लखनऊ की रफ़्तार और मन की शांति: मानसिक स्वास्थ्य पर नई सोच

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
13-08-2025 09:30 AM
लखनऊ की रफ़्तार और मन की शांति: मानसिक स्वास्थ्य पर नई सोच

लखनऊवासियों, हमारी तहज़ीब और नफ़ासत के इस प्यारे शहर में एक ऐसी समस्या धीरे-धीरे घर कर रही है, जिसके बारे में अक्सर लोग बात करने से कतराते हैं, मानसिक स्वास्थ्य। ज़रा सोचिए, जब दिमाग़ और मन पर बोझ बढ़ता है, तो उसका असर हमारे रिश्तों, हमारे काम और हमारी ज़िंदगी के हर पहलू पर पड़ता है। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी, काम का दबाव, बदलती जीवनशैली और अकेलापन, सब मिलकर हमारे मन को थका देते हैं। अफ़सोस की बात यह है कि अक्सर हम इन संकेतों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और मदद लेने से भी हिचकिचाते हैं।
इस लेख में हम मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पाँच अहम पहलुओं पर बात करेंगे। सबसे पहले हम समझेंगे कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति क्या है और इसमें कौन-कौन सी चुनौतियाँ सामने आती हैं। इसके बाद हम जानेंगे कि कार्यस्थल पर मानसिक तनाव किस तरह लोगों की ज़िंदगी और काम की क्षमता को प्रभावित करता है। आगे बढ़ते हुए, हम देखेंगे कि इस समस्या के समाधान में नेतृत्व और सही नीतियों की क्या भूमिका हो सकती है। फिर बौद्ध धर्म की ‘स्कंध’ अवधारणा को समझेंगे, जो मन और व्यवहार को अलग दृष्टिकोण से देखने का तरीका देती है, और अंत में यह जानने की कोशिश करेंगे कि मानसिक तनाव से मुक्ति पाने में यह सिद्धांत कैसे मददगार हो सकता है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
भारत में मानसिक स्वास्थ्य की जो तस्वीर सामने आती है, वह बेहद गंभीर और सोचने लायक है। मानसिक स्वास्थ्य केवल किसी बीमारी का नाम नहीं है बल्कि यह हमारी सोच, भावनाओं, व्यवहार और पूरे जीवन जीने के तरीके को प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग 15 प्रतिशत लोग किसी न किसी मानसिक विकार से प्रभावित हैं। 1990 के बाद से मानसिक विकारों का बोझ लगभग दोगुना हो चुका है। महामारी, लॉकडाउन (lockdown), नौकरी की असुरक्षा और आर्थिक कठिनाइयों ने इस समस्या को और गहरा कर दिया। इस समय तनाव, अकेलापन, चिंता और अवसाद जैसे हालात आम होते जा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है लोगों में जागरूकता की कमी। मानसिक बीमारी को लोग आज भी छुपाने लायक समझते हैं और परिवार व समाज में इसके प्रति डर और शर्म का माहौल है। यही कारण है कि समय रहते लोग सही इलाज और मदद नहीं लेते। भारत में स्वास्थ्य सुविधाएँ पहले से ही सीमित हैं, और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर यह कमी स्थिति को और भी चिंताजनक बना देती है।

कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव
डेलॉयट इंडिया (Deloitte India) द्वारा किए गए एक बड़े अध्ययन ने यह साफ़ कर दिया कि मानसिक स्वास्थ्य का असर कार्यस्थल पर कितना गहरा है। सर्वेक्षण के अनुसार, 80 प्रतिशत भारतीय कर्मचारियों ने पिछले एक वर्ष में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का अनुभव किया। लगभग 33 प्रतिशत लोग मानसिक परेशानी के बावजूद काम करते रहे, 29 प्रतिशत को काम से छुट्टी लेनी पड़ी और 20 प्रतिशत ने तो अपनी नौकरी ही छोड़ दी। जब मन अशांत हो और व्यक्ति तनाव में हो, तो स्वाभाविक रूप से काम में ध्यान लगाना कठिन हो जाता है। इसका सीधा असर काम की गुणवत्ता और उत्पादकता पर पड़ता है। इतना ही नहीं, इसका भारी आर्थिक नुकसान भी होता है। अध्ययन के मुताबिक, भारत में खराब मानसिक स्वास्थ्य के कारण कंपनियों को हर साल लगभग 14 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। कार्यस्थल का दबाव, निजी जीवन की कठिनाइयाँ, वित्तीय समस्याएँ और असुरक्षा जैसे कई कारण इस तनाव को बढ़ाते हैं। यह स्पष्ट करता है कि मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि यह कामकाजी जीवन और आर्थिक प्रगति से भी गहराई से जुड़ा हुआ मुद्दा है।

