लखनऊ से वैश्विक मंच तक: तकनीकी युग में संस्कृत की नई भूमिका और पहचान

ध्वनि 2- भाषायें
08-08-2025 09:44 AM
लखनऊ से वैश्विक मंच तक: तकनीकी युग में संस्कृत की नई भूमिका और पहचान

लखनऊवासियों, जहाँ हमारी नगरी नवाबी ज़ायके और तहज़ीब के लिए प्रसिद्ध है, वहीं यह विद्या, दर्शन और शिक्षा की समृद्ध परंपरा का भी एक गौरवशाली केंद्र रही है। संस्कृत, वह प्राचीन भाषा, जो कभी लखनऊ की पाठशालाओं, मंदिरों और विद्वानों के मुख से वेदों, उपनिषदों और नाट्यशास्त्र जैसे ग्रंथों के रूप में गूंजती थी। आज फिर एक नई चेतना के साथ हमारे बीच उपस्थित है। विश्व संस्कृत दिवस (World Sanskrit Day) के अवसर पर जब हम इस दिव्य भाषा को सम्मान दे रहे हैं, तब यह समझना अत्यंत रोचक है कि संस्कृत अब केवल श्लोकों और मंत्रों की भाषा नहीं रही, बल्कि इसका उपयोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence), मशीन लर्निंग (Machine Learning) और भाषाविज्ञान (linguistics) जैसे आधुनिक क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रहा है। संस्कृत को सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं की जननी के रूप में भी माना जाता है। इसी क्रम में, पिछले वर्ष लखनऊ के नवयुग कन्या महाविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा संस्कृत दिवस पर दो रचनात्मक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। पहली प्रतियोगिता थी संस्कृत श्लोकों पर आधारित चित्र-पोस्टर निर्माण, और दूसरी थी श्लोकों को आधार बनाकर नारा लेखन (स्लोगन) की प्रतियोगिता।

इस लेख में हम सबसे पहले यह समझेंगे कि आधुनिक तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के साथ संस्कृत का क्या संबंध बनता है। इसके बाद हम उन प्राचीन विज्ञानों और ग्रंथों की चर्चा करेंगे, जिनमें संस्कृत ने गणित, ज्योतिष और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में अनमोल योगदान दिया। तीसरा पहलू होगा, आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में संस्कृत के पुनर्जागरण की बढ़ती हुई लहर को पहचानना। इसके साथ ही हम डिजिटल (digital) माध्यमों द्वारा संस्कृत के संरक्षण और डिजिटलीकरण के प्रयासों पर विचार करेंगे। अंत में, हम यह विश्लेषण करेंगे कि विश्व संस्कृति के मंच पर यह भाषा किस प्रकार प्रभावशाली ढंग से पुनः अपनी जगह बना रही है।

संस्कृत और आधुनिक तकनीक
21वीं सदी में जब दुनिया कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और नॉलेज ग्राफ (Knowledge Graph) जैसे जटिल तकनीकी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है, तब संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा का वहां उपयोग होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। संस्कृत की व्याकरणिक संरचना इतनी तार्किक और गणनात्मक है कि इसे प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP) और कंप्यूटेशनल लिंग्विस्टिक्स (Computational Linguistics) में विशेष स्थान मिला है। इसका कारण है इसकी नियमितता, स्पष्ट वाक्य विन्यास और संधि-समास जैसे सूत्रों की वैज्ञानिकता। आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) और संस्कृत भारती जैसे संस्थानों ने इन तकनीकी संदर्भों में शोध को गति दी है। लखनऊ विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग द्वारा चलाए जा रहे डिजिटल पाठ्यक्रम और तकनीकी कार्यशालाएँ इस दिशा में उत्साहवर्धक पहलें हैं। नासा (NASA) और अन्य वैश्विक संस्थान भी संस्कृत को ‘सबसे उपयुक्त वैज्ञानिक भाषा’ के रूप में देखते हैं। यह केवल भाषाई भावना नहीं, बल्कि आधुनिक यथार्थ है कि संस्कृत आज भी तकनीक से संवाद कर रही है, और शैक्षिक केंद्र इसकी प्रयोगशाला बन सकते हैं।

संस्कृत और वैज्ञानिक विरासत
संस्कृत का दायरा केवल धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है। भारत का प्राचीन विज्ञान - गणित, खगोलशास्त्र, रसायन और चिकित्सा - संस्कृत में ही रचा गया था। बौद्धिक योगदान के रूप में सुल्बसूत्र में पाइथागोरस प्रमेय की परिकल्पना हो या चरक और सुश्रुत संहिताओं में चिकित्सा-विज्ञान की विधियाँ, ये सब ज्ञान संस्कृत में ही सुरक्षित हैं। कई संस्थानों में अब आयुर्वेद, योग और दर्शन जैसे पाठ्यक्रमों में संस्कृत को मूल स्रोत भाषा के रूप में अपनाया जा रहा है। आर्यभट्ट की खगोल गणनाएँ, भास्कराचार्य का बीजगणित, और नागार्जुन का रसायन विज्ञान न केवल ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हैं, बल्कि आधुनिक शोध के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। यदि भारत को आत्मनिर्भर वैज्ञानिक राष्ट्र बनाना है, तो संस्कृत ग्रंथों का गहन अध्ययन एक अनिवार्य कदम होगा।

