क्यों मेरठवासियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूक होना आज बेहद जरूरी है?

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
10-10-2025 09:30 AM
क्यों मेरठवासियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूक होना आज बेहद जरूरी है?

मेरठवासियो, क्या आपने कभी महसूस किया है कि आजकल हमारे शहर में लोग तनाव, चिंता, अवसाद और भावनात्मक अस्थिरता जैसी मानसिक समस्याओं से जूझते हैं, लेकिन समाज में इसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता जितना इसे लेना चाहिए? मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत चुनौती नहीं है, बल्कि यह परिवार, समुदाय और पूरे समाज की भलाई से जुड़ा हुआ मुद्दा है। कोविड-19 (Covid-19) महामारी ने इस वास्तविकता को और उजागर कर दिया, जब शहर में मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या अचानक बढ़ी और लोगों की दिनचर्या, कार्यक्षमता और सामाजिक जीवन प्रभावित हुआ। इसके अलावा, नौकरी की असुरक्षा, आर्थिक दबाव, पारिवारिक तनाव और सामाजिक अलगाव जैसी परिस्थितियाँ भी मेरठवासियों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रही हैं।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति क्या है, इसके मुख्य कारण कौन-कौन से हैं, इसके परिणाम और समाज पर प्रभाव क्या पड़ता है, और अंततः इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए किस प्रकार के समाधान, हस्तक्षेप और जागरूकता उपाय अपनाए जा सकते हैं। हमारा उद्देश्य यह है कि हर मेरठवासी मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझे, इसे केवल व्यक्तिगत मुद्दा न मानें, और समय रहते उचित सहायता और जागरूकता के माध्यम से न केवल स्वयं बल्कि अपने परिवार और समाज की भलाई सुनिश्चित करें।

मानसिक स्वास्थ्य का वर्तमान परिदृश्य और जागरूकता
भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आज भी अपेक्षाकृत सीमित है, लेकिन हाल के वर्षों में इसके महत्व को समझने की जरूरत बढ़ती जा रही है। खासकर कोविड-19 महामारी ने लोगों के जीवन, नौकरी, सामाजिक रिश्तों और व्यक्तिगत दिनचर्या पर गहरा असर डाला। इससे तनाव, अवसाद, चिंता और भावनात्मक अस्थिरता जैसी समस्याएँ तेजी से बढ़ी हैं। महामारी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि लोग अपनी भावनाओं को दबा कर रखते हैं और यह अक्सर मानसिक बीमारी की गंभीर अवस्था में पहुँचने का कारण बनता है। सर्वेक्षणों से यह भी सामने आया कि लगभग 40% लोग मानसिक परेशानी का सामना करने पर सबसे पहले अपने मित्रों से ही अपनी स्थिति साझा करते हैं, जबकि केवल 20% लोग अपने परिवार से संपर्क करते हैं। यह दर्शाता है कि मानसिक स्वास्थ्य पर समाज में खुलकर बातचीत अभी भी कम है और लोगों के लिए सही जानकारी और संसाधनों की तत्काल आवश्यकता है। महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य को केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा भी बना दिया है।

