मुहर्रम विशेष: रामपुर के इमामबाड़ों में मूल्यवान, प्राचीन 'अलमों' का विशाल संग्रह

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
29-07-2023 09:56 AM
Post Viewership from Post Date to 29- Aug-2023 31st Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
3734 503 0 4237
* Please see metrics definition on bottom of this page.
मुहर्रम विशेष: रामपुर के इमामबाड़ों में मूल्यवान, प्राचीन 'अलमों' का विशाल संग्रह

मुहर्रम के पाक मौके पर, इस्लामिक अनुयायियों के बीच हमारे रामपुर शहर की अहमियत कई गुना बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि रामपुर के नवाब, दशकों पहले यहां पर वार्षिक जुलूस के लिए ईरान और सीरिया में बने दुर्लभ और मूल्यवान प्राचीन "अलमों" का विशाल संग्रह लेकर आये थे। आज के इस लेख में हम इन्हीं "अलमों" की अहमियत और रामपुर में इनकी उपलब्धता पर एक नजर डालेंगे।
इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना "मुहर्रम" के रूप में पूरी दुनिया में इमाम अली के बेटे और पैगंबर मुहम्मद के पोते हजरत हुसैन के शोक को समर्पित होता है। ये सभी लगभग 1400 साल पहले इराक में कर्बला की लड़ाई में शहीद हुए थे। भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित हैदराबाद में, मुहर्रम की परंपराएं (विशेषकर भव्य जुलूस) सबसे बड़े माने जाते हैं। इन जुलूसों में विभिन्न धर्मों के लोगों सहित हजारों लोग भाग लेते हैं। ये जुलूस मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होते हैं और उसी महीने के दसवें दिन तक जारी रहते हैं। इन जुलूसों के दौरान, कर्बला के शहीदों का एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व, "अलम" बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अलम उन शहीदों का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करता है, जो कर्बला की लड़ाई में शहीद हुए थे। प्रत्येक अशूरखाना के "अलम" में तबर्रुक होता है, जिसमें कर्बला की लड़ाई के अवशेष या हजरत हुसैन के परिवार से जुड़ी कोई भी चीज शामिल होती है।
ऊपर दिया गया चित्र एक अलम का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इसमें दो घूमने वाले डिस्क (Disc) होते हैं, जो एक दूसरे को काटते हैं, साथ ही दो और घूमने वाले डिस्क और बीच में एक धातु की गेंद होती है। जब हवा चलती है, तो वह सुचारू रूप से घूमती है, जिससे सुंदर प्रकाश और छाया प्रभाव पैदा होता है। यह डिजाइन लोहे से बना है, जो सफाविद काल की उत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। निचले घन पर "मूसा के पुत्र हसन" का नाम उत्कीर्ण है। यहां कुरान की आयतों की नक्काशी भी है, जिसमें सूरा संख्या 24, आयत 35 से एक आयत भी शामिल है, जो ईश्वर की रोशनी का वर्णन करती है। इसका उपयोग शिया मुस्लिम समारोहों में 680 ई. में कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करने के लिए किया जाता है।यह लड़ाई अरबी महीने मुहर्रम के 10वें दिन आशूरा को यजीद की सेना के खिलाफ हुई थी। इस्लाम के इतिहास में कर्बला का युद्ध एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है, और 1400 वर्ष बाद भी लोग इसका शोक मनाते हैं। हमारे रामपुर का नवाबी खानदान भी मुहर्रम माह में नवासा ए रसूल इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में हर साल अज़ादारी करता है। मुहर्रम के पूरे महीने और खासतौर से पहले 10 दिनों तक लोग रंगीन कपड़े नहीं पहनते, सादा खाना खाते हैं और सादा जीवन जीने का प्रयास करते हैं। कई घरों में भोजन भी कम खाया और पकाया जाता है। आशूरा के दिन और कुछ लोग उससे 1 दिन पहले भी फाका रखते हैं। यहां तक किकुछ शिया समुदाय सिर्फ काले रंग के कपड़े पहनते हैं। इस दौरान महिलाएं अपने ज़ेवर भी उतार देती हैं। कोई भी तेज़ संगीत नहीं बजाया जाता। इस दौरान घरों की सफाई की जाती है। अगरबत्ती जला कर घर के माहौल को पवित्र किया जाता है। रामपुर में नवाब खानदान के तीन इमामबाड़े (इमामबाड़ा किला, इमामबाड़ा खासबाग और इमामबाड़ा गुलजार-ए- रफत) मौजूद हैं। भारत में इमामबाड़ा एक जनसमूह के लिए एक विशाल कक्ष होता है,जहां शिया मुसलमान मुहर्रम के मौके पर धार्मिक स्मरणोत्सव समारोह के लिए एकत्रित होते हैं। भारत में पहला इमामबाड़ा अवध साम्राज्य के शासक नवाब सफदरजंग द्वारा स्थापित किया गया था। अब अगर हम बात करें हमारे रामपुर के अलम के बारे में, तो आपको जानकर हैरानी होगी कि,रामपुर के इमामबाड़ा खासबाग में 1200 और किला इमामबाड़ा में 1500 अलम हैं। इसके अलावा इमामबाड़ा गुलजार-ए-रफत में सोने के अलम भी हैं।
इन सभी को ईरान और सीरिया से यहां लाया गया है। मुहर्रम माह में अलमों को कड़ी सुरक्षा के बीच बाहर निकाला जाता हैं। इमामबाड़ों को उत्तर भारत में आशूरा खाना के नाम से भी जाना जाता है। लखनऊ में "आसफअल-दावला इमामबाड़ा" सबसे उल्लेखनीय माना जाता है। मुहर्रम के दौरान, पूरे महीने इमामबाड़े में सभाएं आयोजित की जाती हैं, जहां लोग कर्बला की कहानी सुनाकर, मर्सिया पढ़कर और शोक मनाकर हज़रत इमाम हुसैन की मौत की सालगिरह मनाते हैं। मुहर्रम माह के दौरान इन इमामबाड़ों में मजलिस होती हैं। इसी माह में जुलूस के दौरान अलम और जरीह नजर आते हैं। रामपुर में मोहर्रम की शुरुआत के साथ ही शहर के सभी इमामबाड़ों के मजलिसों के स्थानों को रौशनी से सजाया जाता है। यहां पर मुहर्रम के पूरे महीने, मुस्लिम पंचांग के पहले महीने के साथ-साथ शियाओं के लिए महत्वपूर्ण अन्य अवसरों पर, इमामबाड़े मेंसभाएं आयोजित की जाती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3mtkxmx7
https://tinyurl.com/3wn98fmr
https://tinyurl.com/ydmeuvz9
https://tinyurl.com/3zrs8b7x
https://tinyurl.com/6wau4ck4

चित्र संदर्भ

1. अलम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. हैदराबाद में मुहर्रम के जुलूस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. मुहर्रम के शोक के दौरान इकठ्ठा भीड़ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. हाथ में अलम लिए मुस्लिम युवक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. आशूरा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)