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मेरठवासियो, आपने अक्सर टीवी पर या अख़बारों में बाढ़ की तबाही की भयावह तस्वीरें देखी होंगी। कहीं गाँव के गाँव पानी में समा जाते हैं, तो कहीं लोग अपनी ज़िंदगी की सारी जमा-पूँजी - घर, खेत, पशुधन - सबकुछ खो बैठते हैं। सोचिए, जिस घर में सालों की मेहनत से ईंट-ईंट जोड़कर दीवारें खड़ी की गई हों, वो कुछ ही घंटों में पानी के तेज़ बहाव से बह जाए, तो इंसान पर कैसी विपत्ति आती होगी। सड़कों और पुलों का टूट जाना सिर्फ़ यातायात को नहीं रोकता, बल्कि राहत और बचाव कार्य को भी बेहद कठिन बना देता है। सबसे बड़ा दर्द तब होता है, जब लोग अपने ही गाँव-घर छोड़कर ऊँचाई पर बने अस्थायी शिविरों में शरण लेने को मजबूर हो जाते हैं। बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है, बुज़ुर्ग दवाइयों से दूर हो जाते हैं और पूरे परिवार का जीवन असुरक्षा और चिंता से भर जाता है। लेकिन मेरठवासियो, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि बाढ़ सिर्फ़ पानी भर जाने की साधारण घटना नहीं होती। यह एक गंभीर प्राकृतिक आपदा है, जिसका असर हमारे जीवन, समाज और पर्यावरण पर गहरा और लंबे समय तक रहता है। कभी यह प्रकोप प्रकृति की शक्तियों से आता है - जैसे मूसलाधार बारिश, बर्फ़ और हिमनदों का तेज़ी से पिघलना या समुद्री चक्रवात और सुनामी। तो कभी यह हमारी अपनी लापरवाहियों का नतीजा भी होता है - जैसे बेतहाशा शहरीकरण, नालियों और नदियों पर अतिक्रमण, वनों की अंधाधुंध कटाई और जलवायु परिवर्तन को नज़रअंदाज़ करना। यही वजह है कि मामूली-सी बारिश भी कई बार बड़े शहरों में जलभराव और शहरी बाढ़ का कारण बन जाती है।
आज हम इस लेख में सबसे पहले हम यह जानेंगे कि बाढ़ की परिभाषा क्या है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे कैसे देखा जाता है। इसके बाद हम यह समझेंगे कि बाढ़ आने के पीछे कौन-कौन से प्राकृतिक और मानवीय कारण ज़िम्मेदार होते हैं। फिर हम बाढ़ के विभिन्न प्रकार और उनकी विशेषताओं पर चर्चा करेंगे, ताकि यह साफ़ हो सके कि अलग-अलग क्षेत्रों में बाढ़ किस रूप में सामने आती है। अगले भाग में हम देखेंगे कि बाढ़ का असर स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण पर किस तरह पड़ता है। इसके बाद हम बाढ़ नियंत्रण और रोकथाम की रणनीतियों के बारे में जानेंगे। और अंत में, हम यह समझेंगे कि बाढ़ के समय कौन-कौन सी सावधानियाँ अपनानी चाहिए, ताकि नुकसान को कम किया जा सके और जीवन को सुरक्षित रखा जा सके।
बाढ़ की परिभाषा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
बाढ़ केवल पानी का इकट्ठा होना नहीं है, बल्कि यह एक जटिल प्राकृतिक आपदा है। सरल भाषा में, जब किसी नदी, झील या जलस्रोत का पानी अपने किनारों को पार कर आसपास की ज़मीन और बस्तियों को डुबो देता है, तो इसे बाढ़ कहा जाता है। वैज्ञानिक रूप से बाढ़ की स्थिति का पता लगाने के लिए हर नदी पर दो स्तर तय किए जाते हैं - चेतावनी स्तर (Warning Level) और ख़तरे का स्तर (Danger Level)। जैसे ही पानी चेतावनी स्तर पर पहुँचता है, प्रशासन को चौकसी बरतनी पड़ती है, और ख़तरे का स्तर पार करते ही स्थिति गंभीर मानी जाती है। इसे “फ्लड स्टेज” (Flood Stage) भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, बाढ़ केवल जलभराव की समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज की आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक क्षमता की परीक्षा भी है। यानी बाढ़ तब ही आपदा बनती है जब कोई इलाक़ा अचानक आई जल-स्थिति को संभाल नहीं पाता।
बाढ़ के प्रमुख प्राकृतिक और मानवीय कारण
बाढ़ कई कारणों से आती है और इन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों में बाँटा जा सकता है - प्राकृतिक कारण और मानवजनित कारण।
बाढ़ के प्रकार और उनकी विशेषताएँ
बाढ़ कई रूपों में आती है और हर प्रकार की अपनी विशिष्टताएँ होती हैं:
बाढ़ के प्रभाव: स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण
बाढ़ के असर बहुआयामी होते हैं और यह सिर्फ़ पानी में डूबने तक सीमित नहीं है।
बाढ़ नियंत्रण और रोकथाम की रणनीतियाँ
बाढ़ को पूरी तरह रोकना मुश्किल है, लेकिन इसके नुकसान को कम करने के लिए कई रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं।
इन सभी उपायों का संयुक्त रूप ही किसी क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है।
बाढ़ के समय अपनाई जाने वाली सावधानियाँ
बाढ़ से बचने के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर कुछ सावधानियाँ बेहद ज़रूरी हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/22px89ke
https://tinyurl.com/yc4r8cch
https://tinyurl.com/2p9nwet3
https://tinyurl.com/bdhmxwn7
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