क्यों रामपुर के लोग, ब्रेड पर बनने वाले इन सफ़ेद धब्बों को हल्के में नहीं ले सकते?

फंफूद, कुकुरमुत्ता
22-10-2025 09:10 AM
क्यों रामपुर के लोग, ब्रेड पर बनने वाले इन सफ़ेद धब्बों को हल्के में नहीं ले सकते?

रामपुरवासियो, आप सबने यह ज़रूर देखा होगा कि जब कभी घर की रसोई में रखी ब्रेड को हम कुछ दिनों तक इस्तेमाल नहीं करते, तो अचानक उस पर सफ़ेद, हरे या काले धब्बे उभर आते हैं। घर के बड़े अक्सर कहते हैं - “अब ये ब्रेड खराब हो गई है, इसे फेंक दो।” लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये धब्बे असल में हैं क्या? दरअसल, ये सिर्फ़ बासीपन का निशान नहीं, बल्कि ब्रेड मोल्ड (Bread Mold) नाम का एक जीवित कवक (fungus) है, जो हमारी नज़रों से तो अक्सर ओझल रहता है, लेकिन जैसे ही उसे नमी और गर्मी का माहौल मिलता है, वो तेज़ी से फैलने लगता है। ब्रेड में मौजूद शर्करा और कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) इसके लिए मानो किसी दावत का खाना हो - जहाँ इसे बढ़ने और पनपने का पूरा मौका मिल जाता है। रामपुर जैसी जगह पर, जहाँ मौसम अक्सर उमस भरा और नमी से लबालब रहता है, वहाँ ब्रेड जैसी चीज़ों पर यह मोल्ड और भी जल्दी अपनी पकड़ बना लेता है। सोचिए, आपकी सुबह की नाश्ते वाली ब्रेड जो पहली नज़र में बिल्कुल मासूम और सुरक्षित लगती है, वही कुछ ही दिनों में इस कवक का घर बन सकती है। दिलचस्प यह है कि बाहर से साधारण दिखने वाला यह मोल्ड वास्तव में गहराई में जाकर कई राज़ समेटे हुए है। इसकी संरचना कैसी होती है, यह किस तरह से प्रजनन करता है, इसके कौन-कौन से प्रकार पाए जाते हैं, और यह हमारे स्वास्थ्य पर किस तरह असर डालता है।
इस लेख में हम जानेंगे कि ब्रेड पर ये फफूंदी जैसे धब्बे क्यों बनते हैं और इन्हें ब्रेड मोल्ड क्यों कहा जाता है। हम समझेंगे कि यह कवक कैसे पैदा होता है, किस माहौल में तेज़ी से फैलता है और इसके कौन-कौन से प्रमुख प्रकार होते हैं। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि इसका पर्यावरण और उद्योगों में क्या महत्व है और अगर गलती से इसे खा लिया जाए, तो यह हमारे स्वास्थ्य को किस तरह नुकसान पहुँचा सकता है।

ब्रेड पर बनने वाले सफ़ेद धब्बे और उनका कारण
जब हम ब्रेड को खुले वातावरण में लंबे समय तक छोड़ देते हैं, तो उस पर धीरे-धीरे सफ़ेद, हरे या काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे वास्तव में ब्रेड मोल्ड होते हैं, जो हवा में हमेशा मौजूद रहने वाले सूक्ष्म बीजाणुओं (spores) की वजह से पैदा होते हैं। जब इन बीजाणुओं को नमी और गर्माहट जैसी अनुकूल परिस्थितियाँ मिलती हैं, तो वे ब्रेड की सतह पर चिपककर बढ़ने लगते हैं। ब्रेड में मौजूद प्राकृतिक शर्करा (sugar) और कार्बनिक तत्व इस कवक के लिए भोजन का काम करते हैं। यही कारण है कि ब्रेड की सतह पर यह मोल्ड पहले छोटे-छोटे बिंदुओं के रूप में दिखता है और धीरे-धीरे फैलकर पूरी ब्रेड को सड़ा देता है। यह प्रक्रिया हमें यह समझाती है कि भोजन को सही ढंग से सुरक्षित रखना क्यों इतना आवश्यक है।

