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जौनपुर, उत्तर प्रदेश का यह ऐतिहासिक नगर, अपने स्थापत्य वैभव, सांस्कृतिक रंगों और विशिष्ट खान-पान परंपराओं के लिए दूर-दूर तक मशहूर है। 14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ द्वारा बसाया गया यह शहर समय के साथ राजनीतिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध होता गया। लेकिन जौनपुर की पहचान केवल उसकी ऐतिहासिक इमारतों और विद्वता तक सीमित नहीं है, यहाँ की पाक-परंपराएँ भी उतनी ही पुरानी, गहरी और विविध हैं। अवधी की नफ़ासत, मुगलई की शाही शान और बनारसी मिठास का ऐसा बेमिसाल संगम शायद ही कहीं और देखने को मिले। गलावटी कबाब, मुर्ग़ मुस्सलम और नहारी जैसे लज़ीज़ पकवान से लेकर लौंग लता, इमरती और मलाईदार लस्सी जैसी मिठाइयाँ, हर व्यंजन में सदियों का स्वाद और किस्से छिपे हैं। जौनपुर की गलियों में टहलते हुए आपको ताज़ा पकते कबाबों की महक, इमरती के मीठे घोल की खुशबू और पान की सुगंध, सब एक साथ महसूस होगी, मानो यह शहर अपने स्वाद से हर आगंतुक का स्वागत करता हो और उन्हें अपनी कहानियों का हिस्सा बना लेता हो।
आज हम जानेंगे कि जौनपुर की पाक पहचान कैसे अवधी, मुगलई और बनारसी स्वाद का संगम बनाती है। इसके बाद, हम देखेंगे कि यहां के व्यंजनों में तीखे और सुगंधित मसालों का खास संतुलन किस तरह उन्हें अलग पहचान देता है। फिर, हम जौनपुरी समोसे की लोकप्रियता और इसकी खासियत के बारे में बात करेंगे। इसके साथ ही, हम 200 साल पुरानी बेनीराम की इमरती की मिठास और इतिहास को समझेंगे। अंत में, हम नेवार मूली की अनोखी प्रजाति और इसके स्थानीय खानपान में महत्व के बारे में जानेंगे।
जौनपुर की पाक पहचान - अवधी नफ़ासत, मुगलई शान और बनारसी मिठास का अद्भुत संगम
जौनपुर का खानपान किसी भी यात्री के लिए एक ऐसा स्वाद-यात्रा है, जो इतिहास, संस्कृति और भावनाओं के गलियारों से होकर गुजरती है। गोमती नदी के किनारे बसा यह शहर, अपने स्थापत्य और संगीत की तरह ही अपने भोजन के लिए भी विख्यात है। यहाँ लखनऊ की शाही रसोई की महीनता, मुगलई व्यंजनों की गहराई और बनारसी मिठाइयों की आत्मीयता एक ही थाली में मिल जाती है। यह पाक-परंपरा सदियों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान का नतीजा है, जिसमें सूफी दरगाहों की मेहमाननवाज़ी, मुगल दरबारों का रईसी स्वाद, और बनारस के घाटों की मिठास घुली हुई है। कबाब, नहारी, शाही कोरमा, पान, चाट - ये सब सिर्फ व्यंजन नहीं, बल्कि कहानियों में लिपटे हुए अनुभव हैं, जो जौनपुर को भारत के पाक नक्शे पर एक चमकदार सितारे की तरह अलग पहचान दिलाते हैं।
जौनपुरी स्वाद - तीखेपन और सुगंध का अनूठा मेल
