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मेरठवासियों, जब हर साल 8 अक्टूबर को भारतीय वायुसेना दिवस पूरे देश में गर्व और सम्मान के साथ मनाया जाता है, तो यह दिन केवल परेड (Parade), एयर शो (Air Show) और वीर गाथाओं का उत्सव नहीं होता - यह उस आत्मबल, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक होता है, जो मेरठ जैसे वीर भूमि से उपजा है। हमारा शहर सिर्फ़ विद्रोह की धरती नहीं, बल्कि उन हजारों सपनों की भी ज़मीन है, जहाँ के युवा नीले आकाश में उड़ने की तमन्ना लेकर अपने गांव-मोहल्लों से निकलते हैं, वायुसेना की वर्दी पहनते हैं और देश की सीमाओं की हिफाज़त में अपने प्राण अर्पित करते हैं। भारतीय वायुसेना की यात्रा 1932 में जब शुरू हुई थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह एक दिन दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली वायुसेना बन जाएगी। लेकिन यह संभव हुआ - तकनीकी उन्नति, अनुशासित प्रशिक्षण, और उस अडिग साहस से जो हर मेरठवासी के खून में भी बहता है। इसलिए यह कहानी सिर्फ़ आसमान की नहीं है, बल्कि ज़मीन से उठते उन सपनों की भी है जो मेरठ की हर गली, हर चौक और हर स्कूल से पंख फैलाकर निकलते हैं।
इस लेख में हम सात प्रमुख चरणों के माध्यम से भारतीय वायुसेना के विकास की कहानी को समझेंगे। पहले, हम जानेंगे वायुसेना की स्थापना और उसके शुरुआती वर्ष कैसे रहे। फिर, द्वितीय विश्व युद्ध और स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियों की बात करेंगे। इसके बाद हम 1962 से 1971 तक के युद्धों में वायुसेना की भूमिका पर प्रकाश डालेंगे। अगले हिस्से में तकनीकी उन्नयन और वैश्विक मिशनों में इसकी सक्रियता को देखेंगे। इसके बाद, हम कारगिल युद्ध जैसे बड़े ऑपरेशनों में वायुसेना की रणनीतिक सफलता को जानेंगे। फिर, 2025 के ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) की सटीकता और ताकत को समझेंगे। अंत में, आज की आधुनिक और आत्मनिर्भर वायुसेना की वर्तमान स्थिति और भविष्य की दिशा की चर्चा करेंगे।
भारतीय वायुसेना की स्थापना और शुरुआती सफर
भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) का इतिहास 8 अक्टूबर 1932 से शुरू होता है, जब इसकी स्थापना ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ‘रॉयल इंडियन एयर फोर्स’ (Royal Indian Air Force) के रूप में की गई थी। प्रारंभ में इसके पास सीमित संख्या में कर्मचारी और उपकरण थे, और इसकी भूमिका सहायक स्तर की थी - विशेष रूप से ज़मीनी सेना की सहायता में। हालाँकि, इसकी रणनीतिक भूमिका धीरे-धीरे विकसित होती चली गई। 1950 में, भारत के गणराज्य बनने के साथ ही ‘रॉयल’ शब्द हटा दिया गया और यह भारतीय वायुसेना बन गई - पूरी तरह से भारतीय, पूरी तरह से राष्ट्र के लिए समर्पित। इसका प्रमुख दायित्व देश की हवाई सीमाओं की सुरक्षा करना और आपातकालीन समय में राहत और आपदा प्रबंधन में सहायता प्रदान करना है। राष्ट्रपति भारतीय वायुसेना के सर्वोच्च सेनापति होते हैं। यह केवल एक सैन्य संस्था नहीं, बल्कि देश की हवाई संप्रभुता का प्रतीक है।
द्वितीय विश्व युद्ध और आज़ादी के बाद की चुनौतियाँ
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद महत्वपूर्ण योगदान दिया। उस समय इसकी प्राथमिक भूमिका टैक्टिकल सपोर्ट (tactical sport) और ज़मीनी सेना के सहयोग तक सीमित थी, लेकिन फिर भी इसके सैनिकों को 22 ‘डिस्टिंग्विश्ड फ्लाइंग क्रॉस’ (Distinguished Flying Cross) जैसे सम्मान मिले। आज़ादी के बाद विभाजन के दौरान, वायुसेना की कुल 10 स्क्वॉड्रनों (Squadron) में से 3 स्क्वॉड्रन पाकिस्तान को सौंप दी गईं - जिससे वायुसेना को दोबारा खड़ा करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया। भारत-पाकिस्तान के पहले कश्मीर युद्ध (1947-48) में, वायुसेना ने बिना पूर्व योजना के पलाम हवाई अड्डे से सैनिकों को श्रीनगर एयरफील्ड (airfield) तक पहुँचाया, ताकि पाकिस्तानी घुसपैठियों को रोका जा सके। उस समय वायुसेना के पास सीमित संख्या में विमानों और प्रशिक्षित पायलटों के बावजूद, युद्धभूमि में उनकी तत्परता और साहस ने देश की एकता को बचाने में निर्णायक भूमिका निभाई।
1962 से 1971 तक के युद्धों में वायुसेना की भूमिका
