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क्या आपने कभी सोचा है कि समुद्र की शांत लहरों के पीछे छिपा प्लास्टिक (plastic) कचरा एक गहरा पर्यावरणीय संकट बन चुका है? मेरठ जैसे शहर, जो समुद्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं, भी इस समस्या का हिस्सा बन चुके हैं, क्योंकि यहाँ से फेंका गया प्लास्टिक बारिश या नालों के ज़रिए नदियों तक पहुँचता है और फिर उन्हीं नदियों के रास्ते महासागरों में जा मिलता है। हम अक्सर इस बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि हमारी रोज़मर्रा की प्लास्टिक की थैलियाँ, बोतलें और पैकिंग (packing) सामग्री अंततः समुद्री जीवन को ज़हर बना रही हैं। जब हम गर्मियों की छुट्टियों में समुद्र तटों पर घूमने जाते हैं या मछली का आनंद लेते हैं, तो शायद ही सोचते हैं कि इन लहरों के नीचे कितने कछुए, मछलियाँ और समुद्री पक्षी प्लास्टिक निगलने के कारण दम तोड़ रहे हैं। यह लेख इसी अनदेखे लेकिन गंभीर खतरे को समझने और उससे लड़ने की ज़रूरत पर आधारित है।
इस लेख में हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि समुद्रों में फैलता प्लास्टिक कचरा किस तरह एक गहराता हुआ वैश्विक संकट बन चुका है। हम जानेंगे कि यह सिर्फ समुद्री जीवों की ज़िंदगी ही नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और हमारे स्वास्थ्य को भी कैसे प्रभावित कर रहा है। माइक्रोप्लास्टिक (microplastic) जैसे सूक्ष्म लेकिन खतरनाक तत्वों से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं, भारत इस संकट से निपटने के लिए क्या ठोस कदम उठा रहा है, और सबसे अहम, इस लड़ाई में आम लोगों की जागरूकता और भागीदारी क्यों सबसे बड़ा बदलाव ला सकती है।
महासागरों में प्लास्टिक कचरे की भयावह स्थिति:
आज महासागर दुनिया की सबसे बड़ी प्लास्टिक डंपिंग साइट (plastic dumping site) बनते जा रहे हैं। अनुमान के अनुसार, वर्तमान में दुनियाभर के महासागरों में लगभग 75 से 199 मिलियन टन (million ton) प्लास्टिक कचरा जमा है, और हर साल लगभग 10 मिलियन टन नया कचरा इसमें जुड़ता जा रहा है। दुर्भाग्यवश, इस विशाल मात्रा में मौजूद प्लास्टिक का केवल 9% ही रिसायकल हो पाता है, बाकी समुद्री सतह, तटों और समुद्र तल तक में फैल जाता है। सबसे बड़ा और भयावह उदाहरण "ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच" (Great Pacific Garbage Patch) है, जो हवाई (Hawaii, USA) और कैलिफोर्निया (California, USA) के बीच स्थित है। इस क्षेत्र में 1.8 ट्रिलियन (trillion) से भी अधिक प्लास्टिक के टुकड़े तैर रहे हैं, जिनका कुल वजन 90,000 टन है। यह क्षेत्र टेक्सस (Texas, USA) जैसे बड़े राज्य से भी दोगुना है! यदि प्लास्टिक के उत्पादन और समुद्र में इसके प्रवाह को नहीं रोका गया, तो 2040 तक यह मात्रा तीन गुना हो सकती है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है।
समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी पर गंभीर असर:
प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे भयानक प्रभाव सीधे समुद्री जीवों पर देखने को मिलता है। हर साल हज़ारों समुद्री पक्षी, कछुए और स्तनधारी जीव प्लास्टिक को निगलने या उसमें फंसने की वजह से मौत का शिकार हो जाते हैं। कई प्रजातियाँ, जो पहले ही संकटग्रस्त हैं, प्लास्टिक के सेवन के कारण विलुप्ति की कगार पर हैं। ये जीव अक्सर प्लास्टिक को भोजन समझकर खा लेते हैं, जिससे उनका पाचन तंत्र क्षतिग्रस्त हो जाता है और वे भूख से तड़पकर मर जाते हैं। उदाहरण के लिए, मछलियाँ अक्सर छोटे प्लास्टिक कण निगल जाती हैं, जो उनके शरीर में जमा हो जाते हैं और अंततः जब मनुष्य इन्हें भोजन के रूप में ग्रहण करता है, तो यह ज़हर हमारे शरीर में भी पहुँच जाता है। यह पूरी खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करता है और मानव स्वास्थ्य को भी गंभीर खतरे में डालता है।
