प्रथम विश्व युद्ध में, भारतीय रियासतों के सैनिकों व शासकों का बहुमूल्य योगदान

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
19-07-2024 09:35 AM
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प्रथम विश्व युद्ध में, भारतीय रियासतों के सैनिकों व शासकों का बहुमूल्य योगदान
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, युद्ध की विभिन्न लड़ाइयों में हमारे देश भारत की तत्कालीन रियासतों के सैनिकों ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। हालांकि यह दुर्लभ था, लेकिन, बीकानेर के गंगा सिंह और बारिया राज्य के शासक, जैसे कुछ राजकुमार वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान  लड़ाई में शामिल हुए थे। तो आइए, आज हम प्रथम विश्व युद्ध के लिए ब्रिटिश सरकार की सहायता में, भारतीय रियासतों की भूमिका को समझेंगे। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि, इनमें से किन राज्यों ने अंग्रेजों की मदद की और कैसे उन्होंने उन्हें अपनी सहायता की पेशकश की।  
ब्रिटिश साम्राज्य के साथ रियासतों की संधियों ने भी, 560 भारतीय रियासतों के शासकों को विदेशों में लड़ने के लिए सेना भेजने के लिए, पहले कभी बाध्य नहीं किया था। लेकिन, जब प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया, तो कुलीन लोग स्वतः विदेशों में लड़ने के लिए, खड़े हो गए। जहां राजकुमार और शासक, धन और संसाधन देने के लिए उत्सुक थे, वहीं सैनिकों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं था। उनके इन प्रयासों के लिए, राजकुमारों को अंग्रेजों द्वारा व्यक्तिगत सम्मान से भरपूर पुरस्कृत किया गया, जबकि, उनकी सेना और लड़ाकू इकाइयां 689 अलंकरण और वीरता पुरस्कार घर ले आईं।
कुछ राजकुमारों ने सोचा था कि, अंग्रेजों को खुश करके, वे लंदन(London) के साथ बेहतर राजनीतिक संबंध बनाने, और उनके अर्ध-स्वायत्त कामकाज पर प्रतिबंधों को कम करने में सक्षम होंगे। जबकि, कुछ अन्य शासकों का मानना था कि, यह स्वतंत्रता या प्रभुत्व की स्थिति की मांग को आगे बढ़ाएगा। हालांकि, रियासतों की ये अपेक्षाएं और अंग्रेजों द्वारा किए गए वादे, प्रथम विश्व युद्ध के बाद काफी हद तक झूठे साबित हुए।
प्रथम विश्व युद्ध में, अपनी शाही मुहर के तहत काम करने वाले ‘इंपीरियल सर्विस(Imperial Service)’ सैनिकों को पूरी तरह से वित्त पोषित करने के अलावा, रियासतों ने ब्रिटिश भारतीय सेना के लिए पांच बटालियन भी खड़ी की थी। हैदराबाद के निज़ाम ने युद्ध प्रयासों में 60 लाख रुपये का योगदान दिया, जबकि, ग्वालियर और भोपाल के कुलीन घरानों ने प्रथम विश्व युद्ध के लिए एक अस्पताल  जहाज़ चलाने के लिए 4,80,000 अंग्रेजी पाउंड खर्च किए थे। नाभा और कपूरथला की रियासतों ने भी, मेसोपोटामिया(Mesopotamia) में नदियों पर चलने के लिए अस्पताल नावें प्रदान की  थीं ।  
इसी तरह, प्रथम विश्व युद्ध में योगदान देने वाली, कुछ प्रमुख रियासतें निम्नलिखित है:
पंजाब की रियासतें: पटियाला, कपूरथला और  फ़रीदकोट सहित अन्य पंजाबी रियासतों ने प्रथम विश्व युद्ध में 50,000 सैनिकों का योगदान दिया, जिनमें से 18,500 ने विदेशों में सेवा की। वहां, 1,634 लोग युद्ध   में मारे गए या लापता हो गए। उन्हें 689 वीरता पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें, प्रथम श्रेणी का इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट(Indian Order of Merit) भी शामिल है। 
