रामपुर में रक्षाबंधन:रिश्तों के धागों में लिपटी संस्कृति और संवेदनाएं

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09-08-2025 09:10 AM
रामपुर में रक्षाबंधन:रिश्तों के धागों में लिपटी संस्कृति और संवेदनाएं

रामपुर एक ऐसा शहर जो अपनी शायरी, तहज़ीब और संगीत की रूहानी परंपराओं के लिए जाना जाता है, वहाँ रक्षाबंधन सिर्फ एक तिथि भर नहीं, बल्कि रिश्तों की गर्माहट को महसूस करने का एक ख़ास मौका होता है। जब श्रावण पूर्णिमा की चाँदनी इन पुरानी हवेलियों की छतों पर उतरती है, तो शहर की गलियों में राखियों की दुकानों, मिठाइयों की खुशबू और बच्चों की खिलखिलाहट से एक जादुई माहौल बन जाता है। लेकिन इन रंगीन धागों में केवल बहन का स्नेह नहीं, बल्कि इतिहास की परतें, पौराणिक कथाएँ, सामाजिक बदलाव और नए दौर की सोच भी गुथी होती है। रक्षाबंधन रामपुर में केवल भाई-बहन के रिश्ते का पर्व नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु का काम करता है।

इस लेख में हम रक्षाबंधन के त्योहार को पाँच प्रमुख दृष्टिकोणों से विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे। सबसे पहले, हम इसके सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को जानेंगे, कैसे यह पर्व रिश्तों की मर्यादा और आपसी दायित्वों को गहराई से रेखांकित करता है। फिर, हम वैश्विक परिदृश्य में इसकी उपस्थिति को देखेंगे, जहाँ भारतीय प्रवासी इसे एक सांस्कृतिक पहचान के रूप में सहेजते हैं। तीसरे भाग में हम भारत के विभिन्न राज्यों में मनाई जाने वाली रक्षाबंधन की अनूठी परंपराओं की झलक देंगे। चौथे पहलु में भाई-बहन के रिश्ते का भावनात्मक विकास - बचपन से वयस्कता तक - कैसे जीवन को आकार देता है, यह समझेंगे। और अंत में, हम यह जानेंगे कि भाई-बहन किस प्रकार एक-दूसरे के समाजीकरण के सहायक बनते हैं, और किस तरह रक्षाबंधन इस भूमिका को सार्वजनिक रूप देता है।

पौराणिक कथाओं में अमर भाई-बहन की जोड़ियाँ
भारत की पौराणिक कथाएँ रक्षाबंधन के त्योहार को केवल धागे का बंधन नहीं, बल्कि विश्वास, प्रेम और सामाजिक मर्यादा की जीवंत गाथा बनाती हैं। रामायण में लक्ष्मण और शूर्पणखा के प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि बहन का सम्मान केवल परिवार की नहीं, पूरे समाज की प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है। महाभारत में जब कृष्ण द्रौपदी की लाज बचाने के लिए खड़े होते हैं, तो वह राखी के रिश्ते को एक भावनात्मक और नैतिक कर्तव्य का रूप देते हैं। यम और यमी की वैदिक कथा, जहाँ बहन अपने भाई से जीवन सुरक्षा का वर मांगती है, राखी को केवल उत्सव नहीं, एक आध्यात्मिक संकल्प बनाती है। कृष्ण और सुभद्रा का प्रसंग तो आज भी इस पर्व में भाई द्वारा बहन को आदर, समर्थन और निर्भयता देने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि आज भी अनेक घरों में इन कहानियों को बच्चों को सुनाया जाता है, ताकि वे समझ सकें कि रक्षाबंधन केवल मिठाई और उपहार का नहीं, मूल्यों, संस्कारों और जिम्मेदारी का पर्व है।

राजनैतिक गठजोड़ और रक्षाबंधन की ऐतिहासिक भूमिका
रक्षाबंधन का इतिहास केवल भावनाओं से नहीं, राजनीति से भी जुड़ा है, और वह भी बेहद मानवीय दृष्टिकोण से। रानी कर्णावती द्वारा मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजना यह दर्शाता है कि यह पर्व जाति, धर्म और सत्ता की सीमाओं को पार कर इंसानियत और भरोसे को सर्वोपरि रखता है। हुमायूं ने उस राखी को केवल एक भावनात्मक आग्रह नहीं, बल्कि राजधर्म और नैतिक कर्तव्य के रूप में अपनाया और रानी की रक्षा का प्रण लिया। यही वह भावना है जिसने राखी को एक राजनीतिक-सामाजिक साधन भी बनाया, जिसमें नारी शक्ति और पुरुष की ज़िम्मेदारी दोनों का संतुलन नज़र आता है। आज भी कई समुदायों में इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सामाजिक सौहार्द्र के लिए राखी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जहाँ यह पर्व एकता, भाईचारे और सामाजिक उत्तरदायित्व का प्रतीक बनकर सामने आता है।

