समय - सीमा 275
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इस समय शिव का महिना यानी श्रावण मास चल रहा है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस माह में भगवान शिव की आराधना करने से विशेष आशीष की प्राप्ति होती है। इस माह में भगवान शिव को कई युक्तियों से लुभाया जाता है, जिनमें से मंत्रोचारण भी एक है। जब शिव मंत्रों की बात हो और शिव तांडव स्तोत्रं की बात ना हो एसा नही हो सकता है। पौराणिक कहानियों और मान्यताओं के अनुसार शिव ताण्डव स्तोत्रम की रचना महान पराक्रमी, महान पंडित एवं शिव के अनन्य भक्त लंकाधिपति रावण द्वारा किया गया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार रावण भगवान शिव के कैलाश पर्वत को ही उठा कर लंका ले जाने लगा। तब महादेव शिव ने अपने अंगूठे से कैलाश पर्वत को थोड़ा दबा दिया जिससे कैलाश अपनी जगह पर पुनः अवस्थित हो गया। और इस क्रम में महान शिव भक्त रावण का हाथ दब गया। फिर उसने शिव की आराधना की और क्षमा याचना की। इसी क्रम में रावण द्वारा इस पवित्र स्तोत्र की रचना हुई। कालांतर में ये स्तोत्र शिव तांडव स्तोत्रम कहलाया।
शिव ताण्डव स्तोत्र स्तोत्रकाव्यों में अत्यन्त लोकप्रिय स्तोत्र है। इसकी अनुप्रास और समास बहुल भाषा संगीतमय ध्वनि और प्रवाह के कारण शिव भक्तों में यह अत्यंत प्रचलित है। इसकी सुन्दर भाषा एवं काव्य-शैली के कारण यह स्तोत्रों में परम विशिष्ट स्थान रखता है।
रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम के कुछ अंश
रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम (Shiv Tandav Stotram) के उपरोक्त अंश का हिंदी में अर्थ :-
जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारा उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें ।।१।।
जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढता रहे।।२।।
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2YurSPf