जौनपुर का असली स्वाद सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि जीभ, नाक और दिल-तीनों को तृप्त करने वाला अनुभव है। यहाँ के मसाले तेज़ होने के बावजूद स्वाद में नफ़ासत रखते हैं। दही, देसी मसालों और धीमी आँच पर पकाने की कला यहाँ की सबसे बड़ी ताकत है, जो हर पकवान को गहराई और संतुलन देती है। खास बात यह है कि यहाँ के कई पारंपरिक पकवानों में प्याज़ का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे स्वाद में एक मख़मलीपन और अलग तरह की मिठास आती है। यह शैली न तो लखनऊ की नफ़ासत में घुली है, न ही रामपुर की शाही रेसिपीज़ की नकल, यह अपनी अलग दुनिया है। इसीलिए जौनपुर का स्वाद एक बार महसूस करने के बाद, आपके ज़ायके की यादों में हमेशा के लिए बस जाता है।
जौनपुरी समोसा - हर गली का नाश्ते का बादशाह
अगर जौनपुर की गलियों में कोई एक स्नैक (snack) लोगों के दिल पर राज करता है, तो वह है इसका मशहूर समोसा। सुबह-सुबह ताज़े तले गए सुनहरे समोसे की खुशबू जैसे ही हवा में फैलती है, आसपास के लोग खिंचे चले आते हैं। इसकी पतली और कुरकुरी परत के अंदर छुपी मसालेदार भरावन हर निवाले में एक अलग कहानी सुनाती है, कभी हल्की मिर्च का झटका, तो कभी गरम मसालों की मीठी सुगंध। यहाँ समोसा सिर्फ एक स्नैक नहीं, बल्कि दोस्तों की गपशप, सर्दियों की सुबहें, और त्योहारों की शामों का अभिन्न हिस्सा है। चाहे चाय के साथ हो या पाव-बन के साथ, यह हर बार स्वाद का उत्सव मनाता है और जौनपुर की रोज़मर्रा की ज़िंदगी का मीठा-तीखा प्रतीक बन चुका है।
बेनीराम की इमरती - 200 साल पुरानी मिठास की विरासत
जौनपुर की मिठाई की दुनिया में बेनीराम-देवीप्रसाद की इमरती का नाम लेना, जैसे मिठास और इतिहास दोनों को एक साथ पुकारना है। इसकी कहानी लगभग 200 साल पुरानी है, जब अकबर के शासनकाल में यह अनोखी रेसिपी आकार में आई। उड़द की दाल को घंटों पीसकर, देसी घी में लकड़ी की धीमी आँच पर तली गई यह इमरती, खांडसारी चीनी की चाशनी में डुबोकर तैयार होती है। हर परत में वह पुरानी रसोई की महक और स्वाद है, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बड़ी सावधानी से सँभाला गया है। आज भी लोग इस इमरती को सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि अपने बचपन की यादों, शादी-ब्याह की खुशियों और त्योहारों की रौनक का हिस्सा मानते हैं। यह जौनपुर का एक ऐसा मीठा ख़ज़ाना है, जो शहर की सीमाओं से निकलकर दुनिया भर में बसे लोगों के दिलों तक पहुँच चुका है।
नेवार मूली - गोमती किनारे की अनोखी खेती का स्वाद
नेवार मूली, जौनपुर की धरती का वह अनमोल तोहफ़ा है, जो स्वाद, आकार और सुगंध, तीनों में अद्वितीय है। चार से छह फुट लंबी यह मूली, गोमती नदी के किनारे की उपजाऊ मिट्टी और वहाँ के ठंडे, नमी भरे मौसम में पनपती है। इसकी मिठास और कुरकुरापन किसी भी सामान्य मूली से कहीं अधिक है, और यही इसे खास बनाता है। सर्दियों के मौसम में नेवार मूली लगभग हर घर में मिलती है, कभी सलाद में, कभी अचार में, तो कभी भरवां परांठों के रूप में। इसकी मांग सिर्फ जौनपुर में ही नहीं, बल्कि आस-पास के जिलों और राज्यों तक फैली हुई है। किसानों के लिए यह मूली गर्व का विषय है, क्योंकि यह न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति को मज़बूत करती है, बल्कि जौनपुर की कृषि पहचान को भी नई ऊँचाई देती है।
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