रक्षाबंधन की वैदिक और धार्मिक उत्पत्ति
वेदों और उपनिषदों में रक्षासूत्र का उल्लेख केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं था, बल्कि वह ब्रह्मांडीय ऊर्जा, रक्षा और आस्था का प्रतीक माना गया। यम और यमी की कथा में जब बहन भाई की दीर्घायु की कामना करती है, तो यह केवल एक पारिवारिक भावना नहीं, बल्कि जीवन की सुरक्षा और शुभकामना का आध्यात्मिक संकेत बन जाती है। पुराणों में वर्णित देवी लक्ष्मी द्वारा राजा बलि को राखी बांधना भी इस बात को सिद्ध करता है कि यह पर्व केवल रक्त-संबंधों का नहीं, भावना और विश्वास का बंधन है। रक्षाबंधन की पूजा में प्रयुक्त रक्षा-सूत्र, वैदिक मंत्रों और यज्ञ परंपराओं से जुड़ा होता है, जो आज भी पुरोहितों द्वारा यजमानों को बांधा जाता है। यह त्यौहार इसलिए विशेष है क्योंकि यह पूजा, प्रतीक और परिवार, तीनों को एक साथ समाहित करता है, और समाज को आध्यात्मिक गहराई से जोड़ता है।

रक्षाबंधन और अर्थव्यवस्था: बाज़ार में बदलाव की बयार
रक्षाबंधन के आगमन के साथ ही बाजारों में एक जीवंत उत्सव का माहौल बन जाता है, जहाँ भावनाएँ और व्यापार दोनों साथ चलते हैं। पारंपरिक राखियाँ, डिज़ाइनर (designer) राखियाँ, इको-फ्रेंडली (eco-friendly) राखियाँ, बीज-पत्र राखियाँ, हर कोने से आवाज़ आती है कि यह पर्व न केवल स्नेह का बल्कि कारीगरों के सपनों का भी अवसर है। 'वोकल फॉर लोकल' (Vocal for Local) अभियान ने राखी निर्माताओं को नई ऊर्जा दी है, जिससे चीन जैसे बड़े बाज़ारों की निर्भरता कम हुई है और देशी उत्पादों की मांग बढ़ी है। महिला स्व-सहायता समूह, ग्रामीण हस्तशिल्पी और शहरी डिजाइनर अब मिलकर पारंपरिक और आधुनिकता का सुंदर संगम बना रहे हैं। मिठाइयों की दुकानों से लेकर कोरियर सेवाओं तक, हर सेवा में रक्षाबंधन एक आर्थिक चक्र की तरह काम करता है, जिससे न केवल रिश्ते मजबूत होते हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है।

बच्चों और युवाओं के लिए बदलती राखी संस्कृति
नई पीढ़ी के साथ रक्षाबंधन के स्वरूप में भी बदलाव आया है, जो इस पर्व को और अधिक रंगीन, रोचक और समसामयिक बना रहा है। बच्चे अब कार्टून कैरेक्टर (cartoon character), सुपरहीरो (superhero) और चॉकलेट (chocolate) से बनी राखियों को लेकर उत्साहित होते हैं, जिससे त्योहार उनके लिए कल्पनाशीलता और आनंद का अवसर बन जाता है। वहीं किशोर और युवा वर्ग अपने डिजिटल व्यवहार में भी रक्षाबंधन को शामिल करते हैं, चाहे वह इंस्टाग्राम (Instagram) पर स्टोरी (story) डालना हो, व्हाट्सएप (WhatsApp) पर वीडियो संदेश भेजना हो या ऑनलाइन गिफ्टिंग (online gifting) करना। इस आधुनिकता के बावजूद परिवारों में परंपरागत पूजा, आरती और मिठाई बांटना नहीं छूटा है। वास्तव में, आज के समय में रक्षाबंधन एक ऐसा सेतु बन गया है, जो अतीत की परंपरा और वर्तमान की तकनीक को जोड़ता है, जहां बदलते अंदाज़ के साथ भावनाओं की स्थिरता अब भी बनी हुई है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/ymykk445 

https://tinyurl.com/273n4zp2 

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