कैसे मशरूम की खेती, रामपुर के किसानों के लिए है एक उभरता सुनहरा मौका ?

फफूंदी और मशरूम
19-12-2025 09:26 AM
कैसे मशरूम की खेती, रामपुर के किसानों के लिए है एक उभरता सुनहरा मौका ?

रामपुरवासियों, आज जब खेती-बाड़ी से होने वाली आमदनी पहले जैसी नहीं रही और किसान लगातार नए विकल्पों की तलाश में हैं, ऐसे समय में एक शांत-सी लेकिन गहरी क्रांति जन्म ले रही है - मशरूम खेती की क्रांति। यह खेती न तो ज़मीन पर निर्भर है, न मौसम पर, और न ही भारी निवेश की मांग करती है। सर्दियों के आते ही इसकी मांग अचानक बढ़ जाती है, जिससे इसका बाजार भी तेज़ी से फैल रहा है। रामपुर और इसके आस-पास के गाँव में कई किसान अब इसे अपनी दूसरी आय नहीं, बल्कि सबसे भरोसेमंद आय मानने लगे हैं। खास बात यह है कि मशरूम की खेती कम जगह, जैसे घर के एक खाली कमरे, गोदाम या शेड में भी आसानी से शुरू की जा सकती है। यही वजह है कि यहाँ की महिलाएँ, युवा और छोटे किसान इसे आर्थिक स्वतंत्रता का नया रास्ता मानकर बड़े आत्मविश्वास के साथ अपनाने लगे हैं। बदलते समय में जब खेती के खर्च बढ़ रहे हैं और आमदनी सिकुड़ रही है, उस दौर में मशरूम खेती रामपुर के परिवारों के लिए सिर्फ आमदनी नहीं, बल्कि उम्मीद का नया दरवाज़ा बनकर उभर रही है - एक ऐसा रास्ता जहाँ मेहनत भी कम है, जोखिम भी कम है, और मुनाफ़ा लगातार बढ़ रहा है।
आज के इस लेख में हम संक्षेप में समझेंगे कि भारत में मशरूम खेती कैसे किसानों के लिए एक नया और बढ़ता हुआ आर्थिक मौका बन रही है, और कैसे कई ग्रामीण महिलाएँ व छोटे किसान इससे अपनी आय बढ़ा रहे हैं। हम भारत की मौजूदा उत्पादन स्थिति को दुनिया से तुलना कर देखेंगे कि संभावनाएँ तो बहुत हैं, पर चुनौतियाँ भी कम नहीं - खासकर स्पॉन की गुणवत्ता, कानूनों की कमी और बाजार की अनियमितता। साथ ही, हम जानेंगे कि इस क्षेत्र को मज़बूत बनाने के लिए सरकार को किन नए नियमों और सुधारों की जरूरत है। अंत में, हम यह भी देखेंगे कि अगर सही दिशा मिल जाए, तो मशरूम खेती न सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ा सकती है बल्कि भारत के कृषि और पर्यावरण दोनों के भविष्य को बदल सकती है।

भारत में मशरूम खेती का उभरता आर्थिक अवसर और किसानों की बढ़ती दिलचस्पी
पिछले कुछ वर्षों में भारत में मशरूम खेती एक बड़े आर्थिक अवसर के रूप में उभरकर सामने आई है। यह खेती पारंपरिक फसलों पर निर्भर नहीं है, और कम जगह, कम लागत और कम जोखिम में भी शुरू की जा सकती है। खासकर सर्दियों के मौसम में इसकी मांग तेज़ी से बढ़ती है, क्योंकि उपभोक्ता इसे पौष्टिक और स्वास्थ्यकारी भोजन के रूप में तेजी से अपना रहे हैं। लॉकडाउन (lockdown) के बाद से शहरी बाजारों में मशरूम की खपत लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे ग्रामीण किसानों के लिए नए बाजार खुल गए हैं। कई युवा, बेरोजगार युवक और महिलाएँ इसे पार्ट टाईम आय के रूप में अपनाकर महीने में 6,000 से 12,000 रुपये तक की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं। छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह इसलिए भी आकर्षक है क्योंकि इसके लिए बड़ी ज़मीन या भारी निवेश की आवश्यकता नहीं होती। आज मशरूम खेती उन दुर्लभ क्षेत्रों में से एक बन चुकी है, जहाँ खेती और उद्यमिता साथ-साथ बढ़ रही हैं।