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सामाजिक और पारिवारिक चुनौतियाँ
मानसिक रोगियों के उपचार और स्वास्थ्य सुधार में परिवार और समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अक्सर परिवार हिचकिचाता है और रोगी सही उपचार या विशेषज्ञ चिकित्सक तक नहीं पहुँच पाता। यह स्थिति उन लोगों में और गंभीर हो जाती है जिनके बचपन में घरेलू हिंसा, शोषण या तनावपूर्ण वातावरण रहा हो। समाज में मानसिक बीमारी के प्रति विद्यमान कलंक (stigma) और शर्मिंदगी के कारण लोग अक्सर उपचार लेने से कतराते हैं, जिससे बीमारी और गंभीर रूप ले लेती है। अकेले रहकर मानसिक समस्या का सामना करने से रोगी की स्थिति और बिगड़ती है, और उनके जीवन की गुणवत्ता पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान न देने से परिवार और समाज के बीच तनाव बढ़ता है, रिश्तों में दरार आती है और व्यक्ति का सामाजिक समर्थन नेटवर्क (support network) कमजोर हो जाता है। मानसिक स्वास्थ्य को अनदेखा करना केवल रोगी का ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और समुदाय का जीवन प्रभावित करता है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण और जोखिम कारक
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के अनेक कारण और जोखिम कारक होते हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार, बचपन में शोषण, घरेलू हिंसा, कठिन पारिवारिक परिस्थितियाँ और उग्र स्वभाव वाले वातावरण का व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, जीवन में लगातार तनाव, आर्थिक कठिनाइयाँ, नौकरी या पढ़ाई का दबाव, पारिवारिक संघर्ष और सामाजिक अलगाव मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। घर से काम करने की आदत, डिजिटल माध्यमों का अत्यधिक उपयोग और व्यक्तिगत जीवन और काम के बीच संतुलन बिगड़ना भी मानसिक दबाव को बढ़ाते हैं। कई बार लोग इन समस्याओं का सामना अकेले करते हैं और विशेषज्ञ मदद तक पहुँचने में देर कर देते हैं, जिससे मानसिक बीमारी जटिल और गंभीर रूप ले लेती है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति के जीवन, कामकाज और सामाजिक संबंधों पर दीर्घकालिक असर पड़ता है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षण और निदान में देरी
मानसिक बीमारी अक्सर धीरे-धीरे प्रकट होती है और इसके लक्षण प्रारंभ में सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे लग सकते हैं। प्रमुख लक्षणों में लगातार सुस्ती, शरीर में दर्द, अपच, नींद की कमी, ऊर्जा की कमी, भावनात्मक अस्थिरता और जीवन में रुचि की कमी शामिल हैं। अधिकांश लोग इन संकेतों को अनदेखा कर देते हैं और यह मानते हैं कि यह अस्थायी समस्या है। दुर्भाग्य से, जब तक रोगी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के पास पहुँचते हैं, अक्सर वह बीमारी के गंभीर चरण में पहुँच चुके होते हैं। इस देरी के कारण उपचार जटिल और लंबा हो जाता है, और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समय पर निदान और उपचार की कमी मानसिक स्वास्थ्य संकट को और गंभीर बना देती है। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रारंभिक पहचान और सही समय पर उपचार रोग की गंभीरता को कम कर सकती है और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकती है।

मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या: आंकड़े और सामाजिक प्रभाव
मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बीच गहरा और जटिल संबंध है। भारत में हर वर्ष लाखों लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अपने जीवन का अंत करने की ओर बढ़ते हैं। केवल 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान ही आत्महत्या के कारण अधिक लोग मरे। आर्थिक कठिनाइयाँ, पारिवारिक तनाव, सामाजिक अलगाव और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उपेक्षा ऐसे कदम उठाने के मुख्य कारण हैं। यह स्पष्ट करता है कि मानसिक स्वास्थ्य पर समय पर ध्यान देना और रोगियों तक उचित उपचार पहुँचाना अत्यंत आवश्यक है। मानसिक बीमारी को अनदेखा करना केवल व्यक्ति के जीवन को प्रभावित नहीं करता, बल्कि परिवार और समाज पर भी गहरा असर डालता है। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाना, शुरुआती पहचान करना और समय पर हस्तक्षेप करना जीवन रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

समाधान, हस्तक्षेप और जागरूकता बढ़ाने के उपाय
मानसिक स्वास्थ्य सुधारने और आत्महत्या को रोकने के लिए व्यापक, समन्वित और स्थायी उपाय आवश्यक हैं। शिक्षा प्रणाली में मानसिक स्वास्थ्य को पाठ्यक्रम में शामिल करना, स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता फैलाना और डॉक्टरों तथा मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों तक पहुँच बढ़ाना बेहद महत्वपूर्ण है। योग, ध्यान, काउंसलिंग (counseling), समूह चिकित्सा और डिजिटल हेल्पलाइन (digital helpline) जैसी सेवाएँ रोगियों को सहारा देती हैं। परोपकारी संगठन, मीडिया (media) और सरकारी संस्थाएँ मिलकर समुदाय स्तर पर जागरूकता अभियान चला सकती हैं। परिवार और मित्रों का सहयोग रोगी के स्वास्थ्य सुधार में अहम भूमिका निभाता है। जब तकनीकी, सामाजिक और सामुदायिक उपाय एक साथ अपनाए जाते हैं, तो मानसिक स्वास्थ्य में सुधार संभव है, आत्महत्या की घटनाएँ कम होती हैं और समाज एक स्वस्थ, सुरक्षित और सहायक वातावरण प्रदान कर सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सामूहिक सामाजिक जिम्मेदारी भी है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/37j775ss 



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