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दो बार कि फ़ीफ़ा विमेंस वर्ल्ड कप (FIFA Women's World Cup) विजेता और पूर्व अमेरिकी फुटबॉलर (American footballer) जूली फाउडी (Julie Foudy) कि एक उक्ति बहुत मशहूर है- ‘खेल न केवल बेहतर धावक तैयार करते हैं, बल्कि बेहतर इंसान भी बनाते हैं।’ खेल संबंधित शिक्षा का मतलब एक बंधी बंधाई दिनचर्या को बार-बार दोहराना मात्र नहीं है, ना ही यह सिर्फ मनोरंजन तक सीमित है। खेल शिक्षा का मतलब जरूरी जीवन मूल्यों को जानना और जीवन जीने के कौशल से भी वाकिफ होना है। किताबों से यह जानकारियां मिलना बहुत मुश्किल होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों की शक्ति को, उसकी अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता। किसी देश के समग्र विकास का आईना होते हैं खेल।
आमतौर पर खेल भारतीय शिक्षा प्रणाली का एकीकृत रूप नहीं रहा है। बाकी विषयों को ज्यादा समय और ध्यान देकर खेलों का बचा कुचा समय भी उसी में खर्च हो जाता है। अभिभावकों की भी इसमें खास दिलचस्पी नहीं होती। उनको भी दोष देना सही इसलिए नहीं है क्योंकि वह समाज के ऊंचे प्रतिशत वाले नतीजों के दबाव में दबे होते हैं। अगर सही मायनों में इन सब के लिए कोई जिम्मेदार है तो वह है हमारी शिक्षा प्रणाली का रूढ़ीवादी रवैया। सच तो यह है कि ज्यादातर राज्यों और राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड में दसवीं कक्षा के लिए खेल को एक अहम विषय का दर्जा दिया गया है। और यहीं पर इसका महत्व भी खत्म हो जाता है। कोर्स में खेल को विषय बनाना सिर्फ एक औपचारिकता होती है। किसी खास खेल में बढ़िया प्रदर्शन कर रहा विद्यार्थी बाकी सब के लिए राह भटका हुआ इंसान होता है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली का पूरा जोर विद्यार्थी के मानसिक विकास पर है जबकि उसके शारीरिक विकास की पूरी अनदेखी की जाती है।
खेल शिक्षा का महत्त्व:
खेल शिक्षा बच्चों को भीतर से मजबूत बनाने में जीवंत भूमिका अदा करती है। एक स्वस्थ और उपयुक्त शरीर बनाने में मदद करती है। एकाग्रता जीवन में, एकाग्रता पढ़ाई में देती है। समूह में जीने और सबसे समन्वय करने की शिक्षा मिलती है। जीत और हार को खेल भावना से लेने की दृष्टि खेल शिक्षा से मिलती है। अपनी गलतियों को पहचाने और उनसे उबरने में सहायता देती है। रोज खेलना हमारे तनाव को कम करता है और इसी में आगे चलकर कैरियर की भी संभावनाएं पैदा होती हैं।
उत्तर प्रदेश का पहला खेल विश्वविद्यालय मेरठ में:
उत्तर प्रदेश सरकार ने खेल विश्वविद्यालय बिल 2021 को मंजूरी देकर मेरठ में पहला खेल विश्वविद्यालय स्थापित होने की राह आसान हो गई है। इसका लक्ष्य होगा खिलाड़ियों को बेहतरीन अभ्यास का माहौल देना। 700 करोड़ में बनने वाला यह विश्वविद्यालय मेरठ जिले की सरधना (Sardhana) तहसील के सलावा (Salawa) गांव में बनाए जाने का प्रस्ताव है । शारीरिक शिक्षा, स्वास्थ्य और खेल विज्ञान, खेल प्रबंधन और तकनीक, खेल प्रशिक्षण, खेल पत्रकारिता, रोमांचक खेल और युवा मामलों में स्नातक, परास्नातक, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट, पीएचडी इत्यादि कोर्स करने की सुविधा होगी।
खेल और शिक्षा का समन्वय कैसे हो:
वैश्विक स्तर पर खेल उद्योग में सब को एक साथ जोड़ने की शक्ति होती है। खेल उद्योग में वह ताकत है कि वह पूरे देश की उसकी संपूर्णता में व्याख्या कर सकता है। खेल वैज्ञानिक अवधारणाओं जैसे बल, गति, स्थितिज (potential) ऊर्जा, वेग आदि को समझने का पूरा मौका देता है।
खेलो इंडिया योजना
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का नारा ‘खेलेगा भारत, तो खिलेगा भारत’ भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना को समझने का सूत्र है । इसमें आधारभूत सर से खेलों में भागीदारी को प्रोत्साहन देने की व्यवस्था की गई है। भारत में लुप्त हो रही खेल संस्कृति को फिर से जिलाने का प्रयास किया जा रहा है। देश को खेल में आत्मनिर्भर बनाने की कल्पना की गई है। इसमें खेल के सर्वांगीण विकास के लिए 12 सूत्र निर्धारित किए गए हैं जो पूरे खेल पारिस्थितिकी तंत्र, आधारभूत संरचना, प्रतिभा पहचान, उत्तम प्रशिक्षण, सामुदायिक खेलो, स्पर्धा संरचना और खेल अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगे। शारीरिक रूप से सक्षम विद्यार्थियों को सहयोगी शैक्षिक वातावरण देने पर भी इसमें बल दिया गया है।
खेलों में रोजगार के अवसर
स्कूल और कॉलेज स्तर पर खेलों में पाई उपलब्धियां मात्र शौक नहीं कहीं जाएंगी। इसमें रोजगार की संभावनाएं भी हैं। अध्यापक, सहायक प्रोफेसर, खेल व्यवस्थापक, शारीरिक चिकित्सक, शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षक, स्वास्थ्य शिक्षक, प्रशिक्षक, फिटनेस प्रशिक्षक, खेल पत्रकार जैसे बहुत से अवसर उपलब्ध हैं।
अब जबकि उत्तर प्रदेश में नया खेल विश्वविद्यालय बनने जा रहा है, खेलों के प्रति बच्चों, परिवार, समाज और शिक्षा के माहौल को अपना नजरिया बदलना चाहिए। मंजिलें और भी हैं, आसमा और भी है।
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