1962 के भारत-चीन युद्ध में भारतीय वायुसेना का आक्रामक उपयोग नहीं किया गया। यह निर्णय तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व द्वारा लिया गया, जिसमें आशंका जताई गई कि चीन भारतीय शहरों पर बमबारी कर सकता है। कई सैन्य विशेषज्ञों ने बाद में इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि अगर वायुसेना का इस्तेमाल आक्रामक तरीके से किया गया होता, तो युद्ध का परिणाम भिन्न हो सकता था। इसी अनुभव के बाद, 1965 के भारत-पाक युद्ध में वायुसेना ने अपने अभियान को आक्रामक रूप से संचालित किया - पाकिस्तानी हवाई अड्डों पर हमला कर उनकी क्षमता को नुकसान पहुँचाया, हालाँकि खुद वायुसेना को भी कुछ नुक़सान उठाना पड़ा। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय वायुसेना की भूमिका निर्णायक रही। उसने पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों पर दुश्मन के ठिकानों, संचार साधनों और हथियार डिपो पर हमले किए। इस युद्ध में फ्लाइंग ऑफिसर (Flying Officer) निर्मल जीत सिंह सेखों को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया - यह भारतीय वायुसेना के लिए एकमात्र परमवीर चक्र है।
वायुसेना की तकनीकी प्रगति और वैश्विक हस्तक्षेप
1950 के दशक के अंत से वायुसेना में तकनीकी आधुनिकीकरण का दौर शुरू हुआ। डसॉल्ट मिस्टेरे 4th (Dassault Mistere IV), हॉकर्स हंटर (Hawkers Hunter) और इंग्लिश इलेक्ट्रिक कैनबरा (English Electric Canberra) जैसे लड़ाकू विमानों को शामिल किया गया। 1962 में भारत और सोवियत संघ के बीच रक्षा सौदों के तहत मिग-21 विमानों की खरीद की गई और भारत में इनका उत्पादन शुरू हुआ - जिसने वायुसेना को तकनीकी रूप से और सशक्त किया। इस दौरान वायुसेना ने संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भी भाग लिया, जैसे कि 1960 के दशक में कांगो में किया गया हस्तक्षेप। इन अभियानों से वायुसेना को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिली और उसकी प्रतिष्ठा वैश्विक स्तर पर स्थापित हुई। इस चरण में वायुसेना ने न केवल अपने संसाधनों का विस्तार किया, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण में भी बदलाव लाया - जिससे पश्चिमी, पूर्वी और केंद्रीय एयर कमांड (Central Air Command) की स्थापना हुई।
कारगिल युद्ध और नई पीढ़ी की हवाई रणनीतियाँ
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना ने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में शानदार प्रदर्शन किया। यह युद्ध समुद्र तल से 18,000 फीट ऊँचाई पर लड़ा गया था, जहाँ पारंपरिक वायु अभियानों की रणनीतियाँ लागू करना बेहद चुनौतीपूर्ण था। ऑपरेशन 'सफेद सागर' के तहत वायुसेना ने मिग-27 से बमबारी की, मिग-29 (MiG-29) और मिराज-2000 (Mirage-2000) विमानों ने हवाई समर्थन और निगरानी की भूमिकाएँ निभाईं। मिराज-2000 ने उच्च ऊँचाई पर अपनी सटीकता और ताकत का प्रदर्शन किया, जिससे पाकिस्तानी ठिकानों को भारी नुकसान पहुँचा। इस युद्ध ने सिद्ध किया कि भारतीय वायुसेना, तेज निर्णय क्षमता और उन्नत तकनीकी बल के दम पर, सीमित समय में भी निर्णायक परिणाम ला सकती है।
ऑपरेशन सिंदूर: सटीकता और साहस का प्रदर्शन
2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन 'सिंदूर' नामक एक व्यापक सैन्य कार्रवाई की। 8 से 10 मई के बीच की गई इस कार्रवाई में पाकिस्तान के 11 प्रमुख हवाई अड्डों को निशाना बनाया गया, जिनमें नूर खान (चकलाला), रफीकी, सर्गोधा, मुरिद, सुक्कुर, और जैकोबाबाद जैसे महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे शामिल थे। इन हमलों में पाकिस्तान के ड्रोन युद्ध केंद्र, एयर डिफेंस सिस्टम (Air Defense System) और फाइटर जेट बेस (Fighter Jet Base) को गंभीर क्षति पहुँची। हर हमला सटीक था, और खास बात यह रही कि सभी भारतीय पायलट सुरक्षित लौटे। वायुसेना की यह कार्रवाई न केवल सैन्य बल का प्रदर्शन थी, बल्कि यह एक स्पष्ट संदेश भी थी कि भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाने को तैयार है।
आज की वायुसेना: रणनीति, ताकत और भविष्य की उड़ान
वर्तमान में भारतीय वायुसेना न केवल भारत की हवाई सीमाओं की रक्षा करती है, बल्कि यह रणनीतिक शक्ति, मानवीय सहायता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दृष्टि से भी अत्यंत प्रभावशाली बन चुकी है। इसके पास 1500 से अधिक विमान हैं, जिसमें मिराज-2000, सुखोई-30 (Sukhoi-30), तेजस और राफेल (Raphael) जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान शामिल हैं। इसके अलावा, एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम (anti-aircraft missile systems), रडार नेटवर्क (radar network), और ड्रोन स्क्वॉड्रन (drone squadron) जैसी प्रणालियाँ भी इसकी रणनीतिक ताकत को और अधिक प्रभावशाली बनाती हैं। लगभग 1.6 लाख कर्मियों के साथ, भारतीय वायुसेना एक ऐसा संगठन बन चुका है जो पारंपरिक युद्ध से लेकर महासागरीय निगरानी, प्राकृतिक आपदा राहत और अंतरिक्ष आधारित खतरों से निपटने तक पूरी तरह तैयार है। यह न केवल एक सैन्य संगठन है, बल्कि राष्ट्र के आत्मबल और उन्नति की उड़ान का प्रतीक भी है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/55fknyx5
https://tinyurl.com/mt9v5c3p
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