वैश्विक पुनर्जागरण में संस्कृत की भूमिका
संस्कृत आज केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक पटल पर भी पुनः प्रतिष्ठित हो रही है। अमेरिका (America), जर्मनी (Germany), जापान (Japan) और रूस जैसे देशों में संस्कृत अध्ययन केंद्रों की स्थापना इसका प्रमाण है। हार्वर्ड (Harvard), ऑक्सफ़ोर्ड (Oxford), कैम्ब्रिज (Cambridge) और शिकागो विश्वविद्यालयों (Chicago University) में संस्कृत के अलग विभाग हैं, जहाँ धर्म, दर्शन और भाषाविज्ञान पर गहन शोध हो रहा है। सोशल मीडिया (social media) , यूट्यूब चैनल (YouTube channel) और पॉडकास्ट (podcast) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म (digital platform) अब संस्कृत को जनसुलभ बना रहे हैं। लखनऊ के कुछ निजी संस्थान और संस्कृत-प्रचार समितियाँ भी ऑनलाइन (online) संस्कृत कक्षाएँ चला रही हैं। संस्कृत अब केवल शास्त्रों तक सीमित नहीं, बल्कि ग्लोबल (global) नागरिकता की भाषा बन रही है। योग और आयुर्वेद जैसे वैश्विक स्वास्थ्य दृष्टिकोणों के मूल में संस्कृत है, और यही कारण है कि संस्कृत पुनर्जागरण अब केवल भारत की आवश्यकता नहीं, बल्कि विश्व की बौद्धिक पुकार बन चुका है।

डिजिटल संरक्षण और संस्कृत का भविष्य
डिजिटल क्रांति ने संस्कृत के संरक्षण को नई दिशा दी है। अब हजारों ग्रंथ - वेद, उपनिषद, स्मृति ग्रंथ, नाट्यशास्त्र - डिजिटल प्रारूप में उपलब्ध हैं। संस्कृतभारती, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA), भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी (NDLI) जैसी संस्थाओं ने पांडुलिपियों का स्कैनिंग (scanning), ओसीआर (OCR) और ट्रांसलिटरेशन (Transliteration) का कार्य प्रारंभ कर दिया है। लखनऊ विश्वविद्यालय और अन्य स्थानीय संस्थानों ने ताड़पत्र, हस्तलिखित कोश और दुर्लभ ग्रंथों के डिजिटलीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसके अलावा, अब संस्कृत में वॉयस-टू-टेक्स्ट सॉफ़्टवेयर (voice to text software), यूनिकोड फॉण्ट्स (Unicode fonts), मोबाइल ऐप्स (mobile apps) और रोमन ट्रांसलिटरेशन टूल्स (roman translation tools) भी आम हो चुके हैं, जिससे नई पीढ़ी भी इस भाषा से जुड़ रही है। यह डिजिटल पुनर्जन्म केवल संरक्षण नहीं, बल्कि संस्कृत के पुनर्प्रसार की नींव है, जो लखनऊ जैसे तकनीकी-सांस्कृतिक नगरों को इसका केंद्र बना रहा है।

वैश्विक सांस्कृतिक प्रभाव में संस्कृत की गूँज
संस्कृत ने विश्व संस्कृति को केवल शब्द नहीं, बल्कि दर्शन और दृष्टि दी है। मैक्स मूलर (Max Müller) ने इसे “भाषाओं की भाषा” कहा, वहीं गोएथे (Goethe) और सिल्वेन  (Sylvain) लेवी जैसे विद्वानों ने संस्कृत नाट्य, साहित्य और दर्शन को विश्व साहित्य का शिखर माना। अमेरिकी दार्शनिक थोरो (Thoreau) ने उपनिषदों से प्रेरणा लेकर जीवन-दर्शन रचा। योग, ध्यान और आयुर्वेद की वैश्विक लोकप्रियता ने संस्कृत को ‘मौन से संवाद’ की भाषा बना दिया है। लखनऊ जैसे सांस्कृतिक केंद्र, जहाँ कथक, नाटक और संगीत की समृद्ध परंपरा है, वहाँ संस्कृत नाट्यकला, श्लोक-पाठ और वेदपाठी संस्कार भी फिर से मंचों पर लौट रहे हैं। संस्कृत अब केवल धार्मिक अनुष्ठानों की भाषा नहीं, बल्कि विश्व सांस्कृतिक संवाद का माध्यम बन रही है, जो मनुष्य और प्रकृति, विचार और संवेदना के बीच सेतु का कार्य कर रही है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/458kr6hs 

https://tinyurl.com/4bzdsw46 

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