मधुबनी पेंटिंग: मिथिला की सांस्कृतिक पहचान और लोक कला की जीवंत परंपरा

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
02-11-2025 09:14 AM
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मधुबनी पेंटिंग, जिसे मिथिला कला भी कहा जाता है, बिहार के मिथिला क्षेत्र की एक प्रसिद्ध लोक चित्रकला परंपरा है। यह कला सदियों पुरानी है और माना जाता है कि इसका आरंभ रामायण काल में हुआ, जब राजा जनक ने सीता और राम के विवाह के अवसर पर महल की दीवारों को सजाने के लिए कलाकारों को आमंत्रित किया था। इस परंपरा को मुख्य रूप से मिथिला क्षेत्र की महिलाएँ अपने घरों की दीवारों, आँगनों और कक्षों में त्योहारों, विवाह और शुभ अवसरों पर बनाती थीं। समय के साथ यह कला कागज़, कपड़े और कैनवास (canvas) पर भी उकेरी जाने लगी और विश्वभर में प्रसिद्ध हुई।

इस कला की सबसे बड़ी विशेषता है चटकीले प्राकृतिक रंगों का उपयोग और ज्यामितीय पैटर्न का सुंदर सामंजस्य। हल्दी से पीला, सिंदूर से लाल, कोयले और धुएँ से काला, पत्तों से हरा, फूलों से नीला और पलाश के फूलों से नारंगी रंग तैयार किए जाते हैं। ब्रश की जगह बाँस की लकड़ी, कपास लिपटी टहनी, माचिस की तीली या यहाँ तक कि उंगलियों का भी प्रयोग किया जाता है। चित्रों में खाली स्थान नहीं छोड़ा जाता, हर जगह फूल-पत्ती, बेल, पक्षी और पारंपरिक आकृतियों से भर दिया जाता है।

मधुबनी चित्रों की विषयवस्तु में भगवान राम-सिता, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती जैसे देवी-देवताओं के दृश्य अधिक मिलते हैं। इसके साथ ही सूरज-चाँद, पेड़-पौधे, मछली, हाथी, मोर, कमल और विवाह मंडप जैसे प्रतीक भी अक्सर चित्रों में दिखाई देते हैं। इन प्रतीकों का विशेष सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व होता है - जैसे मछली समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है, जबकि कमल पवित्रता और आध्यात्मिकता को दर्शाता है।

मधुबनी कला को विश्व स्तर पर पहचान उस समय मिली जब 1960 के दशक में बिहार में भयंकर सूखा पड़ा। उस समय सरकार और सामाजिक संस्थानों ने ग्रामीण महिलाओं को दीवारों पर बनाए जाने वाले चित्रों को कागज़ पर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि वे इन्हें बेचकर आय अर्जित कर सकें। इससे यह कला घरेलू आंगनों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों और कला बाजारों तक पहुँच गई। 2007 में मधुबनी पेंटिंग को जीआई टैग (GI tag) मिला, जिससे यह सिद्ध हो गया कि इसका मूल और वास्तविक स्वरूप मिथिला क्षेत्र से ही जुड़ा है।

महासुंदरी देवी, भर्तृ दयाल, जगदंबा देवी और गोडावरी दत्ता जैसे कई कलाकारों ने इस कला को आगे बढ़ाया और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई। आज मधुबनी पेंटिंग न केवल एक सांस्कृतिक धरोहर है बल्कि यह अनेक ग्रामीण महिलाओं के लिए रोज़गार और आत्मनिर्भरता का साधन भी बन चुकी है। आधुनिक समय में कलाकार परंपरागत विषयों के साथ-साथ पर्यावरण, सामाजिक संदेश, स्त्री शक्ति और आधुनिक जीवन की कथाओं को भी इस कला में शामिल कर रहे हैं।

 

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/2dupr6x7 
https://tinyurl.com/3apt387u 
https://tinyurl.com/4c76tjxk 
https://tinyurl.com/2me6urbr 



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