मानसिक स्वास्थ्य के समाधान में नेतृत्व और नीति की भूमिका
किसी भी संस्था या संगठन में मानसिक स्वास्थ्य के माहौल को बेहतर बनाने में नेतृत्व की भूमिका सबसे अहम मानी जाती है। जब प्रबंधन और वरिष्ठ अधिकारी इस बात को समझते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शारीरिक स्वास्थ्य, तब एक सुरक्षित और सहयोगी वातावरण तैयार होता है। कर्मचारियों के लिए परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराना, हेल्पलाइन (helpline) बनाना, तनाव प्रबंधन के कार्यक्रम चलाना और ऐसा माहौल बनाना जिसमें वे बिना डर या शर्म के अपनी परेशानी व्यक्त कर सकें, ये सभी उपाय बेहद असरदार हो सकते हैं। इसके साथ ही, समाज और सरकार को भी इस दिशा में आगे आकर काम करना होगा ताकि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर फैली भ्रांतियों और कलंक को दूर किया जा सके। जब नेतृत्व सकारात्मक पहल करता है, तब कर्मचारी बेहतर प्रदर्शन करने लगते हैं और काम का वातावरण भी अधिक सुखद बनता है।

बौद्ध धर्म की ‘स्कंध’ अवधारणा : मन और शरीर को समझने का तरीका
मानसिक तनाव को गहराई से समझने के लिए बौद्ध धर्म की स्कंध अवधारणा एक अलग ही दृष्टिकोण देती है। इस दर्शन के अनुसार, मनुष्य पाँच स्कंधों -रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान - का मेल है। ‘रूप’ हमारे शरीर और आसपास की भौतिक वस्तुओं को दर्शाता है। ‘वेदना’ हमारी संवेदनाएँ हैं, जो सुख, दुख या तटस्थ हो सकती हैं। ‘संज्ञा’ हमारे अनुभवों को पहचानने की क्षमता है। ‘संस्कार’ हमारी आदतें, इच्छाएँ और प्रतिक्रियाएँ हैं, जबकि ‘विज्ञान’ चेतना है, जो देखने, सुनने, सूंघने, चखने, महसूस करने और सोचने की क्षमता को संचालित करती है। बौद्ध विचार यह मानता है कि ये पाँचों स्कंध अस्थायी हैं, लगातार बदलते रहते हैं। जब हम इन्हें स्थायी मान लेते हैं और उनसे चिपक जाते हैं, तभी दुख और तनाव जन्म लेता है। यह अवधारणा हमें यह सिखाती है कि हर भावना और विचार अस्थायी है और समय के साथ बदलता है।

मानसिक तनाव से मुक्ति में स्कंध सिद्धांत की उपयोगिता
बौद्ध दर्शन के अनुसार, जीवन में दुख का कारण है इन स्कंधों को स्थायी मानकर उनसे चिपके रहना। जब व्यक्ति यह समझने लगता है कि हर विचार, भावना और अनुभव बदलने वाला है, तब वह धीरे-धीरे आसक्ति छोड़ने लगता है। यह सोच मानसिक तनाव को कम करने में बेहद उपयोगी साबित होती है। स्कंध की साधना का अर्थ है अपने मन और शरीर को ध्यान के माध्यम से समझना और यह देखना कि सब कुछ परिवर्तनशील है। इस अभ्यास को आजकल मनोविज्ञान में ‘माइंडफुलनेस’ (Mindfulness) या ‘सचेत ध्यान’ कहा जाता है। यह अभ्यास व्यक्ति को मानसिक संतुलन, धैर्य और आत्म-जागरूकता प्रदान करता है। धीरे-धीरे यह तकनीक उसे तनाव, चिंता और मानसिक दबाव से बाहर निकालने लगती है। आधुनिक शोध भी यह मानते हैं कि स्कंध दर्शन से प्रेरित ध्यान और जागरूकता जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं। इस तरह, अगर लोग इस सिद्धांत को अपनाएँ, तो मानसिक तनाव और दबाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/w52A1 
https://shorturl.at/m8qkj 

पिछला / Previous


Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.