
जौनपुर का रेलवे नेटवर्क न केवल इस ऐतिहासिक शहर की जीवनरेखा नहीं है, बल्कि यह यात्रियों और व्यापार की सुचारू आवाजाही में भी अहम भूमिका निभाता है। इसे और अधिक सुरक्षित तथा आधुनिक बनाने के लिए भारतीय रेलवे लगातार नई-नई तकनीकों को अपना रहा है। आज के समय में आप घर पर बैठे-बैठे ही रेलवे ट्रैक पर दौड़ती हुई ट्रेन की सटीक स्थिति का पता लगा सकते हैं! लेकिन क्या आपको पता है, कि यह सुविधा आप तक बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप पहुँच रही है! यही कमाल कर रही है रियल-टाइम ट्रेन सूचना प्रणाली (आर टी आई एस Real-Time Train Information System (RTIS)), जो जी पी एस (GPS) और इसरो (ISRO) के उपग्रहों की मदद से ट्रेनों की लाइव ट्रैकिंग को पूरी तरह स्वचालित बना रही है।
जौनपुर जंक्शन जैसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों पर एकीकृत ट्रैक निगरानी प्रणाली (आई टी एम एस– Integrated Track Monitoring System (ITMS)) एक क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। यह तकनीक हाई-स्पीड कैमरों और सेंसरों की मदद से रेलवे ट्रैक की निगरानी को पहले से कहीं अधिक सटीक और प्रभावी बना रही है। जल्द ही लाइडार (LiDAR) तकनीक के जुड़ने से रेलवे ट्रैक की सुरक्षा और मज़बूती और भी बेहतर हो जाएगी। इसके अलावा रेल यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए भारतीय रेलवे की स्वदेशी तकनीक कवच प्रणाली भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अगर किसी ट्रेन को आपातकालीन ब्रेक लगाने की ज़रूरत पड़ती है, तो यह प्रणाली स्वचालित रूप से सक्रिय हो जाती है और ट्रेन की टक्कर की संभावना लगभग खत्म कर देती है।
आज के इस लेख में हम देखेंगे कि जी पी एस तकनीक का इस्तेमाल करके रेलवे ट्रेन ट्रैकिंग को कैसे एक नया आयाम दे रहा है। फिर समझेंगे कि एकीकृत ट्रैक निगरानी प्रणाली किस तरह रेल संचालन को अधिक सुरक्षित और कुशल बना रही है। इसके बाद हम कवच प्रणाली के बारे में जानेंगे जो कि एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक है, जिसे भारतीय रेल को अधिक सुरक्षित बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। आखिर में, हम जानेंगे कि इस अत्याधुनिक तकनीक को लागू करने की लागत कितनी है और यह जौनपुर समेत पूरे देश के रेलवे नेटवर्क को किस तरह बदल रही है।
आज के समय में ट्रेन की सटीक और लाइव लोकेशन जानना पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो गया है! भारतीय रेलवे ने रियल टाइम ट्रेन सूचना प्रणाली (RTIS) को अपनाया है! इसकी मदद से जी पी एस तकनीक का उपयोग करके हर 30 सेकंड में ट्रेन की स्थिति अपडेट किया जा सकता है।
आर टी आई एस की सबसे बड़ी ख़ासियत क्या है?
इस नई प्रणाली के आने के बाद अब ट्रेन कंट्रोलर को मैन्युअल रूप से डेटा अपडेट करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। आर टी आई एस से जुड़ी ट्रेनें स्वचालित रूप से अपनी स्पीड और लोकेशन का डेटा भेजती हैं, जिससे उनकी सटीक ट्रैकिंग संभव हो पाती है।
आर टी आई एस काम कैसे करता है?
आर टी आई एस, गगन (GAGAN) पेलोड वाले जीसैट (GSAT) उपग्रहों से डेटा प्राप्त करता है। यह डेटा रेलवे सूचना प्रणाली केंद्र (CRIS) के सेंट्रल लोकेशन सर्वर (CLS) को भेजा जाता है। फिर यह जानकारी नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम (NTES) तक पहुंचती है, जो इसे वेबसाइट, मोबाइल ऐप, 139 हेल्पलाइन और अन्य सूचना प्रणालियों के ज़रिया यात्रियों तक पहुँचाता है।
अब तक कितना काम पूरा हो चुका है?
