जाता है। इसके बाद हम देखेंगे कि सूरजमुखी के पूर्व दिशा में स्थिर हो जाने का क्या फायदा होता है, और यह परागण से लेकर बीज उत्पादन तक में कैसे मदद करता है। फिर, हम निक्टिनैस्टी (Nyctinasty) नामक प्रक्रिया को जानेंगे, जिसमें पौधे रात को अपनी पत्तियाँ क्यों समेट लेते हैं, मानो वे भी सो रहे हों। अंत में, हम छाया-निवारण सिंड्रोम (Shadow-avoidance syndrome) की रोचक रणनीति को समझेंगे, जहाँ पौधे एक-दूसरे की छाया से बचने के लिए कैसे ऊँचाई में प्रतिस्पर्धा करते हैं।
सूरजमुखी का सूर्य की दिशा में झुकना क्यों और कैसे होता है?
सूरजमुखी का फूल अपनी अनोखी विशेषता के लिए जाना जाता है, यह दिन भर सूर्य के साथ-साथ घूमता है। सुबह के समय जब सूरज पूर्व दिशा से उगता है, तो सूरजमुखी के फूल उसी ओर झुके होते हैं। जैसे-जैसे सूरज आकाश में ऊपर चढ़ता है और पश्चिम की दिशा में आगे बढ़ता है, फूल भी धीरे-धीरे उसकी दिशा में घूमते जाते हैं। यह पूरा घूर्णन एक दिन में होता है, और रात में फूल फिर से पूर्व दिशा की ओर लौट आते हैं, मानो अगली सुबह के सूरज का स्वागत करने को तैयार हो। यह अनूठा व्यवहार एक जैविक प्रक्रिया के कारण होता है जिसे हीलियोट्रोपिज़्म कहा जाता है। इसका नियंत्रण पौधे के भीतर मौजूद सर्कैडियन घड़ी करती है, एक आंतरिक समयसारिणी जो सूरज की उपस्थिति और अनुपस्थिति के अनुसार काम करती है। पौधे के तनों की कोशिकाएँ दिन के समय एक ओर तेज़ी से बढ़ती हैं, जिससे फूल सूरज की दिशा में मुड़ता है। लेकिन जब सूरजमुखी परिपक्व हो जाता है और फूल पूरी तरह खिल जाता है, तब यह घूर्णन बंद हो जाता है और फूल स्थायी रूप से पूर्व दिशा में टिक जाता है, जहाँ सुबह के समय सबसे पहले सूरज की किरणें पड़ती हैं।
हीलियोट्रोपिज़्म — सूर्य का पीछा करने वाले पौधों का विज्ञान
हीलियोट्रोपिज़्म केवल सूरजमुखी तक सीमित नहीं है; यह व्यवहार कई अन्य पौधों में भी पाया जाता है। उदाहरण के लिए, स्नो बटरकप (Snow Buttercup) या कुछ जंगली घासों की प्रजातियाँ भी सूरज की दिशा के अनुसार अपने फूल या पत्तियाँ घुमाती हैं। यह अनुकूलन प्रकृति ने पौधों को इसलिए दिया है ताकि वे अधिकतम प्रकाश का लाभ उठा सकें और अपना जीवन चक्र सुचारु रूप से चला सकें। इस व्यवहार के कई लाभ हैं। जब सूरज की पहली किरणें पौधों पर पड़ती हैं, तो वे तेजी से गर्म हो जाते हैं, जिससे उनके ऊपर काम करने वाले परागणकर्ता कीट, जैसे मधुमक्खियाँ या तितलियाँ, जल्दी सक्रिय हो जाती हैं। इससे परागण की प्रक्रिया सुगम हो जाती है और फूलों में अधिक बीज बनने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, दिनभर सूर्य का पीछा करने से पौधों को प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) के लिए अधिक ऊर्जा मिलती है, जिससे उनका विकास तीव्र होता है। यह दिखाता है कि भले ही पौधे स्थिर दिखते हों, वे अपने वातावरण से लगातार संवाद करते रहते हैं और उसके अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं।
सूरजमुखी की पूर्व दिशा में स्थिरता: गर्मी, सुरक्षा और परागण के लाभ
