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रामपुरवासियो, अनाज और कृषि उत्पादन के मामले में हमारा यह क्षेत्र हमेशा से समृद्ध रहा है। यहाँ के खेतों में उगाया गया गेहूं न केवल किसानों की मेहनत और स्थानीय जलवायु की देन है, बल्कि यह हमारे खाने-पीने की संस्कृति और परंपराओं का भी अहम हिस्सा बन चुका है। गेहूं जब खेतों से उठकर हमारे घरों की थाली तक पहुँचता है, तो इसके पीछे एक लंबी, सूक्ष्म और बेहद रोचक प्रक्रिया छिपी होती है। आटा केवल रोटी या अन्य व्यंजन बनाने का साधन नहीं है; यह हमारे रोज़मर्रा के पोषण, स्वास्थ्य और खान-पान की आदतों से सीधे जुड़ा हुआ है। आधुनिक समय में आटा मिलों की तकनीक ने इस पारंपरिक प्रक्रिया को और उन्नत, तेज और गुणवत्ता-संपन्न बना दिया है, जिससे हर परिवार तक पोषक और सुरक्षित आटा पहुँचता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि गेहूं से आटे तक की यह यात्रा कैसे पूरी होती है, और आधुनिक मिलिंग (milling) तकनीक किस तरह से इसे हमारे लिए आसान और प्रभावशाली बनाती है।
इस लेख में सबसे पहले हम जानेंगे कि गेहूं से आटा बनने की प्रक्रिया किन-किन मुख्य चरणों से होकर गुजरती है। इसके बाद यह देखेंगे कि भारत में कौन-कौन सी प्रकार की आटा मिलें प्रचलित हैं और उनकी क्या विशेषताएँ हैं। फिर हम भारत की कुछ प्रमुख आटा मिलों और उनके विविध उत्पादों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। अंत में, खाद्य प्रसंस्करण पार्कों और इस क्षेत्र में बढ़ते रोज़गार के अवसरों को समझेंगे, ताकि हमें यह स्पष्ट हो सके कि यह उद्योग केवल भोजन ही नहीं, बल्कि एक नए भविष्य के निर्माण में भी अहम भूमिका निभा रहा है।
गेहूं से आटा बनने की प्रक्रिया के मुख्य चरण
गेहूं को आटे में बदलना एक साधारण काम लग सकता है, लेकिन वास्तव में यह कई सावधानीपूर्वक चरणों से होकर पूरा होता है। सबसे पहले आता है सफाई का चरण, जिसमें गेहूं से तिनके, पत्थर, धूल और अन्य गंदगी को हटाया जाता है ताकि अंतिम आटा शुद्ध और सुरक्षित बने। इसके बाद आता है कंडीशनिंग (conditioning), जहाँ गेहूं को पानी में भिगोया जाता है। इस प्रक्रिया से चोकर आसानी से अलग हो जाता है और नमी संतुलित रहने के कारण गेहूं की बनावट आटे के लिए उपयुक्त हो जाती है। इसके बाद शुरू होता है पीसना, जिसमें गेहूं को आधुनिक रोलर्स (rollers) से गुज़ारा जाता है और धीरे-धीरे अलग-अलग परतों में विभाजित किया जाता है। फिर आता है पृथक्करण, जहाँ चोकर, अंकुर और गेहूं का सफेद हिस्सा अलग-अलग किया जाता है। इसके बाद पिसाई और छलनी से गुज़रकर आटा और महीन होता है और अंत में मिश्रण चरण में अलग-अलग सामग्री मिलाकर ज़रूरत के हिसाब से उत्पाद तैयार किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, सफेद आटे में चोकर मिलाकर साबुत गेहूं का आटा तैयार किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया का परिणाम है, उपभोक्ता की पसंद और उपयोग के अनुसार अलग-अलग प्रकार का गुणवत्तापूर्ण आटा।
भारत में प्रचलित आटा मिलों के प्रकार और उनकी विशेषताएँ
भारत में आटा बनाने के लिए अलग-अलग तरह की मिलें प्रचलित हैं और हर एक की अपनी खासियत है। सबसे पुरानी विधि है पत्थर की मिलें। इनमें दो बड़े पत्थरों को आपस में घुमाकर गेहूं पीसा जाता है। यह धीमी लेकिन भरोसेमंद विधि है, क्योंकि इसमें गेहूं के प्राकृतिक पोषक तत्व और स्वाद अधिक समय तक सुरक्षित रहते हैं। दूसरी ओर, समय के साथ विकसित हुई हैमर मिल्स तकनीक में छोटे धातु के हथौड़े बंद ढांचे के भीतर बार-बार गेहूं के दानों पर चोट करते हैं। इससे अनाज टूटकर महीन आटा बन जाता है। यह तरीका पत्थर की मिलों से तेज़ है और उत्पादन क्षमता भी अधिक है। आधुनिक दौर में सबसे लोकप्रिय विधि है रोलर मिल्स, जिनमें स्टील रोलर्स का इस्तेमाल होता है। ये रोलर्स अलग-अलग गति से घूमते हैं और गेहूं को कुचलकर उसका सफेद हिस्सा चोकर और अंकुर से अलग कर देते हैं। रोलर मिल्स की सबसे बड़ी खासियत है कि इनमें आटे की क्वालिटी समान रहती है, यही वजह है कि आज दुकानों में उपलब्ध अधिकांश आटा इन्हीं मिलों से आता है।
भारत की प्रमुख आटा मिलें और उनके उत्पाद
भारत में कई प्रमुख आटा मिलें हैं, जिन्होंने उपभोक्ताओं के बीच अपनी गुणवत्ता और विविधता के दम पर पहचान बनाई है।
इन प्रमुख मिलों ने केवल आटे को ही नया आयाम नहीं दिया, बल्कि उपभोक्ताओं को उनकी जरूरत और स्वाद के अनुसार विविध विकल्प भी उपलब्ध कराए हैं।
खाद्य प्रसंस्करण पार्क और रोज़गार की संभावनाएँ
भारत सरकार ने पिछले वर्षों में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है खाद्य प्रसंस्करण पार्क और क्लस्टर (cluster) का विकास। इन पार्कों का उद्देश्य किसानों की फसल का उचित मूल्य सुनिश्चित करना और प्रसंस्करण के ज़रिए उनकी आय बढ़ाना है। इनसे न केवल किसानों को सीधा फायदा मिलता है बल्कि ग्रामीण युवाओं के लिए भी रोज़गार के नए अवसर खुलते हैं। उदाहरण के लिए, 2023 में आयोजित वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन में केवल खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से ही 1,400 से अधिक निवेश प्रस्ताव मिले। इन निवेशों से लाखों की संख्या में नए रोजगार बनने की संभावना है। साथ ही, इन क्लस्टरों ने हज़ारों किसानों को सीधा लाभ पहुँचाया है और उनके उत्पादों को नए बाज़ार उपलब्ध कराए हैं। यह स्पष्ट है कि खाद्य प्रसंस्करण पार्क न केवल कृषि अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर रहे हैं, बल्कि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक विकास और आजीविका का नया आधार भी तैयार कर रहे हैं।
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