सफल किसानों की प्रेरक कहानियाँ और ग्रामीण महिलाओं की बदलती आर्थिक स्थिति
मशरूम खेती की सबसे सुंदर बात यह है कि यह सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का भी माध्यम बनती जा रही है। इसकी सबसे जीवंत मिसालें ग्रामीण महिलाओं की कहानियों में दिखाई देती हैं। उदाहरण के तौर पर, झारखंड की श्रीमती एक्का, जिन्होंने मुश्किल परिस्थितियों में मशरूम खेती शुरू की और कुछ ही महीनों में 7,000 रुपये मासिक कमाई तक पहुँच गईं। यह कमाई उनके परिवार के लिए न सिर्फ आर्थिक संबल बनी, बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी नई उड़ान दी। केरल की लीना थॉमस और उनके बेटे जीतू ने तो इसे एक छोटे घरेलू प्रयोग से आगे बढ़ाकर 100 किलो प्रतिदिन उत्पादन वाले बिज़नेस में बदल दिया। खेतों से लेकर बाज़ार तक, उनका यह सफर ग्रामीण उद्यमिता की एक प्रेरणादायक मिसाल है। इन कहानियों में एक समान सूत्र है - मशरूम खेती ने महिलाओं और युवाओं के लिए ऐसी स्वतंत्रता के द्वार खोले हैं, जो पहले पारंपरिक खेती में संभव नहीं थे।

भारत में मशरूम उत्पादन की वर्तमान स्थिति और वैश्विक तुलना
भारत में मशरूम उत्पादन पिछले दशक में अभूतपूर्व गति से बढ़ा है। जहाँ 2013-14 में उत्पादन मात्र 17,100 मीट्रिक टन था, वहीं 2018 तक यह 4,87,000 मीट्रिक टन तक पहुँच गया - यानी लगभग 28 गुना वृद्धि। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर इस क्षेत्र के प्रमुख उत्पादन केंद्र बन गए हैं। लेकिन जब हम वैश्विक परिदृश्य पर नज़र डालते हैं, तो साफ दिखाई देता है कि भारत अभी भी अपनी वास्तविक क्षमता तक नहीं पहुँचा है। आज चीन अकेले दुनिया का लगभग 75% मशरूम उत्पादन करता है, जबकि भारत केवल 2% पर अटका हुआ है। यह अंतर बताता है कि भारत के पास जलवायु, जनसंख्या और बाजार - तीनों ही मौजूद हैं, पर इनके उपयोग के लिए मजबूत नीति और तकनीकी ढाँचा अभी भी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया। यदि भारत इस दिशा में ध्यान दे, तो घरेलू बाजार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय निर्यात में भी बड़ी छलांग लगाई जा सकती है।

भारत के मशरूम सेक्टर की सबसे बड़ी चुनौतियाँ: नियमन, कानून और बाजार की अनियमितता
मशरूम उद्योग के तेजी से बढ़ने के बावजूद इसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह लगभग पूरी तरह अनियमित है। मौजूदा बीज अधिनियम और पीपीवीएफआर (PPVFR) अधिनियम मशरूम को कवर नहीं करते, क्योंकि मशरूम बीज (spawn) पारंपरिक बीज की श्रेणी में नहीं आते। इसी तरह, पेटेंट कानून में भी कवक (Fungi) से संबंधित मुद्दों पर स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। नियमन की इस कमी का लाभ कई असंगठित विक्रेता उठा रहे हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स (online platforms) और लोकल सप्लायर्स (local suppliers) कम गुणवत्ता वाला स्पॉन बेचकर किसानों को धोखा देते हैं, जिससे फसल खराब हो जाती है और किसान का निवेश डूब जाता है। यह अनिश्चित बाजार वातावरण नए किसानों को इस क्षेत्र से दूर कर देता है। जब तक मशरूम को कृषि कानूनों और गुणवत्ता मानकों में सही स्थान नहीं मिलेगा, तब तक किसानों का विश्वास डगमगाता रहेगा।

