
रामपुरवासियो, सेहत इंसान की सबसे बड़ी पूँजी है। अगर तन-मन स्वस्थ है तो जीवन की हर मुश्किल आसान लगती है और इंसान अपने सपनों को पूरा करने की राह पर बेझिझक आगे बढ़ सकता है। लेकिन अगर बीमारी ने घेर लिया, तो सबसे बड़ा सपना भी अधूरा रह जाता है और परिवार तक की खुशियाँ प्रभावित हो जाती हैं। यही वजह है कि स्वास्थ्य सेवा (healthcare) को हर नागरिक का मौलिक अधिकार माना गया है। भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में, जहाँ गाँव और शहर की जीवनशैली और ज़रूरतें एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं, वहाँ स्वास्थ्य प्रणाली का महत्व और भी गहरा हो जाता है। एक तरफ़ सरकारी अस्पताल (public healthcare) गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए जीवनरेखा की तरह काम करते हैं, जहाँ मुफ्त या बेहद कम कीमत पर इलाज संभव हो पाता है। वहीं दूसरी ओर निजी अस्पताल (private healthcare) आधुनिक उपकरणों, विशेषज्ञ डॉक्टरों और उच्चस्तरीय सेवाओं की वजह से आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच कोई संतुलन है? क्या हर नागरिक, चाहे वह रामपुर जैसे ज़िलों में रहता हो या किसी महानगर में, बराबरी की स्वास्थ्य सुविधा पा रहा है? यही वह मुद्दा है जो आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है और इसी पर हमारी चर्चा केंद्रित है।
रामपुर ज़िले की स्वास्थ्य व्यवस्था धीरे-धीरे लोगों की ज़रूरतों के अनुरूप आकार ले रही है। ज़िले में करीब 1.03 हज़ार अस्पताल के बिस्तर हैं, जो बड़ी संख्या में मरीज़ों को इलाज उपलब्ध कराने में सहायक हैं। गाँव-देहात तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने के लिए यहाँ 49 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) काम कर रहे हैं। गंभीर मामलों और विशेष उपचार के लिए 2 ज़िला अस्पताल (DH) मौजूद हैं, जबकि कस्बों और ग्रामीण इलाक़ों में फैले 13 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) स्थानीय लोगों को राहत पहुँचाते हैं। इन सुविधाओं के ज़रिए रामपुर के लोगों को अपने ही ज़िले में इलाज का भरोसा मिलता है और उन्हें छोटे-बड़े उपचार के लिए दूर भटकना नहीं पड़ता।
इस लेख में हम भारत की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी कुछ अहम बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम जानेंगे कि स्वास्थ्य सेवा क्यों हर नागरिक के जीवन के लिए मौलिक अधिकार मानी जाती है और भारत में इसका ढाँचा किस तरह दोहरी संरचना (dual structure) पर आधारित है। फिर हम देखेंगे कि निजी स्वास्थ्य सेवाओं की क्या खूबियाँ हैं और उनके सामने कौन-सी चुनौतियाँ आती हैं। इसके बाद हम पढ़ेंगे कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की क्या भूमिका है और वे किन सीमाओं से जूझ रही हैं। आगे, हम भारत के स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे के आँकड़े और क्षेत्रीय असमानताओं को समझेंगे। फिर चर्चा करेंगे कि लोग निजी और सरकारी सेवाओं में से किसे क्यों चुनते हैं। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर राज्य और केंद्र सरकार की क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं और दोनों के बीच संतुलन कैसे ज़रूरी है।
भारत में स्वास्थ्य सेवा का मौलिक अधिकार और दोहरी संरचना