ब्रेड मोल्ड (Rhizopus stolonifer) की जैविक पहचान
ब्रेड मोल्ड का वैज्ञानिक नाम राइज़ोपस स्टोलोनिफर (Rhizopus stolonifer) है और यह ज़ाइगोमाइकोटा (Zygomycota) परिवार से संबंधित है। यह कवक मुख्य रूप से सड़े-गले भोजन और अन्य कार्बनिक पदार्थों पर पनपता है। इसकी संरचना बेहद रोचक होती है - धागे जैसी पतली संरचनाएँ जिन्हें हाइफ़ा (hyphae) कहा जाता है, भोजन में गहराई तक फैल जाती हैं और उसमें से पोषण सोख लेती हैं। यही हाइफ़ा धीरे-धीरे पूरी ब्रेड की सतह और भीतर तक अपना जाल बुन लेती हैं। इसी वजह से हमें शुरुआत में ब्रेड के कोनों पर हल्के धब्बे नज़र आते हैं और बाद में यह फफूंद तेज़ी से फैलकर पूरी ब्रेड को अपनी चपेट में ले लेती है। यह पहचान बताती है कि कैसे यह सूक्ष्म जीव हमारे भोजन को कुछ ही समय में अनुपयोगी बना देता है।

ब्रेड मोल्ड का प्रजनन और वृद्धि प्रक्रिया
ब्रेड मोल्ड का प्रजनन मुख्य रूप से बीजाणुओं (spores) के माध्यम से होता है। ये सूक्ष्म बीजाणु इतनी हल्की संरचना वाले होते हैं कि हवा में आसानी से उड़ते रहते हैं और चारों ओर फैलते हैं। जैसे ही इन्हें कोई नम और कार्बनिक सतह मिलती है, वे तुरंत अंकुरित होकर नए मोल्ड में बदल जाते हैं। यही कारण है कि खुले में रखी ब्रेड अक्सर कुछ ही दिनों में खराब होने लगती है। इसके अलावा, गर्म तापमान और वातावरण में मौजूद नमी इस प्रक्रिया को और तेज़ कर देते हैं। यानी, ब्रेड मोल्ड की वृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि आसपास का वातावरण कितना अनुकूल है। यह समझना ज़रूरी है कि यदि इन बीजाणुओं को सही वातावरण मिल जाए, तो वे बहुत जल्दी भोजन को सड़ा सकते हैं।

ब्रेड मोल्ड के प्रमुख प्रकार
ब्रेड मोल्ड एक ही तरह का नहीं होता, बल्कि इसके कई प्रकार पाए जाते हैं। इनमें से तीन प्रकार सबसे ज़्यादा आम हैं और अक्सर हमारी रसोई या खाने की चीज़ों में दिखाई देते हैं। हर प्रकार की अपनी अलग पहचान, रंग और प्रभाव होता है, जिन्हें समझना ज़रूरी है।

  • ब्लैक ब्रेड मोल्ड (Black Bread Mold) – यह सबसे आम किस्म है, जिसे हम दुनिया के लगभग हर हिस्से में देख सकते हैं। ब्रेड के अलावा यह मोल्ड सब्ज़ियों और यहाँ तक कि जंगली फलों पर भी पनप सकता है। इसकी मौजूदगी उस पदार्थ में धीरे-धीरे सड़न पैदा करती है और कई बार पौधों को भी नुकसान पहुँचा देती है। अगर आपने कभी ब्रेड पर काले रंग की परत सी जमती देखी हो, तो वह ब्लैक ब्रेड मोल्ड ही होता है।
  • पेनिसिलियम ब्रेड मोल्ड (Penicillium Bread Mold) – यह मोल्ड ब्रेड पर नीले या हरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देता है। इसकी खासियत यह है कि इसकी कुछ प्रजातियाँ मानव जीवन के लिए उपयोगी भी साबित होती हैं। दरअसल, इसी मोल्ड से पेनिसिलिन नामक प्रसिद्ध एंटीबायोटिक (antibiotic) तैयार की जाती है, जिसने आधुनिक चिकित्सा में क्रांति ला दी। यानी, जो मोल्ड हमें ब्रेड पर देखकर बेकार लगता है, वही कभी-कभी जीवनरक्षक दवा का स्रोत भी बन जाता है।
  • क्लैडोस्पोरियम ब्रेड मोल्ड (Cladosporium Bread Mold) – यह मोल्ड काले धब्बों की शक्ल में दिखाई देता है और इसे पहचानना अक्सर आसान होता है, क्योंकि इसकी गंध अन्य मोल्ड्स से बिल्कुल अलग होती है। हालांकि, यह मोल्ड देखने में साधारण लग सकता है, लेकिन वास्तव में यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से एलर्जी (allergy), खाँसी और सांस की समस्याएँ शुरू हो सकती हैं। संवेदनशील लोगों के लिए यह और भी ख़तरनाक है, क्योंकि यह श्वसन तंत्र पर सीधा असर डालता है।

