जौनपुर के खेतों से मिठास की ओर: चीनी के सफर की पूरी कहानी

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जौनपुर के खेतों से मिठास की ओर: चीनी के सफर की पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित जौनपुर ज़िला न केवल ऐतिहासिक धरोहर और शैक्षणिक परंपरा के लिए जाना जाता है, बल्कि यह क्षेत्र कृषि में भी अपनी गहरी पहचान रखता है। यहाँ की उर्वर भूमि और गंगा-गोमती नदियों के जल से पोषित खेतों में गन्ना और कभी-कभी चुकंदर जैसी मिठास देने वाली फसलें उगाई जाती हैं। यही फसलें हमारे दैनिक जीवन की ज़रूरत, चीनी का आधार बनती हैं। लेकिन जो चीनी हम रोज़ चाय, मिठाइयों और पेय में इस्तेमाल करते हैं, वह खेत से सीधे थाली में नहीं आती। उसके पीछे होती है मेहनत, तकनीक और एक लंबी प्रक्रिया। इस लेख में हम जानेंगे कि जौनपुर जैसे ज़िलों से शुरू होकर यह मिठास आपकी थाली तक कैसे पहुँचती है, और इसके हर चरण में क्या तकनीकी और परंपरागत तरीके शामिल होते हैं।

इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि चीनी असल में क्या होती है और यह हमारे भोजन का इतना अहम हिस्सा क्यों बन चुकी है। इसके बाद, हम विस्तार से देखेंगे कि गन्ने से लेकर क्रिस्टल (crystal) बनने तक की उत्पादन प्रक्रिया किन-किन चरणों से होकर गुजरती है। फिर हम बात करेंगे चुकंदर से बनने वाली चीनी की प्रक्रिया की, जो ठंडी जलवायु में अलग तकनीकों से की जाती है। इसके बाद हम चर्चा करेंगे चीनी के विभिन्न प्रकारों की, जैसे सफेद, भूरी या गुड़, और उन उप-उत्पादों के पुनः उपयोग की जो इस निर्माण प्रक्रिया में निकलते हैं। अंत में, हम जानेंगे कि भारत में चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति क्या है, इसमें क्या चुनौतियाँ हैं, और भविष्य में यह उद्योग किस दिशा में बढ़ सकता है।

चीनी क्या है और क्यों है यह हमारे आहार का अभिन्न हिस्सा

चीनी, या सुक्रोज़ (sucrose), एक सरल कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) है जो हमें तेज़ ऊर्जा देने का प्रमुख स्रोत है। यह मुख्यतः गन्ने और चुकंदर से प्राप्त होती है और इसका उपयोग हमारे दैनिक जीवन के हर हिस्से में देखा जा सकता है - चाय, कॉफी (coffee), मिठाइयाँ, बेकरी (bakery) उत्पाद, शरबत, डिब्बाबंद खाद्य, पेय और यहां तक कि दवाओं में भी। चीनी न केवल स्वाद को बढ़ाती है, बल्कि शरीर में ग्लूकोज़ (glucose) की उपलब्धता को भी नियंत्रित करती है। आज के आधुनिक युग में जहां लोग व्यस्त जीवनशैली जीते हैं, चीनी जैसी ऊर्जा देने वाली सामग्री का महत्व और भी अधिक हो गया है। यही कारण है कि यह न केवल भोजन में स्वाद जोड़ती है, बल्कि हमारे आहार का एक अपरिहार्य हिस्सा बन चुकी है।
गन्ने से चीनी बनने की प्रक्रिया: खेत से क्रिस्टल तक का सफ़र

जौनपुर जैसे जिलों में गन्ना उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है और यह स्थानीय किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। गन्ने से चीनी बनने की प्रक्रिया में कई चरण शामिल होते हैं:

  • सफ़ाई: खेत से लाए गए गन्ने को सबसे पहले साफ़ किया जाता है ताकि मिट्टी, पत्तियाँ और अन्य अशुद्धियाँ हटा दी जाएं। इसके लिए कन्वेयर बेल्ट (conveyor belt) और पानी का इस्तेमाल किया जाता है।
  • पीसना: गन्ने को श्रेडर मशीनों में काटा जाता है और तीन-रोलर मिलों (Three-roller mills) की मदद से रस निकाला जाता है। पीसने के बाद जो ठोस बचता है, उसे खोई कहा जाता है और उसका उपयोग ईंधन या पशु चारे के रूप में किया जाता है।
  • विशुद्धीकरण: गन्ने के रस को शुद्ध करने के लिए उसमें चूना मिलाया जाता है और फिर उसे 95℃ तक गर्म किया जाता है ताकि सारी अशुद्धियाँ अलग हो जाएं।
  • वाष्पीकरण: शुद्ध रस को बाष्पीकरण टैंक (tank) में भेजा जाता है जहाँ से लगभग 70% पानी भाप बनकर उड़ जाता है और एक गाढ़ा सिरप (syrup) बन जाता है।
  • क्रिस्टलीकरण: वैक्यूम पैन (Vacuum Pan) में इस सिरप को गर्म किया जाता है ताकि चीनी के क्रिस्टल बनने लगे। इसमें बीज क्रिस्टल मिलाए जाते हैं जो क्रिस्टल निर्माण की शुरुआत करते हैं।
  • पृथक्करण: अपकेंद्रित्र मशीनों में क्रिस्टल और सिरप को अलग किया जाता है। सिरप को गुड़ में बदला जाता है और क्रिस्टल सुखाकर चीनी के रूप में पैक की जाती है।