स्वास्थ्य सेवा हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, क्योंकि यह सीधे-सीधे उसके जीवन, सम्मान और गुणवत्ता से जुड़ा हुआ है। अगर इंसान स्वस्थ है, तो वह न केवल अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों को निभा सकता है, बल्कि समाज और राष्ट्र की प्रगति में भी योगदान दे सकता है। लेकिन यदि स्वास्थ्य व्यवस्था कमजोर हो, तो इसका असर हर स्तर पर दिखाई देता है - परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी और समाज के विकास पर भी। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को मुख्य रूप से दो हिस्सों में बाँटा गया है - सार्वजनिक (public) और निजी (private)। सार्वजनिक प्रणाली सरकार द्वारा संचालित होती है और इसका उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोगों तक मुफ्त या सस्ती दरों पर इलाज पहुँचे। इसके विपरीत निजी प्रणाली बाज़ार की माँग और व्यक्तिगत निवेश पर आधारित है, जहाँ आधुनिक उपकरणों और विशेषज्ञ डॉक्टरों की भरमार होती है, लेकिन इन सेवाओं तक वही लोग पहुँच पाते हैं जो उनकी ऊँची लागत वहन कर सकें। यही कारण है कि दोनों व्यवस्थाएँ एक-दूसरे की पूरक होने के बावजूद असमानताओं से भरी हुई हैं, और यह असमानता आम नागरिक की सुविधा, पहुँच और अवसरों को गहराई से प्रभावित करती है।
निजी स्वास्थ्य सेवा - अवसर और चुनौतियाँ
भारत में निजी स्वास्थ्य सेवा पिछले कुछ दशकों में तेज़ी से आगे बढ़ी है और इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। इसका सबसे बड़ा आकर्षण है आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल, उन्नत मेडिकल उपकरणों की उपलब्धता और विशेषज्ञ डॉक्टरों का नेटवर्क (network)। लोग निजी अस्पतालों में इसलिए जाते हैं क्योंकि वहाँ उन्हें तुरंत ध्यान मिलता है, जाँच और इलाज तेज़ी से होता है और सुविधाएँ अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर की होती हैं। लेकिन इस चमकदार तस्वीर के पीछे एक कठिनाई भरा पहलू भी छिपा है। निजी स्वास्थ्य सेवा की सबसे बड़ी चुनौती इसकी लागत है। एक आम या मध्यमवर्गीय परिवार के लिए निजी अस्पतालों में इलाज कराना बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि खर्च अक्सर उनकी पहुँच से बाहर हो जाता है। कई बार पारदर्शिता की कमी भी लोगों की परेशानी बढ़ाती है - इलाज के खर्च और प्रक्रियाओं को लेकर मरीज और उसके परिजनों को सही जानकारी नहीं मिलती। साथ ही, निजी अस्पताल ज़्यादातर बड़े शहरों और महानगरों में केंद्रित हैं, जिससे छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों के लोग इनसे वंचित रह जाते हैं। यानी निजी स्वास्थ्य सेवाएँ अवसरों और उम्मीदों का दरवाज़ा खोलती हैं, लेकिन महँगे इलाज, पारदर्शिता की कमी और शहरी केंद्रित व्यवस्था इसकी सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा - भूमिका और सीमाएँ
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा गरीब और ग्रामीण जनता के लिए एक सहारा है, जिसे जीवनरेखा भी कहा जा सकता है। यहाँ इलाज या तो बिल्कुल मुफ्त मिलता है या बहुत कम खर्च में, जिससे गरीब और मध्यमवर्गीय तबके को राहत मिलती है। “प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) और ज़िला अस्पताल (District Hospital) मिलकर एक ऐसी व्यवस्था बनाते हैं, जिसका उद्देश्य है हर नागरिक तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाना। लेकिन इस व्यवस्था की अपनी सीमाएँ हैं। ग्रामीण अस्पतालों में दवाइयों की उपलब्धता अक्सर सीमित रहती है, डॉक्टर और विशेषज्ञ नियमित रूप से उपस्थित नहीं रहते, और ज़रूरी उपकरण भी कई बार नदारद होते हैं। बुनियादी ढाँचे की हालत भी संतोषजनक नहीं है - कई अस्पतालों में इमारतें जर्जर हो चुकी हैं या बिस्तरों की कमी बनी रहती है। नतीजतन, लोगों को मजबूरी में लंबी दूरी तय करके बड़े शहरों की ओर जाना पड़ता है। यही कारण है कि जनता का भरोसा अक्सर निजी अस्पतालों की ओर खिंच जाता है, भले ही वहाँ इलाज महँगा क्यों न हो। यानी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ गरीबों के लिए उम्मीद की किरण तो हैं, लेकिन उनकी सीमाएँ और कमजोरियाँ इन सेवाओं के प्रभाव को अधूरा बना देती हैं।