ब्रेड मोल्ड और सहजीवी संबंध
ब्रेड मोल्ड सिर्फ़ ब्रेड या खाने को खराब करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक चक्र का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर उनमें से पोषक तत्व बाहर निकालता है, जो आगे चलकर पौधों के विकास में सहायक बनते हैं। इस तरह यह पर्यावरण में पोषण के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को संतुलित रखता है। हालांकि, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि कभी-कभी यही मोल्ड पौधों और जानवरों दोनों में बीमारियाँ भी पैदा कर सकता है। यानी, एक ओर यह प्रकृति के लिए उपयोगी है, तो दूसरी ओर यदि इसका फैलाव अनियंत्रित हो जाए, तो यह हानिकारक भी साबित हो सकता है।

औद्योगिक उपयोगों में ब्रेड मोल्ड का महत्व
आमतौर पर हम ब्रेड मोल्ड को नुकसान पहुँचाने वाला मानते हैं, लेकिन उद्योगों में इसका उपयोग कुछ मामलों में लाभकारी भी होता है। उदाहरण के लिए, राइज़ोपस का प्रयोग पौधों के स्टेरॉयड (Steroid) को कॉर्टिसोन (Cortisone) जैसे रसायनों में बदलने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, यह फ्यूमरिक एसिड (Fumaric acid) और अन्य रासायनिक यौगिक बनाने में भी मदद करता है। इतना ही नहीं, इंडोनेशिया (Indonesia) में बनाए जाने वाले लोकप्रिय व्यंजन टेम्पेह (Tempeh) में भी ब्रेड मोल्ड का उपयोग किया जाता है। इसमें यह सोयाबीन को आंशिक रूप से विघटित करके भोजन को बाँधने का काम करता है, जिससे वह खाने योग्य और पौष्टिक बनता है। इस तरह हम देखते हैं कि वही कवक, जो हमारी ब्रेड को खराब कर देता है, कभी-कभी उद्योग और भोजन की दुनिया में उपयोगी भी साबित हो सकता है।

फफूंदी लगी ब्रेड खाने से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम
हालाँकि ब्रेड मोल्ड के कुछ औद्योगिक उपयोग हैं, लेकिन यह बात बिल्कुल साफ़ है कि फफूंदी लगी ब्रेड खाना बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है। ऐसा करने से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। सबसे पहले, यह पेट में जाकर उल्टी और जी मिचलाना जैसी समस्याएँ पैदा कर सकता है, क्योंकि ब्रेड में मौजूद बैक्टीरिया और फफूंद पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, कुछ लोगों को कवक से एलर्जी प्रतिक्रिया हो सकती है, जो कभी-कभी गंभीर भी हो जाती है। कुछ प्रकार के मोल्ड जहरीले मायकोटॉक्सिन (Mycotoxin) पैदा करते हैं, जो लंबे समय में कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं। इतना ही नहीं, अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक इनके संपर्क में रहता है, तो उसे सांस की समस्याएँ भी हो सकती हैं, जैसे नाक और गले में जलन, खाँसी और घरघराहट। यही वजह है कि विशेषज्ञ हमेशा सलाह देते हैं कि ब्रेड पर ज़रा-सा भी मोल्ड दिखे तो उसे खाने के बजाय तुरंत फेंक देना चाहिए।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/9v87j9j5 



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