गंगा डॉल्फ़िन को बचाना है तो अब ज़रूरी हैं त्वरित और ठोस संरक्षण प्रयास!

स्तनधारी
30-05-2025 09:20 AM
गंगा डॉल्फ़िन को बचाना है तो अब ज़रूरी हैं त्वरित और ठोस संरक्षण प्रयास!

लखनऊ के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि गंगा नदी डॉल्फ़िन (Ganges River Dolphin), जिसे सुसु (Susu) भी कहा जाता है, एक दुर्लभ मीठे पानी की डॉल्फ़िन है, जो मुख्य रूप से पवित्र गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में पाई जाती है। भारत की प्राकृतिक विरासत में गंगा नदी डॉल्फ़िन का एक विशेष एवं महत्वपूर्ण स्थान है और इसे राष्ट्रीय जलीय पशु के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। लेकिन अफ़सोस की बात है कि प्रदूषण, प्लास्टिक अपशिष्ट, मछली पकड़ने के जाल, मानवीय गतिविधियां और नदी निर्माण जैसे कार्यों के कारण यह कोमल प्राणी विलुप्त के कगार पर पहुँच गया है। गंगा और उसके जीवन की रक्षा करना हमारा उत्तरदायित्व है। अपनी नदियों को साफ़ रखकर और जागरूकता बढ़ाकर, हम भावी पीढ़ियों के लिए गंगा डॉल्फ़िन को बचाने में मदद कर सकते हैं। तो आइए, आज गंगा नदी डॉल्फ़िन के बारे में जानते हुए, इसकी अनूठी विशेषताओं, प्राकृतिक आवास और व्यवहार संबंधी लक्षणों पर प्रकाश डालते हैं, जो इसे सबसे आकर्षक नदी स्तनधारियों में से एक बनाते हैं। इसके साथ ही, हम इसके सामने आने वाले प्रमुख खतरों पर प्रकाश डालेंगे और इसकी वर्तमान संरक्षण स्थिति और इसकी सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानेंगे।

म्यूजियो डि स्टोरिया नेचुरेल ई डेल टेरिटोरियो डेल'यूनिवर्सिटा डि पीसा में प्रदर्शित गंगा नदी डॉल्फिन कंकाल का नमूना |  चित्र स्रोत : Wikimedia 

गंगा नदी डॉल्फ़िन का परिचय:

गंगा नदी डॉल्फ़िन जिसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका (Platanista gangetica) है, प्लैटनिस्टिडे (Platanistidae) परिवार में वर्गीकृत मीठे पानी की डॉल्फ़िन की एक प्रजाति है। यह दक्षिण एशिया की गंगा और संबंधित नदियों में, अर्थात भारत, नेपाल और बांग्लादेश में पाई जाती है। इसे असम में सुसु और पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश में शुशुक (shushuk) नाम से भी जाना जाता है।गंगा नदी डॉल्फ़िन को भारत सरकार द्वारा अपने राष्ट्रीय जलीय पशु के रूप में मान्यता दी गई है और यह भारतीय शहर गुवाहाटी का आधिकारिक जानवर है। कछुए, मगरमच्छ और शार्क की कुछ प्रजातियों के साथ-साथ डॉल्फ़िन दुनिया के सबसे पुराने जीवों में से एक हैं। गंगा नदी डॉल्फ़िन की आधिकारिक तौर पर खोज 1801 में की गई थी। गंगा नदी डॉल्फ़िन एक समय नेपाल, भारत और बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु नदी प्रणालियों में रहती थीं। लेकिन यह प्रजाति अपने अधिकांश प्रारंभिक वितरण क्षेत्रों से विलुप्त हो चुकी है।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

विशेषताएं, आवास और व्यवहार:

लंबी पतली थूथन, गोल पेट, गठीला शरीर और बड़े पंख गंगा डॉल्फ़िन की विशेषताएं हैं। इस प्रजाति के सिर के शीर्ष पर वायुमार्ग के समान एक दरार होती है, जो नाक के रूप में कार्य करती है। वे अक्सर अकेले या छोटे समूहों में पाई जाती हैं, और आम तौर पर माँ और शिशु एक साथ यात्रा करते हैं। जन्म के समय शिशु चॉकलेट भूरे रंग के होते हैं और फिर वयस्क होने पर उनकी त्वचा भूरे रंग की चिकनी और बाल रहित हो जाती है। मादाएं आकार में नर से बड़ी होती हैं और हर दो से तीन साल में एक बार केवल एक शिशु को जन्म देती हैं। गंगा नदी की डॉल्फ़िन केवल मीठे पानी में ही रह सकती है और मूलतः अंधी होती है। वे अल्ट्रासोनिक ध्वनियाँ उत्सर्जित करके शिकार करती हैं, जो मछली और अन्य शिकार से निकलती है, जिससे उन्हें अपने दिमाग में एक छवि बनाने में मदद मिलती है। डॉल्फ़िन की एक तरफ़ तैरने की ख़ासियत होती है, जिससे उसका फ्लिपर कीचड़ भरे तल को पीछे धकेलता है। माना जाता है कि यह व्यवहार उन्हें भोजन खोजने में सहायता करता है। स्तनपायी होने के कारण, गंगा नदी डॉल्फ़िन पानी में सांस नहीं ले सकती है और उसे हर 30-120 सेकंड में सतह पर आना पड़ता है। साँस लेते समय निकलने वाली ध्वनि के कारण, इसे लोकप्रिय रूप से 'सुसु' कहा जाता है। गंगा डॉल्फ़िन की आवाजाही मौसमी पैटर्न का पालन करती है। यह देखा गया है कि जब पानी का स्तर बढ़ता है तो ये जीव ऊपर की ओर जाते हैं और वहां से छोटी धाराओं में प्रवेश करते हैं।