भारत का स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा - आँकड़े और असमानताएँ
भारत का स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा जब आँकड़ों की नज़र से देखा जाए तो तस्वीर काफी असमान और जटिल दिखाई देती है। सार्वजनिक और निजी अस्पतालों की संख्या, बिस्तरों की उपलब्धता, आईसीयू (ICU) और वेंटिलेटरों (ventilators) की सुविधा - इन सबमें भारी अंतर है। यह असमानता केवल निजी और सरकारी अस्पतालों के बीच ही नहीं, बल्कि राज्यों और क्षेत्रों के बीच भी गहराई से महसूस की जा सकती है। महानगरों और विकसित राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बड़े-बड़े अस्पताल, आधुनिक तकनीक और अधिक संसाधन उपलब्ध हैं, जहाँ लोगों को बेहतर इलाज मिल पाता है। लेकिन दूसरी तरफ़, बिहार और उत्तर-पूर्वी राज्यों की स्थिति उतनी मज़बूत नहीं है। वहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ बेहद सीमित हैं और लोग अक्सर बुनियादी इलाज तक के लिए भी जूझते रहते हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की तुलना भी यही दिखाती है - जहाँ एक तरफ़ शहरों में आधुनिक अस्पताल खड़े हैं, वहीं दूसरी तरफ़ गाँवों में लोग प्राथमिक उपचार तक के लिए संघर्ष करते हैं। यही असमानताएँ भारत के स्वास्थ्य ढाँचे को अधूरा बना देती हैं और हर नागरिक को समान स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना आज भी एक बड़ी चुनौती है।
सार्वजनिक बनाम निजी स्वास्थ्य देखभाल - नागरिकों की पसंद और कारण
जब इलाज की ज़रूरत सामने आती है, तो अधिकांश लोग निजी अस्पतालों का रुख करते हैं। कारण बिल्कुल स्पष्ट है - वहाँ समय पर इलाज मिलता है, आधुनिक तकनीक और मशीनें मौजूद रहती हैं और विशेषज्ञ डॉक्टर तुरंत ध्यान देते हैं। मरीज और उसके परिजनों को यह भरोसा होता है कि उनकी समस्या का तुरंत समाधान होगा। दूसरी ओर, सार्वजनिक अस्पतालों में भीड़ ज़्यादा होती है, इलाज के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है और कई बार सेवा की गुणवत्ता भी संतोषजनक नहीं होती। यही वजह है कि आर्थिक रूप से सक्षम लोग निजी अस्पतालों को प्राथमिकता देते हैं, जबकि गरीब और ग्रामीण तबके के लिए सार्वजनिक सेवाएँ ही एकमात्र विकल्प होती हैं। इस तरह नागरिकों की पसंद सीधी-सीधी उनकी आर्थिक स्थिति, उनकी ज़रूरत और पहुँच पर निर्भर करती है।
राज्य और केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारियाँ
भारत की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था तभी मज़बूत हो सकती है जब केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने दायित्वों को पूरी गंभीरता से निभाएँ। राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है परिवार कल्याण, बीमारियों की रोकथाम और टीकाकरण जैसे व्यापक अभियान चलाना, ताकि बड़ी आबादी को बचाव और जागरूकता से जोड़ा जा सके। वहीं राज्य सरकारों का दायित्व है अस्पतालों का संचालन करना, स्वच्छता और साफ-सफाई पर ध्यान देना और जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना। दोनों स्तरों की इस साझेदारी में अगर संतुलन और सहयोग बना रहे, तभी आम नागरिक तक सही समय पर स्वास्थ्य सुविधा पहुँच सकती है। लेकिन अगर इनमें से कोई भी स्तर कमजोर पड़ता है, तो पूरा तंत्र प्रभावित होता है और सबसे ज़्यादा नुकसान आम जनता को उठाना पड़ता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/5ftrs5yu
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