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पिछले कुछ दशकों से भारत के प्राचीन मंदिरों, चर्चों और अन्य स्मारकों से कई कीमती कलाकृतियाँ
जैसे मूर्ति और शिल्प की तस्करी के मामले कई बार सुनने में आयें हैं। इन गतिविधियों ने हमारी
मूर्त विरासत को लगभग मिटा के रख सा दिया है। लेकिन कला के प्रति उत्साही एक गैर-लाभकारी
समूह इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट (India Pride Project) के लोगों ने अभिलेखीय सामग्री, सोशल मीडिया
(Social Media) और वकालत का उपयोग करके भारत के खोए हुए खजाने को पुनः प्राप्त करने का
बीड़ा उठाया है।
उन्होंने हाल ही में आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंडा में विध्वस्त हुए स्तूपों से तीसरी
शताब्दी के चूना पत्थर की शिल्पकृति को वापस लाने में मदद की और वह बेल्जियम (Belgium) से
भारत लौटने की प्रक्रिया में है। चूने पत्थर की यह शिल्पकृति को, चोरी होने से पूर्व 1995 तक एक
भारतीय संग्रहालय में रखा गया था। आखिरी बार 90 के दशक में एक कला इतिहासकार द्वारा
इसकी तस्वीर खींची गई थी, जिसे पिछले वर्ष इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट तक पहुंचाया गया था, यह पता
लगाने के बाद कि बेल्जियम (Belgian) कला मेले में शिल्पकृति को बिक्री के लिए रखा गया था।इस
वर्ष जनवरी में इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के सह संस्थापक द्वारा आर्ट रिकवरी इंटरनेशनल के संस्थापक
और उनकी टीम को बिक्री के बारे में सूचित किया गया, और खरीदार का पता लगाने के लिए प्रेरित
किया तथा भारत सरकार को शिल्पकृति बिना किसी शर्त के वापस लौटाने के लिए बातचीत करें। 11
मार्च को, शिल्पकृति को औपचारिक रूप से बेल्जियम में भारतीय राजदूत को सौंप दिया गया था।
बीमा और निर्यात परमिट को मंजूरी मिलने के बाद इसके जल्द ही भारत पहुंचने की उम्मीद है। यह
शिल्पकृति एक स्तूप की भित्ति स्तम्भ है, जो बुद्ध के जीवन की घटनाओं को दर्शाते हैं। शिल्पकृति
नागार्जुनकोंडा के तीसरी शताब्दी ईस्वी के एक दरबारी दृश्य को दिखाती है। इसमें एक शाही जोड़ा
एक सिंहासन पर विराजमान हैं, उनकी सेवा में सेवक मौजूद हैं और एक बच्चा अग्रभूमि में एक भेड़
के साथ खेलते हुए दर्शाया गया है।
इससे पहले, उन्होंने 2013 में तमिलनाडु से चुराई गई 500 वर्ष पुराने कांस्य हनुमान की मूर्ति को
घर लाने में मदद की थी।ऐसा बताया गया है कि 2013 में तमिलनाडु के अरियालुर जिले के एक
मंदिर से मूर्ति को तस्करी कर बाहर बेच दिया गया था। और 2014 में तमिलनाडु की स्थानीय
पुलिस ने इस मामले को न पता लगाए जाने योग्य बताकर बंद कर दिया गया, जिस वजह से 2015
में हुई मूर्ति की नीलामी को रोका नहीं जा सका। और इसे भारत वापस लाने में लगभग एक दशक
का समय लग गया। इंडिया प्राइड प्रोजेक्टको इस मूर्ति का पता लगाना एक लंबी प्रक्रिया थी। 2018
में, इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के सह-संस्थापक को फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पांडिचेरी (French Institute of
Pondicherry) के अभिलेखागार के माध्यम से एक परिचित हनुमान की मूर्ति मिली, जिसमें 1956-
1999 तक ली गई तमिलनाडु के मंदिरों में मूर्तियों की तस्वीरों वाला एक विशाल आंकड़ा आधार
मौजूद है।
इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट 2014 से स्वयं ही इन मूर्तियों की खोज कर रहा है और उनकी
नवीनतम परियोजना यूनाइटेड किंगडम स्थित आर्ट रिकवरी इंटरनेशनल (Art Recovery
International) के साथ एक संयुक्त प्रयास था।2018 में एक सरकारी ऑडिट (Audit) के अनुसार,
1992 और 2017 के बीच, पूरे भारत में 3,676 संरक्षित स्मारकों से 4,408 कलाकृतियां चोरी हो
गई। वहीं वास्तविक आंकड़ा इस संख्या से तीन गुना अधिक होने का अनुमान है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3DIEVCC
https://bit.ly/3DKz4ge
चित्र संदर्भ
1. 1980 के दशक से लोखरी मंदिर, उत्तर प्रदेश, भारत से गायब हुई 10वीं शताब्दी की वृषण योगिनी को 21 अक्टूबर को लंदन में खोजा गया। जिसको दर्शाता एक चित्रण (Twitter: Vinod Chavda)
2. आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंडा में विध्वस्त हुए स्तूपों से तीसरी शताब्दी के चूना पत्थर की शिल्पकृति को दर्शाता एक चित्रण (Twitter: India in Belgium)
3. तमिलनाडु से चुराई गई 500 वर्ष पुराने कांस्य हनुमान की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (Twitter: raakesh987)
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