मेरठवासियो, जानिए बाढ़ के असली कारण, इसके असर और बचाव के उपाय

पर्वत, चोटी व पठार
04-10-2025 09:18 AM
मेरठवासियो, जानिए बाढ़ के असली कारण, इसके असर और बचाव के उपाय

मेरठवासियो, आपने अक्सर टीवी पर या अख़बारों में बाढ़ की तबाही की भयावह तस्वीरें देखी होंगी। कहीं गाँव के गाँव पानी में समा जाते हैं, तो कहीं लोग अपनी ज़िंदगी की सारी जमा-पूँजी - घर, खेत, पशुधन - सबकुछ खो बैठते हैं। सोचिए, जिस घर में सालों की मेहनत से ईंट-ईंट जोड़कर दीवारें खड़ी की गई हों, वो कुछ ही घंटों में पानी के तेज़ बहाव से बह जाए, तो इंसान पर कैसी विपत्ति आती होगी। सड़कों और पुलों का टूट जाना सिर्फ़ यातायात को नहीं रोकता, बल्कि राहत और बचाव कार्य को भी बेहद कठिन बना देता है। सबसे बड़ा दर्द तब होता है, जब लोग अपने ही गाँव-घर छोड़कर ऊँचाई पर बने अस्थायी शिविरों में शरण लेने को मजबूर हो जाते हैं। बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है, बुज़ुर्ग दवाइयों से दूर हो जाते हैं और पूरे परिवार का जीवन असुरक्षा और चिंता से भर जाता है। लेकिन मेरठवासियो, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि बाढ़ सिर्फ़ पानी भर जाने की साधारण घटना नहीं होती। यह एक गंभीर प्राकृतिक आपदा है, जिसका असर हमारे जीवन, समाज और पर्यावरण पर गहरा और लंबे समय तक रहता है। कभी यह प्रकोप प्रकृति की शक्तियों से आता है - जैसे मूसलाधार बारिश, बर्फ़ और हिमनदों का तेज़ी से पिघलना या समुद्री चक्रवात और सुनामी। तो कभी यह हमारी अपनी लापरवाहियों का नतीजा भी होता है - जैसे बेतहाशा शहरीकरण, नालियों और नदियों पर अतिक्रमण, वनों की अंधाधुंध कटाई और जलवायु परिवर्तन को नज़रअंदाज़ करना। यही वजह है कि मामूली-सी बारिश भी कई बार बड़े शहरों में जलभराव और शहरी बाढ़ का कारण बन जाती है।
आज हम इस लेख में सबसे पहले हम यह जानेंगे कि बाढ़ की परिभाषा क्या है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे कैसे देखा जाता है। इसके बाद हम यह समझेंगे कि बाढ़ आने के पीछे कौन-कौन से प्राकृतिक और मानवीय कारण ज़िम्मेदार होते हैं। फिर हम बाढ़ के विभिन्न प्रकार और उनकी विशेषताओं पर चर्चा करेंगे, ताकि यह साफ़ हो सके कि अलग-अलग क्षेत्रों में बाढ़ किस रूप में सामने आती है। अगले भाग में हम देखेंगे कि बाढ़ का असर स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण पर किस तरह पड़ता है। इसके बाद हम बाढ़ नियंत्रण और रोकथाम की रणनीतियों के बारे में जानेंगे। और अंत में, हम यह समझेंगे कि बाढ़ के समय कौन-कौन सी सावधानियाँ अपनानी चाहिए, ताकि नुकसान को कम किया जा सके और जीवन को सुरक्षित रखा जा सके।

बाढ़ की परिभाषा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
बाढ़ केवल पानी का इकट्ठा होना नहीं है, बल्कि यह एक जटिल प्राकृतिक आपदा है। सरल भाषा में, जब किसी नदी, झील या जलस्रोत का पानी अपने किनारों को पार कर आसपास की ज़मीन और बस्तियों को डुबो देता है, तो इसे बाढ़ कहा जाता है। वैज्ञानिक रूप से बाढ़ की स्थिति का पता लगाने के लिए हर नदी पर दो स्तर तय किए जाते हैं - चेतावनी स्तर (Warning Level) और ख़तरे का स्तर (Danger Level)। जैसे ही पानी चेतावनी स्तर पर पहुँचता है, प्रशासन को चौकसी बरतनी पड़ती है, और ख़तरे का स्तर पार करते ही स्थिति गंभीर मानी जाती है। इसे “फ्लड स्टेज” (Flood Stage) भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, बाढ़ केवल जलभराव की समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज की आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक क्षमता की परीक्षा भी है। यानी बाढ़ तब ही आपदा बनती है जब कोई इलाक़ा अचानक आई जल-स्थिति को संभाल नहीं पाता।