जब सूरजमुखी का फूल परिपक्व हो जाता है, तो वह सूर्य का पीछा करना बंद कर देता है और पूर्व दिशा की ओर स्थायी रूप से झुक जाता है। इस व्यवहार के पीछे भी वैज्ञानिक कारण हैं। पूर्व दिशा में झुका हुआ फूल सुबह के समय जल्दी गर्म हो जाता है, क्योंकि सूर्य की किरणें सीधे उस पर पड़ती हैं। इससे परागणकर्ता कीट जल्दी आकर्षित होते हैं, जो फूल की पराग क्रिया को सफल बनाने में मदद करते हैं।
इसके अलावा, सूरजमुखी की पंखुड़ियों पर विशेष प्रकार के पराबैंगनी संकेत (UV patterns) पाए जाते हैं, जो इंसानी आँखों से तो नहीं दिखते, लेकिन मधुमक्खियों जैसी कीटों को स्पष्ट रूप से नजर आते हैं। ये संकेत उनके लिए "लैंडिंग गाइड" (landing guide) का काम करते हैं, जिससे वे आसानी से फूल के केंद्र तक पहुँचती हैं और पराग संग्रहण करती हैं। यह क्रिया बीज की गुणवत्ता, संख्या और पौधे की पुनरुत्पादन क्षमता को बढ़ाती है। इस प्रकार, पूर्व दिशा में स्थिरता सिर्फ एक संयोग नहीं, बल्कि पौधे की रणनीतिक योजना का हिस्सा है।
निक्टिनैस्टी — रात में ‘सोते’ हुए पौधे
कई पौधे दिन और रात के अनुसार अपने व्यवहार को बदलते हैं। विशेष रूप से, कुछ पौधों की पत्तियाँ सूर्यास्त के बाद सिकुड़ जाती हैं या नीचे की ओर झुक जाती हैं, मानो वे "सो" गए हों। इस प्रक्रिया को निक्टिनैस्टी कहा जाता है, जो प्रकाश की अनुपस्थिति में होने वाली एक प्रतिक्रिया है। यह विशेष व्यवहार पौधों के ‘पुल्विने’ नामक ऊतकों के कारण संभव होता है, जो पत्ती के आधार पर स्थित होते हैं। जैसे ही सूरज डूबता है, इन ऊतकों में जल का वितरण बदल जाता है, जिससे पत्तियाँ अपने आप सिकुड़ जाती हैं। माना जाता है कि यह व्यवहार कीटों से सुरक्षा और रात के समय तापमान से खुद को बचाने के लिए विकसित हुआ है। कुछ पौधों में यह प्रतिक्रिया इतनी नियमित होती है कि वैज्ञानिक इसका उपयोग उनकी जैविक घड़ी को मापने के लिए करते हैं। यह हमें दिखाता है कि पौधों में भी दिन-रात का सटीक ज्ञान होता है, भले ही वे हमें मूक और निष्क्रिय दिखते हों।
छाया-निवारण सिंड्रोम: भीड़भाड़ से बचने की पौधों की रणनीति
जब किसी खेत या बाग में पौधों की बहुत अधिक भीड़ होती है, तो सभी पौधों को बराबर सूर्य प्रकाश नहीं मिल पाता। इस स्थिति में कुछ पौधे अचानक ऊँचाई में बढ़ने लगते हैं, लेकिन वे फूल या फल नहीं देते। यह व्यवहार छाया-निवारण सिंड्रोम कहलाता है। यह पौधों की एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है, जिसमें वे अपने आस-पास की छाया को पहचानते हैं और सूर्य के प्रकाश की दिशा में बढ़ना शुरू कर देते हैं। पौधों में ‘फ़ाइटोक्रोम’ (Phytochrome) नामक रिसेप्टर (receptor) होते हैं जो सूर्य के प्रकाश के विभिन्न तरंगों, विशेष रूप से दूर-लाल (far-red) और लाल (red), को पहचानते हैं। जब पौधा महसूस करता है कि उसके ऊपर या बगल में कोई दूसरा पौधा छाया डाल रहा है, तो वह ऊँचाई में बढ़ना शुरू करता है ताकि उसे ज्यादा प्रकाश मिले। लेकिन यह वृद्धि अक्सर फलन की कीमत पर होती है, क्योंकि पौधा अपनी ऊर्जा लंबाई बढ़ाने में खर्च कर देता है। आज के कृषि अनुसंधान में ऐसे बीजों का विकास हो रहा है जो कम रोशनी में भी बेहतर पैदावार दे सकें और अनावश्यक ऊँचाई में वृद्धि से बच सकें।
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