मशरूम बीजाणु उद्योग की समस्याएँ और गुणवत्ता मानकीकरण की आवश्यकता
मशरूम उद्योग की रीढ़-स्पॉन-यानी बीजाणु की गुणवत्ता भारत में सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। सही और उच्च गुणवत्ता वाला स्पॉन मशरूम उत्पादन की सफलता का 70% हिस्सा निर्धारित करता है, लेकिन भारत में इसके उत्पादन, भंडारण, परीक्षण और प्रमाणन के लिए कोई मानक व्यवस्था नहीं है। स्पॉन को नियंत्रित तापमान, नमी और स्वच्छ वातावरण में रखा जाना चाहिए, लेकिन कई छोटे सप्लायर्स इन वैज्ञानिक मानकों का पालन नहीं करते। इससे स्पॉन दूषित हो जाता है और किसान की पूरी फसल पर सीधा असर पड़ता है। फसल खराब होने पर किसान को कारण भी समझ नहीं आता, क्योंकि उन्हें यह ज्ञान नहीं दिया जाता कि खराबी फसल में नहीं, स्पॉन में थी। ऐसी स्थिति में यह बेहद जरूरी है कि भारत में स्पॉन उद्योग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एसओपी (SOPs), परीक्षण प्रणाली, लाइसेंसिंग और प्रमाणन जैसी व्यवस्थाएँ लागू की जाएँ, ताकि किसानों को गुणवत्ता की गारंटी मिल सके।

सरकारी नीतियों और नए विनियमों की तात्कालिक आवश्यकता
मशरूम उद्योग आज जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, उसके मुकाबले सरकारी नीतियाँ अभी भी काफी पीछे हैं। भारत को एक ऐसे विशेष नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता है जो मशरूम को एक अलग कृषि श्रेणी के रूप में पहचान दे। इसके लिए माइकोलॉजिस्ट (Mycologist), कृषि वैज्ञानिकों और किसानों को मिलाकर विशेषज्ञ समिति बनाई जानी चाहिए, जो नए कानूनों और मानकों को विकसित करे। गुणवत्ता मानकों (SOPs), परीक्षण व प्रमाणन व्यवस्था, गलत स्पॉन बेचने वाले विक्रेताओं पर सख्त कार्रवाई और एक शिकायत निवारण प्रणाली - ये सभी कदम इस उद्योग को सुरक्षित और विश्वसनीय बनाएँगे। बागवानी विभाग में मशरूम के लिए एक अलग उप-विभाग बनाया जाना भी बेहद जरूरी है, ताकि किसान एक केंद्रीकृत संस्था से सलाह, प्रशिक्षण और तकनीकी मदद प्राप्त कर सकें।

भारत के कृषि और पर्यावरण के लिए मशरूम क्षेत्र की भविष्य की क्षमता
मशरूम खेती भारत के कृषि भविष्य का एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय तीनों लाभ एक साथ मिलते हैं। यह उच्च पोषक तत्वों से भरपूर है और कुपोषण से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कृषि की दृष्टि से यह किसानों की कमाई बढ़ाने का एक भरोसेमंद विकल्प है, खासकर उन किसानों के लिए जिनके पास कम ज़मीन है। पर्यावरण के लिहाज से मशरूम खेती धान के ठूंठ (stubble) और अन्य कृषि अवशेषों को कंपोस्ट की बजाय सीधे भोजन में बदलकर प्रदूषण कम करने में मदद करती है - यानी यह पराली जलाने का एक व्यावहारिक और लाभदायक विकल्प भी बन सकती है। औषधीय अनुसंधान में भी मशरूम का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। कुछ किस्में कैंसर, प्रतिरक्षा प्रणाली और मानसिक स्वास्थ्य पर शोध में उपयोग की जा रही हैं। यदि भारत इस संभावनाओं को गंभीरता से पकड़े, तो वह आने वाले वर्षों में वैश्विक मशरूम उद्योग का एक "सुपरपावर" बन सकता है।

संदर्भ-
https://bbc.in/3I1BwDk 
https://bit.ly/3GhKUkY 
https://tinyurl.com/ytmfvk9w 



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