हिन्‍दी काव्‍य साहित्‍य में जौनपुर के कवियों का विशेष योगदान

ध्वनि II - भाषाएँ
08-08-2019 03:41 PM
हिन्‍दी काव्‍य साहित्‍य में जौनपुर के कवियों का विशेष योगदान

हिन्‍दी साहित्‍य ज्ञान का एक विशाल भण्‍डार है, जिसमें अनेक कवियों, लेखकों और साहित्‍यकारों की रचनाओं का संकलन किया गया है। हिन्‍दी साहित्‍य को दो भागों में बांटा गया है गद्य साहित्‍य और पद्य साहित्‍य या काव्‍य साहित्‍य। पद्य साहित्‍य में अनेकों रोचक कविताएं और पद्य शामिल हैं। हिन्‍दी काव्‍य के विकास में विभिन्‍न कवियों का योगदान रहा है, जिसमें हमारे जौनपुर के कवि भी शामिल हैं। इन्‍होंने अपनी कल्‍पनात्‍मकता और अनुभवों को अपनी रचनाओं में संजोया है।

हिन्‍दी साहित्‍य को कालखण्‍डों के अनुसार मुख्‍यतः चार भागों, आदिकाल (वीरगाथा), पूर्व-मध्यकाल (भक्तिकाल), उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल), आधुनिक काल (गद्यकाल) में विभाजित किया गया है। इन सभी कालखण्‍डों की रचनाओं में जौनपुर क्षेत्र और उसके कवियों ने अपना योगदान दिया है।

आदिकाल या वीरगाथाकाल के एक सर्वश्रेष्‍ठ कवि विद्यापति जिन्‍हें मैथिली कोकिल भी कहा जाता है, की अमर रचना ‘कीर्तिलता’ है जिसमें इन्‍होंने जौनपुर का भी वर्णन किया है। यह कविता एक अवहट्ठ काव्य रचना है, जिसमें विद्यापति ने अपने आश्रय दाता कीर्ति सिंह की वीरता, उदारता और गुणों का वर्णन करने के साथ-साथ तत्‍कालीन समाज की यथार्थ स्थिति का भी उल्‍लेख किया है। असलान नामक पवन सरदार ने छल से कीर्तिसिंह के पिता राम गणेश्वर की हत्या कर मिथिला पर कब्ज़ा कर लिया। अपने पिता की हत्‍या का बदला लेने और राज्‍य को पुनः प्राप्‍त करने के लिए कीर्ति सिंह अपने भाई वीर सिंह के साथ जौनपुर गए तथा वहां के सुल्‍तान की सहायता से असलान को हराकर अपना राज्‍य पुनः प्राप्‍त किया। अपनी रचना में विद्यापति ने जौनपुर की यात्रा, वहाँ के हाट-बाज़ार का वर्णन किया है। तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति के अध्ययन के लिए कीर्तिलता को एक अच्‍छा स्‍त्रोत कहा जा सकता है।

आदिकाल के बाद भक्तिकाल आया जिसमें भक्तिवादी और सूफीवादी कवियों का प्रभाव रहा। सूफी कवियों में जौनपुर के कवियों का नाम भी उल्‍लेखनीय है। जिसमें शेख नवी (ज्ञानदीप (1619)), शेख कुतुबन (मृगावती (1503)) और नूर मुहम्‍मद शामिल हैं। तृतीय काल में रीतिकाल आता है, इस काल के सर्वश्रेष्‍ठ कवियों में आलम का नाम शीर्ष स्‍थान पर आता है। इनका जीवन इनकी कविताओं की भांति ही रोचकताओं से भरा है।

हिन्‍दी साहित्‍य के अंतिम काल अर्थात आधुनिक काल में समयानुसार भिन्‍नता देखने को मिलती है, इसके अंतर्गत द्विवेदी युग, छायावाद, प्रगतिवाद आदि शामिल हैं। छायावादी कवियों में जौनपुर के सर्वश्रेष्‍ठ कवि पं० रामनरेश त्रिपाठी का नाम भी आता है। इन्‍होंने अपना जीवन हिन्‍दी साहित्‍य के विकास में लगा दिया और इसको समृद्धि दिलाने में अतुलनीय योगदान दिया। छायावादोत्‍तर युग के प्रमुख कवियों में जौनपुर के पं० रूपनारायण त्रिपाठी, डा० श्रीपाल सिंह ‘क्षेम’ का नाम उल्‍लेखनीय है। इनकी रचनाओं ने हिन्‍दी साहित्‍य को सशक्‍त करने में एक विशिष्‍ट योगदान दिया।

अन्‍य श्रेष्‍ठ कवियों में जौनपुर के पं० अंबिका दत्‍त त्रिपाठी, स्‍व० गिरिजादत्‍त शुक्‍ल ‘गिरिश’, श्री दूधनाथ शर्मा, माता प्रसाद, डा० रविन्‍द्र भ्रमर, द्वारिका प्रसाद त्रिपाठी, शिवलोचन तिवारी, गीता श्रीवास्‍तव, स्‍व० शरद श्रीवास्‍तव, बाबा उमाशंकर पूर्वी, कृष्‍णकांत एकलव्‍य इत्‍यादि का नाम उल्‍लेखनीय है। इन सभी रचनाकारों की सर्वश्रेष्‍ठ कृतियां जौनपुर के साहित्‍य के लिए ही नहीं वरन् संपूर्ण हिन्‍दी साहित्‍य के लिए अमूल्‍य निधि है।

संदर्भ:
1.https://bit.ly/2KKk72P
2.https://bit.ly/2OLiVBt
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=Rzjpo9DNrfw
2. https://bit.ly/2GSyIaY
3. https://www.pexels.com/search/books/