गंगा नदी डॉल्फ़िन के आकार की इंसानों से तुलना | चित्र स्रोत : Wikimedia ; Attribution: Chris Huh

गंगा नदी डॉल्फ़िन के लिए खतरे:

  • जाल में फंसना: गंगा नदी डॉल्फ़िन नदी के उन क्षेत्रों को पसंद करती हैं जहाँ मछलियाँ प्रचुर मात्रा में होती हैं और पानी का प्रवाह धीमा होता है। ऐसे स्थानों पर स्थानीय लोगों द्वारा मछली पकड़ने का कार्य भी किया जाता है जिससे डॉल्फ़िन मछली पकड़ने के जाल, जिसे बायकैच (Bycatch) भी कहा जाता है, में गलती से फंस जाती हैं और परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाती है।
  • प्रदूषण: औद्योगिक विकास, कृषि और मानव प्रदूषण के कारण डॉल्फ़िन के निवास स्थान का निरंतर क्षरण हो रहा है।
  • बांध: बांधों और अन्य सिंचाई-संबंधित परियोजनाओं के निर्माण से वे अंतःप्रजनन और अन्य खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं क्योंकि वे नए क्षेत्रों में नहीं जा पाती हैं। बांध के नीचे डॉल्फ़िन को भारी प्रदूषण, मछली पकड़ने की गतिविधियों और जहाज यातायात जैसे खतरों का भी सामना करना पड़ता है। 
  • भोजन की कमी: निर्माण परियोजनाओं, प्रजनन चक्र, बांध प्रवासन और अन्य शिकार आवास के क्षतिग्रस्त होने के कारण इनके भोजन की भी कमी उत्पन्न होती है।
  • भौतिकी: नदी डॉल्फ़िन को आंशिक रूप से अपनी स्वयं की भौतिकी के कारण खतरों का सामना करना पड़ता है। ये लगभग अंधी होती हैं, और गंदे पानी में नेविगेट (navigate) करने के लिए ये उच्च-ध्वनि तरंगों पर निर्भर होती हैं जो मछलियों से निकलती हैं और प्रतिध्वनि के रूप में वापस आती हैं। हालाँकि यह विशेषता उनके निवास स्थान के अनुकूल है, लेकिन यह उन्हें आधुनिक खतरों के प्रति संवेदनशील भी बनाती है क्योंकि ये कभी-कभी अन्य वस्तुओं से निकलने वाली प्रतिध्वनियों से भी आकर्षित हो जाती हैं जिससे इनके लिए खतरा हो जाता है। उनकी कम दृष्टि और धीमी तैराकी गति के कारण नदी डॉल्फ़िन विशेष रूप से नावों और अन्य बाधाओं से टकराने के लिए प्रवण होती हैं। इसके साथ ही उनका धीमा प्रजनन चक्र भी इनकी घटती संख्या का एक प्रमुख कारण है, वे छह से दस साल की उम्र के बीच परिपक्व होती हैं और मादाएं आम तौर पर हर दो से तीन साल में केवल एक शिशु को जन्म देती हैं।
चित्र स्रोत : Wikimedia 

संरक्षण की स्थिति:

गंगा नदी डॉल्फ़िन को निम्न नियमों एवं अधिनियमों के तहत संरक्षण प्राप्त है:

  • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण), अधिनियम 1972: अनुसूची I।
  • प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature (IUCN): लुप्तप्राय घोषित।
  • लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora (CITES): परिशिष्ट I (सबसे अधिक लुप्तप्राय)।
  • प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (Convention on the Conservation of Migratory Species of Wild Animals (CMS): परिशिष्ट II (प्रवासी प्रजातियां जिन्हें संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता है या जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सहयोग से महत्वपूर्ण लाभ होगा)।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • प्रोजेक्ट डॉल्फ़िन: प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) की तर्ज़ पर, प्रोजेक्ट डॉल्फ़िन (Project Dolphin) भारत सरकार की एक 10 वर्ष लंबी संरक्षण परियोजना है जिसका उद्देश्य नदी और महासागरीय डॉल्फ़िनों का संरक्षण करना है। इसकी परियोजना की घोषणा 15 अगस्त 2020 को की गई थी। 
  • डॉल्फ़िन अभयारण्य: डॉल्फ़िन संरक्षण के लिए बिहार में विक्रमशिला गंगा डॉल्फ़िन अभयारण्य स्थापित किया गया है।
  • संरक्षण योजना: यह गंगा नदी डॉल्फ़िन के लिए संरक्षण के लिए एक कार्य योजना है, जिसके तहत गंगा डॉल्फ़िन के लिए खतरों और नदी यातायात, सिंचाई नहरों और डॉल्फ़िन आबादी पर शिकार-आधार की कमी के प्रभाव की पहचान की गई।
  • राष्ट्रीय गंगा नदी डॉल्फ़िन दिवस: 'राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन' के तहत 5 अक्टूबर को 'राष्ट्रीय गंगा नदी डॉल्फ़िन दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/4ffkuaup

https://tinyurl.com/3tzkvbcu

https://tinyurl.com/4u3hep7d

https://tinyurl.com/2xn2wsph

https://tinyurl.com/2kemx6pc

मुख्य चित्र में प्लैटनिस्टा गैंगेटिका का स्रोत : Wikimedia 

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