मेरठ की सुबह में घुलती कॉफ़ी की ख़ुशबू: एक बीज से वैश्विक ब्रांड तक की कहानी

स्वाद- खाद्य का इतिहास
03-10-2025 09:23 AM
मेरठ की सुबह में घुलती कॉफ़ी की ख़ुशबू: एक बीज से वैश्विक ब्रांड तक की कहानी

मेरठवासियों, जब आप अपनी सुबह की शुरुआत एक कप गरम कॉफ़ी (coffee) के साथ करते हैं, तो वह सिर्फ़ एक पेय नहीं होता - वह एक पूरी यात्रा की शुरुआत होती है। यह यात्रा शुरू होती है 17वीं सदी में, एक सूफ़ी संत की चुपचाप की गई कोशिश से, और आज पहुँचती है आपके शहर के किसी कोज़ी कैफ़े (cozy cafe), किसी स्टाइलिश ऑफिस ब्रेक एरिया (stylish office break area) या फिर आपके घर के आरामदायक कोने तक। कॉफ़ी का वह प्याला जो आज आपके हाथ में है, उसकी खुशबू में इतिहास की कहानियाँ, व्यापारिक क्रांति और सामाजिक बदलाव की परछाइयाँ समाई हुई हैं। मेरठ जैसे शहर, जहाँ युवा सोच और पुरातन परंपराएँ एक साथ सांस लेती हैं, वहाँ कॉफ़ी का सफ़र किसी कहानी से कम नहीं। बाबा बुधान की दूरदृष्टि से शुरू होकर यह बीज दक्षिण भारत की मिट्टी में फला-फूला, और ब्रिटिश राज (British Rule) के दौरान एक वाणिज्यिक फ़सल के रूप में विकसित हुआ। फिर समय ने करवट ली और इरानी कैफ़े (Irani cafe), इंडियन कॉफ़ी हाउस (Indian Coffee House), और बाद में कैफ़े कॉफ़ी डे (Cafe Coffee Day) जैसे ब्रांड्स (brands) ने भारत में ‘कैफ़े कल्चर’ को जन्म दिया - एक ऐसा स्थान जहाँ कॉफ़ी के साथ-साथ विचार भी पकते हैं। आज जब आप मेरठ की गलियों में किसी कैफ़े के सामने से गुज़रते हैं, तो वह कॉफ़ी की महक सिर्फ़ स्वाद की नहीं, उस ऐतिहासिक यात्रा की भी है, जिसने भारत को वैश्विक कॉफ़ी मानचित्र पर एक मज़बूत स्थान दिलाया। यह कहानी स्वाद से कहीं ज़्यादा है - यह कहानी है साहस, संस्कृति और संवाद की।
आज हम जानेंगे कि भारत में कॉफ़ी की शुरुआत कैसे हुई और इसमें बाबा बुधान जैसे महान व्यक्तित्व की क्या भूमिका रही। फिर, हम विस्तार से समझेंगे कि कॉफ़ी की खेती भारत में कैसे विकसित हुई और दक्षिण भारत के किन क्षेत्रों में इसका विस्तार हुआ। इसके बाद, हम भारत में कैफ़े संस्कृति के शुरुआती इतिहास पर नज़र डालेंगे और देखेंगे कि कैसे इरानी कैफ़े और इंडियन कॉफ़ी हाउस ने सामाजिक जीवन को प्रभावित किया। इसके साथ ही हम आधुनिक कैफ़े संस्कृति में आए बदलाव और वैश्विक ब्रांड्स जैसे स्टारबक्स (Starbucks), सीसीडी (CCD), डंकिन (Dunkin) आदि के प्रभाव को भी देखेंगे। इसके बाद, हम भारत की वैश्विक कॉफ़ी उत्पादन में स्थिति को समझेंगे और यह जानेंगे कि भारत कैसे दुनिया के प्रमुख कॉफ़ी उत्पादक देशों में शामिल हुआ। अंत में, हम कुछ प्रमुख वैश्विक कॉफ़ी ब्रांड्स जैसे स्टारबक्स, नेस्काफे (Nescafe), टिम हॉर्टन्स (Tim Hortons) और डंकिन डोनट्स (Dunkin Donuts) के प्रभाव और उनकी वैश्विक पहचान पर भी बात करेंगे।

