
मेरठ की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में गाड़ियां सिर्फ़ एक सुविधा नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता बन चुकी है। लेकिन इस व्यस्त शहर की सड़कों पर बेहतरीन ड्राइविंग अनुभव के लिए इनका सही रखरखाव भी बेहद ज़रूरी है। ख़ासतौर पर इंजन कूलिंग सिस्टम (Engine Cooling System), जो इंजन को ज़रूरत से ज़्यादा गर्म होने से बचाकर आपकी ड्राइव को सुरक्षित बनाता है। अगर इंजन ज़्यादा गर्म हो जाए, तो गाड़ी की परफ़ॉर्मेंस पर सीधा असर पड़ता है, जिससे न केवल मेंटेनेंस लागत बढ़ती है, बल्कि सड़क पर भी जोखिम बढ़ जाता है। यही नहीं, टायर प्रेशर (Tyre Pressure) भी बहुत मायने रखता है। मेरठ की तंग गलियों और हाइवे की तेज़ रफ़्तार वाली लेनों में, सही टायर प्रेशर होने से कार का बैलेंस बना रहता है, जिससे ड्राइविंग आसान और सुरक्षित होती है। अगर टायर में हवा कम या ज़्यादा हो, तो अचानक ब्रेक लगाने में मुश्किल आ सकती है और एक्सीडेंट का ख़तरा बढ़ सकता है। आपके ड्राइविंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए ऑटोमोबाइल उद्योग की सबसे अत्याधुनिक तकनीकों में से एक लाइडार (LiDAR) का भी प्रयोग किया जाता है। यह तकनीक स्व-चालित गाड़ियों के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो रही है। आज के इस लेख में सबसे पहले हम जानेंगे कि इंजन कूलिंग सिस्टम कैसे काम करता है और यह कार के प्रदर्शन को कैसे प्रभावित करता है। फिर हम टायर प्रेशर के महत्व को समझेंगे और जानेंगे कि इसे सही स्तर पर बनाए रखना सड़क सुरक्षा के लिए क्यों आवश्यक है। आखिर में हम लाइडार तकनीक के अलग-अलग उपयोगों और इसके फायदों पर भी बात करेंगे।
आइए सबसे पहले इंजन कूलिंग प्रणाली को समझते हैं?
जब आपकी कार का इंजन काफी देर तक चला रहता है, तो यह बहुत ज़्यादा गर्म हो जाता है। यह गर्मी आंतरिक दहन प्रक्रिया के कारण पैदा होती है। अगर इस गर्मी को नियंत्रित नहीं किया जाए, तो इंजन खराब हो सकता है। यही पर कूलिंग सिस्टम हरकत में आता है, और इंजन को ज़रूरत के मुताबिक ठंडा रखता है। इंजन में एक खास द्रव (शीतलक) होता है, जो इसके अंदर के गर्म हिस्सों से होकर गुजरता है। यह शीतलक गर्मी को सोख लेता है और फिर रेडिएटर (Radiator) तक पहुँचता है। रेडिएटर में यह गर्मी बाहर निकल जाती है और ठंडी हवा की मदद से शीतलक फिर से ठंडा हो जाता है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है, ताकि इंजन का तापमान संतुलित रहे।
पिछले कुछ सालों में, इंजनों को ठंडा करने के लिए दो तरीके अपनाए गए हैं! पहला है इंजन को हवा से ठंडा करने वाला सिस्टम और दूसरा है पानी का उपयोग करने वाला सिस्टम। कुछ छोटे इंजन सीधे हवा से ठंडे हो जाते हैं, जबकि बड़े और शक्तिशाली इंजन को ठंडा करने के लिए पानी के शीतलक का इस्तेमाल किया जाता है।
कौन-सा शीतलन सिस्टम बेहतर है?
पानी, हवा की तुलना में अधिक असरदार शीतलक होता है। यह इंजन से तेज़ी से गर्मी सोखता है और उसे ठंडा करता है। लेकिन पानी आधारित सिस्टम भारी, महंगे और थोड़े जटिल होते हैं। इसलिए, हल्के वाहनों या छोटी मोटरसाइकिलों में हवा शीतलन प्रणाली ज़्यादा प्रचलित है। वहीं, ज़्यादा पावर वाले इंजन, जो अधिक गर्मी पैदा करते हैं, उनके लिए पानी आधारित कूलिंग सिस्टम ज़्यादा प्रभावी होता है।
शीतलन प्रणाली कैसे काम करती है?
