जौनपुर के सिक्कों में छुपा है शर्की सल्तनत की ताकत और आर्थिक स्वतंत्रता का इतिहास

सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)
22-05-2025 09:22 AM
जौनपुर के सिक्कों में छुपा है शर्की सल्तनत की ताकत और आर्थिक स्वतंत्रता का इतिहास

जौनपुर का सिक्कों और वित्तीय इतिहास से गहरा रिश्ता है, जो मध्यकालीन भारत में इसकी खास पहचान को दर्शाता है। शर्की सल्तनत के बनने से पहले, यहां तुगलक वंश के सिक्के चलते थे। तुगलक शासकों ने सिक्कों को लेकर कई नए प्रयोग किए, लेकिन ये पूरी तरह सफल नहीं रहे। जब शर्की शासकों का शासन आया, तो जौनपुर ने अपने सोने, चांदी और तांबे के सिक्के जारी किए। इन सिक्कों ने न सिर्फ़ व्यापार को आसान बनाया, बल्कि जौनपुर की स्वतंत्रता और आर्थिक ताकत को भी दर्शाया।

आज भी जौनपुर के पुराने सिक्के हमें इसके समृद्ध आर्थिक इतिहास की झलक दिखाते हैं, जो भारत के व्यापक आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ है।

आइए, आज हम जौनपुर में शर्की सल्तनत के बनने से पहले चलने वाले सिक्कों के बारे में जानें। फिर हम जौनपुर सल्तनत के समय में बनाए गए सिक्कों पर चर्चा करेंगे। इसके बाद, हम जौनपुर के शासक शम्स अल-दीन इब्राहिम शाह द्वारा जारी किए गए सिक्कों के बारे में समझेंगे। इसी संदर्भ में, हम उनके सिक्कों के व्यापार पर पड़े प्रभाव और उनकी खासियत के बारे में भी बात करेंगे। आखिर में, हम जौनपुर के प्रसिद्ध “बिलियन (चांदी और सोने का एक मिश्र धातु) से बने टंकों   के इतिहास और इसकी विशेषताओं को विस्तार से जानेंगे।

जौनपुर के इब्राहिम शाह (1402-1440) द्वारा जारी 32 रत्ती का बिलियन सिक्का। | चित्र स्रोत : Wikimedia 

शर्की सल्तनत के बनने से पहले जौनपुर में चलने वाले सिक्के

शर्की सल्तनत के बनने से पहले, जौनपुर में तुगलक वंश (1320-1412 ई.) के सिक्के प्रचलित थे। इन सिक्कों की बनावट और डिज़ाइन खिलजी वंश के सिक्कों से कहीं बेहतर थी। तुगलक शासक, मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.), अपने सिक्कों को लेकर काफ़ी रुचि रखते थे। हालांकि, उनके किए गए प्रयोग असफल रहे और लोगों को इससे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

उनका पहला प्रयोग यह था कि सिक्कों का मूल्य, बाजार में सोने-चांदी की वास्तविक कीमत के अनुसार तय किया जाए। लेकिन जब यह प्रयोग असफल हो गया, तो पुराने सोने और चांदी के लगभग 11 ग्राम वज़न के सिक्के फिर से चलन में लाए गए।

दूसरा प्रयोग चीन की काग़ज़ी मुद्रा से प्रेरित था, जिससे वहां व्यापार और व्यवसाय में वृद्धि हुई थी। मुहम्मद बिन तुगलक ने 1329 से 1332 ई. के बीच एक नया तरीका अपनाया, जिसमें पीतल और तांबे के टोकन (सिक्के) जारी किए गए। इन टोकनों पर यह लिखा होता था—“पचास गनी का टंका प्रमाणित” और साथ ही एक संदेश दिया  जाता था—“जो सुल्तान की बात मानेगा, वह खुदा की बात मानेगा।”

लेकिन इस प्रयोग में बड़ी मात्रा में नकली टोकन बना दिए गए, जिससे यह योजना पूरी तरह असफल हो गई। मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए असली और नकली, सभी टोकनों को वापस लेकर उनकी कीमत चुकाई। यह ध्यान देने वाली बात है कि तुगलक शासकों के ये प्रयोग सच्चे थे—हालांकि लोगों पर थोपे गए थे, लेकिन ये किसी आर्थिक तंगी की वजह से नहीं किए गए थे।

मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में बड़ी संख्या में सोने के सिक्के जारी किए गए। लेकिन उनके बाद सोने के सिक्के दुर्लभ हो गए। जब लोदी वंश का समय आया, तब ज़्यादातर तांबे और बिलियन (चांदी-तांबे का मिश्रण) के सिक्के ही चलते थे।

इसी दौरान, अलग-अलग प्रांतों में भी अपनी-अपनी सल्तनत के सिक्के बनाए जाते थे।  दक्कन के बहमनी शासकों कि साथ साथ, बंगाल, मालवा और गुजरात के सुल्तानों ने भी अपने सिक्के जारी किए।