बाढ़ के प्रमुख प्राकृतिक और मानवीय कारण
बाढ़ कई कारणों से आती है और इन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों में बाँटा जा सकता है - प्राकृतिक कारण और मानवजनित कारण।

  • प्राकृतिक कारणों में सबसे अहम है भारी वर्षा। जब किसी क्षेत्र में लगातार मूसलाधार बारिश होती है और ज़मीन या नदी उसे सँभाल नहीं पाती, तो बाढ़ की स्थिति बन जाती है। हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर (glacier) और बर्फ़ के तेजी से पिघलने से भी नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है। कई बार बाँध, बैराज या लीवी टूट जाते हैं और लाखों लीटर पानी पलभर में आसपास के क्षेत्र को डुबा देता है। तटीय क्षेत्रों में चक्रवात और सुनामी जैसे समुद्री तूफ़ान बाढ़ का बड़ा कारण बनते हैं।
  • मानवजनित कारणों में सबसे अहम है अनियंत्रित शहरीकरण। जैसे-जैसे शहरों का विस्तार होता है, प्राकृतिक जलनिकासी मार्ग नष्ट हो जाते हैं। सड़क, सीमेंट (cement) और कंक्रीट (concrete) की सतह पानी को सोखने नहीं देती, जिससे मामूली बारिश भी शहरी बाढ़ का रूप ले लेती है। वनों की अंधाधुंध कटाई से नदियों में गाद भर जाती है और उनका प्रवाह बाधित होता है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन भी अब बाढ़ के पैटर्न (pattern) को और अनिश्चित और खतरनाक बना रहा है - कभी अचानक बारिश, तो कभी असामान्य मौसमी बदलाव।

बाढ़ के प्रकार और उनकी विशेषताएँ
बाढ़ कई रूपों में आती है और हर प्रकार की अपनी विशिष्टताएँ होती हैं:

  • नदी बाढ़: यह तब होती है जब नदियों में जलप्रवाह उनकी क्षमता से ज़्यादा हो जाता है। लगातार बारिश या पहाड़ी इलाक़ों से पानी के तेज़ बहाव के कारण नदी किनारे के गाँव और शहर जलमग्न हो जाते हैं।
  • तटीय बाढ़: समुद्री तूफ़ानों, चक्रवातों या सुनामी की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़कर ज़मीन पर फैल जाता है। यह विशेषकर भारत के तटीय इलाक़ों जैसे ओडिशा और आंध्र प्रदेश में देखने को मिलती है।
  • फ़्लैश फ़्लड (Flash Flood): इसे अचानक और तेज़ बाढ़ कहा जाता है। यह आमतौर पर क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) यानी बादल फटने के कारण होती है और कुछ ही मिनटों में पूरा इलाक़ा डूब जाता है।
  • शहरी या सीवर (Sewer) बाढ़: शहरों में तब आती है जब ड्रेनेज सिस्टम (Drainage System) भारी बारिश को सँभाल नहीं पाता। दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु जैसे शहरों में अक्सर यह समस्या देखी जाती है।
  • भूजल आधारित बाढ़: जब लगातार लंबे समय तक बारिश होती है और ज़मीन पानी से संतृप्त हो जाती है, तो भूजल सतह पर आने लगता है।
  • आइस-जैम (Ice-Jam) बाढ़: ठंडे क्षेत्रों में जब बर्फ़ नदी के प्रवाह को रोक देती है और अचानक पिघलने पर पानी तेज़ी से बह निकलता है।
    हर प्रकार की बाढ़ अपने साथ अलग-अलग तरह के नुकसान और चुनौतियाँ लेकर आती है।