इंजन कूलिंग सिस्टम गर्मी को कम करने के लिए शीतलक को लगातार इंजन के अंदर घुमाता है। यह प्रक्रिया कुछ मुख्य भागों के ज़रिए होती है:
सबसे पहले पानी का पंप शीतलक को इंजन के अंदर धकेलता है। फिर शीतलक इंजन के अंदर मौजूद छोटे-छोटे चैनलों से गुज़रता है और गर्मी सोख लेता है। इसके बाद गर्म हो चुका शीतलक रेडिएटर में पहुँचता है, जहाँ यह हवा की मदद से ठंडा होता है। इसके भीतर थर्मोस्टेट तापमान को नियंत्रित करता है और तय करता है कि शीतलक को कब रेडिएटर में भेजना है और कब नहीं।
अगर इंजन का तापमान बहुत बढ़ जाता है, तो थर्मोस्टेट (Thermostat) का वाल्व खुल जाता है और गर्म शीतलक रेडिएटर में चला जाता है। वहाँ हवा के प्रवाह से यह ठंडा हो जाता है और फिर से इंजन में लौट आता है। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है, जिससे इंजन ज़्यादा गरम होने से बचा रहता है।
आपकी कार की अच्छी सेहत और आपकी आरामदायक यात्रा के लिए ज़रूरी है कि आपकी कार के टायर का प्रेशर भी संतुलित रहे!
इसके लिए आप कुछ उपाय अपना सकते हैं:
1. ठंडे टायरों की ही जाँच करें: टायर का प्रेशर मापने से पहले यह ध्यान रखें कि टायर ठंडे हों। जब गाड़ी कुछ किलोमीटर चलती है, तो टायर गर्म हो जाते हैं, जिससे हवा फैलती है और प्रेशर बढ़ा हुआ दिख सकता है। इसलिए, सबसे सटीक माप पाने के लिए सुबह या लंबे समय तक गाड़ी खड़ी रहने के बाद ही टायर प्रेशर जाँचना बेहतर होता है।
2. टायर प्रेशर गेज का उपयोग करें: टायर प्रेशर जाँचने का सबसे आसान और सही तरीका एयर प्रेशर गेज का इस्तेमाल करना है। हर कार के लिए एक अनुशंसित टायर प्रेशर (PSI) होता है, जिसे आप मालिक के मैनुअल या ड्राइवर साइड डोर फ्रेम पर देख सकते हैं।
टायर प्रेशर गेज के प्रकार:
डायल टाइप – इसमें एक एनालॉग मीटर होता है जो सुई के माध्यम से प्रेशर दिखाता है।
स्टिक टाइप – पेन जैसी संरचना वाला यह गेज छोटा और सस्ता होता है।
डिजिटल गेज – सबसे आसान और सटीक माप देने वाला यह गेज स्क्रीन पर प्रेशर को डिजिटल फॉर्म में दिखाता है।
3. टायर को सही तरीके से फुलाएँ : अगर टायर में हवा कम है, तो आप पोर्टेबल टायर इंफ़्लेटर (Portable Tire Inflator) का उपयोग कर सकते हैं या किसी नजदीकी पेट्रोल पंप या टायर शॉप पर जाकर हवा भरवा सकते हैं।
महत्वपूर्ण टिप: हवा भरने के बाद फिर से टायर का प्रेशर जाँचें। यदि टायर में जरूरत से ज़्यादा हवा भर गई हो, तो थोड़ी हवा निकालकर प्रेशर को सही स्तर पर लाएँ।
4. बिल्ट-इन टायर प्रेशर मॉनिटरिंग का उपयोग करें: आजकल कई आधुनिक कारों में टायर प्रेशर मॉनिटरिंग सिस्टम (TPMS) होता है, जो डैशबोर्ड पर चेतावनी देता है अगर टायर प्रेशर कम हो जाए।
टिप: अगर आपकी कार में यह फीचर है, तो इसकी चेतावनियों को नज़रअंदाज न करें और समय रहते टायर प्रेशर सही कराएँ।
क्या आपने कभी सोचा है कि बिना ड्राइवर के चलने वाली कारें (Self-driving Cars) सड़क पर कैसे रास्ता पहचानती हैं? या वैज्ञानिक पुराने खंडहरों को बिना खुदाई किए कैसे खोज लेते हैं? इसका जवाब है लाइडार (LiDAR) तकनीक।
लाइडार क्या है और यह कैसे काम करता है?
