भरूच बंदरगाह बयां करता है, भारत के समुद्री व्यापार की गौरवगाथा

समुद्र
31-05-2025 09:22 AM
भरूच बंदरगाह बयां करता है, भारत के समुद्री व्यापार की गौरवगाथा

रामपुर का इतिहास इसे ज्ञान और संस्कृति के एक महत्वपूर्ण गढ़ के रूप में याद करता है। 1774 में नवाब फैज़ुल्लाह खान ने रामपुर रियासत की नींव रखी और उसी साल उन्होंने मदरसा आलिया (ओरिएंटल कॉलेज) जैसा उस ज़माने का प्रमुख शिक्षण संस्थान भी शुरू किया! इतना ही नहीं, नवाबों द्वारा स्थापित रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी आज भी दुर्लभ पांडुलिपियों और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का अनमोल खजाना संभाले हुए है। ये सब इस बात का सबूत है कि रामपुर ने ज्ञान और संस्कृति को कितना समृद्ध किया है। जिस तरह रामपुर ज्ञान और संस्कृति की धड़कन था, ठीक वैसे ही पुराने समय में गुजरात का भरूच बंदरगाह (Bharuch Port) रोम, ग्रीस और अरब देशों के साथ होने वाले व्यापार का एक बड़ा केंद्र हुआ करता था।

अगर भरूच ने भारत को दुनिया के व्यापार से जोड़ा, तो रामपुर ने शिक्षा और संस्कृति के ज़रिए समाज को सँवारने का काम किया। दोनों ने ही अपने-अपने अनूठे अंदाज़ में दुनिया में भारत की पहचान को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई। आज के इस लेख में हम भरूच बंदरगाह के दिलचस्प इतिहास, उसके व्यापारिक रिश्तों और उसके उतार-चढ़ाव के कारणों को गहराई से जानेंगे। साथ ही, यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि भारत के अलग-अलग क्षेत्रों ने कैसे अपने खास तरीकों से देश की तरक्की में अपना योगदान दिया है।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

लगभग 2000 साल पहले, भरूच भारतीय उपमहाद्वीप का एक अत्यंत महत्वपूर्ण बंदरगाह हुआ करता था। उस समय इसे दुनिया के प्रमुख महानगरीय शहरों में गिना जाता था। आज के गुजरात में नर्मदा नदी के मुहाने पर स्थित इस शहर को, दुनिया भर के व्यापारी भरूकच्छ (Bharukaccha) और बरीगाज़ा (Barygaza) जैसे नामों से भी जानते थे। भरूच के व्यापारिक संबंध अरब, यूनान, रोम, अफ्रीका, चीन और मिस्र जैसे दूर-दराज़ के क्षेत्रों तक फैले हुए थे। इतिहासकारों का मानना है कि इस बंदरगाह और जहाज़ निर्माण केंद्र का समृद्ध इतिहास प्राचीन मिस्र के फ़ैरो के समय जितना पुराना है। भरूच कई महत्वपूर्ण ज़मीनी और समुद्री व्यापार मार्गों का अंतिम पड़ाव था, जहाँ से माल को मानसूनी हवाओं की सहायता से विदेशों में भेजा जाता था।

भरूच बंदरगाह कितना महत्वपूर्ण था?

भरूच, जिसे प्राचीन काल में बरीगाज़ा भी कहते थे, मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) के दौरान एक प्रमुख बंदरगाह के रूप में विकसित हुआ। यहाँ का गहरा बंदरगाह और प्रमुख व्यापार मार्गों से इसकी निकटता, इसे रोमन साम्राज्य, पूर्वी अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापारियों के लिए एक पसंदीदा और आकर्षक केंद्र बनाती थी।

रणनीतिक स्थिति: ज़मीनी और समुद्री व्यापार मार्गों के संगम पर स्थित होने के कारण, भरूच ने भारतीय उपमहाद्वीप, भूमध्यसागरीय क्षेत्र और अन्य दूर-दराज़ के इलाकों के बीच वस्तुओं के लेन देन को बेहद सुगम बना दिया था।

