लखनऊ की जीवनधारा हिमालय: पर्वतों से मैदानों तक बहता प्रकृति का अमूल्य उपहार

पर्वत, चोटी व पठार
21-07-2025 09:28 AM
लखनऊ की जीवनधारा हिमालय: पर्वतों से मैदानों तक बहता प्रकृति का अमूल्य उपहार

लखनऊ के नागरिकों के लिए हिमालय की बर्फ से ढकी ऊँचाईयाँ चाहे सैकड़ों किलोमीटर दूर हों, लेकिन उनका प्रभाव शहर की नदियों, खेती, जलवायु और सांस्कृतिक जीवन में गहराई से प्रतिध्वनित होता है। गोमती और गंगा जैसी नदियाँ, जो लखनऊ की धरती को जीवन देती हैं, हिमालय की गोद से ही जन्म लेती हैं। यह पर्वतमाला न केवल मानसूनी वर्षा को नियंत्रित करती है, बल्कि हमारी उपजाऊ मिट्टी, जैव विविधता और पारंपरिक रीति-रिवाजों का आधार भी है। मगर आज यह अद्वितीय प्राकृतिक धरोहर जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित पर्यटन और मानवीय गतिविधियों के दबाव में है। यह लेख हिमालय के भूवैज्ञानिक निर्माण से लेकर, उसके पर्यावरणीय और सांस्कृतिक योगदान तथा वर्तमान खतरों तक की विस्तृत पड़ताल करता है — ताकि लखनऊ जैसे मैदानी और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर भी इसके महत्व को और गहराई से समझ सकें और इसके संरक्षण की ओर सजगता से आगे बढ़ें।

इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि हिमालय का निर्माण कैसे हुआ और कौन सी भूगर्भीय शक्तियाँ इसके पीछे सक्रिय थीं। फिर हम देखेंगे कि कैसे हिमालय ने भारतीय संस्कृति, धर्म और कलाओं को आकार दिया। इसके बाद हिमालय की पारिस्थितिकी—नदियाँ, वन, और जलवायु पर उसके प्रभाव को समझेंगे। फिर जानेंगे कि भारत की ऊर्जा, कृषि और पर्यटन में हिमालय की क्या भूमिका है। अंत में, हम हिमालय पर मंडराते जलवायु संकट, शहरीकरण और अस्थिर पर्यटन से उत्पन्न समस्याओं की समीक्षा करेंगे।

हिमालय का भूवैज्ञानिक निर्माण: टेक्टॉनिक टकराव और पर्वत श्रृंखला का विकास

हिमालय का निर्माण लगभग 5 करोड़ वर्ष पहले उस समय हुआ जब भारतीय टेक्टॉनिक प्लेट उत्तर दिशा में गति करते हुए यूरेशियन प्लेट से टकराई। इस टकराव ने टेथिस महासागर को समाप्त कर दिया और हिमालय पर्वतमाला का जन्म हुआ। यह भूगर्भीय प्रक्रिया आज भी जारी है — भारतीय प्लेट अब भी 4–6 सेमी प्रति वर्ष की दर से सरक रही है, जिससे हिमालय लगातार ऊँचाई और रूपाकार में परिवर्तन झेल रहा है। हिमालय का यह भूगर्भीय निर्माण न केवल इसकी भौतिक संरचना को परिभाषित करता है, बल्कि यह भारत की प्राकृतिक आपदाओं — जैसे भूकंपों — की भी प्रमुख वजह है। आज भी हिमालय क्षेत्र में आने वाले बड़े भूकंप इसी प्लेट टकराव का परिणाम हैं। यह सक्रिय टेक्टॉनिक बेल्ट भारत, नेपाल और भूटान में निर्माण और बुनियादी ढांचे की योजना बनाते समय विशेष ध्यान की मांग करता है। साथ ही, हिमालय की ऊँचाई लगातार बढ़ रही है, जिससे जलवायु और पारिस्थितिकीय समीकरणों में भी बदलाव आ रहे हैं।

इस क्रमिक विकास को भूगर्भीय समयरेखा के चार प्रमुख चरणों में बाँटा गया है:

  1. काराकोरम चरण – प्लेटों के अभिसरण का प्रारंभिक संकेत।
  2. मल्ला जौहर चरण – प्लेटों के टकराव एवं भ्रंश की प्रमुख प्रक्रिया।
  3. सिरमुरियन चरण – हिमालय की मूल टेक्टोनिक विशेषताओं का गठन।
  4. शिवालिक चरण – बाह्य हिमालय क्षेत्र की उत्पत्ति और मैदानी क्षेत्रों से संपर्क।

हिमालय और भारतीय संस्कृति: अध्यात्म, कलात्मकता और परंपराओं का केंद्र

हिमालय भारतीय संस्कृति और चेतना का आध्यात्मिक आधार रहा है। यह वह स्थान है जहाँ ऋषियों ने तप किया, योग का अभ्यास हुआ, और वेदों की ऋचाएँ रची गईं। हिंदू धर्म में इसे 'देवताओं का निवास स्थान' माना गया है — कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास है और इसके समीपस्थ तीर्थ जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ और यमुनोत्री देश की आध्यात्मिक धरोहर हैं। बौद्ध धर्म में भी हिमालय विशेष स्थान रखता है। कई बौद्ध मठ, ध्यानस्थल और गुफाएँ इस क्षेत्र में स्थित हैं। यहाँ से तिब्बत, नेपाल और भूटान में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ, जिससे विशिष्ट तिब्बती-बौद्ध कला और वास्तुकला का विकास हुआ। हिमालय ने कला और साहित्य को भी गहराई से प्रभावित किया। कांगड़ा और पहाड़ी लघुचित्रों में इसके सौंदर्य को चित्रित किया गया है। अजंता की गुफाओं में गौतम बुद्ध के 'महान प्रस्थान' के दृश्य हिमालय की प्रेरणा पर आधारित हैं। समकालीन कलाकारों जैसे एस. एच. रज़ा और अर्पणा कौर ने भी हिमालय से प्रेरणा ली है। यह पर्वत श्रृंखला भारत और पड़ोसी देशों के बीच संस्कृति, दर्शन और जीवनशैली का पुल भी रही है। आज भी भूटिया, लेपचा, गद्दी जैसी जनजातियाँ अपनी पारंपरिक भाषाएँ, वस्त्र, रीति-रिवाज और मान्यताएँ जीवित रखे हुए हैं — जो हिमालय को विविधता का प्रतीक बनाती हैं।