भारत में कॉफ़ी का आगमन और बाबा बुधान की भूमिका
कॉफ़ी भारत में 17वीं सदी में बाबा बुधान द्वारा लायी गई। ये एक मुस्लिम सूफ़ी संत थे, जिन्होंने यमन से सिर्फ सात बीज छिपाकर भारत में लाए और उन्हें चिकमंगलुर में रोपा। इस साहसिक कदम ने भारत में कॉफ़ी की कहानी शुरू की। पहले से ही अरबों में कॉफ़ी का एकाधिकार था और बीजों को बाहर नहीं जाने दिया जाता था। बाबा बुधान ने अपनी सूझबूझ और धार्मिक श्रद्धा का उपयोग कर इसे छिपाकर लाया। माना जाता है कि वह मक्का की तीर्थयात्रा पर गए थे और वहीं से कॉफ़ी बीजों को अपने वस्त्रों के अंदर छिपाकर भारत लाए। उनके इस दुस्साहसिक कार्य ने भारत में न केवल कॉफ़ी को जन्म दिया, बल्कि "बाबा बुधान गिरी" के रूप में एक सांस्कृतिक स्थल को भी जन्म दिया। इतिहास में यह भी देखा गया कि भारत में कॉफ़ी का परिचय अरब व्यापारियों के माध्यम से मालाबार तट पर पहले ही हुआ था। इसके प्रमाण हेज़ल कोलाको (Hazel Colaco) की पुस्तक ‘अ कैश ऑफ कॉफ़ी’ (A Cash of Coffee) में भी मिलते हैं, जिसमें बताया गया है कि अरब व्यापारी पहले से ही कॉफ़ी को लेकर भारत के पश्चिमी तट से जुड़े थे। इसके अलावा, मुग़ल काल में जहींगिर के दरबार में एडवर्ड टेरी (Edward Terry) ने कॉफ़ी के उपयोग का उल्लेख करते हुए लिखा, “जो लोग धर्म में कट्टर होते हैं वे शराब नहीं पीते, बल्कि एक पेय का उपयोग करते हैं जिसे वे कॉफ़ी कहते हैं… यह पाचन के लिए बहुत उपयोगी है, मन को जागृत करती है और रक्त को शुद्ध करती है।” यह दिखाता है कि भारत में कॉफ़ी का प्रसार और उसकी लोकप्रियता काफी पहले से शुरू हो चुकी थी और यह न केवल व्यापार बल्कि स्वास्थ्य और समाज में भी अपनी पहचान बना चुकी थी।

कॉफ़ी की खेती और भारत में इसका विस्तार
बाबा बुधान द्वारा लाए गए बीजों से मुख्य रूप से अरेबिका कॉफ़ी (Arabica Coffee) उत्पन्न हुई, जो बाद में रोबस्टा (Robusta) के साथ भारत की प्रमुख फसल बन गई। दक्षिण भारत के राज्यों - कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल - में कॉफ़ी की खेती विकसित हुई और ये क्षेत्र आज भी भारत के प्रमुख कॉफ़ी उत्पादक क्षेत्र हैं। विशेष रूप से चिकमंगलुर और कोडगु जैसे स्थानों ने कॉफ़ी उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। ब्रिटिश शासन के दौरान कॉफ़ी ने वाणिज्यिक महत्त्व हासिल किया और 19वीं सदी में यूरोप में भी इसकी मांग बढ़ी। 1940 के दशक में माईसूर कॉफ़ी का यूरोपियन बाज़ार में स्थापित नाम था, और ब्रिटिश व्यापारियों के लिए यह कॉफ़ी, चाय की तुलना में अधिक लाभदायक मानी जाती थी। अंग्रेज़ों ने भारत में कॉफ़ी को एक प्रमुख निर्यात फसल के रूप में देखा और इसके उत्पादन को संगठित किया। भारत आज दुनिया का छठा सबसे बड़ा कॉफ़ी उत्पादक देश है, जो न केवल अरेबिका और रोबस्टा की विविध किस्में उगाता है, बल्कि कई क्षेत्रीय ब्रांडों और माइक्रो-क्लाइमेट (micro-climate) पर आधारित विशेष कॉफ़ी किस्में भी विकसित कर चुका है। हालांकि, यह फसल भारत की मूल भूमि की नहीं है, लेकिन इसकी लोकप्रियता और उत्पादन ने इसे देश की आर्थिक और सांस्कृतिक धारा में एक मजबूत स्थान दिलाया।

