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पृथ्वी पर जीवों के संतुलन को बनाने के लिए प्रत्येक जीव की उपस्थिति अनिवार्य है। सभी जीव एक श्रृंखला के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए एक की भी कमी जीवों की पूरी श्रृंखला को प्रभावित करती है। किंतु ऐसे कई कारक हैं जिनकी वजह से पृथ्वी पर विभिन्न जीवों की प्रजातियां खतरे में हैं जिस कारण इन्हें संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में रखा गया है। भारतीय गिद्ध भी इन्हीं जीवों में से एक है। जिसे वैज्ञानिक रूप से जिप्स इंडिकस (Gyps indicus) कहा जाता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से मध्य और प्रायद्वीपीय भारत में पहाड़ी इलाकों में प्रजनन करती है। भारतीय गिद्ध का आकार बड़ा और भारी होता है तथा शरीर पंखों से ढका होता है। सिर और गर्दन पर बाल या पंख नहीं पाये जाते हैं। इसकी लंबाई आमतौर पर 80-103 से.मी. तथा वज़न 5.5-6.3 किलोग्राम होता है।
ऐसे कई कारण हैं जो गिद्धों की प्रजातियों और इसकी संख्या को प्रभावित कर रहे हैं। 2002 से इस जीव को आईयूसीएन (IUCN) द्वारा संकटग्रस्त की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। इस जीव के संकटग्रस्त होने का मुख्य कारण डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) विषाक्तता को माना जाता है। गिद्ध की विभिन्न प्रजातियां ऐसे जीवों का भक्षण करती हैं जिन्हें अंत समय में दवा के रूप में डाइक्लोफेनाक दिया जाता है। इससे गिद्ध डाइक्लोफेनाक की विषाक्तता से प्रभावित हो जाते हैं तथा अंततः मर जाते हैं। भारतीय गिद्धों को संरक्षण प्रदान करने के लिए मार्च 2006 में भारत सरकार ने डाइक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध के लिए अपने समर्थन की घोषणा की थी। भारतीय गिद्धों की गिरावट ने पर्यावरण के संरक्षण को काफी प्रभावित किया है। ये जीव सभी मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं किंतु दिन-प्रतिदिन घट रही गिद्धों की संख्या पर्यावरण प्रदूषण को जहां बढ़ा रही है वहीं मृत जीवों से होने वाली बीमारियों को भी पैदा कर रही है।
पृथ्वी पर गिद्धों की अनेक प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से कुछ संकटग्रस्त प्रजातियां निम्नलिखित हैं:
लाल सिर वाला गिद्ध (Red-headed Vulture): इसे भारतीय काला गिद्ध या पोंडीचेरी गिद्ध भी कहा जाता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप तथा दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में पायी जाती है।
सफेद पूंछ वाला गिद्ध (White-rumped Vulture): यह एक पुराना गिद्ध है, जो यूरोपीय ग्रिफ़ॉन वल्चर (European Griffon Vulture) से संबंधित है। 1990 के दशक तक दक्षिणी और दक्षिणपूर्वी एशिया में यह प्रजाति बड़ी संख्या में मौजूद थी किंतु 1992 से 2007 के बीच इसकी संख्या में 99.9% की गिरावट आयी है। 1985 में इसे दुनिया का सबसे बड़ा शिकारी पक्षी माना जाता था किंतु अब यह बहुत ही कम देखने को मिलता है।
स्लेंडर-बिल्ड वल्चर (Slender-billed Vulture): यह भी विश्व में पाये जाने वाले गिद्धों की पुरानी प्रजाति है। पहले इसे भारतीय गिद्ध के साथ वर्गीकृत किया गया था। किंतु कुछ असमानताएं होने के कारण इन्हें दो अलग-अलग प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया। भारतीय गिद्ध गंगा नदी के दक्षिण में पाया जाता है और चट्टानों पर प्रजनन करता है जबकि यह गिद्ध उप-हिमालयी क्षेत्रों के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया में भी पाया जाता है तथा पेड़ों में घोंसला बनाता है।
इन जीवों के संरक्षण के लिए कई दक्षिण एशियाई देशों में पशु चिकित्सा पद्धति में डाइक्लोफेनाक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के अभियान चलाए जा रहे हैं। संरक्षण उपायों में पुनर्स्थापना, बंदी-प्रजनन कार्यक्रम (Captive-breeding programs) और कृत्रिम भोजन को शामिल किया गया है।
संदर्भ:
1.https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=21D7169D28644CD4
2.https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=FC2346E6EF324F85
3.https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=C255F69A6BC7F0DC
4.https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=11324DC80E8BBB9F
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Red-headed_vulture
6.https://en.wikipedia.org/wiki/White-rumped_vulture
7.https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_vulture
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