महमूद शाह के सिक्के | चित्र स्रोत : Wikimedia 

जौनपुर सल्तनत के सिक्के

जौनपुर सल्तनत के सिक्कों के भंडार मुख्य रूप से भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में पाए गए हैं। इसका मतलब है कि शर्की सल्तनत के सिक्के इन क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित थे।

इस सल्तनत के पहले दो  शासकों , मलिक सरवर और मुबारक शाह, ने दिल्ली सल्तनत से अपनी स्वतंत्रता घोषित नहीं की थी। इसलिए, उन्होंने अपने नाम से कोई सिक्के जारी नहीं किए। लेकिन जब 1402 ई. में  इब्राहिम शाह ने शासन संभाला, तब वे पहले सुल्तान बने जिन्होंने अपने नाम से सिक्के जारी किए। उनके द्वारा सोने, चांदी और तांबे के सिक्के बनाए गए। उनके बाद के शासक, महमूद शाह और हुसैन शाह ने भी अपने नाम से सिक्के जारी किए, जिनमें बिलियन (चांदी-तांबे का मिश्रण) और तांबे के सिक्के शामिल थे।

ऐतिहासिक भारतीय सिक्के | चित्र स्रोत : Wikimedia 

जौनपुर के सुल्तान शम्स अल-दीन इब्राहीम शाह के सिक्के

जौनपुर सल्तनत अपनी सर्वोच्च शक्ति पर, मुबारक शाह के छोटे भाई, शम्स अल-दीन इब्राहीम शाह (1402-1440 ई.) के शासनकाल में पहुँची। उनके राज्य की सीमा पूर्व में बिहार तक और पश्चिम में कन्नौज तक फैली थी। एक समय उन्होंने दिल्ली पर भी चढ़ाई की थी।

शम्स अल-दीन इब्राहीम शाह ने अपने शासनकाल में चारों धातुओं—सोना, चांदी, तांबा और बिलियन में सिक्के जारी किए।

उनके द्वारा जारी किया गया “तुगरा” शैली का सोने का टंका लगभग 11.55 ग्राम का होता था। इस सिक्के के अगले भाग (obverse) पर अरबी भाषा में तुगरा शैली में लिखा होता था—

“अल-वासीक बा-ताईद अल-रहमान अबू अल-मुज़फ्फर इब्राहीम शाह अल-सुल्तान”

जिसका अर्थ है - दयालु ईश्वर की सहायता से विश्वास करने वाला, विजयों का संरक्षक, सुल्तान इब्राहीम शाह

जबकि सिक्के के पिछले भाग (Reverse) पर लिखा था—

“फ़ी ज़मान अल-इमाम नायब अमीर उल मोमिनीन अबू’ल फ़त्ह खुलिदत ख़िलाफतहू”,

जिसका अर्थ है—“ख़लीफ़ा की सत्ता सदा बनी रहे।”

शम्स अल-दीन  इब्राहिम शाह के इन सिक्कों ने न केवल व्यापार को बढ़ावा दिया, बल्कि जौनपुर सल्तनत की शक्ति और स्वतंत्रता का प्रतीक भी बने।

मुहम्मद शाह का बिलियन  टंका | | चित्र स्रोत : Wikimedia 

जौनपुर का बिलियन   टंका

1458 से 1479 ईस्वी के बीच जौनपुर सल्तनत ने बिलियन (चांदी और अन्य धातुओं के मिश्रण) से बने  टंके अर्थात सिक्के जारी किए। ये सिक्के उस समय के स्वतंत्र जौनपुर सल्तनत के लिए बनाए गए थे, जो आज के उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में स्थित था। इन सिक्कों को अंतिम शासक हुसैन शाह के शासनकाल में जारी किया गया था।

हुसैन शाह न केवल एक शक्तिशाली शासक थे, बल्कि उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके पास उस समय भारत की सबसे बड़ी सेना थी। उन्होंने तीन बार दिल्ली को जीतने की कोशिश की, लेकिन हर बार हार का सामना करना पड़ा।

1493 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत ने जौनपुर पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया और हुसैन शाह को बंगाल की ओर भागना पड़ा। ये 500 साल पुराने सिक्के “टंका” के नाम से जाने जाते हैं और इन पर दोनों ओर, अरबी लिपि में शिलालेख (inscriptions) खुदे होते हैं। ये सिक्के न केवल जौनपुर के आर्थिक इतिहास का हिस्सा हैं, बल्कि उस समय की ताकत और स्वतंत्रता का प्रतीक भी माने जाते हैं।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/ymd588vd 

https://tinyurl.com/2jrp4ssd 

https://tinyurl.com/344yr4rf

https://tinyurl.com/5dd6ea5m 

मुख्य चित्र में 1438 में जौनपुर सल्तनत के शम्स अल-दीन इब्राहिम शाह के सिक्के का स्रोत : Wikimedia 

पिछला / Previous


Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.