भारत में कैफ़े कल्चर का विकास और प्रारंभिक इतिहास
भारत में कैफ़े संस्कृति की शुरुआत 19वीं सदी में हुई जब कोलकाता में ब्रिटिशों द्वारा अल्बर्ट हॉल कैफ़े (Albert Hall Cafe) (1876) की स्थापना की गई, जो बाद में भारतीय कॉफ़ी हाउस (Indian Coffee House) में तब्दील हो गया। मुंबई में स्थापित पहले इरानी कैफ़े, जो ज़रथुश्त्री प्रवासियों द्वारा शुरू किए गए थे, भारतीय समाज में स्वाद और संवाद दोनों के लिए प्रसिद्ध हुए। ये कैफ़े केवल पेय स्थल नहीं थे, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र भी बन गए, जहाँ आज़ादी से पहले कई आंदोलनकारियों की मुलाक़ातें होती थीं। इरानी कैफ़े अपने सरल इंटीरियर (interior), मसाला बन्स (masala buns), इरानी चाय और समोसे के लिए प्रसिद्ध हुए। 1878 में पुणे में स्थापित डोरबजी ऐंड संस (Dorabjee and Sons), 1942 में दिल्ली का यूनाइटेड कॉफ़ी हाउस (United Coffee House), और बाद में इंडियन कॉफ़ी हाउस की सैकड़ों शाखाएँ पूरे भारत में खुलीं। ये स्थान न केवल कॉफ़ी पीने की जगह थे, बल्कि विचारों के आदान-प्रदान और बौद्धिक चर्चाओं के मंच भी थे। इन कैफ़े की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 1940 के दशक में भारतीय कॉफ़ी हाउस की 50 से अधिक शाखाएँ खोली गईं। इन स्थानों ने भारत की सार्वजनिक बहस और लोकतांत्रिक संस्कृति को आकार देने में अद्वितीय भूमिका निभाई।

आधुनिक कैफ़े संस्कृति और वैश्विक प्रभाव
1996 में वी. जी. सिद्धार्थ द्वारा स्थापित कैफ़े कॉफ़ी डे ने भारत में आधुनिक कैफ़े संस्कृति को एक नई दिशा दी, जिसने युवाओं को एक आधुनिक, आरामदायक और सामाजिक स्थान दिया जहाँ वे कॉफ़ी के साथ अपनी मीटिंग्स (meetings), बातचीत और रचनात्मक गतिविधियाँ कर सकते थे। इसके बाद, स्टारबक्स (Starbucks), कोस्टा कॉफ़ी (Costa Coffee), डंकिन डोनट्स (Dunkin Donuts) और क्रिस्पी क्रीम (Crispi Creme) जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों ने भारत में अपनी शाखाएँ खोलीं और एक नई संस्कृति की नींव रखी। 2012 में भारत में टाटा स्टारबक्स की शुरुआत के बाद, वैश्विक ब्रांडों ने भारतीय बाज़ार की संभावनाओं को पहचाना और देशभर में अपने कैफ़े खोले। आज के कैफ़े सिर्फ कॉफ़ी पीने का स्थान नहीं हैं, बल्कि ये युवाओं और पेशेवरों के लिए कार्यस्थल, मीटिंग स्पेस (meeting space) और सामाजिक मेलजोल के केंद्र बन गए हैं। फ्री वाई-फाई Free Wi-Fi), आरामदायक बैठने की व्यवस्था और विविध पेय-पदार्थों की उपलब्धता ने इन्हें अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया है। अब कैफ़े में न केवल कैपुचिनो और लट्टे मिलते हैं, बल्कि ऑर्गेनिक (organic) और स्पेशलिटी कॉफ़ी (specialty coffee) के लिए भी एक अलग वर्ग तैयार हो चुका है जो गुणवत्ता और अनुभव को प्राथमिकता देता है।