यह पूरी प्रक्रिया आधुनिक मशीनों और स्थानीय श्रमिकों की मेहनत का अद्भुत उदाहरण है।

चुकंदर से चीनी निर्माण: ठंडी जलवायु की मीठी देन

हालाँकि जौनपुर का मुख्य केंद्र गन्ना उत्पादन है, लेकिन भारत के कुछ उत्तरी और पहाड़ी इलाकों में चुकंदर से भी चीनी बनाई जाती है। चुकंदर से चीनी बनाने की प्रक्रिया थोड़ी अलग और तकनीकी होती है:

  • कृषि और कटाई: चुकंदर को ठंडी जलवायु में उगाया जाता है और इसकी कटाई मशीनों द्वारा की जाती है।
  • कॉसेट निर्माण: कटे हुए चुकंदर को पतली-पतली स्लाइस में काटा जाता है जिन्हें कॉसेट्स (Cossets) कहा जाता है।
  • डिफ्यूज़र प्रक्रिया: इन स्लाइसों को डिफ्यूज़र टैंक (Diffuser Tank) में डाला जाता है जहाँ से गर्म पानी की मदद से उनका रस निकाला जाता है।
  • छानना और सिरप बनाना: निकाले गए रस को छाना जाता है और उसमें से अशुद्धियाँ निकालकर एक सिरप तैयार किया जाता है।
  • क्रिस्टलीकरण और सुखाना: इस सिरप को गर्म करके क्रिस्टल में बदला जाता है और फिर उन क्रिस्टलों को सुखाकर चीनी तैयार की जाती है।

चुकंदर से बनने वाली चीनी आमतौर पर रंग में हल्की और स्वाद में थोड़ी अलग होती है, लेकिन पोषण और उपयोगिता के लिहाज़ से यह गन्ने की चीनी जैसी ही होती है।

चीनी के विभिन्न प्रकार और उप-उत्पादों का पुनः उपयोग

चीनी के उत्पादन के दौरान कई तरह की चीनी और उप-उत्पाद बनते हैं:

  • सफेद दानेदार चीनी: यह सबसे सामान्य रूप है, जो रसोई और उद्योगों में व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है।
  • भूरी चीनी: इसमें गुड़ की थोड़ी मात्रा होती है, जिससे इसका रंग और स्वाद थोड़ा अलग होता है। इसे बेकिंग और कुछ खास व्यंजनों में उपयोग किया जाता है।
  • गुड़ (Jaggery): यह पूरी तरह प्राकृतिक होता है और बिना रिफाइन (refine) किए बनता है। यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।
  • उप-उत्पादों का उपयोग: गन्ने की खोई को ईंधन या बायोगैस (biogas) में बदला जाता है। चुकंदर का गूदा पशुओं के चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। कई बार इन अवशेषों का इस्तेमाल खाद बनाने में भी होता है।

इस प्रकार, चीनी उद्योग न केवल चीनी पैदा करता है, बल्कि ज़ीरो-वेस्ट मॉडल (Zero-Waste Model) की ओर भी बढ़ता जा रहा है।

भारत में चीनी उद्योग की स्थिति और भविष्य की संभावनाएं

भारत आज दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादकों में से एक है और उत्तर प्रदेश इसका सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। जौनपुर जैसे जिले इस योगदान का हिस्सा हैं। इस उद्योग की वर्तमान स्थिति कुछ प्रमुख विशेषताओं के आधार पर समझी जा सकती है:

  • उत्पादन और खपत: भारत न केवल चीनी का उत्पादन करता है, बल्कि यह एक बड़ा उपभोक्ता भी है। घरेलू मांग बहुत अधिक है।
  • श्रम-केंद्रित प्रणाली: आज भी अधिकांश चीनी मिलें श्रमिकों पर निर्भर हैं, जिससे यह क्षेत्र रोज़गार का बड़ा स्रोत है।
  • तकनीकी नवाचार: हाल के वर्षों में स्वचालित गन्ना कटाई, ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation), सेंसर-आधारित मॉनिटरिंग (Sensor-based monitoring) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (A.I.) आधारित गुणवत्ता नियंत्रण जैसी तकनीकों ने इस क्षेत्र में नई जान फूंकी है।
  • भविष्य की संभावनाएं: आने वाले वर्षों में यह उद्योग और अधिक टिकाऊ, स्वचालित और पर्यावरण-संवेदनशील बनने की ओर अग्रसर है। इससे उत्पादन लागत घटेगी और किसान की आमदनी बढ़ेगी।

सरकार की नई नीतियाँ और किसानों की बढ़ती जागरूकता इस क्षेत्र को अगले स्तर तक ले जा सकती हैं।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/5f5vp6ua 

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