 

हिमालय का पारिस्थितिक महत्व: नदियों, वन और जलवायु पर प्रभाव

हिमालय भारत की पारिस्थितिक संरचना का आधार है। यह केवल एक पर्वत श्रृंखला नहीं, बल्कि जल, वायु और जीवन का नियामक है। गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियाँ हिमालय से निकलती हैं और करोड़ों लोगों के जीवन और कृषि का आधार बनती हैं। इन नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी उत्तर भारत के मैदानों को विश्व की सबसे उपजाऊ भूमि में बदलती है। हिमालय की ऊँचाई मानसूनी हवाओं को भारत में रोकती है जिससे भरपूर वर्षा या बर्फबारी होती है। यह भारत को मध्य एशिया की ठंडी हवाओं से भी बचाता है, जिससे उपमहाद्वीप की जलवायु नियंत्रित होती है। पारिस्थितिक रूप से, यह क्षेत्र अद्वितीय जैव विविधता से भरा है — यहाँ उष्णकटिबंधीय जंगलों से लेकर अल्पाइन तुंद्रा तक सभी प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। हिमालय में पाए जाने वाले औषधीय पौधे, जैसे अर्शगंधा, ब्रह्मी, यारसागुंबा, औषधीय और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह क्षेत्र विभिन्न पक्षियों, स्तनधारियों और कीटों का घर भी है, जो इसकी जैव विविधता को समृद्ध बनाते हैं। हिमालय की पारिस्थितिक प्रणाली न केवल भारत, बल्कि समूचे दक्षिण एशिया के जलवायु संतुलन को बनाए रखती है। यह एशिया की लगभग 10 प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है, जो भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान को भी जीवन देती हैं।

हिमालय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था: ऊर्जा, पर्यटन और कृषि पर प्रभाव

हिमालय भारतीय अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख स्तंभों — ऊर्जा, कृषि और पर्यटन — में अत्यधिक योगदान देता है। हिमालयी नदियों पर आधारित जलविद्युत परियोजनाएँ भारत की लगभग 52% हाइड्रोपावर क्षमता प्रदान करती हैं, जिससे देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बल मिलता है। इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ उपजाऊ मिट्टी और सिंचाई के प्रमुख स्रोत हैं, जो भारत की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार जैसे राज्यों की समृद्ध कृषि व्यवस्था हिमालय से पोषित होती है। पर्यटन की दृष्टि से, हिमालय देश के प्रमुख पर्यटन केंद्रों जैसे शिमला, मनाली, लेह, नैनिताल, दार्जिलिंग आदि का आधार है। हर साल लाखों लोग इन क्षेत्रों में घूमने और तीर्थयात्रा के लिए आते हैं, जिससे स्थानीय व्यापार, हस्तशिल्प, होटल और ट्रांसपोर्ट सेक्टर को आर्थिक बल मिलता है। अध्यात्मिक पर्यटन भी लगातार बढ़ रहा है — खासकर चारधाम यात्रा, अमरनाथ यात्रा और कैलाश मानसरोवर जैसे मार्गों पर। हिमालयी राज्यों में जड़ी-बूटी आधारित कृषि, फल उत्पादन (जैसे सेब, अखरोट, केसर) और ऊन आधारित उद्योगों की समृद्ध परंपरा है।

शहरीकरण और पर्यटन से उत्पन्न समस्याएँ: अपशिष्ट प्रबंधन से लेकर संवेदनशीलता तक

हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों पर मानवजनित दबाव लगातार बढ़ रहा है। अस्थिर पर्यटन और अनियोजित शहरीकरण इस क्षेत्र को नष्ट कर रहे हैं। खासकर पहाड़ी शहरों में कूड़ा प्रबंधन की व्यवस्था अत्यंत कमजोर है। प्लास्टिक कचरा, घरेलू मलजल और पर्यटन से उत्पन्न कूड़े को या तो खुले में जलाया जाता है या ढलानों पर फेंका जाता है, जिससे मिट्टी और जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। पर्यटन क्षेत्रों में वाहनों की संख्या में वृद्धि, वनों की कटाई और बुनियादी ढांचे के निर्माण से भूस्खलन और पारिस्थितिक असंतुलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों का जीवन भी इस असंतुलन से प्रभावित हो रहा है — जल स्रोत सूख रहे हैं, जैविक विविधता कम हो रही है और स्वास्थ्य संकट बढ़ रहे हैं। यदि हिमालय को बचाना है, तो सतत पर्यटन, विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन और पारिस्थितिक योजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी। अन्यथा, यह अनुपम धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल किताबों तक सीमित रह जाएगी। हिमालयी क्षेत्र में पर्यटन और शहरीकरण की तेज़ गति पारिस्थितिकीय संतुलन को तोड़ रही है। छोटे गाँव अब बेतरतीब कस्बों में बदलते जा रहे हैं, जिनके पास न तो पर्यावरणीय नियमों का पालन है और न ही बुनियादी ढांचा।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/bdhz82h8 

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