इस्लाम में चंद्रमा को देख मनाया जाता है मोहर्रम

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
10-09-2019 02:30 PM
इस्लाम में चंद्रमा को देख मनाया जाता है मोहर्रम

मोहर्रम का महीना मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए काफी खास माना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर (इसकी शुरुआत दूसरे खलीफा उमर इब्न खट्टब ने 1440 साल पहले की थी) के अनुसार साल का पहला महीना मोहर्रम होता है, यह महीना गम का महीना माना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कैलेंडर से भिन्न चंद्र प्रणाली पर आधारित है। इसमें एक नए महीने की शुरुआत महीने के 29 वें दिन में दिखाई दिए चंद्रमा से होती है। महीने के 29 वें दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाते हैं तो अगले दिन से नया महीना शुरू होता है, और यदि चंद्रमा के दर्शन नहीं होते है तो अगले दिन को 30 वें दिन के रूप में गिना जाता है और नया महीना एक दिन बाद शुरू होता है।

मोहर्रम में सबसे महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक है “आलम (ध्वज)”। यह कर्बला की लड़ाई में हुसैन इब्न अली की सच्चाई और बहादुरी की निशानी है। इस लड़ाई के दौरान, हुसैन इब्न अली के काफला के मूल ध्वजवाहक अब्बास (हुसैन इब्न अली के भाई) थे। ऐसा माना जाता है कि अब्बास की मृत्यु युद्ध के दौरान हुई थी जब वह कारवां के छोटे बच्चों के लिए यूफ्रेट्स नदी से पानी लेने गए थे और दुश्मनों ने उन पर पीछे से वार कर दिया था। अब्बास ने युद्ध में अपनी दोनों भुजाएं खो दीं, फिर भी उन्होंने अपने दांतों से पानी के मुश्क को खींच कर बच्चों तक ले जाने की दृढ़ता को जारी रखा। परंतु दुश्मनों के तीरंदाजों ने अब्बास पर तीर से हमला करना शुरू कर दिया जिससे पानी का मुश्क छिल गया, और अब्बास अपने घोड़े से गिर गए और आलम जमीन पर गिर गया।

आलम अब्बास की शहादत की याद दिलाता है और हुसैन इब्न अली के अनुयायियों (जिन्होंने कर्बला में अपना जीवन खो दिया) के प्रति स्नेह और सलाम के प्रतीक के रूप में कार्य करता है। आलम आकार में भिन्न होते हैं, आमतौर पर यह एक लकड़ी के स्तंभ के आधार के होते हैं जिसके शीर्ष पर एक सामान्य धातु को संलग्न किया जाता है। फिर उस स्तंभ को कपड़े और एक बैनर (Banner) के साथ मुहम्मद के परिवार के सदस्यों के नाम से तैयार किया जाता है। अब्बास के नाम वाले आलम में आमतौर पर आभूषण को शामिल किया जाता है, जो उस पानी के मुश्क को दर्शाता है।

रामपुर से थोड़ी दूर स्थित अमरोहा के अज़खाना इमामबाड़ा में आशुर के दिन और उसके बाद होने वाले कार्यक्रमों को बड़ी संजीदगी से मनाया जाता है। मुसम्मत वजीरन ने अपनी बेटी की याद में इस अज़खाना की स्थापना की थी जिससे यह पता चलता है कि यह अजाखाना 1226 हिजरी (1802) से पहले स्थापित किया गया था। इस अज़ाख़ाना में मजलिस-ए-अज़ा का काफी अच्छा प्रदर्शन किया जाता है। 9 वें मोहर्रम पर, जूलूस-ए-जुलजाना मोहल्ला दानिशमंदन से शुरू होता है और इस जूलूस का अंत इसी अज़ाख़ाना में होता है।

संदर्भ :-
1.
http://azadariamroha.blogspot.com/2010/04/azakhana-wazeer-un-nisa-amroha.html
2. https://bit.ly/2k798XG
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Mourning_of_Muharram#Alam