समृद्ध व्यापार: इस बंदरगाह से कपड़े, मसाले, हाथी दांत और कीमती रत्न जैसी वस्तुओं का बड़े पैमाने पर निर्यात होता था। वहीं दूसरी ओर, शराब, चीनी मिट्टी के बर्तन और कांच का सामान जैसी चीजें आयात की जाती थीं। इस फलते-फूलते व्यापार ने भरूच में एक विविध और संपन्न महानगरीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

सांस्कृतिक मेलजोल: विदेशी व्यापारियों की लगातार आवाजाही ने यहाँ विभिन्न संस्कृतियों के आपसी आदान-प्रदान को बहुत बढ़ावा दिया। इसके स्पष्ट प्रमाण शहर की वास्तुकला, कला और धार्मिक रीति-रिवाज़ो में रोमन, यूनानी और फ़ारसी प्रभावों के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं।

नर्मदा नदी के तट पर एक शांतिपूर्ण शाम | चित्र स्रोत : Wikimedia  

भरूच, सोपारा और लोथल जैसे बंदरगाहों से होने वाले समुद्री व्यापार ने प्राचीन भारत को गहराई से प्रभावित किया। इस व्यापार के परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए:

आर्थिक संपन्नता आई: माल बाहर भेजने से देश में धन आया, जिससे नई सड़कें, इमारतें और अन्य बुनियादी सुविधाएं बनाना संभव हुआ। साथ ही, इस धन ने कला और संस्कृति के विकास को भी खूब बढ़ावा दिया।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ा: जब विदेशी व्यापारी भारत आए, तो उनके साथ नए विचारों, तकनीकों और धार्मिक मान्यताओं का भी आगमन हुआ। इस मेलजोल ने भारत की सांस्कृतिक विविधता को और भी समृद्ध बनाया।

तकनीकी उन्नति हुई: सामान और लोगों को कुशलता से लाने-ले जाने और समुद्र में रास्ता खोजने की ज़रूरत महसूस हुई। इसी ज़रूरत ने जहाज़ बनाने की कला, समुद्री यात्रा की तकनीकों और नक्शानवीसी (मानचित्र बनाने की कला) में तरक्की को प्रेरित किया।

चट्टानी तट पर पुर्तगाली कैरैक | चित्र स्रोत : Wikimedia  

उस समय रोमन जहाज़ बड़ी मात्रा में कपास और मसाले लेकर बैरीगाज़ा (भरूच) बंदरगाह पर आते थे। इन मसालों में उत्तर भारत से आने वाले कॉस्टस, बेडेलियम, लाइसीयम और हिमालयी जटामांसी (नार्ड) जैसे पदार्थ शामिल थे। इनमें से कुछ चीजें ज़मीन के रास्ते ‘सिथिया के करीबी इलाके’ (यानी मध्य एशिया की ओर जाने वाले सिंध क्षेत्र) से होकर भी पहुँचती थीं। स्थानीय उत्पादों में कीमती लंबी मिर्च भी शामिल थी। रोम के लोग इसे खास तौर पर दवा के रूप में इस्तेमाल करने के लिए सहेज कर रखते थे। इसके अलावा, जहाज़ों पर चीन से आया रेशमी धागा और रेशमी कपड़े, हाथीदांत, और गोमेद, गोमेद और क्वार्ट्ज जैसे कीमती पत्थर भी लदे होते थे। कुछ रोमन जहाज़ चावल, घी और दासियाँ भी ले जाते थे। इस सामान को या तो बैरीगाज़ा से या फिर भारत के किसी दूसरे बंदरगाह से ले जाया जाता था। रोमन जो हाथीदांत बैरीगाज़ा से ले जाते थे, उसमें साबुत हाथीदांत के साथ-साथ वहीं बनी हुई कलाकृतियाँ भी शामिल हो सकती थीं।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/2bhex9ko 

https://tinyurl.com/2xv3setm 

https://tinyurl.com/2xv3setm 

https://tinyurl.com/25znwgyx 

मुख्य चित्र में 1690 ई में पीटर्स जैकब द्वारा "भरूच" के चित्रण का स्रोत : Wikimedia 

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