इतिहास की पहली कलम से भारत: हेरोडोटस की दृष्टि में प्राचीन भारत

छोटे राज्य 300 ईस्वी से 1000 ईस्वी तक
18-08-2025 09:32 AM
इतिहास की पहली कलम से भारत: हेरोडोटस की दृष्टि में प्राचीन भारत

मेरठवासियों, क्या आप जानते हैं कि 2,500 साल पहले एक यूनानी इतिहासकार ने भारत का ज़िक्र किया था? प्राचीन यूनान के प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोडोटस (Herodotus) को पश्चिमी दुनिया में “इतिहास का पिता” (Father of History) कहा जाता है। उन्होंने इतिहास को केवल युद्धों और विजयों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि अपनी रचना हिस्ट्रीज़ (Histories) में उन सभ्यताओं के रीति-रिवाज, खानपान, जनजीवन और संस्कृति को भी स्थान दिया, जिनके बारे में वे जानते थे। यह ग्रंथ 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लिखा गया था और इसे पश्चिमी दुनिया की पहली ऐतिहासिक और मानवशास्त्रीय (ethnographic) रचना माना जाता है। हेरोडोटस ने भारत के बारे में भी कई रोचक, रहस्यमयी और कभी-कभी कल्पनात्मक विवरण दर्ज किए हैं - जो उस समय के यूनानी समाज की सोच और भारत को देखने की दृष्टि को दर्शाते हैं। आज जब मेरठ जैसे शहर शिक्षा, इतिहास और संस्कृति के केंद्र बनते जा रहे हैं, तो यह जानना और भी दिलचस्प है कि प्राचीन विश्व भारत को कैसे देखता था।
इस लेख में हम हेरोडोटस की दृष्टि से भारत के बारे में पाँच पहलुओं पर चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि हेरोडोटस कौन थे, और उन्हें इतिहास का पिता क्यों कहा जाता है। इसके बाद, हम देखेंगे कि भारत के बारे में उनकी जानकारी के स्रोत क्या थे और उनकी सीमाएँ क्या थीं। तीसरे भाग में, हम पढ़ेंगे कि हेरोडोटस ने भारत के लोगों की संस्कृति, खानपान और जीवनशैली के बारे में क्या-क्या लिखा। फिर हम चर्चा करेंगे उन विभिन्न जनजातियों की जिनका उन्होंने उल्लेख किया, जिनकी जीवनशैली और प्रथाएँ आज भी हमें हैरान करती हैं। अंत में, हम जानेंगे उस रहस्यमयी और रोमांचक कथा के बारे में जिसमें हेरोडोटस ने रेगिस्तान में “सोना इकट्ठा करने वाली विशाल चींटियों” का जिक्र किया है।

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हेरोडोटस कौन थे और क्यों माने जाते हैं 'इतिहास का पिता'?
हेरोडोटस का जन्म लगभग 484 ईसा पूर्व में कारिया नामक क्षेत्र (जो आज आधुनिक तुर्की में स्थित है) के हेलिकार्नासस नगर में हुआ था। वे ऐसे पहले लेखक माने जाते हैं जिन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं को केवल क्रमवार वर्णन करने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें तुलनात्मक, विवेचनात्मक और विश्लेषणात्मक रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने युद्धों की घटनाओं के साथ-साथ विभिन्न सभ्यताओं की मान्यताओं, सामाजिक आचार, धार्मिक विश्वासों और भौगोलिक स्थितियों को भी अपने लेखन में स्थान दिया। उनकी सबसे महत्वपूर्ण रचना हिस्ट्रीज़ (Histories) मानी जाती है, जिसकी रचना उन्होंने लगभग 430 ईसा पूर्व के आसपास की। इस ग्रंथ में यूनान और फारस के युद्धों के अलावा मिस्र, मेसोपोटामिया (Mesopotamia), भारत और अन्य सभ्यताओं की झलक भी मिलती है। रोमन (Roman) विचारक सिसरो ने उन्हें "इतिहास का पिता" (Father of History) की उपाधि दी, क्योंकि हेरोडोटस इतिहास को केवल विजयों और नायकों की गाथा नहीं, बल्कि मानवता के अनुभवों, विविधताओं और सांस्कृतिक अंत:प्रवाह का दस्तावेज़ मानते थे।

हेरोडोटस के भारत संबंधी स्रोत और उनकी सीमाएँ
हेरोडोटस ने स्वयं भारत की यात्रा नहीं की थी, और उनकी जानकारी मुख्यतः द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त हुई थी। उन्होंने यूनानी खोजकर्ताओं जैसे स्काईलैक्स (Scylax) और हिकेटियस (Hecataeus) के यात्रा-वृतांतों पर भरोसा किया। ये यात्री ईरानी सम्राटों द्वारा भेजे गए थे, जिनके माध्यम से उन्हें भारत के पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों की जानकारी मिली। साथ ही, हेरोडोटस ने फारसी साम्राज्य से प्राप्त प्रशासनिक और भूगोलिक सूचनाओं का भी सहारा लिया, क्योंकि उस समय भारत का एक बड़ा हिस्सा - विशेषकर पंजाब और सिंध क्षेत्र - फारसी नियंत्रण में था। हालांकि, उनका भौगोलिक ज्ञान केवल सिंधु नदी और उसके आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित था। उन्हें गंगा घाटी या दक्षिण भारत के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं थी। इस कारणवश उनके भारत संबंधी विवरण कई बार आंशिक, अति-सामान्यीकृत और कल्पनाशील प्रतीत होते हैं, जो उस समय की सीमित दृष्टि को दर्शाते हैं।