पंजाब में इसे “वडी लड़ाई” (बड़ा युद्ध) के रूप में याद किया जाता है। ब्रिटिश भारत द्वारा लड़े गए, प्रथम विश्व युद्ध की गूंज पंजाब राज्य में आज भी जारी है। क्योंकि, यहां से बड़ी संख्या में सैनिकों को यूरोप,  अफ़्रीका और मध्य पूर्व में  फ़ैले युद्धक्षेत्रों में भेजा गया था।
मैसूर रियासत: एक बात जो अधिक चिंताजनक थी, वह युद्ध के लिए, रियासती मैसूर द्वारा दिया गया आर्थिक योगदान था। मैसूर राज्य निधि से लगभग 33 लाख रुपये युद्ध ऋण   में दिए गए थे। सितंबर 1917 के अंत तक, बैंगलोर के सिविल और सैन्य स्टेशन सहित, युद्ध में मैसूर का कुल योगदान लगभग 75 लाख रुपये था। जबकि, अक्टूबर 1918 तक मैसूर के महाराजा द्वारा दी गई एक और भेंट 50 लाख रुपये थी।
दूसरी ओर,  मुफ़्त उपहार, राहत कोष, युद्ध ऋण और राजकोष बिल (ब्रिटिश और भारतीय दोनों) जैसी विभिन्न श्रेणियों के तहत, युद्ध निधि में 1 करोड़ 30 लाख रुपये तक का खर्च किया गया था। युद्ध प्रारंभ होते ही, सैनिकों की भर्ती की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो गयी थी। हालांकि, यह प्रक्रिया सरल थी, फिर भी, इसे युद्ध स्तर पर किया गया।
बीकानेर रियासत: बीकानेर ऊंट दल, जिसे ‘गंगा रिसाला’ के नाम से भी जाना जाता है, का गठन बीकानेर में महाराजा गंगा सिंह द्वारा किया गया था। उन्होंने 1915 में,  स्वेज़ नहर(Suez Canal) की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने मिस्र(Egypt) तक ऊंट सेना का नेतृत्व किया। यह एकमात्र उपलब्ध ऊंट दल था, और इसका उपयोग  स्वेज़ नहर के किनारे गश्त और सैनिक परीक्षण के लिए किया जाता था, जिस पर तुर्कों का हमला था। एक लड़ाई में महाराजा ने स्वयं दुश्मन पर कई गोलियां चलाईं थी। उनकी हार के बाद भी, उनहोंने, गंगा रिसाला को शत्रुओं का पीछा करने हेतु   प्रेरित किया। गंगा सिंह ने फ्रांसीसी मोर्चे पर भी लड़ाई लड़ी और युद्ध के बाद पेरिस शांति सम्मेलन(Paris Peace Conference) में भारत का प्रतिनिधित्व किया। जब प्रस्तावित राष्ट्र संघ में भारत की सदस्यता को इस आधार पर अस्वीकार किया जा रहा था कि, यह एक स्वशासित राज्य नहीं है, तो बीकानेर के महाराजा ने सफलतापूर्वक भारत का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि, “जहां विश्व की शांति सुनिश्चित करने का प्रश्न है, इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि, भारत संपूर्ण मानव जाति के पांचवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।”
 
संदर्भ 
https://tinyurl.com/yx88c7v3
https://tinyurl.com/2s3ekxs4
https://tinyurl.com/he4jxns4
https://tinyurl.com/yc65vatc

चित्र संदर्भ
1. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आक्रमण की तैयारी करती भारतीय लैंसर्स की एक रेजिमेंट को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
2. ब्रिगेडियर जनरल नोरी के साथ 2-2 गोरखाओं के ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ़्रांस में भारतीय सेना के जवानों को दर्शाता चित्रण (GetArchive)
4. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ़्रांस में भारतीय सेना के मार्च को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)
5. इंमैसूर इंपीरियल सर्विस ट्रूप्स को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
6. बीकानेर ऊँट सेना के एक घुड़सवार को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)


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