अभी तक 21 इलेक्ट्रिक लोको शेड में 2,700 इंजनों में आर टी आई एस डिवाइस लगाए जा चुके हैं। दूसरे चरण में इसरो के सैटकॉम हब का उपयोग करके 50 लोको शेड में 6,000 से अधिक इंजनों को कवर किया जाएगा। वर्तमान में 6,500 लोकोमोटिव (आर टी आई एस और रेम्लॉट) का जी पी एस डेटा सीधे कंट्रोल ऑफ़िस एप्लिकेशन (COA) में भेजा जा रहा है, जिससे रेलवे को ट्रेनों की लाइव ट्रैकिंग में और भी आसानी हो रही है। इन्हीं तकनीकों की बदौलत आज ट्रेन की लोकेशन जानने के लिए आपको रेलवे स्टेशन जाने की ज़रूरत नहीं! आप केवल मोबाइल ऐप या 139 हेल्पलाइन का इस्तेमाल करके, अपनी ट्रेन की रियल टाइम स्थिति का पता लगा सकते हैं!
भारतीय रेलवे अब इंटीग्रेटेड ट्रैक मॉनिटरिंग सिस्टम (आई टी एम एस - ITMS) नाम की एक नई और आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रहा है, जिससे रेल ट्रैक की निगरानी पहले से ज़्यादा तेज़, सटीक और सुरक्षित हो जाएगी।
आइए अब आई टी एम एस (ITMS) प्रणाली के बारे में जानते हैं?
भारतीय रेलवे ने ट्रैक की निगरानी के लिए आई टी एम एस (ITMS - इंटेलिजेंट ट्रैक मॉनिटरिंग सिस्टम) को अपनाया है। यह अत्याधुनिक तकनीक टी आर सी (TRC - ट्रैक रिकॉर्डिंग कार) पर लगाई जाती है, जो 20 से 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चलते हुए रेलवे ट्रैक की निगरानी कर सकती है।
इस प्रणाली में संपर्क रहित लेज़र सेंसर, हाई-स्पीड कैमरे, लाइडार (LiDAR), जी पी एस (GPS) और एक्सेलेरोमीटर (Accelerometer) जैसे उन्नत उपकरण लगे होते हैं। ये सेंसर और कैमरे रेलवे ट्रैक का डेटा इकट्ठा करके उसका विश्लेषण करते हैं और किसी भी ख़राबी का तुरंत पता लगाकर रेलवे अधिकारियों को सूचना भेजते हैं।
पहले रेलवे ट्रैक की निगरानी कैसे होती थी?
अभी तक भारतीय रेलवे ट्रैक की जाँच के लिए तीन मुख्य तकनीकों का उपयोग करता था:
हालांकि, आई टी एम एस (ITMS) इन सभी से ज़्यादा उन्नत और भरोसेमंद है, क्योंकि यह रियल-टाइम (Real-Time) अलर्ट भेजता है। अगर कहीं ट्रैक में कोई ख़राबी मिलती है, तो यह सिस्टम एसएमएस (SMS) और ईमेल (Email) के ज़रिए तुरंत जानकारी भेज देता है, जिससे मरम्मत जल्दी की जा सकती है।
आई टी एम एस (ITMS) की क्या ख़ासियतें हैं?
सटीक माप – यह प्रणाली लेज़र सेंसर और जड़त्वीय तकनीक (Inertial Technology) की मदद से रेलवे ट्रैक की ज्यामितीय संरचना की सटीक निगरानी करती है।
वीडियो निरीक्षण – हाई-स्पीड (High-Speed) कैमरों के ज़रिए यह सिस्टम रेल, स्लीपर, फ़ास्टनिंग और गिट्टी की स्थिति का विश्लेषण करती है।
ए आई (AI) और मशीन लर्निंग (Machine Learning) का उपयोग – यह तकनीक ट्रैक फ़िटिंग (बोल्ट, फ़िशप्लेट आदि) की ढीली या गायब स्थिति को पहचानकर उसका समाधान निकालने में मदद करती है।
यात्रा अनुभव में सुधार – आई टी एम एस (ITMS) में लगे एक्सेलेरोमीटर (Accelerometer) एक्सल बॉक्स और कोच फ़्लोर के कंपन को मापते हैं, जिससे ट्रेन की गुणवत्ता का विश्लेषण किया जाता है।
अब तक इस प्रणाली से 2.50 लाख किलोमीटर से अधिक रेलवे ट्रैक की रिकॉर्डिंग की जा चुकी है। भविष्य में आई टी एम एस प्रणाली रेल दुर्घटनाओं को रोकने में मदद करेगी। इसकी बदौलत ट्रैक की मरम्मत समय पर की जा सकेगी और यात्रियों का सफ़र पहले से ज़्यादा सुरक्षित और सहज हो जाएगा।
क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेनों की टक्कर कैसे रोकी जाती है?