भारत के बारे में हेरोडोटस के उल्लेख: संस्कृति, खानपान और जीवनशैली
हेरोडोटस के अनुसार, भारतवासी गहरे रंग की त्वचा वाले होते थे, जिनका रंग इथियोपियाई (Ethiopian) लोगों जैसा था। उन्होंने भारत के लोगों की जीवनशैली को यूनानियों की तुलना में अत्यंत भिन्न और विशिष्ट बताया। विशेष रूप से शाकाहारी जीवनशैली पर उन्होंने आश्चर्य जताया - उनके अनुसार, भारत में ऐसे समुदाय थे जो पूरी तरह मांसाहार त्याग चुके थे और केवल वनस्पति पर आधारित आहार लेते थे। यूनानी समाज में यह विचार अत्यंत दुर्लभ था, इसलिए उन्होंने इसे भारत की विशेषता के रूप में प्रस्तुत किया। इसके अलावा, हेरोडोटस ने भारत के पशु-पक्षियों को भी असामान्य रूप से विशाल आकार का बताया, जिससे उनकी कल्पना में भारत विचित्र और रहस्यमयी बनकर उभरता है। वस्त्रों के संदर्भ में उन्होंने उल्लेख किया कि कुछ लोग सूती कपड़े पहनते हैं, यह सूती वस्त्रों का दुनिया में सबसे पुराना दस्तावेज़ी उल्लेख माना जाता है। उन्होंने यह भी लिखा कि कुछ लोग एक ऐसे पेड़ से प्राप्त ऊन जैसे पदार्थ से वस्त्र बनाते थे, जो आज के दृष्टिकोण से कपास के पौधे की ओर संकेत करता है। भारतीय सैनिकों के हथियारों में उन्होंने बेंत के धनुष और लोहे के तीरों का उल्लेख किया और लिखा कि उनके रथ घोड़ों या जंगली गधों द्वारा खींचे जाते थे।

भारतीय जनजातियों के रीति-रिवाज: विविधता और रहस्य
हेरोडोटस ने भारतीय उपमहाद्वीप की जनजातियों को विविध, अनोखा और कई बार चौंकाने वाला बताया। उन्होंने लिखा कि कुछ जनजातियाँ दलदली क्षेत्रों में रहती थीं और उनकी मुख्य आहार वस्तु मछली थी, जिसे वे कच्चा ही खाते थे। वहीं दूसरी ओर, कुछ खानाबदोश जनजातियाँ मांसाहारी थीं और जंगलों में रहकर कच्चा मांस खाती थीं। उन्होंने एक अत्यंत विचित्र और भयावह प्रथा का उल्लेख किया जिसमें एक जनजाति अपने बुजुर्गों को मारकर खा जाती थी, यह प्रथा नृशंसता के साथ-साथ अन्य सभ्यताओं की कल्पनाओं में आदिवासी समाज के प्रति भय और रहस्य को दर्शाती है। हेरोडोटस ने यह भी लिखा कि कुछ लोग मृत्यु के निकट आने पर अपने गाँव छोड़कर जंगल में चले जाते थे और वहीं जीवन समाप्त करते थे। उन्होंने बार-बार इन जनजातियों की त्वचा को गहरे रंग का और उनके जीवन को "अप्रचलित" व "रहस्यमयी" बताया, जिससे स्पष्ट होता है कि यूनानी समाज भारत की सांस्कृतिक विविधता को जितना समझता था, उससे कहीं अधिक वह उसे विस्मय और दूरी की दृष्टि से देखता था।

सोने की चींटियाँ और ऊँटों की सहायता से खनन की काल्पनिक कथा
हेरोडोटस की सबसे चर्चित और रहस्यमयी कथाओं में से एक है "सोने की चींटियों" की गाथा। उन्होंने भारत के उत्तर में स्थित कैस्पेटायरस (Caspetyrus) और पैक्टीका (Pactylic) नामक स्थानों का उल्लेख किया, जहाँ युद्धप्रिय जनजातियाँ रेगिस्तान में रेत के नीचे दबे सोने को निकालती थीं। इस कार्य के लिए वे ऊँटों की सहायता लेते थे, तीन ऊँटों को इस तरह बाँधा जाता था कि मादा ऊँट बीच में रहे और दोनों ओर नर ऊँट हों, जिससे अधिक भार वहन किया जा सके। इस कथा में सबसे चौंकाने वाला हिस्सा विशालकाय "चींटियों" का था जो जमीन में सुरंगें बनाते हुए रेत बाहर निकालती थीं, और उस रेत में सोने के कण मौजूद रहते थे। भारतीय लोग उन चींटियों से बचने के लिए दिन की सबसे गर्म बेला में, जब चींटियाँ बिलों में होती थीं, जाकर रेत से सोना इकट्ठा करते थे। लेकिन यदि चींटियाँ उन्हें सूँघ लेतीं, तो वे पीछा करती थीं और कई बार उन्हें मार भी डालती थीं। चाहे यह कथा आज किंवदंती प्रतीत होती हो, लेकिन यह इस बात का प्रमाण है कि उस समय यूनानी दृष्टि में भारत केवल एक दूरस्थ भूमि ही नहीं, बल्कि एक रहस्य और रोमांच की भूमि भी था, जहाँ प्राकृतिक संसाधन और प्राणियों की दुनिया अद्भुत और भयानक दोनों थी।

संदर्भ-

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