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रामपुर के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि हिमालयी कस्तूरी मृग (Himalayan musk deer), जिसे सफ़ेद पेट वाले कस्तूरी मृग (White-bellied musk deer) के रूप में भी जाना जाता है, उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, नेपाल, भूटान और उत्तरी भारत के जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। यह 2,500 मीटर की ऊंचाई से ऊपर उच्चपर्वतीय वातावरण में निवास करता है। हालांकि, अत्यधिक शिकार के परिणामस्वरूप इनकी जनसंख्या में गंभीर रूप से गिरावट हुई है और इसे 'प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ' (International Union for Conservation of Nature (ICUN)) की लाल सूची में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इसका शिकार मुख्य रूप से इसकी कस्तूरी ग्रंथियों के लिए किया जाता है, जो पारंपरिक चिकित्सा और इत्र बनाने में उपयोग किए जाने वाले अत्यधिक मूल्यवान पदार्थ का उत्पादन करती हैं। भले ही हिमालयी कस्तूरी मृग रामपुर में नहीं पाए जाते हैं, फिर भी हम उनसे लाभान्वित होते हैं क्योंकि वे हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करते हैं, जिससे जल स्रोतों, जैव विविधता और जलवायु स्थिरता का समर्थन होता है, जो बदले में कृषि और स्थानीय आजीविका पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। तो आइए आज, हिमालयी कस्तूरी मृग के भौतिक विवरण, निवास स्थान और जीवनकाल के बारे में जानते हुए, इस मायावी प्रजाति के बारे में दिलचस्प तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं। इसके साथ ही, हम इस मृग से प्राप्त होने वाली कस्तूरी के विभिन्न अनुप्रयोगों के बारे में जानेंगे। आगे हम इसके अस्तित्व पर मंडरा रहे प्रमुख खतरों के बारे में बात करेंगे। अंत में, हम भारत में इन मृगों के संरक्षण के लिए आवश्यक कदमों और उपायों की जांच करेंगे।
भौतिक विवरण:
यह एक छोटा हिरण है जिसके मुंह में ऊपरी लंबे रदनक होते हैं है जो मुंह बंद होने पर भी दिखाई देते हैं। इसकी पूंछ के केवल एक सिरे पर छोटे से बाल होते हैं, शेष पूंछ बाल रहित होती है और इसके कान लंबे "खरगोश जैसे" होते हैं। इनमें प्रजनन अंगों और नाभि के बीच एक कस्तूरी थैली होती है, जो बाहर से भी दिखाई देती है। कस्तूरी मृग. लगभग 60 सेंटीमीटर लंबे होते हैं और उनके कंधे की ऊंचाई लगभग 20 सेंटीमीटर होती है। कस्तूरी मृग की पूंछ की शुरुआत में एक पुच्छीय ग्रंथि होती है।
खान-पान की आदतें:
यह मृग जुगाली करने वाला प्राणी है। यह खराब गुणवत्ता वाले भोजन पर भी जीवित रह सकता है। शरद ऋतु और सर्दियों में, यह ज़्यादातर ओक (Oak) और गॉल्थेरिया (Gaultheria) जैसे पेड़ों और झाड़ियों की की पत्तियों को खाता है। वसंत और गर्मियों में, मुख्य रूप से तृण और शैवाल खाता है।
जीवनकाल:
कैद में पले-बढ़े मृगों का औसत जीवनकाल 2.4 वर्ष होता है। जबकि जंगली मृगों का औसत जीवनकाल लगभग 7 वर्ष होता है।
हिमालयन कस्तूरी मृग के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
हिमालय के बीहड़ और दूरदराज़ के इलाकों में छिपकर रहने वाला कस्तूरी मृग, मानव संपर्क से दूर रहता है, जिसके कारण पशु साम्राज्य में इसे एक मायावी जानवर माना जाता है। इस जीव के बारे में कुछ मज़ेदार तथ्य इस प्रकार हैं:
मस्क के अनुप्रयोग:
नर कस्तूरी मृग की गंध ग्रंथि से होने वाले कस्तूरी स्राव का उपयोग कई पारंपरिक पूर्वी एशियाई दवाओं में हृदय, तंत्रिकाओं और श्वास से संबंधित विभिन्न बीमारियों के के लिए किया जाता है। कस्तूरी का उपयोग गैर-औषधीय उत्पादों जैसे सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत स्वच्छता उत्पाद, शैंपू और डिटर्जेंट में भी किया जाता है। कस्तूरी का उत्पादन कृत्रिम रूप से भी किया जा सकता है, और अक्सर यह गैर-औषधीय उत्पादों के लिए होता है, लेकिन पारंपरिक पूर्वी एशियाई चिकित्सा में और कुछ इत्र निर्माताओं द्वारा प्राकृतिक कस्तूरी अत्यंत पसंद की जाती है और इसी कारण यह अत्यंत मूल्यवान भी है।
कस्तूरी मृग के अस्तित्व को खतरा:
चूंकि हिरण द्वारा उत्पादित कस्तूरी का उपयोग, इत्र और औषधियों के निर्माण के लिए किया जाता है, इसलिए यह अत्यधिक मूल्यवान है। चूंकि यह प्रजाति लुप्तप्राय है और इसे ढूंढना कठिन है, इसलिए वन्यजीव व्यापार बाज़ार में इसका मूल्य और भी अधिक है। कस्तूरी मृग का अवैध शिकार और व्यापार इस प्रजाति के लिए मुख्य ख़तरा है। इनकी कस्तूरी, 45,000 डॉलर प्रति किलोग्राम तक बिक सकती है, जिसके कारण यह दुनिया में सबसे मूल्यवान पशु-व्युत्पन्न उत्पादों में से है। शिकारी जाल का उपयोग करके इनको पकड़ते हैं और मार देते हैं। हालांकि, केवल नर ही कस्तूरी का उत्पादन करते हैं, लेकिन मादा और बच्चे भी जाल में फंस जाते हैं और मारे जाते हैं।
भारत में हिमालयी कस्तूरी मृग के संरक्षण के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण कदम और उपाय:
निष्कर्षतः, हिमालयी कस्तूरी मृग उनके पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, वे अपने अस्तित्व के लिए विभिन्न खतरों का सामना कर रहे हैं, जिनमें निवास स्थान का नुकसान, अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष शामिल हैं। इन प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें आवास संरक्षण, अवैध शिकार विरोधी उपाय, शिक्षा और जागरूकता, अनुसंधान और निगरानी और संरक्षण प्रजनन शामिल हैं। इन प्रजातियों की प्रभावी ढंग से सुरक्षा और संरक्षण के लिए इन उपायों को सही तरह से लागू करने की आवश्यकता है। संरक्षण संगठनों, सरकारों और स्थानीय समुदायों को इन अभूतपूर्व प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी संरक्षण रणनीतियों को विकसित और लागू करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
संदर्भ
मुख्य चित्र में हिमालयी कस्तूरी मृग का स्रोत : Wikimedia
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