अगर दो ट्रेनें एक ही ट्रैक पर हों और गलती से आमने-सामने आ जाएं, तो हादसा रोकने के लिए क्या किया जाता है? इसी समस्या को दूर करने के लिए कवच (Kavach) प्रणाली बनाई गई है। कवच एक सुरक्षा प्रणाली है, जो ट्रेन की रफ़्तार और लोको पायलट की हरकतों पर नज़र रखती है। इसका सबसे मुख्य काम ट्रेन हादसों को रोकना है। आसान भाषा में कहें तो, यह सुनिश्चित करती है कि ट्रेन तय गति के अंदर ही चले। इसे अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन (– Research Design and Standards Organization (RDSO)) ने तीन भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर विकसित किया है। भारतीय रेलवे ने इसे अपनी राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ए टी पी - ATP) प्रणाली के रूप में अपनाया है। यह सिल-4 (Safety Intergrity Level 4) सुरक्षा मानकों का पालन करता है, जो रेलवे में सबसे उच्च स्तर की सुरक्षा को दर्शाता है।
अगर कोई ट्रेन लाल सिग्नल के क़रीब पहुंचती है, तो लोको पायलट को अलर्ट किया जाता है। यदि पायलट सही समय पर प्रतिक्रिया नहीं देता, तो कवच खुद ही ट्रेन पर ब्रेक लगाकर उसे रोक सकता है। यह आपातकालीन स्थिति में एस ओ एस (SoS) संदेश भेजने की भी क्षमता रखता है। इसके अलावा, नेटवर्क मॉनिटरिंग सिस्टम की मदद से ट्रेनों की लाइव ट्रैकिंग की जाती है। भारतीय रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार संस्थान ( Indian Railways Institute Of Signal Engineering and Telecommunications (IRISET)), जो तेलंगाना के सिकंदराबाद में स्थित है, कवच प्रणाली के उत्कृष्टता केंद्र के रूप में कार्य करता है।
इस प्रणाली को पूरे भारत में लागू करना क्यों मुश्किल है?
दरअसल, एक किलोमीटर में कवच प्रणाली को लगाने की लागत लगभग 50 लाख रुपये आती है। फ़िलहाल यह 1,500 किलोमीटर के रेल नेटवर्क पर लागू हो चुकी है, लेकिन भारत का रेल नेटवर्क 68,000 किलोमीटर लंबा है। ऐसे में इसे पूरी तरह लागू करना एक बड़ी आर्थिक चुनौती है। हालांकि, रेलवे इसे तेज़ी से विस्तार देने पर काम कर रहा है ताकि भविष्य में ट्रेन हादसों को पूरी तरह रोका जा सके।
कवच कैसे काम करता है?
अगर लोको पायलट तय गति से ज़्यादा तेज़ चलाने लगे या खतरे के सिग्नल (एस पी ए डी ( Signal Pasing At Danger)) को पार करने वाला हो और समय रहते ब्रेक न लगाए, तो कवच तुरंत एक्शन लेता है। यह ट्रेन की रफ़्तार कम कर सकता है या ज़रूरत पड़ने पर उसे पूरी तरह रोक भी सकता है। इससे टक्कर की संभावना काफ़ी कम हो जाती है।
कवच लोको पायलट के केबिन में लगी डी एम आई (Driver Machine Interface (DMI)) स्क्रीन पर सभी ज़रूरी सिग्नल दिखाता है। ख़ासतौर पर जब मौसम ख़राब हो और धुंध या बारिश की वजह से विज़िबिलिटी कम हो, तब यह सिस्टम तेज़ रफ़्तार ट्रेनों को सुरक्षित तरीके से चलाने में मदद करता है। इसके अलावा, कवच कुछ और ज़रूरी सुरक्षा उपाय भी अपनाता है। यह ट्रैक की लंबाई और ट्रेन की सटीक स्थिति का अंदाज़ा लगाकर आमने-सामने (हेड-ऑन), पीछे से (रियर-एंड) और साइड से होने वाली टक्कर को रोक सकता है। अगर ट्रेन गलती से पीछे जाने लगे, तो यह तुरंत उसे रोक देता है।
जब ट्रेन किसी लेवल क्रॉसिंग के क़रीब पहुंचती है, तो कवच अपने आप हॉर्न बजा देता है, जिससे सड़क पर चलने वाले लोगों को पहले से चेतावनी मिल जाती है। इसमें एक मैनुअल एस ओ एस (SOS) फ़ंक्शन भी है, जिससे आसपास की सभी ट्रेनों के आपातकालीन ब्रेक एक्टिवेट हो सकते हैं। यह किसी भी संभावित दुर्घटना को रोकने में मदद करता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/29ohlqyt
https://tinyurl.com/2atmogpy
https://tinyurl.com/253clblm
https://tinyurl.com/26xcutuk
मुख्य चित्र स्रोत : railyatri, Wikimedia
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