बाढ़ के प्रभाव: स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण
बाढ़ के असर बहुआयामी होते हैं और यह सिर्फ़ पानी में डूबने तक सीमित नहीं है।

  • स्वास्थ्य पर असर: जब घर और गलियाँ गंदे पानी से भर जाती हैं, तो डायरिया (diarrhea), हैज़ा, त्वचा रोग और मलेरिया (malaria) जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। कई बार लोग लंबे समय तक तनाव, अवसाद और मानसिक समस्याओं से भी जूझते हैं।
  • समाज और इन्फ्रास्ट्रक्चर (infrastructure) पर असर: सड़कें टूट जाती हैं, पुल बह जाते हैं, बिजली और संचार व्यवस्था ठप हो जाती है। हज़ारों परिवार बेघर हो जाते हैं और उन्हें राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ती है।
  • कृषि और पशुधन पर असर: खेतों की फसलें पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं, जिससे किसानों की आर्थिक हालत बिगड़ती है। मवेशी बह जाते हैं या बीमार पड़ जाते हैं।
  • पर्यावरण पर असर: जंगलों का नुकसान होता है, वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास से विस्थापित हो जाते हैं और नदियाँ गाद व प्रदूषण से भर जाती हैं। हालाँकि, एक सकारात्मक पहलू यह है कि बाढ़ के बाद खेतों में उर्वर सिल्ट (fertile silt) जम जाती है और भूजल स्तर रिचार्ज (recharge) हो जाता है, जिससे अगले सीज़न (season) में खेती को फ़ायदा मिल सकता है।

बाढ़ नियंत्रण और रोकथाम की रणनीतियाँ
बाढ़ को पूरी तरह रोकना मुश्किल है, लेकिन इसके नुकसान को कम करने के लिए कई रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं।

  • इंजीनियरिंग (Engineering) उपाय: बाँध, तटबंध, चेक डैम (Check Dam) और नदियों के चैनल को चौड़ा करने जैसे उपाय बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
  • शहरी समाधान: शहरों में परमेएबल सतह (Permeable Surface - ऐसी ज़मीन जो पानी सोख ले), ग्रीन रूफ़ और मज़बूत ड्रेनेज सिस्टम बनाए जाने चाहिए ताकि बारिश का पानी जमा न हो।
  • तकनीकी उपाय: फ़्लड वार्निंग सिस्टम (Flood Warning System), सैटेलाइट मॉनिटरिंग (Satellite Monitoring) और रिस्क मैपिंग (Risk Mapping) से प्रशासन को पहले से चेतावनी मिल जाती है, जिससे नुकसान को कम किया जा सकता है।
  • सामुदायिक भागीदारी: आपदा प्रबंधन योजनाएँ, राहत केंद्र, मॉक ड्रिल्स (Mock Drill) और सामुदायिक प्रशिक्षण बाढ़ के समय लोगों को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।

इन सभी उपायों का संयुक्त रूप ही किसी क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है।

बाढ़ के समय अपनाई जाने वाली सावधानियाँ
बाढ़ से बचने के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर कुछ सावधानियाँ बेहद ज़रूरी हैं।

  • बाढ़ से पहले: ज़रूरी दस्तावेज़, दवाइयाँ और भोजन पैक करके सुरक्षित जगह पर रखें। घर को बिजली और गैस सप्लाई से अलग कर दें।
  • बाढ़ के दौरान: सबसे पहले सुरक्षित ऊँची जगह पर पहुँचें। कभी भी बाढ़ के पानी में चलने या गाड़ी चलाने की कोशिश न करें। बिजली के खंभों और तारों से दूर रहें। प्रशासन द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें।
  • बाढ़ के बाद: जब पानी उतर जाए तो बिना आधिकारिक अनुमति के घर में प्रवेश न करें। सफ़ाई करते समय दस्ताने और मास्क पहनें। खाने-पीने की वस्तुओं को उबालकर या शुद्ध करके ही इस्तेमाल करें। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें, क्योंकि बाढ़ का असर लंबे समय तक रह सकता है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/22px89ke 
https://tinyurl.com/yc4r8cch 
https://tinyurl.com/2p9nwet3 
https://tinyurl.com/bdhmxwn7 

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