वैश्विक कॉफ़ी उत्पादन में भारत की स्थिति और शीर्ष उत्पादक देश
2023 के आँकड़ों के अनुसार, ब्राज़ील दुनिया का सबसे बड़ा कॉफ़ी उत्पादक देश है, जिसने कुल 34 लाख टन से अधिक हरी कॉफ़ी का उत्पादन किया। इसके बाद वियतनाम (Vietnam) (19.5 लाख टन), इंडोनेशिया (Indonesia) (7.6 लाख टन), कोलंबिया (Columbia) (6.8 लाख टन), और इथियोपिया (Ethiopia) (5.6 लाख टन) जैसे देश प्रमुख स्थान पर हैं। भारत ने 3.3 लाख टन उत्पादन के साथ दुनिया में नवां स्थान प्राप्त किया है। हालांकि उत्पादन के मामले में भारत कुछ देशों से पीछे है, लेकिन इसकी अरबिका और रोबस्टा दोनों किस्मों की विविधता और मोनसून मालाबार जैसे अनूठे स्वाद भारत को वैश्विक कॉफ़ी व्यापार में एक विशेष पहचान दिलाते हैं। इसके अलावा होंडुरस (Honduras), युगांडा (Uganda), पेरू (Peru) और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (Central African Republic) जैसे देश भी कॉफ़ी उत्पादन में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। इस वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत का उभरता हुआ कॉफ़ी उद्योग न केवल निर्यात के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि देश की कैफ़े संस्कृति और युवाओं के स्वाद में भी बड़ी भूमिका निभा रहा है।

दुनिया के प्रमुख कॉफ़ी ब्रांड और उनके वैश्विक प्रभाव
स्टारबक्स, कोस्टा कॉफ़ी, नेस्काफे, टिम हॉर्टन्स, डंकिन डोनट्स और फोल्ज़र्स (Folgers) जैसे ब्रांड दुनियाभर में कॉफ़ी संस्कृति को आकार दे रहे हैं। स्टारबक्स की 83 देशों में 30,000 से अधिक शाखाएँ हैं, और यह 12.4% अमेरिकी ग्राउंड कॉफ़ी मार्केट (ground coffee market) पर कब्ज़ा जमाए हुए है। कोस्टा कॉफ़ी के 31 देशों में 4,000 से अधिक स्टोर और 10,000 स्मार्ट कैफ़े मशीनें हैं। नेस्काफे, जो नेस्ले ब्रांड (Nestle brand) का हिस्सा है, 180 से अधिक देशों में मौजूद है और इंस्टेंट कॉफ़ी (instant coffee) में इसका नाम सबसे आगे है। टिम हॉर्टन्स कनाडा में लगभग 4,300 स्टोरों के साथ एक प्रमुख ब्रांड है और इसकी पहचान कॉफ़ी के साथ डोनट्स के लिए होती है। डंकिन डोनट्स की 12,000 से अधिक शाखाएँ 45 देशों में हैं, और यह रोज़ 30 लाख से अधिक ग्राहकों को सेवा देती है। फोल्ज़र्स, 1850 में स्थापित एक ब्रांड, 150 वर्षों से अधिक समय से अपनी ग्राउंड कॉफ़ी के लिए प्रसिद्ध है। इन ब्रांडों ने वैश्विक स्तर पर न केवल कॉफ़ी की खपत को बढ़ाया है, बल्कि भारतीय बाज़ार में भी अपने विशेष स्थान बनाए हैं और भारत के कैफ़े उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/7fsf673r 
https://tinyurl.com/2p9u4yed 
https://tinyurl.com/4dmuv87r 
https://tinyurl.com/bdzn7akn 

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