माइक्रोप्लास्टिक्स और हानिकारक रसायनों की चुनौती:
समुद्री प्रदूषण का एक और अदृश्य लेकिन बेहद खतरनाक पहलू है, माइक्रोप्लास्टिक्स और जहरीले रसायन। माइक्रोप्लास्टिक्स वे प्लास्टिक कण होते हैं जो आकार में पाँच मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं और इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें सामान्यतः देख पाना मुश्किल होता है। ये कण सिंथेटिक (synthetic) कपड़ों की धुलाई, टायरों के घिसाव, टूथपेस्ट (toothpaste), स्क्रब (scrub) और अन्य व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों से निकलकर पानी में पहुंच जाते हैं और अंततः नदियों से होते हुए समुद्रों तक पहुँच जाते हैं। वैज्ञानिक लगातार ऐसे फिल्टर (filter) और तकनीकों पर काम कर रहे हैं, जो पानी से माइक्रोप्लास्टिक्स को हटाने में मदद कर सकें, लेकिन अभी यह एक जटिल प्रक्रिया है। इन सूक्ष्म कणों का समुद्री जीवों द्वारा निगलना एक गंभीर स्वास्थ्य संकट को जन्म दे सकता है, क्योंकि वे इनके अंगों में जमा हो जाते हैं और जैव श्रृंखला के ज़रिए इंसानों तक पहुँचते हैं।
भारत की रणनीति और पर्यावरणीय संकल्प:
भारत ने महासागर संरक्षण के लिए गंभीर कदम उठाए हैं। 2022 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में घोषणा की कि वह वर्ष 2030 तक अपनी 30% भूमि, जल और महासागरीय क्षेत्र की रक्षा करेगा। इसी क्रम में, भारत ने 75 प्रमुख समुद्र तटों की सफाई के लिए एक व्यापक अभियान शुरू किया, जिसका लक्ष्य 1,500 टन समुद्री कचरे को हटाना था। इस अभियान के दौरान न केवल कचरा हटाया गया, बल्कि समुद्र की तलछट, पानी और जीवों के नमूनों का विश्लेषण भी किया गया। सरकार ने एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, जो कि प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने की दिशा में एक ठोस कदम है। भारत ‘द ओशन क्लीनअप’ (The Ocean Cleanup) जैसी अंतरराष्ट्रीय पहलों का समर्थन भी कर रहा है, जिसमें नदियों से लेकर समुद्रों तक प्लास्टिक कचरे को हटाने के लिए इंटरसेप्टर (interceptor) नावों और फ्लोटिंग बैरियर (floating barrier) जैसी तकनीकों का उपयोग हो रहा है।
जागरूकता और जनसहभागिता का महत्व:
सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं चाहे जितनी भी कोशिश करें, इस युद्ध में असली जीत तभी संभव है जब आम नागरिक भी जागरूक होकर हिस्सा लें। प्लास्टिक की बोतलें, कप, थैलियाँ और एकल-उपयोग वाले उत्पाद हमारी आदतों का हिस्सा बन चुके हैं। अब समय है इन्हें बदलने का। पुनः उपयोग किए जा सकने वाले उत्पादों का इस्तेमाल, प्लास्टिक का रिसायकल (recycle) करना, माइक्रोबीड्स (Microbeads) वाले उत्पादों से बचना और तटीय सफाई अभियानों में भाग लेना कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे हम अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं। कई गैर-लाभकारी संगठन इस दिशा में काम कर रहे हैं, जिनकी सहायता के लिए हम स्वयंसेवा या दान से जुड़ सकते हैं। साथ ही, अपने आस-पास के लोगों को भी इस समस्या के प्रति जागरूक करना बेहद ज़रूरी है। जब प्रत्येक नागरिक इस मुहिम में योगदान देगा, तभी महासागर फिर से साफ़ और जीवनदायी बन पाएंगे।
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