पौधों पर आधारित मांस के साथ बदल रहा है लखनऊ का ज़ायका, जानिए इस चलन के पीछे की खास वजहें

स्वाद- खाद्य का इतिहास
03-06-2025 09:25 AM
पौधों पर आधारित मांस के साथ बदल रहा है लखनऊ का ज़ायका, जानिए इस चलन के पीछे की खास वजहें

लखनऊ अपने स्वादिष्ट अवधी खाने के लिए बहुत मशहूर है। यहाँ कबाब, बिरयानी और तरह-तरह की मटन या चिकन की डिशें बहुत पसंद की जाती हैं। ये नॉन-वेज खाना लखनऊ की परंपरा और स्वाद को दिखाते हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता आ रहा है। लेकिन क्या आपने कभी पौधों पर आधारित मांस या “प्लांट-बेस्ड मीट (plant based meat)” के बारे में सुना है? इसे मांस का विकल्प या नकली मांस भी कहा जाता है। यह ऐसा खाना होता है जो दिखने, चखने और खाने में मांस जैसा लगता है, लेकिन इसमें कोई जानवर नहीं होता। इसे सोया, गेहूँ, मसूर या मटर जैसे शाकाहारी चीज़ों से बनाया जाता है।

भारत में यह नया तरह का खाना अब धीरे-धीरे मशहूर हो रहा है। साल 2024 में भारत में इसका बाज़ार 98.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, और 2033 तक यह 737.9 मिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। इसमें हर साल 22.3% की बढ़ोतरी हो रही है। भारत में इसे बनाने वाली कुछ बड़ी कंपनियाँ हैं – गुडडॉट (GoodDot), इमैजिन मीट्स (Imagine Meats) और ब्लू ट्राइब फ़ूड्स (Blue Tribe Foods)। तो चलिए आज हम समझते हैं कि यह प्लांट-बेस्ड मीट क्या होता है, इसमें क्या-क्या चीज़ें डाली जाती हैं और यह स्वाद में कैसा लगता है। फिर हम जानेंगे कि इसे भारत में कैसे बनाया जाता है। उसके बाद हम यह भी देखेंगे कि आजकल भारत में लोग असली मांस छोड़कर इस तरह के नकली मांस की ओर क्यों जा रहे हैं। आख़िर में, हम जानेंगे कि क्या प्लांट-बेस्ड मीट असली मांस से ज़्यादा हेल्दी होता है? और रिसर्च इस बारे में क्या कहती है।

चित्र स्रोत : flickr 

प्लांट-बेस्ड मीट से जुड़ी कुछ अहम बातें:  

सामग्री: प्लांट-बेस्ड मीट में असली मांस जैसा स्वाद और टेक्सचर लाने के लिए अक्सर सोया प्रोटीन और मटर प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कुछ कंपनियाँ, जैसे ‘इम्पॉसिबल फ़ूड्स (Impossible Foods)’, ऐसे सोया का इस्तेमाल करती हैं जो जीएमओ (GMO) होता है यानी जिसे वैज्ञानिक तरीक़े से बदला गया होता है। इसके अलावा, इस तरह के मांस को बनाने में दालें, टेम्पे (एक तरह का फर्मेंटेड सोया प्रोडक्ट),  टोफ़ू (Tofu), मसूर(lentils), कटहल (jackfruit), चना (chickpeas), क्विनोआ (Quinoa) और कई रंग-बिरंगी सब्जियाँ भी मिलाई जाती हैं।

स्वाद: इस मांस का स्वाद ज़्यादातर उसमें मौजूद तेलों की चिकनाई और मसालों से आता है। इसमें अलग-अलग तरह के मसाले, नेचुरल फ्लेवर (Natural Flavour) और ख़मीर (Yeast Extract) डाले जाते हैं ताकि इसका स्वाद असली मांस जैसा लगे।

बनावट:  मांस का इस विकल्प की सबसे ख़ास बात इसकी बनावट होता है, जो असली मांस की तरह नरम और रेशेदार होता है। यह एक ख़ास तकनीक से तैयार किया जाता है जिसे “एक्सट्रूज़न प्रोसेस (extrusion process)” कहते हैं। कुछ कंपनियाँ इसमें और नमी जोड़ती हैं ताकि मांस और भी असली जैसा लगे।

दिखने में कैसा लगता है: सही सामग्री और बनाने के तरीक़ों की मदद से  ये दिखने में भी असली मांस जैसा लगता है। इसकी शक्ल को बेहतर दिखाने के लिए कई बार नर्म  चर्बी को एक मशीन के ज़रिए अंदर डाला जाता है। कुछ ब्रांड ऐसे जूस या लिक्विड का इस्तेमाल करते हैं जिससे यह लाल और ताज़ा मांस जैसा दिखे।

शाकाहारी नकली मांस | चित्र स्रोत : wikimedia 

भारत में  पौधों पर आधारित मांस कैसे बनाया जाता है ?

