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भारत मे विभिन्न तत्वों को देव तुल्य माना जाता है और जो भी वस्तु (चर-अचर आदि) इस संसार मे उपस्थित हैं को किसी न किसी तरह से पूजनीय माना जाता है। भारतीय धर्म शास्त्र मे ग्रहों को एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और इनको विभिन्न देवताओं की भी संज्ञा प्राप्त है। हमे इसके प्रमाण प्राचीन भारतीय मंदिरों मे दिखाई देते हैं, कई प्राचीन मंदिरों मे नवग्रह पैनल (Panel) बनाए गए हैं। इन्ही 9 ग्रहों मे से एक है शनि देव, शनि नौ ग्रहों मे एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण देव के रूप मे माने जाते हैं तथा इनको पौराणिक रूप से भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हम अपने आम जीवन मे भी शनि देव को अक्सर देखा करते हैं, इनको किसी काले स्तम्भ या काली मूर्ति के रूप मे दिखाया जाता है जिसपर सरसो के तेल का लेप किया गया होता है। शनि के मूर्ति विज्ञान मे इनको एक दंड या तलवार लिए हुये दिखाया जाता है तथा इनकी सवारी कौआ है। शनि देव को अपशकुन, प्रतिशोध आदि का देवता माना जाता है तथा इनसे संबन्धित बाधाओं को दूर करने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं, ये सुरक्षा के देव के रूप मे भी पूजे जाते हैं।
शनि देव को विभिन्न आयामों से माना जाता है जिसमे, देव, दिवस, ग्रह आदि शामिल है। शनि को न्याय का भी देवता माना जाता है शनि देव के पिता सूर्य देव हैं तथा उनकी माता सूर्य देव के सेवक की पत्नी हैं, जिन्होंने सूर्य देव की पत्नी के लिए प्रत्योषधि माँ के रूप मे कार्य किया था। ऐसी मान्यता है कि जब शनि अपनी माँ के गर्भ मे थे तब उस समय उन्होने शिव को प्रसन्न करने के लिए उपवास की किन्तु गलती से शिव के ऊपर बैठ गयी जिसके कारण शनि गर्भ मे ही काले हो गए और इसी कारण से कहा जाता है कि शनि अपने पिता सूर्य से नाराज रहते थे। एक कथा के अनुसार जब शनि बच्चे थे और उन्होने पहली बार अपनी आंखे खोली तो सूर्य एक ग्रहण मे चले गए। शनि देव से एक और शब्द जुड़ा हुआ है जिसे साढ़े सती या साती के रूप मे देखा जाता है यह भी एक ऐसा सिद्धान्त है जिससे लोगों मे भय व्याप्त हो जाता है।
हमारे शहर मेरठ मे एक अत्यंत ही प्रसिद्ध शनि मंदिर स्थित है, इस मंदिर में शनि धाम के साथ-साथ माँ शाकुंबरी देवी तथा अन्नपूर्णा मंदिर भी विराजमान हैं। इस मंदिर का निर्माण स्वर्गीय लाला श्री सुमत प्रसाद जी ने कराया था। इस मंदिर की खास बात यहाँ पर विराजित शनि देव की मूर्ति है जिसकी लंबाई कुल 27 फीट की है तथा यह प्रतिमा अष्टधातु की बनाई गयी है। इस प्रतिमा को यदि वेदिका के साथ देखा जाये तो यह पृथ्वी से कुल 51 फीट की है। यह प्रतिमा अपने आप में ही एक दुर्लभ नमूना है।
अष्टधातु की मूर्तियाँ अत्यंत ही दुर्लभ होती हैं तथा ये आठ धातुओं के संयोजन से बनाई जाती हैं। इस प्रकार की मूर्तियों मे सोना, चाँदी, तांबा, जस्ता, सीसा, टिन, लोहा, और पारा जैसे धातु मिलाये जाते हैं। अष्टधातु की मूर्तियाँ पूरे भारत मे कई मंदिरों मे पायी जाती हैं तथा इन मूर्तियों की ऐतिहासिकता की बात करें तो ये मूर्तियाँ 6ठी शताब्दी ईस्वी के लगभग बनाई जाना शुरू हुयी थी। इस प्रकार की मूर्तियों को बनाना एक जटिल कार्य है, इसे मधुचिस्ठछिन्न विधान या (Lost Wax technique) से बनाया जाता है।

चित्र सन्दर्भ:
उपरोक्त सभी चित्रों में मेरठ कैंट स्थित शनिधाम के चित्रण प्रस्तुत हैं। (Prarang)
संदर्भ :
1. https://www.learnreligions.com/shani-dev-1770303
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Shani
3. https://www.bhaktibharat.com/mandir/balaji-mandir-meerut
4. https://www.hindu-blog.com/2006/12/what-is-ashtadhatu-idol.html
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