लाइडार (LiDAR) का पूरा नाम (Light Detection and Ranging) होता है। यह एक रिमोट सेंसिंग तकनीक है, जो लेज़र किरणों (Laser Beams) का उपयोग करके किसी वस्तु या सतह की दूरी मापने और उसके 3D नक्शे (त्रि-आयामी मॉडल) बनाने में मदद करती है।
इस प्रक्रिया में एक लेज़र पल्स छोड़ा जाता है, जो किसी वस्तु से टकराकर वापस लौटता है! सेंसर उस समय को मापता है, जो पल्स को लौटने में लगता है। इसी डेटा के आधार पर सटीक 3D मॉडल तैयार किया जाता है। यह तकनीक इतनी उन्नत है कि इससे पेड़ों के घने जंगलों के नीचे छिपे प्राचीन खंडहरों को भी खोजा जा सकता है! लाइडार सिस्टम में 8 से 128 सेंसर हो सकते हैं, जो कार के चारों तरफ़ लेज़र बीम छोड़ते हैं। ये बीम किसी भी वस्तु से टकराकर वापस आते हैं और सिस्टम उनके आने-जाने के समय को मापकर 3D नक्शा तैयार करता है। इस नक्शे से कार को अपने आसपास के माहौल की सटीक जानकारी मिलती है।
जब गाड़ी तेज रफ्तार में होती है, तो यह सिस्टम हर सेकंड हजारों स्कैन करता है। इससे यह पता चलता है कि कोई चीज कितनी तेज आ रही है और क्या ब्रेक लगाना ज़रूरी है या नहीं। यह कार को टक्कर से बचने में मदद करता है।
लाइडार सिर्फ चीजों की पहचान नहीं करता, बल्कि यह यह भी समझता है कि सामने क्या है। यह प्लास्टिक बैग और दूसरी कार में फर्क कर सकता है। ऐसा इसमें मौजूद इनबिल्ट डिटेक्शन सॉफ़्टवेयर (Inbuilt Detection Software) की मदद से संभव हो पाता है। इस सॉफ़्टवेयर में हज़ारों वस्तुओं की जानकारी पहले से स्टोर होती है। इसके अलावा, यह मशीन लर्निंग का उपयोग करता है। जब भी यह कोई नई चीज देखता है, तो उसे अपने डेटा में सेव कर लेता है। इससे अगली बार जब वही वस्तु सामने आती है, तो कार उसे तुरंत पहचान सकती है।
लाइडार का उपयोग कहां-कहां किया जाता है?
लाइडार सेंसर, एक लेज़र की मदद से सड़क पर मौजूद वाहनों और अन्य बाधाओं को स्कैन करता है, जिससे कारें खुद-ब-खुद रास्ता तय कर सकती हैं। हालांकि, भारत में यह तकनीक अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन जैसे-जैसे ऑटोमोटिव सेक्टर आगे बढ़ रहा है, आने वाले समय में यह हमारे शहरों की सड़कों पर भी दिखाई दे सकती है।
आज लाइडार तकनीक का इस्तेमाल कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में किया जा रहा है:
स्वायत्त वाहन (Self-driving Cars) – यह तकनीक बिना ड्राइवर वाली कारों को रास्ता पहचानने में मदद करती है।
भूगोल और मानचित्रण (Geography & Mapping) – इससे पहाड़ों, नदियों और सतहों के सटीक 3D नक्शे बनाए जाते हैं।
पुरातत्व (Archaeology) – वैज्ञानिक बिना खुदाई किए ऐतिहासिक स्थलों और खंडहरों का पता लगा सकते हैं।
मौसम विज्ञान (Meteorology) – तूफानों और बादलों के अध्ययन के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
लाइडार का विकास कैसे हुआ?
लाइडार तकनीक की शुरुआत 1960 के दशक में एक अवधारणा के रूप में हुई थी, लेकिन इसे 1970 के दशक में विकसित कर लिया गया। शुरुआती दिनों में यह तकनीक काफ़ी महंगी और सीमित थी। लेकिन जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी विकसित हुई, लाइडार सिस्टम छोटे, हल्के और किफ़ायती हो गए। आज, यह तकनीक सिर्फ वैज्ञानिक शोध तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल स्मार्टफ़ोनों , ड्रोन और गाड़ियों में भी किया जा रहा है।
क्या आपने कभी सोचा है कि बिना ड्राइवर वाली कारें सड़क पर चलने के लिए अपने आसपास की चीजों को कैसे पहचानती हैं?
ये कारें भी लाइडार तकनीक का इस्तेमाल करती हैं, जो सड़क पर मौजूद वाहनों, पैदल यात्रियों और अन्य वस्तुओं का सटीक अंदाज़ा लगा लेती है। यह तकनीक कैमरा सिस्टम के साथ मिलकर काम कर सकती है या कुछ मामलों में उन्हें पूरी तरह बदल भी सकती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Pixhive
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.