भारत में बिना जानवरों के बने मांस जैसे  उत्पाद ( Vegetarian Meat) बनाने के लिए सबसे पहले ऐसे अनाज उगाए जाते हैं जो इसमें काम आते हैं, जैसे सोयाबीन और गेहूं। जब ये फसलें तैयार हो जाती हैं, तब उन्हें मशीनों और रासायनिक तरीक़ों से प्रोसेस किया जाता है। इस प्रक्रिया में  फ़सल  के सिर्फ़ ज़रूरी हिस्से, जैसे प्रोटीन, फैट और फ़ाइबर को निकाला जाता है और बाक़ी के अनचाहे हिस्सों को हटा दिया जाता है। इसके बाद इन ज़रूरी हिस्सों को मिलाकर एक ऐसा मिश्रण तैयार किया जाता है, जिसमें मांस जैसी खुशबू और स्वाद मिलाए जाते हैं। फिर अलग-अलग तकनीकों से इस मिश्रण को इस तरह प्रोसेस किया जाता है कि उसका रेशा (Fibre) असली मांस जैसा महसूस हो।

इस रेशेदार बनावट को तैयार करने के दो तरीके होते हैं — टॉप-डाउन (Top-down) तकनीक और बॉटम-अप (Bottom-up) तकनीक।

टॉप-डाउन में एक्सट्रूज़न नाम की एक मशीन से सामग्री को दबाकर उसमें रेशे बनाए जाते हैं। जबकि बॉटम-अप तकनीक में छोटे-छोटे रेशे पहले तैयार किए जाते हैं और फिर उन्हें जोड़कर मांस जैसा बड़ा टुकड़ा बनाया जाता है। इसे ही कभी-कभी ‘कल्चर्ड मीट (Cultured Meat)’ भी कहा जाता है।

जब बनावट तैयार हो जाती है, तब उसमें अलग-अलग रासायनिक प्रक्रियाएँ की जाती हैं, जैसे मैलार्ड रिएक्शन (mallard reaction), लिपिड ऑक्सिडेशन (lipid oxidation), और थायमिन ब्रेकडाउन (thiamine breakdown)। इन प्रक्रियाओं से मांस जैसी खुशबू आती है। इसके साथ ही यीस्ट एक्स्ट्रैक्ट , खमीर वाली चीज़ें (जैसे अचार या फर्मेंटेड फूड), और हाइड्रोलाइज़्ड वेजिटेबल प्रोटीन (hydrolyzed vegetable proteins) जैसी चीज़ों का इस्तेमाल भी किया जाता है, जिससे इसका स्वाद और सुगंध और ज़्यादा असली मांस जैसा लगता है।

साइगॉन शाकाहारी भोजन |  चित्र स्रोत : wikimedia 

भारत में लोग  पौधों पर आधारित मांस की तरफ़ क्यों बढ़ रहे हैं ?

भारत में ज़्यादातर लोग शाकाहारी होते हैं। यहाँ पर लोग धार्मिक कारणों से मांस नहीं खाते, इसलिए सब्ज़ियों से बना खाना मांस से ज़्यादा बिकता है। अब बाजार में ऐसे मांस जैसे प्रोडक्ट भी मिलने लगे हैं, जो पौधों से बनाए जाते हैं और जिन्हें शाकाहारी लोग भी खा सकते हैं। यह उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प है जो स्वाद के लिए मांस खाना चाहते हैं, लेकिन अपने धर्म की वजह से असली मांस नहीं खा पाते।

अब भारत में ज़्यादा लोग सेहतमंद, पर्यावरण के लिए अच्छे और जानवरों को नुकसान न पहुँचाने वाले विकल्प ढूंढ रहे हैं। यही वजह है कि लोग  पौधों पर आधारित मांस में ज़्यादा रुचि दिखा रहे हैं।

मांस से भोजन बनाने से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है, ख़ासकर लाल मांस (Red Meat) से। जैसे-जैसे लोग इसके बारे में जानने लगे हैं, वे मांस खाना कम कर रहे हैं या पूरी तरह से बंद कर रहे हैं।

इस बदलते रुझान को देखते हुए कई कंपनियाँ अब ऐसे प्लांट-बेस्ड प्रोडक्ट बना रही हैं जो असली मांस की तरह दिखते हैं, वैसा ही स्वाद और पोषण भी देते हैं।

शाकाहारी नकली मांस टेक-आउट काउंटर | चित्र स्रोत : wikimedia 

क्या  पौधों पर आधारित मांस, असली मांस से ज़्यादा सेहतमंद होता है ?

आम तौर पर देखा जाए तो हाँ, प्लांट-बेस्ड   मीट ज़्यादा सेहतमंद माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें सब्ज़ियाँ और तरह-तरह के पौधों से मिले प्रोटीन होते हैं। इसमें असली मांस की तरह ज़्यादा संतृप्त वसा (saturated fat) नहीं होती, और कई बार इसमें कैलोरी भी कम होती है। इसके साथ ही, इसमें रेशे यानी फ़ाइबर भी ज़्यादा होते हैं, जो हमारे पाचन के लिए अच्छे माने जाते हैं।

कुछ प्लांट-बेस्ड मीट में तो असली मांस से भी ज़्यादा प्रोटीन होता है। इससे लोगों को दिन भर में ज़रूरी प्रोटीन मिल पाता है और भूख भी देर से लगती है। लेकिन एक बात ध्यान रखने वाली है — असली मांस में कुछ ज़रूरी  अमीनो एसिड (Amino Acid) होते हैं, जो हर प्लांट-बेस्ड मीट में नहीं मिलते। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे प्रोडक्ट चुने जाएँ जो “पूरा प्रोटीन” (complete protein) देते हों, जैसे कि सोयाबीन या क्विनोआ।

एक और बात — कई बार कंपनियाँ इन प्लांट-बेस्ड मीट को ज़्यादा समय तक अच्छा बनाए रखने और स्वाद बेहतर करने के लिए बहुत प्रोसेस कर देती हैं। इस वजह से, जो लोग बिल्कुल प्राकृतिक (whole food) खाना पसंद करते हैं, उनके लिए ये प्रोडक्ट सबसे शुद्ध विकल्प नहीं माने जाते।

संदर्भ 

https://tinyurl.com/mvy5uahb 

https://tinyurl.com/5xu5pst4 

https://tinyurl.com/35xzb9u5 

https://tinyurl.com/ypd58vhf 

मुख्य चित्र में एक वनस्पति-आधारित पोर्क की बनावट का प्रदर्शन कर रहे व्यक्ति का स्रोत : Wikimedia 

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